समाजराजनीति चुनाव में फेक न्यूज का बढ़ता इस्तेमाल वोटर्स के लिए कितना खतरनाक है!

चुनाव में फेक न्यूज का बढ़ता इस्तेमाल वोटर्स के लिए कितना खतरनाक है!

एआई से बनी सामग्री साल 2024 में भारत के वोटर्स के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहा है। नकली वीडियो और गलत जानकारी को फैलाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। आए दिन राजनीतिक दल अपने चुनाव प्रचार के लिए ऐसी ख़बरों का प्रचार कर रहे हैं।

चुनावी माहौल की सरगर्मियां बढ़ी हुई है। तारीखों का ऐलान हो चुका है। राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना सिक्का जमाने की कोशिश में लगी हुई हैं। सभी दल और उम्मीदवार प्रचार-प्रसार में अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। लेकिन भारतीय चुनावों में प्रचार के दौरान भ्रामक या गलत जानकारी, फेक न्यूज के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। आजकल राजनीतिक दल दुष्प्रचार या फर्जी समाचार को तेजी से इस्तेमाल करते दिख रहे हैं। हालांकि ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया में देखने को मिल रहा है। चुनाव प्रचार की दो प्रमुख शैली है एक सकारात्मक जिसमें नेताओं और उनकी नीतियों को लोगों के बीच में रखना और दूसरा नकारात्मक है जिसमें विपक्ष को अपमानित करना। नकारात्मक प्रचार के गंभीर परिणाम हो सकते हैं यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में वोटर्स के लिए बहुत हानिकारक है उन्हें भ्रमित कर सकता है।

पिछले आम चुनावों में नफरत फैलाने वाले भाषण और दुष्प्रचार अभियान बड़े स्तर पर शामिल थे, लेकिन वर्तमान में तकनीक के बढ़े इस्तेमाल ने इसमें और तेजी देखी जा रही है। ख़ासतौर पर एआई से बनी सामग्री साल 2024 में भारत के वोटर्स के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहा है। नकली वीडियो और गलत जानकारी को फैलाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। आए दिन राजनीतिक दल अपने चुनाव प्रचार के लिए ऐसी ख़बरों का प्रचार कर रहे हैं। फेक न्यूज बहुत हद तक चुनाव का रूख बदल सकते हैं। लोकसभा चुनावों में पारपंरिक गलत सूचना, एआई के द्वारा जनित तस्वीरें या वीडियो और डीपफेक के माध्यम से गलत जानकारियों को फैलाया जा सकता है। 

व्हाट्सएप और फेसबुक दुनिया भर के चुनावों में फेक न्यूज, भ्रामक या पूरी तरह से गलत जानकारी फैलाने वाले संदेश, फोटो और वीडियो के प्रभाव को रोकने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। इन प्लेटफॉर्म पर आसानी से प्रसारित होकर गलत जानकारी लोगों को भ्रमित कर रही है और सच्चाई से दूर ले जा रही है।

फेक न्यूज़ क्या है?

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन लाइब्रेरी के अनुसार फेक न्यूज को गलत समाचार के रूप में परिभाषित किया है, जिसका अर्थ है कि मनगढ़त कहानी जिसमें कोई सत्यापन तथ्य, स्रोत या कोटस नहीं है। कभी-कभी ये कहानियां कुप्रचार हो सकती है, पाठकों को जानबूझकर भ्रमित करने के लिए डिजाइन की गई हो सकती हैं, या वे क्लिकबेट हो सकती है। सीधे शब्दों में कहे तो कुछ वेबसाइट्स अपने पाठकों और दर्शकों को बढ़ाने के लिए और ध्यान आकर्षित करने के लिए फेक और सनसनी फैलाने वाली कहानियों को प्रकाशित करती है। कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार झूठी कहानियां जो समाचार लगती है, इंटरनेट या अन्य मीडिया के माध्यम से उन्हें फैलाया जाता है। आमतौर पर राजनीतिक विचारों के प्रभावित करने के लिए या मजाक के रूप में बनाई जाती है। 

बीबीसी द्वारा जारी की गई ड्यूटी, आईडेंटिटी, क्रेडिबिलिटी, फेक न्यूज और ऑर्डिनरी सिटीजन नामक रिपोर्ट में पाया गया कि फेक न्यूज साझा करने के पीछे कई मकसद थे। कुछ ने अपने नेटवर्क के भीतर समाचारों को सत्यापित करने के लिए ऐसा किया और कुछ ने इसे नागरिक कर्तव्य या राष्ट्र-निर्माण अभ्यास के रूप में साझा किया। ऐसी ख़बरें सामाजिक-राजनीतिक पहचान को जाहिर करने के रूप में भी साझा की गई थी। राष्ट्र-निर्माण और पहचान के उद्देश्य ख़ासतौर पर आम चुनावों के दौरान तेजी में होते है और राजनीतिक दल इसका फायदा उठाने की होड़ में रहते हैं। फेक न्यूज के ज़रिये नैरेटिव गढ़ने में ख़ासतौर पर सत्ता पक्ष बड़े स्तर पर काम करता नज़र आता है। तमाम संसाधनों को इस्तेमाल कर वह झूठी ख़बरों के जरिये न केवल विपक्ष को कमजोर करने का बल्कि लोगों के बीच कुप्रचार भी फैलाता है। 

चुनाव मे भाजपा का फेक न्यूज के ज़रिये प्रचार 

तस्वीर साभारः News Click

चुनाव के दौर में वर्तमान में बीजेपी सरकार की ओर से एक विज्ञापन जारी किया जिसमें दिखाया गया कि एक विद्यार्थी रूस-यूक्रेन युद्ध क्षेत्र से लौटने के बाद अपने माता-पिता से मिलती है और भावनात्मक रूप से अपने पिता को कहती है, “पापा, मोदी जी ने युद्ध रूकवा दिया और फिर हमारी बस निकाली।” लेकिन मोदी द्वारा रूस-युक्रेन के युद्ध रोकने पर विदेश मंत्रालय पहले ही खंडन कर चुका है। द क्विंट में छपी ख़बर के अनुसार 3 मार्च 2022 को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस दावे को संबोधित करते हुए कहा, यह कहना कि कोई बमबारी रोक रहा है, या यह कहना कि हम कुछ कोर्डिनेट कर रहे हैं, मुझे लगता है यह बिल्कुल गलत है। नरेन्द्र मोदी के ऑफिशियली सोशल मीडिया और भाजपा के सोशल मीडिया से जारी ये वीडियो इंटरनेट और टीवी के माध्यम से लोगों के बीच पहुंचा। यूट्यूब पर प्रधानमंत्री मोदी को 22 मिलियन से अधिक लोग फॉलो करते हैं। अकेले उनके चैनल पर यह विज्ञापन एक महीने के भीतर आठ लाख के करीब लोग देख चुके हैं। बाकी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इसे साझा किया गया था।

यह सिर्फ एक बार नहीं है दावे खारिज होने के बावजूद ऐसी जानकारी या प्रचार हुबहू बने रहते हैं। बल्कि सोशल मीडिया और राजनीतिक स्तर पर बार-बार दिखाई पड़ते हैं। गृहमंत्री अमित शाह अपने बयानों में जीडीपी और बेरोजगारी को लेकर ऐसे कई दावें कर चुके हैं जो फेक न्यूज निकली है। ठीक इसी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री ने साल 2021 में दावा किया था कि देश में पंजाब में सबसे ज्यादा बिजली के दाम है यह भी एक गलत जानकारी निकली। प्रदेश स्तर पर भी अलग-अलग राज्यों की सरकारें अपनी लाभकारी योजनाओं से जुड़ी गलत जानकारी लोगों के बीत रखती नज़र आ चुकी है। इस तरह से लगभग हर राजनीतिक पार्टियां अपने प्रचार के लिए भ्रामक जानकारी का इस्तेमाल करती है। 

लेकिन भाजपा की सरकार और नेता इस मामले में सबसे आगे है। द हिंदू में छपी ख़बर के अनुसार बीते हफ्ते कांग्रेस ने फेक न्यूज फैलाने से जुड़े मामले में बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करवाई है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी-कर्नाटक ने अपने ऑफिशियल सोशल मीडिया हैंडल से फेक न्यूज फैलाते हुए दावा किया है कि मुख्यमंत्री सिद्धरम्मैया ने कहा है कि कांग्रेस को हिंदू वोट की आवश्यकता नहीं है। भाजपा के सोशल मीडिया पर इस बात को प्रचारित किया गया है जबकि यह एक फेक न्यूज़ है। यह कुछ उदाहरण नहीं है बल्कि आज के दौर में बड़ी संख्या में फेक न्यूज जारी की जा रही है। ऑल्ट न्यूज के द्वारा बीजेपी के आईसेल के प्रमुख अमित मालवीय के सोशल मीडिया फीड की जांच में पाया गया है कि वह व्यक्तियों, समुदाय, विपक्ष, पार्टी, नेता और सामाजिक आंदोलनों को बदनाम करने के लिए गलत जानकारी का इस्तेमाल बार-बार करते हैं। अमित मालवीय भाजपा की ऑनलाइन  प्रोपागैंडा मशीन के प्रमुख है तो उनके द्वारा जारी की गई गलत जानकारी का खतरनाक असर पड़ता है। उनके द्वारा जारी फेक न्यूज या गलत जानकारी को पार्टी के सदस्यों और समर्थकों द्वारा आगे बढ़ाया जाता है जिससे बड़े स्तर पर गलत जानकारियों को आगे बढ़ाने के अभियान को मजबूती मिलती है। 

वोटर्स पर फेक न्यूज का असर

तस्वीर साभारः Gulf News

एक सर्वे में पाया गया है कि भारत के लगभग 80 फीसदी फर्स्ट टाइम वोटर लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी, गलत यानी फेक न्यूज से घिरे हुए हैं। सर्वे हिस्सा लेने वालों में से लगभग 65.2 फीसदी पहली बार अपना वोट डालेंगे जिनमें से 78.9 प्रतिशत प्रतिभागी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर फर्जी ख़बरों का सामना करना पड़ा है। इस सर्वे में 28 राज्यों के 636 प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाएं दर्ज की गई। व्हाट्सएप और फेसबुक दुनिया भर के चुनावों में फेक न्यूज, भ्रामक या पूरी तरह से गलत जानकारी फैलाने वाले संदेश, फोटो और वीडियो के प्रभाव को रोकने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। इन प्लेटफॉर्म पर आसानी से प्रसारित होकर गलत जानकारी लोगों को भ्रमित कर रही है और सच्चाई से दूर ले जा रही है। बीबीसी के एक शोध में पाया गया है कि राष्ट्रवाद की बढ़ती लहर भारतीयों को फर्जी ख़बरों, फेक न्यूज साझा करने के लिए प्रेरित कर रही है। प्रतिभागियों ने यह मान लिया है कि व्हाट्सएप पर सगे-संबंधियों, परिवार और दोस्तों के द्वारा साझा की गई जानकारी भरोसेमंद है उसे बिना किसी जांच के आगे फॉर्वर्ड किया जा सकता है। 

चुनाव आयोग की फेक न्यूज के ख़िलाफ़ जंग

भारतीय चुनाव आयोग यह कह चुका है कि चुनाव में फेक न्यूज एक बड़ी समस्या है जिसको खत्म करना ज़रूरी है। चुनाव आयोग ने कहा है कि सोशल मीडिया पर झूठा कंटेंट पकड़ने और उस पर कदम उठाने के लिए सैंकड़ो कंट्रोल रूम बनाए जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था कि आयोग की टीमें सोशल मीडिया को मॉनिटर करेंगी और उनसे क्या माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है यह विश्लेषण भी करेंगी। सांप्रदायिकता फैलाने या गलत कंटेंट बनाने वालों को नोटिस जारी किए जा सकते हैं या उनके ख़िलाफ़ पुलिस शिकायत की जा सकती है। राजनीतिक प्रचार जैसे प्रोपेगैंडा का चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ता है यह कहना गलत है। यह बड़े स्तर पर लोगों प्रभावित करने में सक्षम है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए यह एक बड़ा खतरा है। भारत जैसे देश में जहां शिक्षा और सजगता की दर अभी कम है और जहां इंटरनेट का प्रयोग हर स्तर पर बढ़ रहा है वहां ऐसी भ्रामक जानकारियों के जाल से बचना एक जटिल काम है। 

गृहमंत्री अमित शाह अपने बयानों में जीडीपी और बेरोजगारी को लेकर ऐसे कई दावें कर चुके हैं जो फेक न्यूज निकली है। ठीक इसी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री ने साल 2021 में दावा किया था कि देश में पंजाब में सबसे ज्यादा बिजली के दाम है यह भी एक गलत जानकारी निकली।

अगर गलत जानकारियों और प्रोपेगैंडा का बड़े स्तर पर प्रचार होता है तो वह पूरी तरह से फ्री होकर वोटिंग करने को प्रभावित करती है और कई अध्ययनों में यह बात सामने भी आ चुकी है। वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम  की 2024 ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट के अनुसार भारत में फेक न्यूज का खतरा अधिक है। मनोवैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि जब कोई दावा बार-बार दोहराया जाता है, तो लोग उसे सच मानते हैं। इतना ही नहीं मुद्दा यह है कि बड़ी संख्या में लोग केवल हेडलाइन पढ़कर ही बात को सही मान लेते हैं। सभी लोग जो पढ़ रहे होते है वे विश्वास करते है कि जो पढ़ रहे है सही है, वे जानकारी के सोर्स को जानने की कोशिश नहीं करते हैं। ऐसे में वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने में फेक न्यूज के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है।


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