समाजकानून और नीति सेरोगेट माँ को भी है मातृत्व अवकाश का पूरा अधिकारः राजस्थान हाई कोर्ट

सेरोगेट माँ को भी है मातृत्व अवकाश का पूरा अधिकारः राजस्थान हाई कोर्ट

न्यायमूर्ति अनूप कुमार की एकल न्यायाधीश पीठ ने राज्य को याचिकाकर्ता को 180 दिन का समय देने का आदेश देते हुए कहा, "जहां तक ​​मातृत्व अवकाश का सवाल है, केवल इसलिए एक माँ के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने सरोगेसी की प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे को जन्म दिया है।"

हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि सरोगेसी के माध्यम से बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं को भी मातृत्व अवकाश दिया जाना चाहिए और विभिन्न प्रकार की माताओं के बीच कोई भी अंतर मातृत्व का “अपमान” है। उच्च अदालत ने इस मामले में राज्य को याचिकाकर्ता को 180 दिनों का मातृत्व अवकाश देने और सरोगेट और कमीशनिंग माताओं के लिए मातृत्व अवकाश के लिए कानून बनाने का आदेश दिया। अदालत ने तर्क दिया कि मातृत्व का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है और सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए नवजात शिशुओं को जन्म के बाद शुरुआती महत्वपूर्ण अवधि के दौरान अपनी माँ के प्यार, देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

आठ नवंबर को, न्यायमूर्ति अनूप कुमार ने अदालत में कहा, “यदि मैटरनिटी का अर्थ मातृत्व है, तो प्राकृतिक और जैविक माँ और सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली माँ के बीच अंतर करना उचित नहीं होगा।” इस मामले में अदालत एक सरोगेट माँ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने सरोगेसी के माध्यम से जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था जिसके मातृत्व अवकाश के आवेदन को राजस्थान सरकार ने यह तर्क देते हुए अस्वीकार कर दिया था कि राजस्थान सेवा नियम, 1951, सरोगेसी के माध्यम से बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश का प्रावधान नहीं करता है।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 में महिलाओं को उनके पहले दो बच्चों के लिए छह महीने या 26 सप्ताह का भुगतान मातृत्व अवकाश और बाद के बच्चों के लिए तीन महीने का भुगतान करने का अधिकार देता है।

न्यायमूर्ति अनूप कुमार की एकल न्यायाधीश पीठ ने राज्य को याचिकाकर्ता को 180 दिन का समय देने का आदेश देते हुए कहा, “जहां तक ​​मातृत्व अवकाश का सवाल है, केवल इसलिए एक माँ के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने सरोगेसी की प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे को जन्म दिया है।” अदालत ने आगे कहा, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार भी शामिल है। अगर सरकार गोद लेने वाली माँ को मातृत्व अवकाश दे सकती है, तो सरोगेसी प्रक्रिया के जरिए बच्चा पैदा करने वाली माँ को मातृत्व अवकाश देने से सरकार के इनकार को पचाना मुश्किल है।”

मातृत्व अवकाश पर राष्ट्रीय कानून

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 में महिलाओं को उनके पहले दो बच्चों के लिए छह महीने या 26 सप्ताह का भुगतान मातृत्व अवकाश और बाद के बच्चों के लिए तीन महीने का भुगतान करने का अधिकार देता है। सरोगेसी के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चों के बारें में टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा “इस प्रक्रिया के माध्यम से पैदा हुए नवजात शिशुओं को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है, क्योंकि इन शिशुओं को उनके जन्म के बाद शुरुआती महत्वपूर्ण समय यानी शैशवावस्था के दौरान माँ के प्यार, देखभाल, सुरक्षा और ध्यान की आवश्यकता होती है। जन्म के बाद इस अवधि के दौरान माँ और बच्चे के बीच प्यार और स्नेह का बंधन विकसित होता है।

मातृत्व अवकाश का उद्देश्य

एक महिला न केवल बच्चे को जन्म देकर बल्कि बच्चे को गोद लेकर भी माँ बन सकती है और अब चिकित्सा विज्ञान के विकास के साथ, महिला या दंपत्ति के लिए बच्चा पैदा करने के लिए सरोगेसी भी एक विकल्प है। महिलाओं को सरकार द्वारा मातृत्व लाभ देने से संबंधित प्रावधान एक लाभकारी प्रावधान है, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय प्राप्त करना है और इसलिए, इसे लाभकारी रूप से समझा जाना चाहिए।

मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिला और उसके बच्चे के पूर्ण और स्वस्थ रखरखाव की व्यवस्था करके मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है। मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिलाओं को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य को प्राप्त करना है क्योंकि मातृत्व और बालक दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मातृत्व अवकाश प्रदान करते समय न केवल माँ और बच्चे के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर विचार किया जाता है, बल्कि दोनों के बीच स्नेह का बंधन बनाने के लिए भी अवकाश प्रदान किया जाता है।

कौन हैं कमीशनिंग माँ और सरोगेट माँ?

उपर्युक्त मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे की देखभाल के लिए मातृत्व अवकाश दिया जाना चाहिए की बात कही। साथ ही न्यायालय ने यह भी रेखांकित करते हुए टिप्पणी की कि प्राकृतिक माँ, कमीशनिंग माँ और सरोगेट माँ के बीच कोई भी अंतर मातृत्व का “अपमान” है। अब सवाल यह है कि प्राकृतिक माँ, कमीशनिंग माँ और सरोगेट माँ के बीच अंतर क्या है? ये कौन हैं?

प्राकृतिक माँ जो अपने बच्चे को खुद जन्म देती है

जिन दम्पत्तियों के बच्चा नहीं है उनके लिए सरोगेसी एक वरदान है। एक महिला अपने इच्छित माता-पिता की मदद से बनाए गए भ्रूण (embryo) या युग्मकों (gamets) के स्थानांतरण द्वारा दूसरों के लिए अपने गर्भ में बच्चे को पालती है, इसे सरोगेसी कहा जाता है। अब, कोई भी सरोगेसी प्रक्रिया के माध्यम से बच्चा पैदा कर सकता है और इसे कानून के तहत भी मान्यता प्राप्त है।

इसी तरह, सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियम) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के अनुसार, एक विवाहित जोड़ा जो सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने के उद्देश्य से एक सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी क्लिनिक या एक सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंक (Assisted Reproductive Technology Clinic or Assistant Reproductive Technology Bank) से संपर्क करता है, उसे ‘कमीशनिंग जोड़ी’ कहा जाता है। इसी तरह, एक कमीशनिंग मदर वह माँ होगी, जो सरोगेट माँ के किराए के गर्भ से बच्चा प्राप्त करना चाहती है। हालाँकि, कमीशनिंग माँ बच्चे की जैविक माँ बनी रहती है और बच्चे के संबंध में सभी अधिकार बरकरार रखती है।

तस्वीर साभारः NBC News

के. कलैसेल्वी बनाम चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि एक कमीशनिंग माँ को न्यायिक रूप से उस व्यक्ति के रूप में मान्यता दी गई है जो दत्तक माँ के समान परिस्थिति में है। भारत में कमीशनिंग माँ के मातृत्व अवकाश से सम्बंधित मुद्दा न्यायालय के सामने पहली बार रमा पांडे बनाम भारत संघ (2013) मामले में आया। इसमें, याचिकाकर्ता ने सुश्री आरती के साथ एक समझौता किया था। इस व्यवस्था के तहत सरोगेट माँ को इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) पद्धति का उपयोग करके बच्चे को जन्म देना था। बच्चा पैदा करने के इस समझौते को अन्य नियमों और शर्तों के साथ, जिसमें कमीशनिंग माता-पिता और सरोगेट माँ के अधिकार और दायित्व शामिल थे, को एक लिखित समझौते में बदल दिया गया था। बाद में, याचिकाकर्ता और उसके पति को जुड़वाँ बच्चे हुए। मामले में विवाद तब पैदा हुआ जब याचिकाकर्ता के बाल-देखभाल अवकाश (CCL) के आवेदन को उसके नियोक्ता ने एक सरकारी संगठन होने के नाते, अस्वीकार कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की और बाल-देखभाल अवकाश (CCL) की मांग की।

कोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था के दो चरण होते हैं, प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद। वे गर्भवती महिला कर्मचारी, जो शारीरिक रूप से मजबूत हैं और अपनी गर्भावस्था में चिकित्सीय जटिलताओं का सामना नहीं करती हैं, प्रसव के बाद शुरू होने वाली अवधि में अपने मातृत्व अवकाश का एक बड़ा हिस्सा लेती हैं। अधिकांश संगठनों द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियम और विनियम मातृत्व अवकाश के विभाजन, यानी प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर चरणों के बीच छुट्टी के विभाजन का प्रावधान नहीं करते हैं। महिला कर्मचारियों द्वारा प्रसव के बाद छुट्टी का एक बड़ा हिस्सा लेने का कारण यह है कि एक नए जीवन को दुनिया में लाने का चुनौतीपूर्ण हिस्सा, प्रसव के बाद के समय में शुरू होता है।

सरोगेसी के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चों के बारें में टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा “इस प्रक्रिया के माध्यम से पैदा हुए नवजात शिशुओं को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है, क्योंकि इन शिशुओं को उनके जन्म के बाद शुरुआती महत्वपूर्ण समय यानी शैशवावस्था के दौरान माँ के प्यार, देखभाल, सुरक्षा और ध्यान की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि शारीरिक परिवर्तनों और कठिनाइयों को छोड़कर, बच्चे के पालन-पोषण की अन्य सभी चुनौतियां सभी महिला कर्मचारियों के लिए आम हैं, भले ही वह बच्चे को इस दुनिया में लाने के लिए कोई भी तरीका चुनें। इसके अलावा, बच्चे के जन्म के तुरंत बाद एक कमीशनिंग माँ को बच्चे के साथ बंधन में बंधना पड़ता है और स्तनपान कराने वाली माँ की भूमिका निभानी पड़ती है। इसलिए, बच्चे के जन्म पर कमीशनिंग माँ प्रमुख देखभालकर्ता बन जाएगी (इस तथ्य की परवाह किए बिना कि कुछ परिस्थितियों में बच्चे को बोतल से दूध पिलाया जा सकता है)। इसलिए, एक कमीशनिंग माँ के मातृत्व अवकाश के अधिकार को इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि उसने बच्चे को जन्म नहीं दिया है। 

इस फैसले के बाद कमीशनिंग माँ के मातृत्व अवकाश से सम्बंधित मामलों में दूसरे राज्यों के उच्च न्यायालयों ने उन्हें मातृत्व अवकाश प्रदान किया। ‘मातृत्व का अधिकार’ और ‘बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार’ अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है, जो देश के प्रत्येक नागरिक को दिया गया एक मौलिक अधिकार है। इसे सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता है कि किसी महिला ने बच्चे को खुद जन्म नहीं दिया है। विज्ञान की तरक्की ने उन जोड़ों के लिए बच्चा पैदा करने की सुविधा उपलब्ध करा दी है जिनके बच्चा नहीं हो सकता था। अब सरकार का दायित्व बनता है कि ऐसे कपल्स को बच्चों को पालने के लिए सुविधाएं भी अन्य कपल्स के समान दें।


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