2024 के लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। इस बार चुनावी मैदान में मुख्य दावेदारों में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) ने ममता बाला ठाकुर को मैदान में उतारा है। ममता भारतीय राजनीतिज्ञ और पश्चिम बंगाल के बोनगांव से राज्यसभा सदस्य हैं और तृणमूल कांग्रेस की नेता हैं। ममता महाराष्ट्र में जन्मीं, बोनगांव की नेता और ठाकुर नगर कस्बे से हैं। ममता अखिल भारतीय मतुआ महासंघ (एआईएमएम) से भी जुड़ी हैं।
ममता 23 सितंबर 2023 से उत्तर बंगाल को अलग राज्य की मांग के खिलाफ अभियान चला रही हैं। इनके अनुसार, एआईएमएम के सदस्य बंगाल को विभाजित करने की योजनाओं का हर कीमत पर विरोध करेंगे। बता दें कि भाजपा सांसद जॉन बारला ने सबसे पहले अलग राज्य का मुद्दा उठाया था, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद हुई हिंसा और पिछड़ेपन के अलावा भी कई मुद्दे हैं जिनके लिए लोग मांग कर रहे हैं।
क्यों ममता खास कैंडीडेट हैं
2011 में ममता बनर्जी की पार्टी ने मतुआ नेता मंजुल ठाकुर को गायघाटा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा था। मतुआ महासंघ सुधार आंदोलन की मुखिया बीना पानी देबी के छोटे बेटे ठाकुर ने सीट जीती और उन्हें ममता कैबिनेट में मंत्री बनाया गया।
2014 के लोकसभा चुनावों के लिए, टीएमसी ने मंजुल के बड़े भाई कपिल कृष्ण ठाकुर को बोनगांव सीट से मैदान में उतारा, जिसे पार्टी ने जीत लिया। लेकिन मुश्किल से पांच महीने बाद कपिल की अचानक मौत से मतुआ संप्रदाय के जन्मस्थान ठाकुरनगर में पारिवारिक विवाद शुरू हो गया। उपचुनाव के लिए मंजुल ठाकुर चाहते थे कि पार्टी उनके छोटे बेटे सुब्रत को मैदान में उतारे लेकिन टीएमसी ने दिवंगत कपिल की पत्नी ममता बाला ठाकुर को टिकट दे दिया।
बोनगांव सीट और मतुआ समुदाय का महत्व
पश्चिमी बंगाल में मतुआ समुदाय का वोटिंग शेयर काफी है। मतुआ मतदाताओं की संख्या लगभग 1.75 करोड़ है। बोनगांव, राणाघाट और कूचबिहार अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित हैं, और तीनों 2019 में भाजपा के खाते में चले गए जबकि तृणमूल कांग्रेस ने बारासात और कृष्णानगर में जीत हासिल की थी। मतुआ समुदाय के नेताओं के मुताबिक वर्तमान में समुदाय के अनुयायियों की संख्या 50 मिलियन है। इन्हीं में प्रमुख बंगाल के नेता हैं, शांतनु ठाकुर, बीनापाणि देवी, ममता बाला ठाकुर। इनमें फिलहाल ममता बाला ठाकुर का नाम मुखर रूप से सबसे आगे चल रहा है।
राजनीतिक जीवन में उतार चढ़ाव
पश्चिम बंगाल में 2015 में हुए उपचुनाव ममता को 43.27 फीसद वोट मिले थे और उन्होंने तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी।
2016 में, जब मंजुल ठाकुर को राज्य चुनाव लड़ने के लिए टीएमसी टिकट नहीं दिया गया, तो उनके बड़े बेटे शांतनु ने भाजपा के साथ घुलना-मिलना शुरू कर दिया, और अंत में 2019 में बोंगांव लोकसभा सीट से भाजपा का टिकट हासिल कर लिया। सीएए को लागू करने की बात करते हुए, शांतनु ने 48.85 प्रतिशत वोट शेयर के साथ बोनगांव से जीत हासिल की, उन्होंने टीएमसी की अपनी चाची ममता बाला ठाकुर को हराया, जो 40.92 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं।
ममता का भाजपा नेता शांतनु ठाकुर के खिलाफ़ शिकायत
ममता ने भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर द्वारा उन पर किए गए कथित हमले के विरोध में सोमवार को उत्तर 24-परगना के ठाकुरनगर में एक रैली निकाली। उन्होंने शांतनु ठाकुर के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने शांतनु ठाकुर के खिलाफ मामला भी दर्ज किया था जिसमें मतुआ कुलमाता (बोरो मां) बीना पानी देवी के कमरे पर जबरन कब्जा करने का आरोप लगाया गया था। ममता ने शांतनु और उनके साथियों के खिलाफ़ सजा की मांग करते हुए ठाकुरनगर में धरना-प्रदर्शन भी किया।
तृणमूल कांग्रेस ने शांतनु ठाकुर और उनके समर्थकों का एक वीडियो साझा किया था, जिसमें वे कथित तौर पर हथौड़े से उनकी दादी बोरो मां के घर का ताला तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। घर में रहने वाली ममता बाला ठाकुर ने इस प्रयास को शर्मनाक बताया। मतुआ समुदाय में ममता ने खुद को मतुआ समुदाय की समर्थक के रूप में स्थापित किया है, जो उनके अधिकारों और हितों की वकालत करती हैं। हालांकि, इस समुदाय के प्रति उनकी निष्ठा भी विवाद का स्रोत रही हैं।
सीएए के विरोध में ममता
ममता ने केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर की आलोचना भी की और आश्चर्य जताया था कि क्या केवल भाजपा से जुड़े लोग ही सीएए के तहत नागरिकता के पात्र हैं। उनकी यह टिप्पणी मंत्री की कथित टिप्पणी के कुछ दिनों बाद आई थी कि टीएमसी से जुड़े मतुआ समुदाय के लोग सीएए के तहत नागरिकता के लिए योग्य नहीं होंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टिप्पणी का हवाला देते हुए, ममता ने कहा था कि हमारे नेता कह रहे हैं कि जब हम पहले से ही देश के नागरिक हैं तो फॉर्म भरने की कोई ज़रूरत नहीं है।
उन्होंने शपथ के दौरान अपने समुदाय के धार्मिक प्रतीकों का सम्मान करने में असमर्थता पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि यह हमारे संप्रदाय के लिए शर्म और अपमान की बात है कि मैं संसद के अंदर अपने गुरु का नाम नहीं ले पाई। ममता समय-समय पर विकास के लिए संसद में बहस और चर्चा में भाग लेती रही हैं। साल 2017 में संसद में ममता ने बोनगांव में केंद्रीय विद्यालय बनाने के लिए बहस का मुद्दा उठाया। इस के बाद उन्होंने घरेलू कामगर के कल्याण करने का मुद्दा भी साझा किया। इससे पहले रेलवे में महिला सुरक्षा को लेकर भी उन्होंने संसद में अपनी बात रखी थी।