समाजकार्यस्थल श्रम कानून के कथित उल्लंघन को लेकर अमेज़न पर जांच का आदेश, पर क्या श्रमिकों को मिलेगी राहत?

श्रम कानून के कथित उल्लंघन को लेकर अमेज़न पर जांच का आदेश, पर क्या श्रमिकों को मिलेगी राहत?

यहां काम की व्यवस्था, स्थिति, मामूली तनख्वाह, शिफ्ट के लंबे समय, लेबर लॉस का पालन ये पुराने व्यवस्थागत मुद्दे हैं। इतनी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी है इसलिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम और कर्मचारी भविष्य निधि के अंतर्गत कर्मचारी तो रखते हैं पर थर्ड पार्टी वेंडर के माध्यम से नियुक्ति करते हैं तो जिम्मेदारी वेंडर की हो जाती है।

बीते कुछ दिनों में मीडिया रिपोर्ट में अमेज़न के कर्मचारियों के अमानवीय और कठिन कामकाजी परिस्थितियों की खबरें आने के बाद, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) अब इसपर कार्रवाई कर रहा है, जो कथित रूप से उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं। आयोग का सुओ मोटो संज्ञान मीडिया में आई उन खबरों के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि अमेज़न प्रबंधन ने हरियाणा के मानेसर में अपने गोदाम में कर्मचारियों से मई में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के दौरान शौचालय या पानी के लिए ब्रेक न लेने की शपथ दिलाई थी। एनएचआरसी ने एक बयान में कहा कि आयोग ने पाया है कि मीडिया रिपोर्ट की घटनाएं अगर सच है, तो श्रम कानूनों और केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए श्रमिकों के मानवाधिकारों का गंभीर मुद्दा उठाती है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि देश में कुल कामकाजी महिलाओं में से लगभग 82 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में केंद्रित हैं। 22 मार्च तक ई-श्रम राष्ट्रीय डेटाबेस से पता चलता है कि असंगठित क्षेत्र में कुल कार्यबल में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का योगदान अधिक है। कुल 287 मिलियन रेजिस्टर्ड असंगठित श्रमिकों में से 52 फीसद से भी ज्यादा महिलाएं हैं। अमेज़न की बात करें, तो इसने देश में 6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है। इनके गोदाम भारत में कई जगहों पर हैं, जिनमें हरियाणा का मानेसर एक है। पूरे भारत के सभी अमेज़न गोदामों के पार्ट टाइम और फूल टाइम वेयरहाउस कर्मचारियों के अधिकारों के लिए काम कर रही संस्था अमेज़न इंडिया वर्कर्स एसोसिएशन (एआईडब्ल्यूए)के अनुसार, इन गोदामों में लगभग 50-60 फीसद महिलाएं काम करती हैं।

टारगेट इतना बढ़ा दिया जाता है कि हमपर काम का प्रेशर और बढ़ जाता है। पहले उनका टारगेट होता था कि वे 80 हजार आइटम वर्कर से स्टोर और पैक कराएंगे पर अभी परसों हमसे 1 लाख 20 हजार आइटम स्टोर कराया।

अपर्याप्त ब्रेक और टारगेट की जिम्मेदारी के बोझ में काम करते वर्कर्स  

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

मानेसर के गोदाम में काम कर रही उत्तर प्रदेश की रहने रूपा कुमारी (नाम बदला हुआ) कहती हैं, “हमें एक घंटे में 150 आइटम स्टोर करने होते हैं। छोटी-छोटी गलतियां या अंदर एक जगह से दूसरी जगह जाने-आने के वक्त पर भी रिटन फीडबैक मिलता है। तीन फीडबैक के बाद, हमारी आइडी ब्लॉक कर दी जाती है। इसके बाद हम देशभर में अमेज़न के गोदाम में दोबारा काम नहीं कर सकते। हर महीने यहां वर्कर को 10,088 रुपए और अगर छुट्टी लिए बिना सिर्फ वीक ऑफ के साथ काम करते हैं, तो 3250 रुपए इंसेन्टिव मिलते हैं। मैं फिलहाल पार्ट टाइम (अल्फा वर्कर) के तौर काम कर रही हूं और रोजाना 614 रुपए मिलते हैं।” इनबाउन्ड और आउटबाउन्ड में अलग-अलग टारगेट होते हैं। लेकिन देश में भीषण गर्मी के बीच, अमेज़न गोदामों में काम कर रहे श्रमिक बताते हैं कि दिए गए टारगेट पूरा करना मुश्किल हो जाता है।

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

इस विषय पर रूपा बताती हैं, “टारगेट इतना बढ़ा दिया जाता है कि हमपर काम का प्रेशर और बढ़ जाता है। पहले उनका टारगेट होता था कि वे 80 हजार आइटम वर्कर से स्टोर और पैक कराएंगे पर अभी परसों हमसे 1 लाख 20 हजार आइटम स्टोर कराया। टारगेट पूरा करने के लिए हमसे कहा जाता है कि कोई किसी से बात नहीं करेगा या कोई फ्लोर पर नहीं बैठेगा। 10 घंटे की शिफ्ट के दौरान हमें दो बार आधे-आधे घंटे का ब्रेक मिलता है, जिसमें लगभग 15 मिनट कतार में खड़े रहने और सुरक्षा जांच से गुजरने में बीत जाते हैं। अक्सर प्राइम के लिए पैक करते वक्त इतना प्रेशर होता है कि मेरा वॉशरूम जाना भी मुश्किल है और जाने पर भी फीडबैक मिल जाता है। हमने गर्मी के लिए मैनेजर को शिकायत की थी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।”

मैं अनलोडिंग का काम करता हूँ। इतना प्रेशर रहता है कि हमारा वॉशरूम जाना मुश्किल होता है। पेट में दर्द हो जाता है पर वे नहीं सुनते। यहां तक कि लंच में भी वॉशरूम जाना मुश्किल है। हम खड़े-खड़े ही 10 घंटे काम करते हैं। मुझे 5-7 किलोमीटर चलना पड़ता है पर बाकी डिपार्ट्मन्ट में 20 से 25 तक भी चलना पड़ जाता है।

पिछले कई हफ्तों से खबरों में मानेसर स्थित गोदाम में काम करने वाले श्रमिकों ने पानी और शौचालय की कमी की शिकायत की है क्योंकि उन पर पैकेजिंग लक्ष्य पूरा करने का दबाव था। इसके अलावा, अत्यधिक गर्मी में काम करने, छुट्टी न मिलने, मामूली वेतन, स्वास्थ्य सुरक्षा की कमी और काम करने के दौरान बैठने या ब्रेक लेने की इजाज़त न देने, छुट्टी लेने पर काम छूट जाने की धमकी सहित कई समस्याओं पर श्रमिकों ने चिंता जताई है। भारत में अमेज़न के 16 राज्यों में फैले करीब 50 फुलफिलमेंट सेंटर (गोदाम) हैं, जिनमें से कम से कम 6-7 दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में हैं। मानेसर के जिस गोदाम से शिकायतें आई हैं, वहां करीब 1500 कर्मचारी शिफ्ट में काम करते हैं।

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

यहां एक बड़ी समस्या ये है कि सही रूप में वेंटिलेशन या कूलिंग की सही व्यवस्था नहीं है। कोई दुर्घटना होने पर सुरक्षा इंतेज़ाम के नाम पर श्रमिक बताते हैं कि इन्हें चंद मिनटों का फर्स्ट-ऐड और डोलो टैबलेट दे दिया जाता है। इस विषय पर मानेसर में काम कर रहे उत्तर प्रदेश के रहने वाले पवन कुमार (नाम बदला हुआ) कहते हैं, “मैं अनलोडिंग का काम करता हूँ। इतना प्रेशर रहता है कि हमारा वॉशरूम जाना मुश्किल होता है। पेट में दर्द हो जाता है पर वे नहीं सुनते। यहां तक कि लंच में भी वॉशरूम जाना मुश्किल है। हम खड़े-खड़े ही 10 घंटे काम करते हैं। मुझे 5-7 किलोमीटर चलना पड़ता है पर बाकी डिपार्ट्मन्ट में 20 से 25 तक भी चलना पड़ जाता है।”

हमें एक घंटे में 150 आइटम स्टोर करने होते हैं। छोटी-छोटी गलतियां या अंदर एक जगह से दूसरी जगह जाने-आने के वक्त पर भी रिटन फीडबैक मिलता है। तीन फीडबैक के बाद, हमारी आइडी ब्लॉक कर दी जाती है। इसके बाद हम देशभर में अमेज़न के गोदाम में दोबारा काम नहीं कर सकते।

क्या श्रम कानून का हो रहा है पालन

भारत में रोजगार हिस्सेदारी के मामले में असंगठित क्षेत्र में 83 फीसद कार्यबल कार्यरत है और संगठित क्षेत्र में 17 फीसद लोग काम करते हैं। अर्थव्यवस्था में 92.4 फीसद अनौपचारिक श्रमिक हैं यानि इनके पास कोई लिखित अनुबंध, सवेतन छुट्टी और अन्य लाभ नहीं हैं। संगठित क्षेत्रों में भी 9.8 फीसद अनौपचारिक श्रमिक हैं जो आउटसोर्सिंग के स्तर को दर्शाता है। अनौपचारिक श्रमिक ऐसे श्रमिक हैं जिनके पास कोई लिखित अनुबंध, सवेतन अवकाश, स्वास्थ्य लाभ या सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। अमेज़न में कामकाजी स्थिति के विषय में एआईडब्ल्यूए के कनवेनर धर्मेन्द्र कुमार कहते हैं, यहां काम की व्यवस्था, स्थिति, मामूली तनख्वाह, शिफ्ट के लंबे समय, लेबर लॉस का पालन ये पुराने व्यवस्थागत मुद्दे हैं। इतनी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी है इसलिए कर्मचारी राज्य बीमा निगम और कर्मचारी भविष्य निधि के अंतर्गत कर्मचारी तो रखते हैं पर थर्ड पार्टी वेंडर के माध्यम से नियुक्ति करते हैं तो जिम्मेदारी वेंडर की हो जाती है। न्यूनतम वेतन देते हैं पर फैक्ट्री अधिनियम के मुताबिक नियोक्ता हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम नहीं करवा सकते। फैक्ट्री अधिनियम कहता है कि अगर श्रमिक ओवरटाइम कर रहे हैं, तो उसके वेतन का दोगुना उसे मिलना चाहिए। जॉब सिक्युरिटी भी यहां नहीं है।”

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

हमारे देश में इतने बड़े तादाद असंगठित क्षेत्र में लोग काम कर रहे हैं। ऐसे में ऐसी बड़ी कंपनियों में काम करना ही अपनेआप में लुभाना लगता है। लेकिन अमेज़न के गोदाम में समस्याओं पर बात करते हुए मानेसर गोदाम में काम कर रहे उत्तर प्रदेश के रहने वाले रवि कुमार (नाम बदला हुआ) कहते हैं, “अमेज़न कहने को कर्मचारी राज्य बीमा निगम के अंतर्गत स्वास्थ्य की सुविधा देती है। लेकिन हमें ये नियुक्ति के तुरंत बाद मिलता भी नहीं है। इसके लिए भी हमें बोलते रहना पड़ता है। इन गोदामों में छत टिन के बने हैं। इसलिए गर्मी और ज्यादा होती है। डॉक में पंखे नहीं है तो गर्मी में काम करने में बेहोशी जैसी लगने लगती है। हमें काम के दौरान बैठने या टॉइलेट जाने के इस्तेमाल के लिए रोक लगाते हैं। इन विषयों पर कहने पर वे हमें ब्लॉक लिस्ट में डाल देते हैं या जबरदस्ती रिजाइन करवा लेते हैं।”

ऐसे गोदामों में कर्मचारियों के लिए सुरक्षात्मक गियर भी महत्वपूर्ण है। इस विषय में पूछे जाने पर रवि कहते हैं, “सुरक्षात्मक गियर के नाम पर जो वर्कर डॉक में काम करते हैं उन्हें चमकीले जैकेट और गलब्स दे देते हैं। एक बार अनलोडिंग करते हुए मेरी कॉनवेएर बेल्ट में उंगली आ गई थी। खून बह रहा था तो मैं मेडिकल सपोर्ट के लिए गया। लेकिन उन्होंने मुझे डोलो और ओआरएस दे दिया। एक्सीडेंट के लिए ऐसा कुछ व्यवस्था नहीं है। मानेसर के इस गोदाम से सबसे नजदीक अस्पताल 20 किलोमीटर और जहां हम राज्य बीमा निगम के अंतर्गत इलाज करवा पाएं वो 25 किलोमीटर दूर है।”    

इन गोदामों में छत टिन के बने हैं। इसलिए गर्मी और ज्यादा होती है। डॉक में पंखे नहीं है तो गर्मी में काम करने में बेहोशी जैसी लगने लगती है। हमें काम के दौरान बैठने या टॉइलेट जाने के इस्तेमाल के लिए रोक लगाते हैं। इन विषयों पर कहने पर वे हमें ब्लॉक लिस्ट में डाल देते हैं या जबरदस्ती रिजाइन करवा लेते हैं।

क्या कह रही है अमेज़न

फेमिनिज़म इन इंडिया ने इन मुद्दों पर अमेज़न से संपर्क की जिसपर उन्होंने बयान दिया कि वे इन दावों की जांच जारी रखे हैं। उनके लिए कर्मचारियों और सहयोगियों की सुरक्षा और भलाई उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। उन्हें विश्वास है कि हमारे पूर्ति केंद्रों में बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ में अच्छे हैं, जिन्हें सुरक्षित और आरामदायक काम का वातावरण सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उनके सभी इमारतों में हीट इंडेक्स मॉनिटरिंग डिवाइस हैं और हम लगातार तापमान में होने वाले बदलावों की निगरानी करते हैं, खासकर गर्मियों के महीनों में।

अगर उन्हें अपनी इमारतों के अंदर बढ़ती गर्मी या नमी मिलती है, तो टीम आरामदायक कामकाजी परिस्थितियां प्रदान करने के लिए अस्थायी रूप से काम को निलंबित भी करती है। उनके पास वेंटिलेशन सिस्टम, पंखे और स्पॉट कूलर सहित हमारी सभी इमारतों में कूलिंग उपाय हैं। वे पानी और हाइड्रेशन का पर्याप्त प्रावधान करते हैं। वे नियमित रूप से निर्धारित विश्राम अवकाश भी प्रदान करते हैं, और वे तापमान अधिक होने पर अतिरिक्त अवकाश सुनिश्चित करते हैं। कर्मचारी और सहयोगी अपनी शिफ्ट के दौरान अनौपचारिक अवकाश लेने के लिए स्वतंत्र हैं, ताकि वे शौचालय का उपयोग कर सकें, पानी पी सकें या किसी प्रबंधक या एचआर से बात कर सकें।

सुरक्षात्मक गियर के नाम पर जो वर्कर डॉक में काम करते हैं उन्हें चमकीले जैकेट और गलब्स दे देते हैं। एक बार अनलोडिंग करते हुए मेरी कॉनवेएर बेल्ट में उंगली आ गई थी। खून बह रहा था तो मैं मेडिकल सपोर्ट के लिए गया। लेकिन उन्होंने मुझे डोलो और ओआरएस दे दिया।

गर्मी के मद्देनजर, एआईडब्ल्यूए ने इससे पहले श्रम और रोजगार मंत्रालय को सभी गोदाम श्रमिकों की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से श्रमिकों के स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा के लिए व्यापक उपायों को लागू करने के लिए ज्ञापन दिया था। कर्मचारियों के अनुसार व्यावसायिक स्वास्थ्य सुरक्षा की बुनियादी आवश्यकताएं हैं जो अत्यधिक गर्मी में काम करने के लिए मिलनी चाहिए। फैक्ट्री अधिनियम, 1948 की धारा 44 (उपधारा 1 और 2) के अनुसार, सभी नियोक्ता उन श्रमिकों के लिए पर्याप्त बैठने की व्यवस्था प्रदान करने के लिए उत्तरदायी हैं, जिन्हें लगातार खड़े होकर काम करना पड़ता है। आगे इन मुद्दों से कर्मचारियों सचमुच राहत मिलती है या नहीं ये आने वाला समय बताएगा। लेकिन श्रमिकों का इन स्थानों पर नौकरी करना इनकी इच्छा नहीं बल्कि मजबूरी है। इसलिए, सरकार को असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्रों में कामकाजी लोगों के लिए स्थायी समाधान करने की जरूरत है।

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