इंटरसेक्शनलजेंडर बॉडी शेमिंग से बढ़ता तनाव और हीन भावना महिलाओं का कितना नुकसान कर रही है

बॉडी शेमिंग से बढ़ता तनाव और हीन भावना महिलाओं का कितना नुकसान कर रही है

परिवार में हमेशा यह बतलाया जाता है कि लड़कियों को कैसे रहना है। परिवार के तरफ से अक्सर महिलाओं को उनके मोटापे के लिए कहा जाता है कि मोटी हो रही हो तो शादी कैसे होगी। इस तरह की सोच और व्यवहार महिलाओं को बचपन से ही खुद के शरीर से लगाव को खत्म कर सकती है। महिलाओं को अपने शरीर को लेकर एक तरह से शक होने लगता है।

हमारे समाज में महिलाओं के शरीर को देखने का एक निश्चित तरीका है। महिलाओं के शरीर को लेकर एक मापदंड बनाया गया है, जिसके तहत एक निश्चित प्रकार का शरीर न हो तो उसे ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है। अक्सर लोग यह कहते हुए पाए जाते हैं कि एक लड़की को हमेशा सुंदर दिखना चाहिए, उन्हें अपने चेहरे पर उगे बाल को हटवाते रहना चाहिए। अगर लंबाई कम हो, तो वजन कम ही रखना चाहिए वरना सुंदर नहीं लगेंगी। कमर पतली हो, त्वचा गोरी हो और न जाने कितने ही नसीहत दी जाती है।

हालांकि ये बातें बहुत ही सामान्य तरीके से कही जाती हैं, लेकिन कहीं से भी ये न तो गरिमापूर्ण बातें हैं और न ही सामान्य। यह बातें पितृसत्तात्मक समाज के रूढ़िवादी सोच को दर्शाती है, जहां पर आज भी यह मानसिकता है कि सुंदर संपन्न बॉडी या कहे तो परफेक्ट बॉडी उसे ही कहा जाता है, जिसका रंग गोरा हो, शरीर पतला हो, कमर में लचक हो, सुंदर घने लंबे बाल हो, बदन की बनावट एकदम सुंदर हो, स्तनों की आकार ठीक हो और न जाने कितने ही मानदंड महिलाओं के शरीर के लिए बनाए गए हैं।

‘बॉडी शेमिंग’ की शुरुआत आम तौर पर हमारे परिवारों से होती है जहां लड़कों या लड़कियों की कद और रंग अनुसार ‘उपनाम’ तक रख दिया जाता है। लेकिन बड़े होते-होते लड़कियों से उम्मीद की जाती है कि अपने रंगरूप के उलट ये समाज के बनाए नियमों के अनुसार चलेंगी।

घरों से होती है बॉडी शेमिंग की शुरुआत

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

आम तौर पर ये सारे मापदंड को मानने को लिए महिलाएं मजबूर होती है क्योंकि हमारी पितृसत्तातमक समाज और परिवार यही सिखाता है। अक्सर उन्हें यह चिंता सताती है कि उनमें कोई कमी तो नहीं। महिलाओं को हमेशा उनके आकार, लंबाई, वजन, या अन्य कई कारण से बार-बार शर्मिंदा किया जाता है और समस्या को संबोधित करने पर कई बार ये कहकर टाल दिया जाता है कि हम तो मज़ाक कर रहे थे। इसे ‘बॉडी शेमिंग’ कहा जाता है। ‘बॉडी शेमिंग’ की शुरुआत आम तौर पर हमारे परिवारों से होती है जहां लड़कों या लड़कियों की कद और रंग अनुसार ‘उपनाम’ तक रख दिया जाता है। लेकिन बड़े होते-होते लड़कियों से उम्मीद की जाती है कि अपने रंगरूप के उलट ये समाज के बनाए नियमों के अनुसार चलेंगी। परिवार में हमेशा यह बतलाया जाता है कि लड़कियों को कैसे रहना है। परिवार के तरफ से अक्सर महिलाओं को उनके मोटापे के लिए कहा जाता है कि मोटी हो रही हो तो शादी कैसे होगी। अगर पतली हो जाओ तो यह सुनना पड़ता है कि पतली हो रही हो,ऐसे में बच्चा पैदा करने में दिक्कत होगा।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता बॉडी शेमिंग

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए सुश्रिता

इस तरह की सोच और व्यवहार महिलाओं को बचपन से ही खुद के शरीर से लगाव को खत्म कर सकती है। महिलाओं को अपने शरीर को लेकर एक तरह से शक होने लगता है। इस पर दिल्ली में रह कर नौकरी करने वाली बिहार की मूल निवासी फ़रहत कहती हैं, “महिलाओं के बॉडी को लेकर हमेशा से एक संरचना बनाई गई है कि सुंदर बॉडी की क्या संरचना होगी। आज के समय में किसी की बॉडी अगर उस परिभाषा से इतर हुई तो उसमें सौ कमियां दिखाई जाने लगती है जिसका सीधा असर आपके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। मैं लगभग हर दिन इसका सामना करती हूं क्योंकि मेरी हाईट बहुत कम है जिसे लेकर मुझे स्कूल, यूनिवर्सिटी या अभी कार्यस्थल में, हर जगह एक अलगाव महसूस हुआ और होता भी है। मेरी हाईट को लेकर मेरे आस-पास के लोगों के मज़ाक पर जब मन बहुत झल्ला जाता है और मैं एक्शन लेने की कोशिश करती हूं तो यह कहकर टाल दिया जाता है कि अरे हम तो मज़ाक कर रहे थे। लेकिन उनका यह मज़ाक मेरे मनोदशा को बहुत प्रभावित करता है।”

मेरी हाईट को लेकर मेरे आस-पास के लोगों के मज़ाक पर जब मन बहुत झल्ला जाता है और मैं एक्शन लेने की कोशिश करती हूं तो यह कहकर टाल दिया जाता है कि अरे हम तो मज़ाक कर रहे थे। लेकिन उनका यह मज़ाक मेरे मनोदशा को बहुत प्रभावित करता है।

वह आगे बताती है, “मैं अपनेआप पर हमेशा शक करती हूं। कभी लोगों के साथ खड़े होकर बात कर रही होती हूं तब लगता है कि ये लोग मेरी हाईट को लेकर क्या सोचते होंगे। कई बार इस वजह से कई दिनों तक नींद नहीं आती है। मैं किसी भी क्षेत्र में नौकरी करने से पहले कई बार सोचती हूं कि कहीं मेरे हाईट के कारण मुझे नौकरी ना दे तो? यहां तक कि अभी जहां मैं नौकरी कर रही हूं वहां भी मुझे मेरी हाईट के वजह से हर मोड़ पर मुझे महसूस करवाया जाता है कि मेरी हाईट कम है और यह मेरी कमी है।” बॉडी शेमिंग किसी इंसान के लिए बेहद खतरनाक भी हो सकता है। पिछले महीने, गाज़ियाबाद से एक खबर आई थी जिसमें एक प्राइवेट बैंक मैंनेजर को उनके ऑफिस में साथी सहकर्मी उनके रंगरूप के कारण चिढ़ाया करते थे और बॉडी शेमिंग करते थे जिसके कारण कथित तौर पर उन्होंने खुदखुशी कर ली।

क्या समाज और परिवार बॉडी शेमिंग को बढ़ावा दे रही है  

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए सुश्रिता

बॉडी शेमिंग पर पेशे से वकील और दिल्ली की निवासी शिवानी कहती हैं, “महिलाओं को बॉडीशेमिंग करने वाले 90 प्रतिशत लोग उनके अपने ही होते हैं। मेरा शरीर मोटा है वकालत की पेशे में नौकरी करने के कारण समय का पता नहीं चलता। इस वजह से मैं अपने शरीर का ख्याल सही से नहीं रख पाती हूं। मेरे मोटापे के कारण मुझ पर कमेन्ट किया जाता है। यहां तक कि ऑफिस में दूसरी लड़कियों से तुलना करके शर्मिंदा किया जाता है कि तुम उसके तरह पतली और सुंदर नहीं हो। ऐसे में आप कितना भी टैलेंटेड क्यों न हो आपका आत्मविश्वास धीरे-धीरे खत्म होने ही लगता है।” हिंदुस्तान टाइम्स में एक सर्वेक्षण आधारित खबर मुताबिक 90 फीसद महिलाओं मानती हैं कि शहरी भारत में बॉडी शेमिंग एक व्यापक व्यवहार है और यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक केंद्रित है। 47.5 फीसद महिलाओं ने बताया कि उन्हें स्कूल या कार्यस्थल पर शरीर को लेकर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, और 32.5 फीसद मामलों में उनके करीबी दोस्तों ने ही नकारात्मक टिप्पणियां कीं।

मैं किसी भी क्षेत्र में नौकरी करने से पहले कई बार सोचती हूं कि कहीं मेरे हाईट के कारण मुझे नौकरी ना दे तो? यहां तक कि अभी जहां मैं नौकरी कर रही हूं वहां भी मुझे मेरी हाईट के वजह से हर मोड़ पर मुझे महसूस करवाया जाता है कि मेरी हाईट कम है और यह मेरी कमी है।

बॉडी शेमिंग के कारण अपने शरीर को नापसंद करना

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

बॉडी शेमिंग के विषय शिवानी कहती हैं, “मेरे चेहरे पर बाल है जो दिखता है। पर मुझे वह सामान्य लगता था क्योंकि हार्मोनल बदलाव  के कारण किसी लड़की के चेहरे पर कम बाल होते हैं तो किसी के ज्यादा होते हैं। लेकिन इस वजह से मुझे नसीहतें दी जाती है कि तुम ट्रीटमेंट क्यों नहीं करवाती हो। ऐसे में मेरे चेहरे के बाल जो कभी मुझे सामान्य लगता था अब उससे दिक्कत होने लगी है। इस तरह आप न चाहते हुए भी अपने शरीर से नफरत करना शुरू कर देते हैं।” हमारे पितृसत्तातमक समाज में आज महिलाएं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर काम करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

लेकिन, नौकरी के साथ बाकी जिम्मेदारियां विशेषकर घर  संभालने की जिम्मेदारी उनकी ही है। बहुत कम ही परिवार है जो घरेलू काम में मदद करते हैं। ऐसे में कई बार महिलाओं का खुदपर अपना ध्यान रखना संभव नहीं। नेशनल फैमिली सर्वे-5 के मुताबिक, 23 फीसद पुरुष और 24 फीसद महिलाओं का बॉडी मॉस इंडेक्स 25 या उससे ज्यादा है। साथ ही, सुंदरता के ये पैमाने समाज के बनाए हुए हैं जिन्हें न मानने पर उनके साथ भेदभाव की नौबत नहीं आनी चाहिए।

मेरे मोटापे के कारण मुझ पर कमेन्ट किया जाता है। यहां तक कि ऑफिस में दूसरी लड़कियों से तुलना करके शर्मिंदा किया जाता है कि तुम उसके तरह पतली और सुंदर नहीं हो। ऐसे में आप कितना भी टैलेंटेड क्यों न हो आपका आत्मविश्वास धीरे-धीरे खत्म होने ही लगता है।

क्या कार्यस्थल पर बॉडी शेमिंग उत्पीड़न का कारण है  

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

हाल ही में एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार भारतीय समाज में कामकाजी महिलाएं पुरुषों के तुलना में ज्यादा तनाव में रहती हैं। 72.2 फीसद कामकाजी महिलाओं और 53.64 फीसदी पुरुषों ने माना वे बहुत ज्यादा तनाव में हैं। 18 फीसद महिलाएं और 12 फीसद पुरुषों को काम और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है। सर्वे के अनुसार महिलाओं के तनाव के कारणों में कामकाज और जीवन में संतुलन की कमी, रिजेक्शन का डर, आत्मसम्मान में कमी और निर्णय संबंधी चिंता (जजमेंटल एंजायटी) शामिल थे। पुरुषों की तुलना में महिलाएं पितृसत्तात्मक समाज में ‘बॉडी शेमिंग’ का ज्यादा सामना कर रही हैं।

मेरे चेहरे पर बाल है जो दिखता है। पर मुझे वह सामान्य लगता था क्योंकि हार्मोनल बदलाव  के कारण किसी लड़की के चेहरे पर कम बाल होते हैं तो किसी के ज्यादा होते हैं। लेकिन इस वजह से मुझे नसीहतें दी जाती है कि तुम ट्रीटमेंट क्यों नहीं करवाती हो। ऐसे में मेरे चेहरे के बाल जो कभी मुझे सामान्य लगता था अब उससे दिक्कत होने लगी है।

उनकी मनोदशा को इस तरह से गढ़ दिया जाता है कि जहां पर वह ‘कैसी दिख रही’ है, ‘कैसे रहना है’, ‘क्या पहनना है’ इन सबके लिए आस-पास के लोगों के अनुसार चलना पड़ता है। लेकिन अब यह जरूरी हो गया है कि ये पितृसत्तातमक सोच और मानदंडों को बदलें। असल में, परफेक्ट बॉडी जैसा कुछ नहीं होता है। यह सब रूढ़िवादी समाज और पूंजीवादी बाज़ार की संरचना है। जबतक इससे हम बाहर नहीं आएंगे, तबतक हम स्वस्थ मानसिकता और बॉडीपोसीटिविटी की बात नहीं कर सकते। ज़रूरत है कि हम समझें कि इसकी शुरुआत सबसे पहले हमारे घरों  से होनी चाहिए। किसी का रंगरूप, कद या बनावट उसके प्रति किसी निश्चित धारणा को बढ़ावा न दे।  

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