भारत की राजनीति में अपनी पहचान और पद को बढ़ाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल हो जाने वाले नेताओं का नाम तो शुरू से देखने को मिला है। पर आगे जाकर कई बार वो नाम अक्सर उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते जो वो चाह रहे होते हैं। कुछ समय पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुई सीता सोरेन भी उन्हीं नामों में से एक हैं। पर देखना यह होगा कि जेएमएम से हटकर क्या वो अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब होंगी या नहीं। सीता सोरेन झारखंड के दुमका लोकसभा सीट से बीजेपी की उम्मीदवार हैं। उन्हें जेएमएम संस्थापक गुरुजी यानि झारखंड के शिबू सोरेन की बड़ी बहू और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी के रूप में भी जाना जाता है।
उनकी शादी हेमंत सोरेन के बड़े भाई और शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन से हुई थी जिनका साल 2009 में निधन हो चुका है। सीता दुमका की जामा सीट से तीन बार की विधायक रह चुकी हैं और साथ ही वे जेएमएम पार्टी की महासचिव भी थीं। कानूनी मामलों पर नज़र डाली जाए, तो उनपर 2012 के राज्यसभा चुनाव के दौरान एक निर्दलीय उम्मीदवार से कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में मुकदमा भी चल रहा है, जिसपर जल्द ही फैसला आने की उम्मीद है।
सीता सोरेन की राजनीतिक यात्रा
सीता सोरेन ने अपनी राजनीतिक यात्रा 2009 में शुरू की जब वह झारखंड के जामा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार विधायक चुनी गईं। चुनाव के बाद उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया। 2014 में उन्होंने उसी निर्वाचन क्षेत्र से झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ा और दोबारा जीत हासिल की। 2019 में उन्हें झारखंड के जामा निर्वाचन क्षेत्र की जनता ने तीसरी बार अपना विधायक चुना। इस तरह जेएमएम से वो दुमका की जामा विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रह चुकी हैं। पर 19 मार्च 2024 को उन्होंने अपनी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी नेता विनोद तावड़े और विशाल सिंह की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं।
क्यों जेएमएम छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं सीता सोरेन
सीता का कहना है कि वो सोरेन परिवार की बड़ी बहू हैं और यह उनकी पहली पहचान है। भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी वे अभी बनी हैं, पर 14 सालों में जो सम्मान उन्हें जेएमएम में मिलना चाहिए था वो उन्हें नहीं मिला। जब कभी भी जेएमएम में योजनाओं की बात होती थी, तो उनकी बताई योजनाओं पर सबसे कम तवज्जो दी जाती थी। उन्होंने पार्टी छोड़ने के लिए लिखे अपने पत्र में कहा कि उन्हें लगता है कि उनके पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन के निधन के बाद उनका परिवार उपेक्षा का शिकार हुआ है। उन्होंने लिखा पार्टी और उनके पति के परिवार ने उन्हें अलग-थलग कर दिया था।
उन्होंने और उनके पति ने बहुत प्रयास किए थे कि वे झारखंड के लोगों के लिए कुछ कर पाए पर उन्हें पार्टी में वो मौके नहीं मिले और ना ही पार्टी ने उनके स्वर्गीय पति के उन विचारों को अपनाया, जो उनके पति एक बेहतर कल के लिए चाहते थे। वह आगे लिखती हैं कि कोई सहयोग नहीं मिलने के कारण जो उनका और उनके पति का सपना था, वो उसको पूरा नहीं कर पा रही थीं। उनका यह भी कहना है कि पार्टी उन लोगों के हाथों में है, जिनके साथ उनके विचार मेल नहीं खाते हैं और अब जेएमएम उनके पति दुर्गा सोरेन के जमाने की पार्टी नहीं रही बल्कि दलाल और बिचौलियों की पार्टी बन चुकी है। इस वजह से उन्हें जेएमएम छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना पड़ा।
क्या है सीता सोरेन का इस बार का चुनावी मुद्दा
सीता के ससुर और पति जेएमएम और झारखंड के लोकनेता और महानायक रहे हैं। इस राज्य के लोगों की शिक्षा और विकास को लेकर सबसे पहले उन्होंने आंदोलन किए थे और झारखंड एक अलग राज्य बने इसके लिए उन्होंने लड़ाई लड़के उस लड़ाई को दिल्ली तक पहुंचाने का काम किया था। आगे जाकर झारखंड एक अलग राज्य भी बना। सीता का कहना है कि झारखंड के एक अलग राज्य बनने के 24 सालों बाद जो मकसद और विकास पीछे छूट गया है, वो उसे पूरा करने के लिए आगे आई हैं। वे चाहती हैं कि वे झारखंड के गरीब लोगों के लिए काम कर सकें, 24 सालों से वहां जो विकास नहीं हुआ, वह उसको पूरा कर सकें और अपने पति के अधूरे सपनों को पूरा कर सकें। इसके साथ ही सीता झारखंड में हो रही जमीन की लूट के गंभीर मुद्दे को भी उठाती हैं।
साल 2021 के अक्टूबर महीने में उनकी दो बेटियों राजश्री सोरेन और जयश्री सोरेन ने अपने पिता के नाम पर एक पार्टी का गठन किया था जिसका नाम है ‘दुर्गा सोरेन सेना’ जोकि सामाजिक सेवा में अग्रसर एक संगठन है। दोनों बेटियों का कहना है कि इस सेना का मकसद राज्य में भ्रष्टाचार, विस्थापन, जमीन की लूट समेत अन्य मसलों पर संघर्ष करना है। सीता भी राज्य में अवैध खनन और परिवहन के मुद्दों को लेकर उभर रही हैं और अक्सर इन मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाती नज़र आई हैं। अब देखने की बात यह होगी कि इस चुनाव के बाद सीता अपने उद्देश्यों को पूरा करने में कितनी सफल होंगी और कैसे जनता का भरोसा जीत पाएंगी।