2024 के लोकसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं और इसी बीच अलग-अलग उम्मीदवारों को लेकर विभिन्न प्रकार की सूचनाएं हम तक पहुंच रही है। चुनावी प्रक्रिया में वोट देने के लिए, किसी भी व्यक्ति को उनके इलाके के उम्मीदवार के शैक्षिक योग्यता, सामाजिक और आर्थिक स्थिति ही नहीं, आपराधिक पृष्टभूमि जानना जरूरी होता है। आज के जमाने में यह दलील हो सकता है कि इतने उम्मीदवारों में लगभग सभी के खिलाफ़ कुछ विवाद या पुलिस केस है। ऐसे में ये ध्यान रख पाना मुश्किल है कि किस के खिलाफ़ कौन सा मामला दर्ज हुआ है। साथ ही, जब भी दो बड़े राष्ट्रीय पार्टियों- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस की बात होती है, तब पार्टी के विधान सभा से लेकर लोकसभा के सीटों तक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमूत शाह, कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनावी प्रचार-प्रसार में लगे नज़र आते हैं।
गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में लगभग 44 फीसद मौजूदा विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। वहीं 28 फीसद के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, महिलाओं के खिलाफ अपराध सहित गंभीर आपराधिक मामलों का इतिहास है। ‘भारत की 28 राज्य विधानसभाओं और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के मौजूदा विधायकों का विश्लेषण 2023’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में 28 राज्य विधानसभाओं और दो केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 4,033 विधायकों में से 4,001 का विश्लेषण किया गया है।
यह विश्लेषण वर्तमान विधायकों के पिछले चुनाव लड़ने से पहले दायर किए गए स्व-शपथ पत्रों पर आधारित है। केरल इस सूची में सबसे आगे है, जिसके 135 में से 95 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इसके बाद बिहार का स्थान है, जहां 242 में से 161 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इसके बाद दिल्ली का नंबर आता है, जहां उसके 70 में से 44 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं।
आपराधिक मामले वाले उम्मीदवारों को क्यों दे रहे वोट
इस बारे में कई दलील हैं कि मतदाता ऐसे उम्मीदवारों को आखिर चुनते क्यों हैं? जाति और धर्म आधारित वोट के तहत, ये कारण कुछ हद तक स्पष्ट होते हैं। लेकिन, इसमें सूचना की कमी या बाधा की भी भूमिका है। कम जानकारी वाले मतदाताओं में; विशेष रूप से उम्मीदवारों की प्रभावी ढंग से जांच करने की क्षमता का अभाव हो सकता है। उनके बारे में सही और पर्याप्त जानकारी के अभाव में, मतदाता किसी उम्मीदवार की जातीयता या धर्म के आधार पर, दिखने या दिखाए जाने वाले नीतिगत बातों पर भरोसा कर सकते हैं।
इन सबके अलावा, स्थानीय स्तर पर ऐसा देखा गया है कि लोग उम्मीदवार से ज्यादा प्रधान मंत्री पद के लिए बताए गए चेहरे को ज्यादा समझते और मानते हैं। सही उम्मीदवारों को चुनने का मतलब है कि उनका आपके साथ राजनीतिक और सामाजिक तौर पर विचारधारा का मेल हो सकता है। लेकिन, सही उम्मीदवार न चुनना, आगे चलकर वित्तीय रूप से नुकसान का कारण भी बन सकता है। कुछ शोध के मुताबिक, आपराधिक रूप से आरोपी राजनेताओं को चुनने से, उनके निर्वाचन क्षेत्रों में, हर साल सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी की वृद्धि लगभग 2.4 प्रतिशत कम हो जाती है।
इस विषय को जानने के लिए देश के ग्रामीण इलाकों में एक शोध किया गया। यहां लोगों के अलग-अलग समूहों को मोबाईल के माध्यम से उम्मीदवारों के विषय में जानकारी दी गई। इसमें कुछ सिर्फ मतदान के विषय में जागरूकता से संबंधित था और कुछ को उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों की जानकारी दी गई। शोध में पाया गया कि बिना किसी आपराधिक आरोप का सामना करने वाले उम्मीदवारों के वोटों में 2 प्रतिशत की वृद्धि मिली, जबकि हत्या के आरोप वाले उम्मीदवारों के वोटों में 12 प्रतिशत की कमी आई। मतदान-केंद्र-स्तर पर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, सभी ‘क्लीन’ उम्मीदवारों के वोटों में 6.7 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि हुई और हत्या से संबंधित आरोपों वाले उम्मीदवारों में वोटों में 7.7 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई। शोध बताता है कि मतदाता आपराधिक उम्मीदवारों की तुलना में क्लीन उम्मीदवारों को पसंद करते हैं।
कैसे पार्टी के दिग्गज नेताओं के चेहरे मायने रखते हैं
देश में चुनावों के मद्देनजर हर पार्टी अपने कुछ स्टार कैंपेनर निश्चित कर रखता है। स्टार कैंपेनर वह प्रसिद्ध व्यक्ति होता है जिसके बहुत बड़ी संख्या में प्रशंसक होते हैं, जिसे किसी राजनीतिक दल द्वारा चुनाव लड़ने या प्रचार करने के लिए चुना जाता है। ये कोई भी हो सकता है। एक दिग्गज राजनीतिज्ञ, फिल्म स्टार, प्रसिद्ध सेलिब्रिटी, या यहां तक कि कोई खिलाड़ी भी। स्टार कैंपेनरों का चयन उनकी लोकप्रियता के आधार पर किया जाता है। यह सूची निर्वाचन आयोग को भी भेजनी होती है। हमारे कानून में या चुनावी कानून में भी स्टार कैंपेनर की कोई विशेष परिभाषा नहीं है। न ही कानून यह तय करता है कि किसे स्टार प्रचारक बनाया जा सकता है या किसे नहीं।
2019 के चुनावों में भाजपा की जीत का श्रेय कई कारकों को दिया जाता है। चुनाव से जुड़े कुछ शोध के मुताबिक प्रधान मंत्री की व्यक्तिगत अपील ने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी, जैसाकि 2014 में हुआ था। 2019 में भी नरेंद्र मोदी ने एक बहुत ही ज्यादा व्यक्तिगत अभियान का नेतृत्व किया था। यह अभियान सुरक्षा-संबंधी विषयों पर केंद्रित था, जो विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान तनाव के संदर्भ में प्रासंगिक थे। भाजपा की अभियान रणनीति को आजादी के बाद से, भारत में किसी भी पार्टी द्वारा इकट्ठी की गई सबसे मजबूत चुनाव प्रचार मशीनरी का समर्थन प्राप्त था। वहीं भाजपा ने मुख्यधारा मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी चतुराई से इस्तेमाल करते हुए सार्वजनिक स्थानों को प्रधानमंत्री की तस्वीरों से भर दिया था।
पार्टी ने प्रधानमंत्री की छवि को एक ‘रक्षक’ और ‘प्रहरी’ के रूप में दिखाते हुए, अपने समर्थकों को संबोधित करने के लिए धार्मिक अपील का इस्तेमाल किया। भाजपा के चुनावों को जीतने में बीजेपी के स्टार कैंपेनर नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। हालांकि भाजपा से प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार स्पष्ट रूप से पसंदीदा विकल्प था। लेकिन लोकनीति-सीएसडीएस के किए गए राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन 2019 से पता चलता है कि भाजपा का समर्थन करने वालों में से, एक तिहाई ने अपनी मतदान प्राथमिकता बदल दी होती, अगर पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार वे न बनते। 2019 के चुनाव में भाजपा के जीत की वजह पर गौर करने पर यह समझ आता है कि यह एक प्रमुख कारक था जिसने मतदाता की पसंद को प्रभावित किया।
जनता के लिए महत्वपूर्ण है स्थानीय मुद्दे
जनता के लिए अक्सर स्थानीय मुद्दे जैसे पानी की समस्या, बिजली, रोड, सुरक्षा जैसे मुद्दे ज्यादा अहमियत रखते हैं। आपराधिक मामले या भ्रष्टाचार का मुद्दा लोगों के लिए जरूरी नहीं होते। 2014 के चुनावों से पहले भाजपा ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ़ भ्रष्टाचार को केंद्र में रखकर काफी प्रचार-प्रसार किया था। स्क्रॉल में छपी एक खबर बताती है कि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि स्थानीय भ्रष्टाचार का आर्थिक मूल्य उतना ही है, जितना कि बड़े घोटाले का, भले ही यह स्थानीय भ्रष्टाचार खबर न बने।
यानि कि बड़े पैमाने पर स्कैम कितने भी हो रहे हों, ये ज़मीनी स्तर पर आम जनता को शायद उतना प्रभावित न करे, जितना कि स्थानीय मुद्दे। आपराधिक मामलों से जनता को फर्क न पड़ने का एक कारण ये भी है कि भारतीय राजनीति में पार्टियां लोगों का विश्वास जीतने और उसके दम पर वोट बटोरने का काम करती है। ध्यान दें तो, इसमें भाजपा सबसे आगे है जो जनता पर हावी होने के लिए विश्वास की राजनीति का इस्तेमाल कर रही है।
दुर्भाग्य से, जनता सिर्फ जानकारी की कमी में ऐसे उम्मीदवारों का चुनाव नहीं करते। सबसे रोचक बात ये है कि जो मतदाता आपराधिक उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं, वे आमतौर पर उनके विषय में अच्छी तरह जानते हैं। आपराधिक राजनेताओं की मांग को कम करने में हो सकता है कि कई पीढ़ियां लग जाएंगी। लेकिन हम हाथ पर हाथ रखकर इंतजार नहीं कर सकते। इसके उलट, सरकार को ऐसे उपायों पर काम करना चाहिए, जो राजनीति में ऐसे नेताओं की संख्या को कम करने में मदद कर सके। इसका मतलब है कि यह देखे जाने की जरूरत है कि चुनावों को कैसे फंड किया जाता है, चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी रखना, राजनीतिक दलों के कामकाज में सुधार और यह सुनिश्चित करना कि गंभीर आरोप वाले निर्वाचित अधिकारियों पर तुरंत सुनवाई हो। लोगों तक हाइपर लोकल तरीके से उम्मीदवारों की जानकारी पहुंचाना भी कारगर साबित हो सकता है।