लोकसभा की 543 सीटों के लिए 19 अप्रैल से सात चरणों में चुनाव शुरू होने वाले है और अलग-अलग राजनैतिक पार्टियां जोर-शोर से इसकी तैयारियों में लगी हैं। नागरिक उन्हें वोट दें इसके लिए उन्हें प्रेरित करने और लुभाने के लिए राजनैतिक पार्टियां जनता से अलग-अलग तरीकों से संवाद स्थापित करती हैं जैसे आमने-सामने के अभियानों, रैलियों, चुनावी पर्चों या सोशल मीडिया के माध्यम से। इन्हीं विभिन्न साधनों में से एक प्रमुख साधन चुनावी घोषणापत्र हैं। यह एक तरह से किसी पार्टी की आवाज़ माना जा सकता है। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए कुछ राजनैतिक दलों ने अपना चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिया है और कुछ ने इसे जारी करने की तारीख घोषित कर दी है। लेकिन क्या आप जानते है कि चुनावी घोषणापत्र क्या है? और लोकतंत्र में इनकी क्या अहमियत है?
चुनावी घोषणापत्र के बारे में
चुनावी घोषणापत्र केवल भारत में ही नहीं दुनिया भर के और भी कई लोकतांत्रिक देशों में जारी किए जाते हैं। यह किसी राजनैतिक पार्टी या उम्मीदवार का सार्वजनिक बयान होता है जिसमें उनका एजेंडा, उनकी योजनाएं और उनके लक्ष्य दिए गए होते हैं। यह एक लिखित दस्तावेज के रूप में होता है। इसमें आमतौर पर समाज में मौजूद विभिन्न मुद्दों जैसे शिक्षा, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, कृषि, रोज़गार, सुरक्षा, आपातकालीन सेवाओं, पर्यावरण, आदि क्षेत्रों को लेकर पार्टी विशेष की नीतियां और योजनाएं और प्रतिबद्धताएं शामिल होती हैं। राजनैतिक पार्टियां इन्हें तैयार करने में बहुत मेहनत करती हैं। इसके लिए एक समिति का गठन किया जाता है और पार्टी और समिति के सदस्य आपस में सलाह करके इसे तैयार करते है। इसके लिए पुरानी नीतियों की समीक्षा की जाती है और उस आधार पर नई नीतियां तैयार की जाती हैं। इन्हें लिखते समय भाषा की स्पष्टता और सरलता को भी ध्यान में रखा जाता है, ताकि लोग इनमें लिखी बातों को आसानी से समझ सकें।
राजनैतिक पार्टियां अपने-अपने घोषणापत्र में बताती है कि जीतने पर वे लोगों की भलाई के लिए क्या-क्या काम करेंगी और लोगों को क्या फायदे होंगे। हालांकि पार्टियों पर इसमें किए गए वादों को पूरा करने की बाध्यता नहीं होती। यही वजह है कि कई बार वे सत्ता में आने के लिए घोषणापत्रों में बड़े-बड़े वायदे तो कर देती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्हें पूरा नहीं करतीं। चुनावी घोषणा पत्र के लिए दिशा-निर्देश चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित किए हैं। इन्हें राजनैतिक पार्टियों के साथ सलाह-मशवरा करके निर्धारित किया जाता है और चुनाव की पूरी प्रक्रिया के दौरान इनका पालन करना ज़रूरी होता है। इन्हें चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता, पारदर्शिता और नैतिक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित किया जाता है। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार-
घोषणा पत्र में संविधान के आदर्शों और सिद्धांतों के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं होना चाहिए।
राजनीतिक पार्टियों को उन वादों से बचना चाहिए, जो मतदाताओं पर गलत प्रभाव डालते हैं।
राजनीतिक पार्टियों को घोषणापत्र में किए गए वादों की ज़रूरत को बताना होगा।
वही वादे किए जाएंगे, जो पूरे किए जा सकें।
इन वादों को पूरा करने के लिए वित्तीय ज़रूरतें कैसे पूरी की जाएंगी, यह भी बताना होगा।
चुनावी घोषणापत्र में समय के साथ आए बदलाव
भारत में पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था। उस समय सभी राजनैतिक पार्टियां घोषणापत्र नहीं प्रकाशित करती थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से राजनैतिक पार्टियां हरेक आम चुनाव के लिए घोषणा पत्र जारी करने लगी। इनमें सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को किफायती बनाना, कृषि ऋणों की माफी, वृद्ध और असहाय किसानों के लिए पेंशन योजना, पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने का प्रावधान, विधवाओं और वृद्धा पेंशन, किसानों के लिए के प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमा जैसे मुद्दों पर खास ज़ोर रहा है।
इसके अलावा कुछ पार्टियों ने एक नया चलन शुरू किया है, जिसके तहत वे ऐसे वादे करती हैं, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में ‘मुफ़्त में प्रदान की जानेवाली वस्तुएं और सेवाएं’ यानी फ्रीबी कहा जाता है। वेबस्टर डिक्शनरी के अनुसार ‘फ़्रीबी’ बिना किसी शुल्क के प्रदान की जानेवाली कोई चीज़ होती है। मुफ़्त सुविधाओं का वादा विशिष्ट समूहों जैसे गरीब परिवारों, हाशिए पर रहनेवाले समुदायों, महिलाओं और विकलांग लोगों के साथ-साथ सभी मतदाताओं के लिए किया जा सकता है।
‘मुफ़्त वस्तुएं या सेवाएं’ प्रदान करने का वादा या ‘फ़्रीबी’ चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है, खासकर अगर इस किस्म के वादे चुनाव से ठीक पहले किए गए हो। इससे लोग किसी पार्टी की दीर्घकालीन नीतियों की बजाए उनके अल्पकालिक प्रलोभनों के आधार पर उन्हें वोट देने का निर्णय कर सकते हैं। यही नहीं इससे सरकार पर वित्तीय बोझ भी बढ़ सकता है। यही वजह है कि चुनाव आयोग राजनैतिक पार्टियों को यह सलाह देता है कि वे अपने घोषणा पत्र में ‘फ्रीबी’ से बचें।
चुनावी घोषणापत्र क्यों ज़रूरी हैं
पार्टियों के लिए उनकी भविष्य की योजनाएं, प्रमुख मुद्दों पर कार्रवाइयों के तरीकों और उनकी वैचारिक दृष्टि निर्धारित करने के लिए चुनावी घोषणा पत्र महत्त्वपूर्ण होता है। इनसे हमें समसामयिक मुद्दों और घटनाओं की जानकारी भी मिलती है। ये समय के साथ किसी पार्टी की नीतियों, प्राथमिकताओं और उसके राजनीतिक रुख में आए बदलाव को समझने का प्रभावी साधन भी होते हैं। इसके साथ ही अलग-अलग पार्टी के घोषणापत्र की तुलना करके हमें यह निर्णय लेने में मदद मिल सकती है कि वोट किसे देना है।
अगर घोषणापत्र नहीं होंगे तो चुनाव हो जाने के बाद और चुनाव के नतीजे घोषित हो जाने के बाद लोगों के लिए यह याद करना मुश्किल हो जाएगा कि चुनाव होने से पहले कौन सी पार्टी ने क्या वायदे किए थे। इसकी मदद से लोग और विरोधी राजनैतिक दल सत्तारूढ़ पार्टी की कथनी और करनी में भेद को समझ सकते हैं और चुनाव से पहले उसने जो वादे किए थे उनके लिए उन्हें जवाबदेह ठहरा सकते हैं। वादे और प्रतिबद्धताएं न पूरी होने पर अगले चुनावों में वे उस पार्टी को वोट न देने का निर्णय ले सकते हैं।
घोषणापत्र न केवल आम जनता के लिए उपयोगी होता है, बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों के लिए भी ये एक निर्देश पुस्तिका के तौर पर कार्य करता है। चुनाव से सम्बन्धित अभियानों और रैलियों के दौरान वे इनके आधार पर ही अपनी पार्टी का प्रचार करते हैं। वोट किस पार्टी को देना है, कोई मतदाता इस बारे में सोच-समझकर फैसला ले सके इसके लिए चुनावी घोषणापत्र को पढ़ना और समझना उसके लिए बहुत ज़रूरी है। लेकिन अधिकतर मामलों में ये चुनाव से महज़ कुछ ही दिनों पहले जारी किए जाते हैं, जिसकी वजह से अधिकतर मतदाता वोट डालने से पहले इन्हें पढ़ नहीं पाते। ऐसे में जो भूमिका निभाना इनसे अपेक्षित है, ये उसे नहीं निभा पाते और महज़ कागज़ी बनकर रह जाते हैं।