सुष्मिता देव भारतीय राजनीति में एक जाना-माना नाम है, जो अक्सर विपक्ष की भूमिका निभाते हुए मौजूदा केंद्र सरकार के कई नीतियों के खिलाफ़ अपनी आवाज़ उठाती नज़र आई हैं। अपने राजनीतिक करियर में उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। राजनीति में एक महिला की यात्रा हर कदम पर एक पुरुष की तुलना में अधिक कठिन होती है। कई महत्वपूर्ण नामों में से एक सुष्मिता देव पश्चिम बंगाल से अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य हैं। इससे पहले, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में 2014 के भारतीय आम चुनाव में सिलचर, असम से भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा के लिए चुनी गईं थीं।
जन्म और शैक्षिक जीवन
सुष्मिता का जन्म असम में 1972 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पिता संतोष मोहन देव और कांग्रेस से विधायक रह चुकी माँ बिथिका देव के घर हुआ था। उनके दादा सतीन्द्र मोहन देव भी एक प्रसिद्ध बंगाली स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका उत्तर पूर्व भारत में एक राजनीतिक प्रभाव था। सुष्मिता ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहां उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने इंस ऑफ कोर्ट्स लॉ स्कूल, लंदन और किंग्स कॉलेज, लंदन विश्वविद्यालय, यूके में अध्ययन किया और एलएलबी (कॉर्पोरेट और वाणिज्यिक कानून) में अपनी पढ़ाई पूरी की। उनकी शिक्षा ने उन्हें राजनीति और कानून के क्षेत्र में एक मजबूत आधार प्रदान किया, जिससे वे अपने राजनीतिक करियर में और अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकीं।
परिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीति से गहरा जुड़ाव
सुष्मिता देव एक ऐसे परिवार से आती हैं जिनकी राजनीतिक जड़ें गहरी हैं और जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। उनके परिवार का इतिहास भी कई अन्य राजनेताओं की तरह राजनीति से जुड़ा हुआ है। उनके पिता संतोष मोहन देव एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति थे। वे कांग्रेस की टिकट पर 6 बार सांसद चुने गए और इस्पात मंत्री के पद पर भी कार्यरत रहे। देव के दादा सतीन्द्र मोहन देव एक स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में असम के स्वास्थ्य मंत्री बने। वे लंबे समय तक सिलचर म्यूनिसिपैलिटी बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। सुष्मिता की माँ भी विधायक रह चुकी हैं। इस परिवार की राजनीतिक यात्रा सुष्मिता के दादा और उत्तर पूर्व के प्रसिद्ध बंगाली स्वतंत्रता सेनानी सतीन्द्र मोहन देव के साथ शुरु हुई थी। उनके परिवार का कोई ना कोई सदस्य 1952 के बाद से नगरपालिका विधानसभा या लोकसभा के चुनाव जीतता आ रहा है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल
2014 के चुनाव में अपने पिता की जगह सुष्मिता देव ने सिलचर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने 2014 से 2019 तक का अपना कार्यकाल पूरा करके दोबारा 2019 में सिलचर से चुनाव लड़ा, पर 2019 में भारतीय जनता (बीजेपी) के राजदीप रॉय को जीत हासिल हुई और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वे अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। पर 2021 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। कांग्रेस छोड़ने के लिए सोनिया गांधी को लिखे पत्र में उन्होंने सार्वजनिक सेवा में एक नया अध्याय शुरू करने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि कांग्रेस के साथ अपने तीन दशक लंबे जुड़ाव को वे संजो कर रखती हैं।
साथ ही उन सभी अवसरों और मौकों के लिए वे शुक्रगुज़ार हैं, जो अपनी क्षमता को निखारने के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी में काम के दौरान मिले। हालांकि उन्होंने कांग्रेस छोड़ने की कोई ख़ास वजह नहीं बताई और बाद में तृणमूल कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी और राज्यसभा में नेता डेरेक ओ’ब्रायन की उपस्थिति में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं और कहा कि टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास पार्टी के भविष्य के लिए शानदार दृष्टिकोण है और उम्मीद जताई कि इसमें वह मददगार होंगी।
कई मुद्दों पर भाजपा सरकार को घेरे में लिया
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहने के नाते, उन्होंने महिलाओं के मुद्दों पर विशेष रूप से काम किया है। महिला अधिकार, सामाजिक न्याय और शिक्षा कुछ मुद्दों में से हैं। साल 2017 में उन्होंने सैनिटरी नैप्किन को 100 फीसदी टैक्स फ्री करने की मुहिम चलाई थी ताकि वित्त मंत्री अरुण जेटली इसपर ध्यान दें। उनका कहना था कि देश में बहुत कम ऐसी महिलाएं हैं जो सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। इसके बदले बहुत सी महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि सैनिटरी पैड खरीदना उनके लिए महंगा है। कपड़ा इस्तेमाल करने से उन महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है।
लेकिन वहीं महिलाओं के लिए मेन्स्ट्रल स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दे को उठाने वाली सुष्मिता खुद मुस्लिम महिलाओं के लिए बने तीन तलाक़ कानून का विरोध करते हुए पाई गयीं। उनका कहना था कि ये कानून मुस्लिम महिलाओं के हक में कम है। ये मुस्लिम पुरुषों को जेल में भेजने की बीजेपी की एक साजिश है, जब उनकी सरकार (जब वे कांग्रेस में थीं) सत्ता में आएगा, तब इस कानून को रद्द कर देंगी। लेकिन उनके इस बयान से खुद कांग्रेस के कई लोगों ने आपत्ति जताई। इनमें उत्तराखंड की पूर्व मंत्री और कांग्रेसी नेता इंदिरा ह्दयेश भी शामिल थीं जिन्होंने इस बयान का विरोध करते हुए कहा था कि यह पार्टी का बयान नहीं है। तीन तलाक़ महिला विरोधी प्रथा है, जिसकी वजह से मुस्लिम महिलाओं का शोषण हुआ है और वो इसके खिलाफ हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी सुष्मिता के बयान पर स्पष्ट किया कि पार्टी ने हमेशा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और तीन तलाक को गलत ठहराया है। पर इसमें कुछ संशोधन की जरूरत है।
हाल ही में सुष्मिता ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर भी बीजेपी को घेरे में लिया है। उनका कहना है कि सीएए एक अत्यधिक इस्तेमाल किया जाने वाला राजनीतिक यंत्र है जिसे बीजेपी चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती रहती है। उन्होंने आरोप लगाया कि जब सीएए संसद में पारित हुआ तो बहुत सारे हिंदू उत्साहित थे। लेकिन इसके लागू होने के चार साल बाद अधिसूचित किए गए कड़े सीएए नियमों ने लोगों के लिए इसे लागू करना लगभग असंभव बना दिया है क्योंकि लोगों से पासपोर्ट और बांग्लादेश के स्कूल प्रमाणपत्र जमा करने के लिए कहा जा रहा है।
साथ ही उनका कहना है कि चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा है जिससे बीजेपी जनता को भटकाती रहती है। लोग भय और अत्याचार की राजनीति से पूरी तरह तंग आ चुके हैं। उनका कहना है कि बीजेपी लोगों को डराने का काम कर रही है क्योंकि आज लोग ना तो खुलके सरकार के खिलाफ बोल सकते हैं और ना ही सोशल मीडिया पर स्वतंत्र रूप से लिख सकते हैं। उनका मानना है कि देश के लोग मौजूदा शासन से खुश नहीं हैं और यह चुनाव संविधान बचाने का चुनाव है। पर देखना यह होगा कि जनता इस चुनाव के परिणामों के ज़रिए उनके बयानों को सही साबित करेगी या इन बयानों को महज केंद्र सरकार पर निशाना साधने वाले एक विपक्षी दल की ओर से आये हुए अन्य बयानों की तरह लेगी।