सत्ता अपनी ताकत या यूं कहे डर को बनाए रखने के लिए कई तरह के हथियारों को इस्तेमाल करती है। वह अपनी संभावनाओं को स्थापित करने के लिए कानूनों का दुरुपयोग करती है। अपने विरोधियों, राजनीतिक विचारधारा से सहमति न रखने वाले लोगों को निशाना बनाती है। सरकार को अगर यकीन हो जाए कि कोई व्यक्ति या संगठन आतंकवाद से जुड़ा है तो उसे आतंकवादी तक क़रार दे सकती है। यकीन के आधार पर सरकारें कानून का इस्तेमाल कर देश में हाशिये के समुदाय, आदिवासी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की बात करने वाले लोगों की आवाज़ को चुप करने का काम करती हैं। बीते दस साल में नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा यूएपीए कानून के दुरुपयोग और केसों की बढ़ती संख्या लगातार देखने को मिल रही है। इस लिस्ट में हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखिका अरुंधति रॉय का नाम भी शामिल हो गया है।
दिल्ली के उपराज्याल वीके सक्सेना ने लेखिका अरुंधति रॉय और कश्मीर के डॉक्टर शेख़ शौकत हुसैन के ख़िलाफ़ ग़ैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। अरुंधति राय और डॉ. हुसैन पर जिस केस में यह धारा लगाई गई है यह मामला 14 साल पुराना है। द वॉयर प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ अरुंधति रॉय पर 21 अक्टूबर 2010 में दिल्ली में दर्ज कराई गई एक एफआईआर के तहत यह मुकादमा चलाया जाएगा। दिल्ली पुलिस ने पहले रॉय और हुसैन के ख़िलाफ़ भारतीय दंड सहिता की धारा 153ए, 153बी, 504, 505 और यूएपीए की धारा 13 के तहत अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) की मांग की थी लेकिन एलजी ने पिछले साल अक्टूबर में केवल आईपीसी की धाराओं के लिए मंजूरी दी थी। इस बार उन्होंने यूएपीए के तहत अभियोजन की अनुमति दी है। बता दें कि लेखिका अरुंधति रॉय प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की मुखर आलोचक रही हैं।
कार्रवाई के समय पर सवाल?
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने अरुंधति रॉय और डॉ. शेख शौकत हुसैन के ख़िलाफ़ यूएपीए की धारा 45(1) के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। 2010 में सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित की शिकायत पर यह एफआईआऱ दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि अरुंधति और डॉ. हुसैन ने साल 2010 में “आज़ादी- द ओनली वे” के बैनर तले आयोजित कॉफ्रेंस में भड़काऊ भाषण दिए थे। शिकायत में यह कहा गया था कि रॉय और हुसैन कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानते है और इसे भारत से स्वतंत्र होने की मजबूत पैरवी करते हैं। शिकायतकर्ता ने यह भी कहा है कि उन्होंने कार्यक्रम में दिए भाषणों की रिकॉर्डिंग भी जमा की है। साथ ही इस कार्यक्रम में हुर्रियत के नेता सैय्यद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी और वरवर रॉव भी थे।
स्कॉल में प्रकाशित जानकारी के अनुसार अभियोजन के कारणों के बारे में ट्रांसपेरेंसी की भारी कमी है। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत अभियोजन को मंजूरी देने वाले आदेश में तर्क को दिखना ज़रूरी है। सक्सेना ने पब्लिक डोमेन में ऐसा किसी भी कारण को सामने नहीं रखा है। सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य फैसले के अनुसार मंजूरी आदेश पुलिस की चार्जशीट पर आधारित होना चाहिए। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस ने कब चार्जशीट दर्ज की या नहीं और अगर दाखिल की है तो कब, रॉय और हुसैन के ख़िलाफ़ पुलिस के निष्कर्ष क्या थे जिसके आधार पर मंजूरी आदेश जारी किया गया। साथ ही इस इस मामले में अभी भी कई अस्पष्ट पहलू है जिन पर बात होनी चाहिए जैसे वह कौन सी अथॉरिटी थी जिसने सक्सेना को रॉय और हुसैन पर मुकादमा चलाने की मंजूदी दी, इस अथॉरिटी ने किन सबूतों की समीक्षा की और यह कब सक्सेना के साथ इसकी सिफारिशें साझा की।
क्या है यूएपीए?
यूएपीए का कानून अधिकारियों को किसी भी व्यक्ति को आंतकवादी बताने और बिना किसी सबूत के उसे हिरासत में लेने की अनुमति देता है। इसमें ज़मानत देने के लिए भी सख्त आवश्यकताएं हैं जिसका मतलब है कि गिरफ्तार व्यक्ति अक्सर बिना दोषी पाए महीनों, सालों के लबें समय तक जेल में बिताता है। यूएपीए ऐक्ट के सेक्शन 15 के अनुसार भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या संप्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के इरादे के भारत या विदेश में जनता या जनता के किसी हिस्से में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के इरादे से किया गया काम आतंकवादी काम है। बीबीसी के एक लेख में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक़ विशेज्ञषों का कहना है कि ये पूरी तरह से सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है कि वे किसी को भी आतंकवादी करार दे सकती हैं। उन्हें केवल अनलॉफुल ऐक्टिविटी (प्रिवेंशन) ट्राईब्यूनल के सामने इस फैसले को वाजिब ठहराना होता है।
मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़े यूएपीए के मामले
एशिया ड्रेमोक्रेटिक क्रॉनिक में छपी जानकारी के मुताबिक़ पिछले दस सालों में पूरे भारत में हर दिन चार भारतीयों को यूएपीए का उल्लंघन करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। अकेले 2020 और 2022 के बीच यूएपीए के तहत 5,578 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया, जो हर साल लगभग 2000 और हर दिन लगभग पांच के बराबर है। भारत सरकार के द्वारा जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 में केंद्र में भाजपा के नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से यूएपीए मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उस समय 976 मामले दर्ज किए गए थे। 2022 में यह आंकड़ा 1,005 था। 2014 से 2022 के बीच कुल 8,719 यूएपीए के केस दर्ज किए गए। 2020 और 2021 में कोविड महामारी के समय में भी यूएपीए के तहत केस सामने आए।
देश में सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ बोलने वाले लोगों पर यूएपीए के मामले नरेंद्र मोदी सरकार के पहली बार प्रधानमंंत्री बनने के बाद से ही सामने आ रहे हैं। पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सवाल पूछने वाले अन्य लोगों पर यूएपीए के तहत केस दर्ज किए गए। इन मामलों में न कोई ट्रायल न कोई अन्य कार्रवाई होती दिख रही है। भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद लोगों पर यूएपीए के तहत केस दर्ज किए गए थे। देश के अलग-अलग सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार आदि इस समय यूएपीए के तहत केस में बिना ट्रायल के सालों से अलग-अलग जेलों में बंद है। उमर खालिद, सुनील गाडलिंग, रोना विल्सन, ज्योति जगताप, मीरान हैदर, इशरत जहां, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी जैसे नामों की एक लंबी सूची हैं। लगातार इनकी जमानत की याचिका खारिज हो रही है। उमर खालिद की 14 से अधिक बार बेल अपील कोर्ट द्वारा खारिज की जा चुकी है।
द न्यूज़ मिनट में छपी रिपोर्ट के अनुसार एक अध्ययन के मुताबिक़ यूएपीए के 97.2 फीसदी आरोपी लंबे समय से जेल में रहे और आखिर में बरी हो गए। पीयूसीएल के द्वारा 2022 में हुई इस स्टडी के मुताबिक़ 2015 से 2020 के बीच गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत 8,371 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि इसी समय में केवल 235 लोगों को इस कठोर कानून के तहत दोषी ठहराया गया। इस रिपोर्ट में एनसीआरबी और एनआईए की वेबसाइट के डेटा की जांच करते हुए पाया गया कि यूएपीए में गिरफ्तार किए गए लोगों की एक बड़ी संख्या ऐसे मामलों में शामिल थी जहां हिंसा की कोई विशेष घटना दर्ज नहीं की गई थी। तमाम आंकड़ें और इतिहास बताता है कि देश में स्टेट यूएपीए जैसे कानून को अपने ख़िलाफ़ बोलने वाली आवाज़ों को चुप करने और भय के माहौल को बनाने के लिए इस्तेमाल करता आ रहा है।