समाजराजनीति राष्ट्रवाद की राजनीति में महिलाएं और पितृसत्ता की भूमिका

राष्ट्रवाद की राजनीति में महिलाएं और पितृसत्ता की भूमिका

महिलाएं और लड़कियां इस राष्ट्रवादी आंदोलन में भाग लेती हैं और हिंसक प्रथाओं का समर्थन करती हैं। साथ ही पितृसत्तात्मक प्रथाओं पर बातचीत करती हैं जो उनके खुद के जीवन को भी नियंत्रित करती है।

साल 2022 में एक ट्रेन यात्रा के दौरान महिला कोच के छोटे होने की चर्चा राजनीति पर जाते-जाते राष्ट्रवाद की राजनीति पर जा पहुंची और वहां बैठी एक महिला आसानी से रेल में भीड़, कोच के छोटे होने के मुद्दे और परेशानियों से ध्यान हटाते हुए मंदिर की राजनीति और सुरक्षा-सम्मान पर चर्चा को लाती है। इसके बाद गर्मी में परेशान और छोटे बच्चों को संभालती महिलाएं अपने नेता को साक्षात राम का अवतार बताते हुए सब कुछ सही है, हम सुरक्षित है, बहू-बेटियों का सम्मान बढ़ा है जैसी बातों से आम जनमानस के रेलों की अव्यवस्था के मुद्दे को शांत करते हुए अपने सफ़र में आगे बढ़ती है। किसी भी राजनीति बहस में पिछले एक दशक में भारत के विशेष तौर पर कुछ क्षेत्रों में यह दृश्य आम रहा है। सरकार से सवाल पूछने पर या उसकी कमियां सामने रखने पर लोगों ने अपने सह नागरिकों को अपनी राजनीतिक विचार के कारण चुप कराया है। दिलचस्प बात यह है कि इस दृश्य में भारतीय पुरुषवादी समाज में देश की आधी आबादी और मतदाता महिलाएं हैं जो अपनी राजनीतिक चेतना को सामने रखती दिखीं।

पूरे भारत में लेकिन विशेष रूप से हिंदी हार्टलैंड में महिलाएं अधिक संख्या में वोट कर रही हैं, जिससे धीरे-धीरे वोटिंग प्रतिशत में जेंडर गैप यानी लैंगिक अंतर कम हो रहा है। इस वजह से पार्टियां इन मतदाताओं को लुभाने की कोशिश भी कर रही हैं। लेकिन सभी पार्टियां और राजनीतिक विचारधारा इसमें समान रूप से सफल नहीं हो रही हैं। लेकिन बीते दशक में महिला वोटर के बीच बढ़त हासिल करने में भाजपा की हिंदू, राष्ट्रवादी छवि और उनके सम्मान की बातों को लेकर पार्टी के साथ जुड़ाव हुआ है।

बीते वर्ष मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के समय ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान हुई कुछ चर्चा में हमारे सामने आया कि कई जगह घर की महिलाएं भाजपा के सहयोग में खड़ी थीं और वहीं घर के पुरुषों की दूसरी जगह वोट देने की बात सामने आई थी। इतना ही नहीं इंडियन एक्सप्रेस में छपी जानकारी के अनुसार एक एग्जिट पोल से पता चलता है कि पार्टी को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अपने करीबी प्रतिस्पर्धियों से 7 और 12 फीसदी का जेंडर एडवांटेज यानी लैंगिक लाभ मिला है। 

16 वर्षीय मेघा शर्मा ग्यारहवीं में पढ़ती हैं और अपने सोशल मीडिया हैंडल और पारिवारिक व्हाट्सएप ग्रुप में खुद को हिंदू शेरनी बताते हुए रील और पोस्ट डालती है। मेघा का कहना है, “मुझे अपने देश, धर्म को बचाना है। मेरी पहचान सनातनी है। हर कोई अपने धर्म की बात करता है मुझे भी यह अच्छा लगता है।” 

राष्ट्रवाद के झंडे के नीचे महिलाएं

दक्षिणपंथी, हिंदुत्व विचारधारा के झंडे तले महिलाओं के एक वर्ग को लाने की प्रमुखता से कोशिश की गई है। छोटे-छोटे आह्वान के माध्यम से उनको इसमें शामिल करने का काम किया गया है। घरों में रहने वाली महिलाओं को संघ की राजनीति से जोड़ने के लिए त्यौहार और उत्सवों को शामिल किया गया। दीये जलाने, दीवाली बनाने, घर की चौखट को सजाने वाले कई अह्वानों के माध्यम से महिलाएं इसमें शामिल होती चली आ रही है और इस तरह से आसानी तक उन तक अपनी विचारधारा के साथ जोड़ा गया है। बताते चले कि दिया जलाने को अक्सर हिंदू धर्म में एक सकारात्मक तरीके से देखा जाता है। घर में रोशनी करने को अच्छा माना जाता है।

इतना ही नहीं हिंदू राष्ट्रवाद ने लंबे समय से महिलाओं से जुड़ी एक कल्पना को तैनात किया है और इस राष्ट्रवादी आंदोलन में महिलाओं ने नेतृत्व की भूमिका भी निभाई है। साध्वियों के माध्यम से इसे प्रचारित किया गया है। साध्वी बनकर वे सबसे ऊपर उठ जाएंगी और नैतिकता का एक श्रेष्ठ उदाहरण होगी जैसी बातों का प्रचार किया गया। साध्वियां और अन्य महिलाएं भावनात्मक भाषण देती हैं। देश को बचाने का आह्वान करती हैं, वे शुद्ध और पवित्र भारत माता की छवि को पेश करते हुए उसकी रक्षा और उसे दुश्मनों से बचाने की बात करती हैं। मीडिया और सार्वजनिक कार्यक्रमों में साध्वियों के बयान से भारतीय महिलाओं एक वर्ग को सीधे जुड़ा है। अनेक कार्यक्रमों में वह धर्म को श्रेष्ठ, हिंदू-देवी-देवताओं के ताकतवर और उनके उग्र रूप का व्याख्यान किया जा रहा है। उन्होंने कैसे अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी, किस तरह से देश को बनाने और बचाने का काम किया है इस बात पर जोर दिया जाता है। साथ ही गैर हिंदू धर्म के लोगों के ख़िलाफ़ नफरत का माहौल तैयार करने का काम भी किया जाता है।

“मुझे अपने देश और धर्म को बचाना है”

तस्वीर साभारः The Guardian

महिलाएं और लड़कियां इस राष्ट्रवादी आंदोलन में भाग लेती हैं और हिंसक प्रथाओं का समर्थन करती हैं। साथ ही पितृसत्तात्मक प्रथाओं पर बातचीत करती हैं जो उनके खुद के जीवन को भी नियंत्रित करती है। वे इसके व्यापक प्रचार और प्रसार में बड़ी संख्या में जुड़ रही हैं। मीडिया और सार्वजिनक कार्यक्रमों के बयानों ने हर उम्र की महिलाओं को इससे जोड़ा है। सोशल मीडिया पर ऐसे हिंदुत्व, राष्ट्रवाद का समर्थन करती युवा वर्ग की लड़कियां इंफ्लुएंसर बनकर ऐसे संदेश दे रही हैं। उत्तर प्रदेश के एक शहर की रहने वाली 16 वर्षीय मेघा शर्मा ग्यारहवीं में पढ़ती है और अपने सोशल मीडिया हैंडल और पारिवारिक व्हाट्सएप ग्रुप में खुद को हिंदू शेरनी बताते हुए रील और पोस्ट डालती है। मेघा का कहना है, “मुझे अपने देश, धर्म को बचाना है। मेरी पहचान सनातनी है। हर कोई अपने धर्म की बात करता है मुझे भी यह अच्छा लगता है।” 

उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर की रहने वाली 58 वर्षीय पूनम हिंदुत्व की राजनीति और राष्ट्रवाद से जुड़ाव रखती हैं। वह कहती है कि भारत माता का हर लाल हिंदु है। यह देश हिंदू राष्ट्र है जो इस धर्म को नहीं मानता है वह यहां रहने का हकदार नहीं है। वह अक्सर धार्मिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती है और हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा को प्रचारित करती है। ऐसी बहुत सी महिलाएं और लड़कियां हैं जो अपने धार्मिक विचारों को जाहिर करने के अधिकार की बात करते हुए इन आंदोलनों में शामिल हो रही हैं। साथ ही इन महिलाओं के मन में हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन से इस बात को भी स्थापित किया जा रहा है कि वह इससे सशक्त होगी उन्हें दमनकारी पितृसत्तात्मक भूमिकाओं से मुक्ति मिलेगी और उनका कल्याण होगा। जिन चीजों से उन्हें वंचित रखा गया है वह सब उन्हें मिलेगा और साथ ही उन्हें खुद की दुश्मन से रक्षा करनी है। 

महिलाओं को ऐसी शिक्षा देने के लिए राष्ट्र की सेवा करने वाली राष्ट्र सेविका समिति, आरएसएस की महिला शाखा है। यह अपने कार्यकर्ताओं को सांस्कृतिक और अनेक सामाजिक जिम्मेदारियां सिखाती है जिसमें महिलाओं कार्यकर्ताओं के लिए मातृत्व, पवित्रता और बलिदान है।

हिंदुत्व की राजनीति करने वाली कई महिलाओं की दंगों और हिंसक प्रदर्शनों में व्यापक भागीदारी मिली है। साध्वी ऋतंभरा अपनी हेट स्पीच के लिए कई बार हिंदू पुरुषों को उकसाने और एक विशेष धर्म के अल्पसंख्यकों को मारने के लिए उकसाती है। भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर पर ऐसे आरोप सामने आ चुके है जहां उन पर मालेगाँव बम विस्फोट के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक थीं। इन बम धमाकों में मुसलमान समुदाय के कई लोगों की मौत और घायल हुए थे। प्रज्ञा ठाकुर विश्व हिंदू परिषद की महिला शाखा, दुर्गा वाहिनी की सक्रिय सदस्य रही हैं। उमा भारती भी दुर्गा वाहिनी की एक अन्य संस्थापक है जो हमेशा इस विचारधारा को प्रचारित और प्रसारित करती और नफरत की बात करती दिखी है। राष्ट्रवादी आंदोलन के भीतर महिला कार्यकर्ता साथ ही हिंदू महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने हैं ऐसे संदेश देती है। इस तरह से मातृत्व को राष्ट्रवादी एजेंडे में बदल दिया है जो महिलाओं पर नियंत्रण स्थापित करना और उन्हें केवल एक टूल या वस्तु में बदल देना है। 

राष्ट्रवाद और भाजपा

भारत में निश्चित रूप से हमने राष्ट्रवाद वर्चस्व वाली सोच को साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से मजबूत होते देखा है। हिंदुओं के भीतर तेजी से खुले तौर पर घोषित लक्ष्यों में ब्राह्मणवादी राज्य की स्थापना के संकल्प और मनुस्मृति को स्थापित करने का संकल्प लागू करने की दिशा में काम कराने के लिए लोगों को प्रेरित किया है। यही मनुस्मृति आजीवन महिलाओं पर एक पुरुष के नियंत्रण में रहने की बात कहती है। इतना ही नहीं हिंदुत्व की राजनीति में मुस्लिम और दलित महिलाओं के बलात्कारियों के प्रति नरमी बरती गई है। बिलकिस बानो के बलात्कारियों के जेल से बाहर छूटने पर माला पहनाकर स्वागत किया गया है। इस विचारधारा के ख़िलाफ़ बोलने वाले लोगों की मौत हुई है या फिर उन्हें जेल में डाला गया है।

बदला लेने और नियंत्रण के रूप में हिंसा स्त्रीद्वेष संघ की विचारधारा है। कई अलग-अलग कैडर और यूनिट के द्वारा महिलाओं के बीच हिंदू राष्ट्रवाद की शिक्षा प्रचारित की जा रही है। महिलाओं को ऐसी शिक्षा देने के लिए राष्ट्र सेविका समिति, आरएसएस की महिला शाखा है। यह अपने कार्यकर्ताओं को सांस्कृतिक और अनेक सामाजिक जिम्मेदारियां सिखाती है जिसमें महिलाओं कार्यकर्ताओं के लिए मातृत्व, पवित्रता और बलिदान है। महिला कैडर को खुद की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मार्शल आर्ट में ट्रेनिंग दी जाती है। 

ऐसी बहुत सी महिलाएं और लड़कियां हैं जो अपने धार्मिक विचारों को जाहिर करने के अधिकार की बात करते हुए इन आंदोलनों में शामिल हो रही हैं। साथ ही इन महिलाओं के मन में हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन से इस बात को भी स्थापित किया जा रहा है कि वह इससे सशक्त होगी उन्हें दमनकारी पितृसत्तात्मक भूमिकाओं से मुक्ति मिलेगी और उनका कल्याण होगा।

हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति में ठाकुर और साध्वी जैसी महिलाएं समाज की पथ प्रदर्शक बनकर ऐसे विचारों को आगे बढ़ा रही है जो दूसरे धर्म के लोगों से नफरत, अल्पसंख्यकों के बीच डर का माहौल पैदा करना, उनके ख़िलाफ़ हिंसा को सामान्य, राष्ट्र का सम्मान, बहू-बेटी के सम्मान के लिए हिंसा को जायज ठहराते है। साथ ही इस तरह के भड़काने वाले प्रचार समुदाय के सम्मान के लिए महिलाओं की भूमिका को तय करने वाले विचारों को लैंगिक हिंसा, भेदभाव और अंतरंग साथी हिंसा के अन्य रूप में जोड़ा गया है क्योंकि जब बात बहू-बेटी के सम्मान की आती है तो वह कई स्तर पर महिलाओं पर नियंत्रण भी बनाती है। इस तरह से एक वर्ग की महिलाएं अपने धर्म के जश्न मनाने और अपने विचारों को सामने रखने के अधिकार का दावा करते हुए इन आंदोलनों से जुड़ रही हैं। उनके भीतर इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देकर उनका फायदा उठाया जा रहा है साथ ही रूढ़िवाद और पितृसत्ता की विचारधारा सीधे-सीधे उनमें स्थापित कर समाज में इसकी जड़ों को मजूबत किया जा रहा है। 


सोर्सः

  1. The Indian Express   
  2. The Print
  3. Newsclick
  4. OpenDemocracy
  5. The Right Collective

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