इंटरसेक्शनलजेंडर भारतीय समाज में महिलाओं के खिलाफ़ क्रूर हिंसा का रूप है ऑनर किलिंग

भारतीय समाज में महिलाओं के खिलाफ़ क्रूर हिंसा का रूप है ऑनर किलिंग

देश में ऑनर किलिंग की उच्च संख्या न केवल हमारे समाज में मौजूद धार्मिक और जाति-आधारित कट्टरता और विभाजन को दिखाती है, बल्कि ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक ढांचे को भी उजागर करती है, जो महिलाओं की एजेंसी और निर्णय लेने को आज भी नियंत्रित करते हैं।

महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के विभिन्न रूपों में से एक क्रूर रूप है ऑनर किलिंग। हालांकि ऑनर किलिंग से पुरुष पूरी तरह अछूते नहीं हैं, लेकिन अमूमन सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में महिलाओं को हिंसा के इस रूप से ज्यादा जूझना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) का अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल 5000 महिलाओं और लड़कियों की ऑनर किलिंग होती है। हालांकि कुछ गैर-सरकारी संगठनों का अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल 20,000 ऑनर किलिंग होती हैं। सीमित आंकड़ों के बावजूद, शोध से पता चलता है कि ऑनर किलिंग अलग-अलग उम्र, धर्म, सामाजिक स्थिति, धन, शिक्षा और स्थान की महिलाओं के बीच होती है। ऑनर किलिंग में किसी व्यक्ति की हत्या, जो ज़्यादातर पीड़ित के अपने परिवार के सदस्यों द्वारा की जाती है, ताकि परिवार की ‘गरिमा’ और ‘सम्मान’ की रक्षा की जा सके।

अधिकतर मामलों में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादी या संबंध शामिल होते हैं। भारतीय परिवार में महिलाओं को हालांकि परिवार को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार नहीं माना जाता, लेकिन उन्हें पारिवारिक सम्मान और सामाजिक गरिमा को संभाले रखने का भार सौंप दिया जाता है। इसकी डोर उनके अपने निजी जीवन से जुड़ी होती है। ‘घर की इज्ज़त’ एक ऐसा मुद्दा है, जिसकी रक्षा हमारी पितृसत्तातमक समाज किसी भी हाल में करना चाहता है। इसलिए, ऑनर किलिंग के अधिकांश मामलों में, महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है। कई बार क्वीयर समुदाय के लोगों के खिलाफ़ भी ऐसे मामले दर्ज होते हैं।

गैर सरकारी संगठन एविडेंस द्वारा किए गए क्षेत्रीय जांच और अध्ययन के अनुसार, पांच सालों में तमिलनाडु में ऑनर किलिंग के 195 मामले सामने आए थे। वहीं तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने घोषणा की थी कि साल 2017 और 2019 के बीच भारत में ऑनर किलिंग की 145 घटनाएं हुई थी।

हर साल 25 ऑनर किलिंग की घटनाएं होती हैं दर्ज

तस्वीर साभार: Centre for Law and Policy Research

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2019 और 2020 में हर साल 25 ऑनर किलिंग की घटनाएं दर्ज की गईं और 2021 में 33 घटनाएं दर्ज हुईं। हालांकि असल संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है क्योंकि ये रिपोर्ट किए गए आंकड़ों पर आधारित है। एनसीडब्ल्यूएल, टीआईएसएस और डीएचआरडीनेट के ‘क्राइम्स इन द नेम ऑफ ऑनर अ नैशनल शेम’ नाम से जारी 2022 के रिपोर्ट में जाति-आधारित ऑनर क्राइम के मामलों का विश्लेषण किया गया। इसमें भारत के 7 राज्यों- हरियाणा, गुजरात, बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में दलित मानवाधिकार रक्षकों द्वारा तथ्यों की खोज की गई।

क्या कहते हैं आँकड़े

इस विश्लेषण से पता चलता है कि अपने पसंद-आधारित अंतरजातीय हेट्रोसेक्शुअल संबंधों में महिलाओं और पुरुषों के खिलाफ हिंसा को जारी रखने में ‘जाति’ एक महत्वपूर्ण कारक है। सिर्फ साल 2023 में पंजाब, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विभिन्न चौंका देने वाले ऑनर किलिंग हुईं और सभी मामलों में परिवार या किसी परिचित ने महिलाओं की हत्या कर दी। साल 2020 में आई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु और पुडुचेरी में दलितों और जनजातीय लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले, गैर सरकारी संगठन एविडेंस द्वारा किए गए क्षेत्रीय जांच और अध्ययन के अनुसार, पांच सालों में तमिलनाडु में ऑनर किलिंग के 195 मामले सामने आए थे। वहीं तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने घोषणा की थी कि साल 2017 और 2019 के बीच भारत में ऑनर किलिंग की 145 घटनाएं हुई थी।

सिर्फ साल 2023 में पंजाब, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विभिन्न चौंका देने वाले ऑनर किलिंग हुईं और सभी मामलों में परिवार या किसी परिचित ने महिलाओं की हत्या कर दी।

ऑनर किलिंग क्यों बन जाता है ‘इज्ज़त’ बचाने का तरीका

हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासभा के 1948 में अपनाई गई मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में यह मान्यता दी गई कि सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा होते हैं और सम्मान और अधिकारों के मामले में समान हैं। लेकिन, भारतीय समाज ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के बनाए गए नैतिक और सामाजिक मानदंडों को बचाए और संरक्षित करने में गर्व महसूस करता है। इसमें जाति-आधारित विभाजन शामिल है, जो जन्म के समय लोगों को उनकी जाति और लैंगिक पहचान के आधार पर एक असमान दर्जा प्रदान करता है। यह जाति और लैंगिक मानदंडों का अंतर्संबंध हैं, जिससे विशेषकर महिलाओं के वैवाहिक या प्यार के संबंधों से सामाजिक और उनके संपत्ति पर अधिकार प्रभावित होती है। महिलाओं का निजी जीवन में साथी का चुनाव, उसे न सिर्फ परिवार बल्कि पूरे समुदाय के खिलाफ़ कर देता है, जहां उसे इसका नतीजा भुगतना पड़ता है।

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

ह्यूमन राइट्स वॉच ने ऑनर किलिंग को हिंसा का कृत्य, आमतौर पर हत्या माना है, जहां परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा महिला परिवार के सदस्यों के खिलाफ़, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने अपनी जाति, वर्ग या धर्म से बाहर के पुरुषों के साथ प्रेम संबंध बनाकर या उनसे विवाह करके परिवार का अपमान किया है, हत्या कर दी जाती है। एक मीडिया रिपोर्ट बताती है कि भारत में ऑनर किलिंग मामलों में लगभग 97 प्रतिशत महिलाएं हैं। अमूमन परिवार की इज्ज़त के चक्कर में अपने समुदाय और सामाजिक वर्ग के प्रति सम्मान और अपनेपन की भावना को अधिक महत्व दिया जाता है, जिसके कारण ‘ऑनर किलिंग’ चलती रहती है। सीधे तौर पर ऑनर किलिंग महिलाओं के एजेंसी को खारिज करना और उनके मानवाधिकारों का हनन है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2019 और 2020 में हर साल 25 ऑनर किलिंग की घटनाएं दर्ज की गईं और 2021 में 33 घटनाएं दर्ज हुईं। हालांकि असल संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है क्योंकि ये रिपोर्ट किए गए आंकड़ों पर आधारित है।

क्या हैं ऑनर किलिंग के लिए कानून

चूंकि इसे आमतौर पर पारिवारिक मामला समझा जाता है, ऑनर किलिंग के मामलों में बहुत कम एफआईआर दर्ज की जाती है। साल 2018 के कोडुंगल्लूर फिल्म सोसाइटी बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऑनर किलिंग मॉब वॉयलेन्स का एक काम है, जहां पूरा समुदाय ऑनर आधारित अपराध में शामिल हो सकते हैं। अधिकतर मामलों में उच्च जाति का व्यक्ति कथित आरोपी की भूमिका निभाता है, जहां यह मान्यता है कि वह अपने समुदाय के सम्मान की रक्षा कर रहे हैं। आज भी समाज के तय किए गए सामाजिक ‘प्रेम की सीमाओं’ का उल्लंघन करने वाले कथित नीची जाति के लोगों को विशेषकर महिलाओं को सजा दी जाती है। कई मामलों में उनके परिवार को भी सामाजिक रूप से बहिष्कार या सजा दी जाती है। ऑनर किलिंग अभी भी भारतीय दंड संहिता, के धारा 107-11 (हत्या के लिए उकसाना), धारा 120 ए और 120 बी (आपराधिक साजिश), धारा 299-304 (हत्या और गैर इरादतन हत्या), और धारा 307-308 (हत्या का प्रयास और गैर इरादतन हत्या), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कवर किया जाता है।

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

महत्वपूर्ण मामलों में साल 2011 में, भगवान दास बनाम दिल्ली राज्य मामले की कार्यवाही के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर के नाम पर होने वाली हत्याओं की निंदा की और उन्हें ‘रेररेस्ट ऑफ रेयर’ मामले के रूप में वर्गीकृत किया था। 2018 में, शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ मामले में, न्यायालय ने एक बार फिर पुष्टि की कि दो वयस्क व्यक्तियों के शादी के लिए परिवार या समुदाय की सहमति आवश्यक नहीं है और कहा था कि खाप पंचायतों (स्थानीय जाति परिषदों) को इस अधिकार के प्रयोग में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। इस फैसले में, न्यायालय ने यह भी सिफारिश की कि विधायिका इस मामले पर एक कानून लाए। हालांकि कुछ राज्यों में ऑनर किलिंग के निपटान के लिए प्रयास किए गए हैं पर चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। साल 2019 में, राजस्थान विधानसभा ने राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक गठबंधन की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का निषेध विधेयक, 2019 पारित किया, जो ऑनर किलिंग को संबोधित करने का एक प्रयास था।

महिलाओं की एजेंसी के खिलाफ हिंसा, सभी मामलों में और विशेष रूप से प्यार और विवाह के मामलों में, देश में यह लैंगिक हिंसा के सबसे खतरनाक रूपों में से एक है। हालांकि हिंसा के इस रूप को पहचाना आसान है, लेकिन पारिवारिकता और सामाजिकता के कारण ये जायज़ लगता है।

महिलाओं की एजेंसी के खिलाफ हिंसा, सभी मामलों में और विशेष रूप से प्यार और विवाह के मामलों में, देश में यह लैंगिक हिंसा के सबसे खतरनाक रूपों में से एक है। हालांकि हिंसा के इस रूप को पहचाना आसान है, लेकिन पारिवारिकता और सामाजिकता के कारण ये जायज़ लगता है। ऑनर किलिंग का आमतौर पर उचित दस्तावेजीकरण नहीं किया जाता है, क्योंकि ऑनर किलिंग के खिलाफ़ कोई विशिष्ट कानून नहीं है। ऑनर किलिंग को संबोधित करने वाले विशिष्ट कानून से ऐसे जोड़े को सुरक्षा मिल सकती है, जो अपने धर्म, जाति या समुदाय से बाहर शादी करना चाहते हैं।

देश में ऑनर किलिंग की उच्च संख्या न केवल हमारे समाज में मौजूद धार्मिक और जाति-आधारित कट्टरता और विभाजन को दिखाती है, बल्कि ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक ढांचे को भी उजागर करती है, जो महिलाओं की एजेंसी और निर्णय लेने को आज भी नियंत्रित करते हैं। निष्पक्ष पुलिस कार्रवाई भी खाप पंचायतों के की जाने वाली सामूहिक कार्रवाई का प्रतिरोध करने में मददगार साबित हो सकता है। ऑनर किलिंग में उन लोगों के खिलाफ़ भी लैंगिक हिंसा शामिल है, जो हेट्रोसेक्शुअल संबंधों से बाहर होते हैं और अपने पसंद के साथी के साथ रहने का फैसला करते हैं। ऑनर किलिंग मानवाधिकार का हनन है जिसे एक कानूनी, सामाजिक, राजनीतिक और सामुदायिक समस्या के रूप में देखे जाने और इसका हल करने की जरूरत है।

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