पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर की रहने वाली 45 वर्षीय नीलम बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता वजन और शारीरिक गतिविधि कम होने को लेकर चिंतित रहती हैं लेकिन बावजूद इसके वह घर से बाहर निकलकर कुछ समय खुद के लिए निकालने में असमर्थ है। घर के काम और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच खुद की सेहत का उस तरह से ख्याल रखने में असमर्थ है जितनी उन्हें उम्र के इस पड़ाव पर खुद महसूस होती है। उनका कहना है, “बढ़ती उम्र में शरीर में हो रहे बदलाव के लिए फिजिकल एक्टिविटी करनी ज़रूरी है लेकिन ये सब जानने के बाद भी सुबह से शाम तक सारा समय बाकी काम और घर में ऐसे ही निकल जाता है। चाहते हुए भी खुद के लिए कुछ न कर पाना थोड़ा मुश्किल रहता है।”
दरअसल यह केवल नीलम का अनुभव नहीं है भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं शारीरिक गतिविधि यानी फिजिकल एक्टिविटी करने में सक्रिय नहीं है। हाल ही में मेडिकल जर्नल द लैसेंट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारत में 57 फीसदी महिलाओं में शारीरिक गतिविधि का स्तर अपर्याप्त है। वहीं पुरुषों में 42 प्रतिशत शारीरिक रूप से अस्वस्थ हैं। दक्षिण एशिया रीजन में इस चलन की वजह से महिलाओं में शारीरिक गतिविधि का अपर्याप्त स्तर पुरुषों की तुलना में औसतन 14 फीसदी अधिक था। सबसे चिंताजनक बात यह है कि भारतीय व्यस्कों में फिजिकल एक्टिविटी कम देखी गई है। साल 2000 में 22.3 फीसद से बढ़कर साल 2022 में 49.4 फीसदी हो गयी है। इसका मतलब यह है कि इस तरह के व्यवहार में बदलाव नहीं किया गया तो साल 2030 तक हमारी आबादी का 60 फीसदी हिस्सा अस्वस्थ हो जाएगा। शरीर को फिजिकली एक्टिव न रखने के कारण से बीमारियों का होने का खतरा रहता है।
अध्ययन के अनुसार उच्च आय वाले एशिया-प्रशांत क्षेत्र 48 फीसदी और दक्षिण एशिया 45 प्रतिशत में शारीरिक निष्क्रियता यानी फिजिकल इनएक्टिविटी देखी गई है। शारीरिक रूप से अस्वस्थ देशों में भारत 195 देशों में 12वें स्थान पर है। वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक शारीरिक रूप से अस्वस्थ क्षेत्र एशिया-प्रशांत और दक्षिण एशिया है, जहां क्रमशः 48 फीसदी और 45 फीसदी आबादी शारीरिक रूप से अस्वस्थ है। वैश्विक स्तर पर अध्ययन के लेखकों ने पाया है कि एक तिहाई व्यस्क (31.3 प्रतिशत) पर्याप्त रूप से आवश्यक शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक स्वस्थ व्यक्ति को प्रति सप्ताह कम से कम 150-300 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी करनी चाहिए। इतनी शारीरिक गतिविधि करके व्यस्कों में ख़ासतौर पर दिल संबंधी बीमारियों, टाइप टू डायबिटीज, डिमेटिया और ब्रेस्ट कैंसर जैसे खतरों को कम करने का काम करती है।
इससे अलग द हिंदू में प्रकाशित जानकारी के अनुसार द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित 2023 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज के अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2021 में भारत में 101 मिलियन लोग डायबिटीज से पीड़ित थे और उसी वर्ष 315 मिलियन लोगों में हाई ब्लडप्रेशर की शिकायत पाई गई। इसके अलावाक 254 लोगों में मोटापे और 185 लोगों में खराब कोलेस्ट्रोल का अधिक स्तर होने का अनुमान है। द लैसेंट के हाल में जारी अध्ययन महिलाओं में कम शारीरिक गतिविधि और उसके सेहत पर होने वाले प्रभाव से भारतीय सामाजिक परिदृश्य से स्थिति काफी चिंताजनक है।
महिलाओं के बाहर निकलने को लेकर बाधाएं
भारत में इससे पहले भी कई अध्ययनों और रिपोर्ट में यह बात सामने आ चुकी है कि महिलाओं में शारीरिक गतिविधि का स्तर काफी कम है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति और लैंगिक भूमिकाएं उनकी गतिशीलता को कई स्तर पर प्रभावित करती हैं। इतना ही नहीं भारतीय समाज में महिलाओं की शारीरिक गतिविधि को लेकर यह बात भी स्थापित की गई है कि वे घर के काम करती हैं और यह शारीरिक व्यायाम का एक अच्छा तरीका है। अध्ययन में भारत की स्थिति पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश, भूटान और नेपाल से भी खराब है। भारत में महिलाओं की शारीरिक गतिविधियों का कम होने में अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं है।
इंडियन मेडिकल काउंसिल के एक अध्ययन के अनुसार भारत में केवल तीन प्रतिशत महिलाएं ही नियमित तौर पर वर्क आउट करती हैं। वर्तमान में मेरठ में रहने वाली 31 वर्षीय नेहा को एक्ससाइज के लिए किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा उसको याद करते हुए कहती है, “मेरी शादी से पहले मुझे कहा जाता कि अपने वजन को कंट्रोल में रखो लेकिन कुछ चीजें अपने हाथ में नहीं होती है। बात जब भी गाँव में एक्ससाइज या सुबह की सैर की आती तो मुझे अपने आसपास किसी महिला का साथ नहीं मिला। अगर सुबह जाना भी होता था तो अंधेरे में ही सैर करने चले जाओ और लगभग पांच बजे अपने घर वापस आ जाओ। ऐसे में तमाम कॉलेज और अन्य काम के बीच बहुत जल्दी सवेरे उठकर इस तरह से जाना मेरे लिए मुश्किल भरा रहा है और मैं कभी इसे कंटीन्यू नहीं कर पाई। जबतक मैं अपने गाँव में रही हूं वहां मैं सुबह की सैर पर नहीं जा पाई। अकेले जाने का तो कोई सवाल नहीं बनता है और साथ कभी किसी का मिला ही नहीं। घर की छत पर शाम को जाना ही होता था और यह एक्टिविटी उतनी नहीं होती जितनी मैं सोचती थी या जिनती की मुझे ज़रूरत थी।”
महिलाओं में शारीरिक गतिविधि कम होने में एक सांस्कृतिक बाधा है। परिवार की जिम्मेदारियां, सांस्कृतिक या सामाजिक मान्यताएं, आर्थिक या रोजगार की स्थिति, शिक्षा और लैंगिक भूमिकाएं उनकी गतिशीलता, शारीरिक गतिविधि को कम करने में बड़ी बाधाएं बनती हैं। अक्सर ये बाधाएं महिलाओं और लड़कियों के एक तरह से व्यवस्थित बहिष्कार को दिखाती हैं जो हमारे समाज में गहराई से स्थापित है। महिलाओं के लिए उनके घर के दैनिक काम के दौरान की गई गतिविधियों को उनके स्वास्थ्य के अनुकूल मान लिया जाता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाँव की रहने वाली 60 वर्षीय पूनम शारीरिक गतिविधि और एक्ससाइज पर बातचीत करते हुए कहती हैं, “रोज सवेरे सुबह साढ़े चार बजे मैं उठ जाती हूं। उसके बाद से दोपहर के 12 बजे तक लगभग लगातार काम करती हूं। घर का सारा काम एक कोने से दूसरे कोने में जाना, सीढ़ियां चढ़ना, पशुओं का काम करना, साफ-सफाई का काम करना आदि में निकल जाता है। इन सबके बीच में अपने लिए थोड़ी देर एक्ससाइज करने में बहुत मुश्किल होती है। जब शरीर में तकलीफ़ बढ़ती है तो इसके बारे में सोचा जाता है वरना फिर बातों को भुला दिया जाता है। घर के काम के बीच थोड़ा भी समय नहीं बचता है सुबह जब से उठते हैं तब से कुछ वक्त भी बैठने का नहीं मिलता है बस इसे ही एक्ससाइज समझ लेते हैं।”
शहर हो या गाँव महिलाओं के लिए स्थिति एक समान है। महिलाओं के बीच शारीरिक गतिविधियों को कम समय देने का एक आम कारण समय की कमी है। सेंट लुईस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और महिलाओं में फिजिकल एक्टिविटी पर आधारित एक पुस्तक की संपादक प्रो. एमी आयलर का कहना है महिलाएं दूसरों की देखभाल करने में इतनी व्यस्त रहती है कि वे अपना ख्याल नहीं रख पाती हैं। परिवार के प्रति उनका समर्पण उनके शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के बीच बाधा का काम करता है। महिलाओं के व्यायाम न करने के लिए उन्होंने सामाजिक समर्थन और सुरक्षित माहौल की कमी को भी बताया है।
महिलाओं की शारीरिक सक्रियता और पितृसत्ता
महिलाओं का व्यायाम कम करना और शारीरिक सक्रियता का कम होना उनमें ब्राह्मणवादी पितृसत्ता की कंडीशनिंग के तहत उनमें घर में रहने और दैनिक घरेलू काम को वरीयता देने वाले व्यवहार को स्थापित किया जाता है। एक अध्ययन में लैटिन, अमेरिकी भारतीय और अफ्रीकी-अमेरिका महिलाओं ने कहा है कि समाजिक दबाव उन्हें अधिक शारीरिक रूप से सक्रिय होने से रोकता है। उन्हें लगता है कि समाज उनसे पहले दूसरा को देखभाल करने की अपेक्षा रखता है।
लैटिन, अमेरिकी भारतीय और अफ्रीकी-अमेरिकी महिलाओं ने कहा कि सामाजिक दबाव उन्हें अधिक शारीरिक रूप से सक्रिय होने से रोकता है। उन्हें लगता था कि समाज उनसे पहले दूसरों की देखभाल करने की अपेक्षा करता है। अक्सर, इन सांस्कृतिक समूहों की महिलाएं खुद को बहु-पीढ़ी वाले घर में पाती हैं, इसलिए उनकी देखभाल करने के लिए अधिक काम होता है। तमाम शोध और अध्ययन यह बात स्पष्ट करते है कि नियमित शारीरिक गतिविधि महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार कर सकती है और उन कई बीमारियों और स्थितियों को रोकने में मदद कर सकती है जो महिलओं की मौत और विकलांगता की प्रमुख वजह है। कई महिलाएं ऐसी बीमीरियों का सामना कर रही हैं जो फिजिकल एक्टिविटी के कम होने से जुड़ी होती हैं।
अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी के अनुसार, शारीरिक गतिविधि न केवल हृदय स्वास्थ्य में सुधार करती है, बल्कि बल्ड प्रेशर, वजन और कोलेस्ट्रॉल को भी नियंत्रित रखने में मदद करती है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी के अनुसार मेनोपॉज और प्री मेनोपॉज वाली महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए व्यायाम करना लाभदायक है। 2003 में, जर्नल ऑफ कार्डियोपल्मोनरी रिहैबिलिटेशन ने रिपोर्ट किया कि नियमित रूप से की जाने वाली थोड़ी मात्रा में शारीरिक गतिविधि भी जीवन की गुणवत्ता और मूड को सुधारने में सहायक पाई गई है। नियमित शारीरिक गतिविधि महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार कर सकती है और उन कई बीमारियों और स्थितियों को रोकने में मदद कर सकती है जो दुनिया भर में महिलाओं के लिए मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारण हैं। कई महिलाएं ऐसी बीमारियों से पीड़ित होती हैं जो शारीरिक गतिविधि में अपर्याप्त भागीदारी से जुड़ी होती हैं।