समाजकार्यस्थल मातृत्व दंड के कारण नौकरियों में पिछड़ती कामकाजी महिलाएं

मातृत्व दंड के कारण नौकरियों में पिछड़ती कामकाजी महिलाएं

भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में कामकाजी माताओं को अपने करियर में "मैटरनिटी पेनल्टी" का सामना करना पड़ता है। अध्ययन के मुताबिक़ प्रत्येक छठी महिला को मातृत्व अवकाश के बाद अपनी नौकरी बनाए रखने का संदेह रहता है, जबकि 50 फीसदी महिलाओं ने अवकाश से पहले करियर के बारे में चर्चा नहीं की। यह पेनल्टी महिलाओं को कम वेतन वाली, अंशकालिक भूमिकाओं की ओर धकेलती है, जिससे उनके करियर में प्रोग्रेस बहुत सीमित हो जाती है और आर्थिक असमानता बढ़ती है। 

“मैंने जीवन में कभी ये नहीं सोचा था कि मुझे करियर और फैमिली में से एक को चुनना पड़ेगा लेकिन ये हुआ। ये आपसी सहमति से हुआ था लेकिन मुझे मलाल रहता है और शायद एक वक्त बाद ये और बढ़ेगा इसलिए कभी-कभी मैं सोचती हूं जैसे ही बच्चे संभल जाएंगे मैं फिर से प्रैक्टिस शुरू कर दूंगी। कम से कम खुद के लिए कोई काश न रहेगा और मेरी वो ख्वाहिश जिसे मैंने बचपन से अपने युवा होने तक पूरा करने के लिए मेहनत की थी वो अधूरी न रहेगी।” यह कहना है मोनिका का। वह बोलते-बोलते कभी एकदम से चुप हो जाती है और फिर रूकते हुए अपनी बात पूरी करती है। दरअसल मोनिका अपनी शादी के कुछ समय बाद तक एक आर्युवैदिक क्लीनिक पर प्रैक्टिस करती थी लेकिन पहले बच्चे के होने के बाद उनकी प्रैक्टिस छूटी और वह पूरी तरह से बच्चों की देखभाल में लग गई। भारत में महिलाओं को लैंगिक भूमिकाओं और उनके प्रोफेशनल करियर को ज्यादा महत्व न देने की वजह से वे करियर में पिछड़ जाती हैं। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में मातृत्व के बाद महिलाएं काम पर दोबारा लौट तक नहीं पाती हैं। कुछ परिस्थितियों में कामकाजी महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव या बच्चे की परवरिश के लिए लिया गया ब्रेक हमेशा के लिए उनके करियर को खत्म करने तक का हो जाता है। 

भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में कामकाजी माँओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हाल ही में एऑन, वॉयस ऑफ वीमेन 2024 नाम से जारी स्टडी में यह सामने आया है कि महिला कर्मचारियों को मातृत्व पेनल्टी का सामना करना पड़ता है। इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र में कामकाजी माँओं को अपने करियर में ‘मैटरनिटी पेनल्टी’ का सामना करना पड़ता है। अध्ययन के मुताबिक़ प्रत्येक छठी महिला को मातृत्व अवकाश के बाद अपनी नौकरी बने रहने का संदेह रहता है, जबकि 50 फीसदी महिलाओं ने अवकाश से पहले करियर के बारे में चर्चा नहीं की। यह पेनल्टी महिलाओं को कम वेतन वाली, अंशकालिक भूमिकाओं की ओर धकेलती है, जिससे उनके करियर में प्रोग्रेस बहुत सीमित हो जाती है और आर्थिक असमानता बढ़ती है। 

इस स्टडी में 560 से अधिक कंपनियों की 24,000 महिला कर्मचारियों का सर्वेक्षण किया गया। जिसमें 75 फीसदी कामकाजी माँओं को मैटरनिटी लीव यानी मातृत्व अवकाश के बाद करियर में 1-2 साल की बाधा का सामना करना पड़ा। 40 फीसदी महिलाओं ने बताया कि मातृत्व अवकाश से उनकी आय पर असर पड़ा और कई को ऐसे पदों पर काम दिया गया जो उन्हें पसंद नहीं थे। इस सर्वे में कार्यस्थल में महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रह और भेदभाव की व्यापक समस्या को भी सामने रखा गया है। भारत में 2017 के मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम के तहत 26 सप्ताह की कामकाजी महिलाओं के लिए वैतनिक छुट्टी का प्रावधान है। 

बच्चे के जन्म के बाद दोबारा से नौकरी ढूढ़ने की समस्या के बारे में बात करते हुए रिया का आगे कहना है, “सब जगह ब्रेक को लेकर एक्सप्लेन करना पड़ा है। मेरे माँ बनने को मेरी करियर में एक बाधा की तौर पर देखा गया है। इस ब्रेक की वजह से मेरी करियर की ग्रोथ पर असर पड़ा है। मेरी डेजिगनेशन वही रही जो डेढ़ साल पहले थी और इसका असर मेरी सैलरी पर तो बिल्कुल पड़ा है।

आंकड़े दिखाते हैं कि अगर मैटरनिटी लीव पर समय से पहले बातचीत न करना प्रोफेशनल ग्रोथ पर अधिक नकारात्मक असर पड़ता है। अध्ययन के अनुसार, मैटरनिटी लीव के बाद महिलाओं को सबसे बड़ी समस्याओं के तौर पर रेटिंग, प्रमोशन में कमी, वेतन पर नकारात्मक प्रभाव जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। डीईआई प्रैक्टिस लीडर इंडिया एऑन की एसोसिएट प्रैक्टिस शिल्पा खन्ना का कहना है कि मातृत्व अवकाश के बाद कामकाजी माँओं को करियर ग्रोथ में एक पेनल्टी का सामना करना पड़ता है, चाहे वह प्रदर्शन मूल्यांकन, प्रमोशन या वेतन में हो। विभिन्न पहलुओं पर इसका असर उनके करियर ग्रोथ के लिए एक बड़ी बाधा पैदा करता है जो ‘लीकी पाइपलाइन’ की ओर बढ़ावा देता है। 

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

बीते वर्ष एक बेटी को जन्म देने वाली रिया बालियान एक एक निजी कंपनी में काम करती हैं। बेटी के एक साल के होने के बाद रिया दोबारा से काम पर लौटी है। मैटरनिटी ब्रेक और दोबारा काम लौटने की चुनौतियों के बारे में बोलते हुए उनका कहना है, “मेरी बेटी के जन्म के दो महीने पहले से मैंने काम से ब्रेक लिया। मेरी तबीयत बहुत खराब रहती थी लिहाजा मैंने काम से ब्रेक लेना सोचा। मैंने ये तय किया था कि मैं काम पर जल्द ही लौटूंगी। डिलीवरी के दो महीने बाद ही मैंने नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी थी लेकिन इस पूरे प्रोसेस में सात-आठ महीने लग गए। इस बार मैं वर्क फॉर्म होम के ऑप्शन ढूंढ रही थी क्योंकि अभी मेरे लिए यही विकल्प बेहतर है।”

बच्चे के जन्म के बाद दोबारा से नौकरी ढूढ़ने की समस्या के बारे में बात करते हुए रिया का आगे कहना है, “सब जगह ब्रेक को लेकर एक्सप्लेन करना पड़ा है। मेरे माँ बनने को मेरी करियर में एक बाधा की तौर पर देखा गया है। इस ब्रेक की वजह से करियर ग्रोथ पर असर पड़ा है। मेरी डेजिगनेशन वही रही जो डेढ़ साल पहले थी और इसका असर मेरी सैलरी पर तो बिल्कुल पड़ा है। बस मुझे इस बात की तसल्ली है कि मैं अपने बनाए प्लॉन के अनुसार वर्क फॉर्म होम के ज़रिये काम कर पा रही हूं। हां अगर ये ऑप्शन नहीं होता तो शायद रिज्वाइनिंग करना इतनी जल्दी संभव नहीं होता। घर पर रहकर काम करना और बच्चे का ख्याल रखना सबको सही लगा तो इस वजह से मैं दोबारा से अपना करियर शुरु कर पाई हूं।” 

हालांकि सभी महिलाएं रिया जैसी नहीं है जो मैटरनिटी लीव के बाद काम पर लौट जाती है। इसलिए कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व उनके करियर में एक बाधा है। इसकी प्रमुख वजह कार्यस्थल पर पुरुषों का वर्चस्व अधिक होना और उन्हीं के अनुसार नीतियों का होना और लैंगिक भूमिकाओं का होना है। सोनिया एक मल्टी स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल में पेशेवर डायटिशन के रूप में चार साल का कार्य अनुभव रखती हैं। बच्चा होने से पहले तक उन्होंने काम किया लेकिन मैटरनिटी ब्रेक के बाद वह काम नहीं लौटीं। सोनिया कहती हैं, “बच्चे की डिलवरी के समय मैं अपने गृहनगर मुज़फ़्फ़रनगर आई उसके बाद कोविड के समय मेरे पति को यहां आना पड़ा। कोविड के बाद वे तो अपने का पर लौट गए लेकिन मैं यहीं रह गई और उसके बाद से मेरा नौकरी पर दोबारा ज्वाइनिंग का ख्याल एक ख्याल ही बनकर रह गया। शुरू में बच्चे को पूरा टाइम देना, उसकी परवरिश को समय देना मुझे ज़रूरी लगा। अब यहां इस शहर में ज्यादा बेहतर विकल्प नहीं है इस वजह से अभी मैं नौकरी दोबारा से करने तक का नहीं सोच पा रही हूं।” 

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तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बनर्जी

शोध दिखाता है कि गर्भवती और नई माताओं के लिए एक सहायक वातावरण सुनिश्चित करना कंपनियों के लिए ज़रूरी है। बैंगलुरू में एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सृष्टि का कहना है, “मेरी बेटी के जन्म के समय में विदेश में रहकर काम करती थी। उसके जन्म के बाद हमने यहां मूव किया और फिर यहां पर दोबारा से नौकरी को तलाशने की प्रक्रिया शुरू हुई। मेरा अनुभव और सीवी बहुत मजबूत था तो मेरे लिए बहुत मुश्किल तो नहीं रहा लेकिन मैं यह दावे से कह सकती हूं कि मैटरनिटी ब्रेक से मेरी करियर ग्रोथ पर असर पड़ा है। एक साल के ब्रेक से मुझे आर्थिक नुकसान भी हुआ है। माँ बनने की वजह से मैं काम में एक साल पीछे चली गई हूं।”

नोएडा में एक निजी कंपनी में काम करने वाली शैली का कहना है, “हम चाहे कितनी भी बात कर लें लेकिन कामकाजी महिलाओं के साथ मैटरनिटी लीव या माँ बनने के दौरान ब्रेक की वजह से उनका करियर कई तरह के प्रभावित होता है। मुझे काम करते हुए दस साल हो गए है। डिलीवरी के समय मैं लगभग दो महीने से कुछ समय तक छुट्टी पर रही थी। सारी कंडीशन को देखते हुए मैं ज्यादा समय तक काम से दूर नहीं रही इसलिए मैंने जल्द ही रीज्वाइन करने का तय कर लिया था। हालांकि कंपनी में मैटरनिटी लीव का प्रावधान था लेकिन यह उतना आसान नहीं जितना बताना लग रहा है। मैटरनिटी लीव पर जाने पर आपके पुरुष सहयोगी आपकी छुट्टी लेने का मजाक तक उड़ाते हैं। यह मजाक कैसे हो सकता है मुझे ये समझ नहीं आता है।”  

वह आगे कहती है, “हम दोनों यहां अकेले रहते हैं। बच्चे के जन्म के समय के बाद मेरी माँ हमारे पास कुछ समय के लिए आई थी लेकिन बच्चे की देखभाल और घर संभालने की वजह से हर महीने हजारों रूपये मैंने खर्च किए हैं। इस वजह से मैंने बहुत मेहनत की है ताकि मैं अपनी आर्थिक स्थिति और बेहतर कर सकूं लेकिन बच्चे के बड़े होने के स्थिति अलग तरीके से बदलती है इस वजह से मुझे आर्थिक तौर पर पूरी तरह से सुरक्षा महसूस नहीं होती है। मैटरनिटी लीव का करियर ग्रोथ पर असर पड़ता है इस वजह से मैं दूसरे बच्चे के बारे में सोचने से बच रही हूं क्योंकि इससे मेरी प्रोफेशनल लाइफ बहुत हद कर प्रभावित हो जाएगी।”

इस स्टडी में 560 से अधिक कंपनियों की 24,000 महिला कर्मचारियों का सर्वेक्षण किया गया। जिसमें 75 फीसदी कामकाजी माँओं को मैटरनिटी लीव यानी मातृत्व अवकाश के बाद करियर में 1-2 साल की बाधा का सामना करना पड़ा।

कार्यस्थल पर अनेक तरह के भेदभावों में महिलाओं को उनके माँ बनने की वजह से उन्हें करियर ग्रोथ, जेंडर पे गैप, प्रमोशन आदि का सामना करना पड़ता है। लैंगिक भूमिकाओं और सांस्कृतिक मान्यताओं की वजह से महिलाओं को ही केयर गिवर के तौर पर देखा जाता है। इस वजह से अगर उनकी प्रोफेशनल ग्रोथ या नौकरी पर टिका रहना जैसा कुछ प्रभावित भी हो रहा है तो उसे बहुत महत्व नहीं दिया जाता है। द गार्जियन में प्रकाशित ख़बर में इक्वल राइट्स चैरिटी की रिपोर्ट के अनुसार काम और बच्चों के बीच संतलन बनाने की कठिनाईयों की वजह से लगभग दो लाख से ज्यादा माँओं को अपनी नौकरियां छोड़नी पडी हैं और यह मातृत्व पैनल्टी का परिणाम है। इससे अलग द ग्लोबल इंस्टीट्यूट फॉर वुमेन लीडरशिप रिसर्च के अनुसार मदरहुड पैनल्टी की वजह से न केवल महिलाएं वैतनिक समस्याओंं का सामना करती है बल्कि उनकी नौकरी की क्वालिटी भी इससे प्रभावित होती है। मातृत्व पैनल्टी कार्यस्थल पर मौजूद भेदभाव का वह रूप है जिस पर संस्कृति और लैंगिक भूमिकाओं की वजह से बात नहीं होती है। हमें अपने कार्यस्थल पर समावेशी माहौल बनाने के लिए महिला कर्मचारियों के सामने वाली इन चुनौतियों पर सकारात्मक तरीके से खुलकर चर्चा करने और नीतियों को बनाने की आवश्यकता है।


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