भारत में आम तौर पर यौन या प्रजनन स्वास्थ्य पर बात करना, एक टैबू है। डॉक्टर के पास अमूमन लोग तब जाते हैं, जब बात हद से ज्यादा निकल जाती है। बात क्वीयर समुदाय के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की करें, तो न सिर्फ तरह तरह के रूढ़िवादी विचार काम करता है, बल्कि ये रूढ़िवाद क्वीयर लोगों को चिकित्सकीय मदद से दूर कर देता है। यूएनएड्स की रिपोर्ट के मुताबिक क्वीयर पुरुष जो दूसरे लोगोंके साथ यौन संबंध रखते हैं, उन्हें स्ट्रेट पुरुषों की तुलना में एचआईवी होने का 28 गुना अधिक जोखिम होता है। इससे क्वीयर पुरुषों और बाइसेक्शूअल पुरुषों को न केवल एचआईवी बल्कि मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों और यौन संचारित संक्रमण सहित अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का भी जोखिम बढ़ जाता है। क्वीयर और बाइसेक्शूअल पुरुषों के अनुभव किए जाने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के बावजूद, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों पर शोध की कमी है, खासकर भारत जैसे निम्न मध्यम आय वाले देश में।
पूरे विश्व में स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार माना जाता है, जिसका दायरा काफी विस्तृत है। स्वास्थ्य सेवाएं जीवन को सुचारू रूप से चलाने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता। ये एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का भी हिस्सा रहा है। लेकिन क्या इस आंदोलन और इन सेवाओं का फायदा अल्पसंख्यक सामाजिक समूहों जैसेकि क्वीयर और ट्रांसजेंडर लोगों को मिल रहा है? वैश्विक आँकड़े और अनुभव के बुनियाद पर कहा जा सकता है कि इसमें घोर कमी है और मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर, वयस्क आबादी (15-49 वर्ष की आयु) में औसत एचआईवी प्रसार 0.7 फीसद था। हालांकि प्रमुख आबादी में औसत प्रसार अधिक था। सेक्स वर्कर्स में 2.5 फीसद, क्वीयर पुरुषों और पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले अन्य पुरुषों में 7.5 फीसद, सुई के माध्यम से ड्रग्स लेने वाले लोगों में 5 फीसद, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों में 10.3 फीसद और जेलों में बंद लोगों में यह 1.4 फीसद पाया गया। यहाँ आँकड़े यही बता रहे हैं कि क्वीयर लोगों में एड्स जैसे यौन संचारित रोग अपने पैर पसार रहे हैं।
क्वीयर समुदाय में यौन संचारित रोग की संभावना
क्वीयर समुदाय में यौन संचारित रोग होने या फैलने की संभावना अधिक होती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दुनिया भर में 15-49 वर्ष की उम्र के लोगों में हर दिन 10 लाख से अधिक इलाज योग्य यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) होते हैं, जिनमें से अधिकांश लक्षणहीन होते हैं। साल 2020 में 15-49 वर्ष के लोगों में अनुमानित 374 मिलियन नए संक्रमण हुए, जिनमें से 4 में से 1 इलाज योग्य एसटीआई से पीड़ित था। इनमें क्लैमाइडिया, गोनोरिया, सिफलिस या ट्राइकोमोनिएसिस शामिल था।
डबल्यूएचओ के अनुसार अनुमान है कि 15-49 वर्ष की आयु के 500 मिलियन से अधिक लोगों को हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी या हर्पीज)से जननांग संक्रमण हुआ है। वहीं ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) संक्रमण हर साल 3,1,000 से ज्यादा सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों का कारण है। साल 2016 में लगभग 1 मिलियन गर्भवती महिलाएं सिफलिस से संक्रमित थीं। 30 से ज्यादा अलग-अलग बैक्टीरिया या वायरस यौन संपर्क के जरिए संचारित होते हैं। क्वीयर समुदाय में मेल टू मेल सेक्स में अक्सर लोग एनल सेक्स और ओरल सेक्स करते हैं। यह अगर असुरक्षित तरीके से किया जाए, तो खतरा और भी ज्यादा होता है। डबल्यूएचओ बताता है एसटीआई के लिए स्क्रीनिंग उच्च जोखिम वाले लोगों में बेहद जरूरी है जिनमें पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष भी शामिल हैं।
क्वीयर और बाइसेक्शूअल पुरुषों में हो रहा है ज्यादा एचआईवी
सेंटर फॉर डीसीस कंट्रोल एण्ड प्रीवेन्शन के संयुक्त राष्ट्र में किए गए एक शोध के अनुसार, साल 2022 में, 38,000 से अधिक लोगों में एचआईवी निदान किया गया। शोध में पाया गया कि इसमें पुरुष सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सीडीसी के अनुसार लगभग 80 फीसद निदान करते हैं, जिनमें से अधिकांश क्वीयर और बाइसेक्शूअल पुरुष हैं। एक अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में साल 2014 में 83 फीसद गे और बायसेक्सुअल पुरुषों के अंदर यौन संचारित रोग पाए गए, जिसमें सिफलिस प्रमुख था। इसके अलावा गे लोगों में ह्यूमन पेपीलोमा वायरस, गोनोरिया, क्लैमाइडिया प्रमुख हैं। एक गे और बायसेक्सुअल पुरूष को अनल कैंसर होने की संभावना स्ट्रेट पुरूष की तुलना में 17 गुना अधिक होती है। पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने वाले पुरुषों के अंदर एचआईवी और यौन संचारित रोग की दर में बढ़ोतरी हुई है।
जब मैं अपने मस्सों के इलाज के लिए साल 2021 में दिल्ली के एक डर्मेटोलॉजिस्ट (त्वचा विशेषज्ञ) से मिला, तो उन्होंने मेरे सेक्स लाइफ के विषय में बिना पूछे या चर्चा किए ही, ऐसा अनुमान लगाया कि चूंकि मैं गे हूँ, तो अनेक पार्टनर से यौन संबंध होंगे। इस बुनियाद पर उन्होंने मुझे एचआईवी के लिए टेस्ट की सलाह दे दी।
समुदाय के लोगों के अनुभव और रूढ़िवादी सोच का प्रभाव
देश में अकसर चिकित्सा से जुड़े लोग भी क्वीयर समुदाय के लोगों के बारे में पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी सोच से ग्रसित होते हैं। जैसे, जब मैं अपने मस्सों के इलाज के लिए साल 2021 में दिल्ली के एक डर्मेटोलॉजिस्ट (त्वचा विशेषज्ञ) से मिला, तो उन्होंने मेरे सेक्स लाइफ के विषय में बिना पूछे या चर्चा किए ही, ऐसा अनुमान लगाया कि चूंकि मैं गे हूँ, तो अनेक पार्टनर से यौन संबंध होंगे। इस बुनियाद पर उन्होंने मुझे एचआईवी के लिए टेस्ट की सलाह दे दी।
हालांकि हो सकता है कि वे मुझे एचआईवी और एड्स के विषय में आगाह करना चाहते थे, पर इस रूढ़िवादी सोच के कारण यह एक विशेषज्ञ का समझाना कम और पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच ज्यादा लग रही थी। डॉक्टर के लिखे पर्चे में ‘सेक्स विद मल्टीपल मेन ससपिशिएश फ़ॉर एचआईवी’ देखकर मैं बहुत घबरा गया था। मैं दसवीं कक्षा में था। मैं डॉक्टर के बात से सहम गया था। हालांकि उस उम्र में मेरे लिए यौनिकता शारीरिक से ज्यादा भावनात्मक था। लेकिन आज भी चिकित्सक को अमूमन यौनिकता का मतलब मनोभाव नहीं शारीरिक संबंध समझ आते हैं। अगर हम मानसिक स्वास्थ्य की बात करें, तो वहां भी मनोचिकित्सकों में रूढ़िवादी सोच नज़र आती है।
दिल्ली की गैर सरकारी संस्था अनहद में एक मीटिंग के दौरान मनोचिकित्सक डॉक्टर कुशल जैन कहते हैं कि समलैंगिक समुदाय के लोगों को खराब शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक तनाव होना आम है। ऐसे में लैंगिक रूप से अल्पसंख्यक एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों पर कई बार दोहरी मार पड़ती है। 2019 से 2021 तक भारत के अस्पतालों में यौन संचारित रोगों के लिए बनाई गई क्लीनिक में कुल 1330 लोग इलाज के लिए आए, जिनमें से 200 लोगों की सिफलिस रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इनमें से 144 पुरूष थे और बाकी 56 महिलाएं। इसमें लगभग 20 फीसद पुरुष उत्तरदाताओं ने खुद को बाइसेक्शूअल या क्वीयर होने की सूचना दी। लेकिन समाज में फैली रूढियों ने इस मामले को हमेशा छुपा कर रखा है। डॉ जैन ने आगे कहा कि सिफलिस के साथ शरीर में कुछ ऐसे रसायनों का निर्माण होता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य भी कमज़ोर पड़ सकता है। डिप्रेशन, डिमेंशिया, घबराहट, यहां तक कि बायपोलर जैसी मानसिक बीमारियां भी साथ में हो सकती हैं।
बैंगलोर स्थित गैर सरकारी संस्था प्राइड सर्कल क्वीयर समुदाय को रोजगार निर्माण का काम करते हैं। इसके संस्थापक राम बताते हैं कि इनकी संस्था में रोज़ाना कई ऐसे केस आते हैं, जिनमें रोजगार का नहीं बल्कि अपने इलाज के लिए लोग इनसे संपर्क करते हैं। इसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग भी होते हैं। हालांकि दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए क्लिनिक मौजूद है। लेकिन समुदाय के लोग यहाँ के डॉक्टरों से अपनी समस्याएं कहने से कतराते हैं। रेक्सी एक ट्रांस महिला हैं। वह इस विषय पर कहती हैं, “अगर हमको हमारे समुदाय से ही कोई डॉक्टर या नर्स मिल जाए, तो हमारे लिए आसानी होगी और हम अपनी समस्याओं को बताने से कतराएंगे नहीं। मगर यहां के डॉक्टर समुदाय से नहीं हैं। उनके साथ निजी जीवन की बातें और बीमारी साझा करना काफी मुश्किल है।” समुदाय से आने वाले लोग यौन संचारित बीमारियों से जूझ रहे हैं। जागरूकता बीमारी के इलाज से ज़्यादा ज़रूरी है। समुदाय में यौन संचारित रोगों से सम्बंधित जागरूकता का अभाव है।
अगर हमको हमारे समुदाय से ही कोई डॉक्टर या नर्स मिल जाए, तो हमारे लिए आसानी होगी और हम अपनी समस्याओं को बताने से कतराएंगे नहीं। मगर यहां के डॉक्टर समुदाय से नहीं हैं। उनके साथ निजी जीवन की बातें और बीमारी साझा करना काफी मुश्किल है।
अधिकांश एसटीडी के कोई संकेत या लक्षण नहीं होते हैं। आप या आपका साथी संक्रमित हो सकते हैं और हो सकता है इसका पता न चले। अपने स्वास्थ्य की स्थिति को जानने का एकमात्र तरीका जांच करवाना है। दिल्ली की बात करें, तो कई क्लिनिक हैं जहां यौन संचारित रोगों की जांच होती है, जो बिल्कुल मुफ्त है। हर्पीज, सिफलिस या गोनोरिया होने से एचआईवी होने की संभावना अधिक हो सकती है। जीवन के किसी भी आयाम में सबसे जरूरी स्वास्थ्य होता है। भारतीय चिकित्सा पद्धति वैसे तो कई समस्याओं का सामना कर रही है, मगर कहीं न कहीं हम अच्छी जीवन शैली और बीमारी की जागरूकता से खुद के जीवन को आसान कर सकते हैं। एलजीबीटी समुदाय के लोगों को अक्सर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है। इसलिए ये और भी जरूरी है कि हम खुद को सचेत रखें और चिकित्सकीय मदद लें।