फूड वेस्ट मैनेजमेंट एक ज़रूरी मुद्दा है क्योंकि यह हमारे पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित करता है। खाद्य और कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में उत्पादित सभी खाद्य का लगभग एक तिहाई बर्बाद हो जाता है। पुरुषवादी समाज में जेंडर रोल्स के तहत भोजन बनाने के काम को महिलाओं के काम के तौर पर देखा जाता है। आम तौर पर महिलाएं घरों में सबका ध्यान करने वाली होती है। रसोई को संभालने और बचे भोजन को मैनेज करना घरेलू महिलाओं का पहला काम होता है। कई रिसर्च में यह सामने आया है कि महिलाएं अक्सर पुरुषों की तुलना में खाने को कम बर्बाद करने में और बचे हुए खाने को दोबारा से कुछ नया बनाने या खाद बनाने के काम में लगी हुई मिलती हैं। वे फूड वेस्ट मैनेजमेंट पर ज़्यादा ध्यान देती हैं।
फूड वेस्ट मैनेजमेंट के ऐतिहासिक कारक
फूड वेस्ट के इतिहास पर आधारित द डोनट रिपोर्ट के अनुसार सदियों से और कई सभ्यताओं में फूड वेस्ट से निपटने के लिए कई तरह की कोशिशें की जाती रही हैं। पुराने दिनों में जब लोग जनजातियों के बीच या युद्ध के बीच रहते थे तब महिलाओं को अक्सर खाना सड़ने से पहले सुरक्षित रखने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार माना जाता था। लैंगिक आधार पर यह भेदभाव विशेष रूप से कृषि से जुड़ा हुआ दिखता है जहां महिलाओं को घर के साथ-साथ खेती और पशुओं की देखभाल भी करनी पड़ती थी और वे अक्सर पशुओं को बचा खाना देती है। मिस्र, ग्रीस और रोम जैसे प्राचीन देशों में, महिलाएं इस बात का ध्यान रखती थीं कि खराब खाने या बचे हुए खाने को कम किया जाए ताकि खाने के बचे हुए अपशिष्ट को कृषि उपयोग के लिए खाद बनाने के काम में लगाया जा सकें।
मॉर्डन फूड वेस्ट मैनजमेंट और जेंडर रोल्स
फूड वेस्ट की जागरूकता बढ़ने के कारण छोटे मध्यवर्गीय परिवारों से लेकर मल्टीमिलियन कंपनी तक सभी इस चीज की ज़रूरतों को समझ रहे हैं। भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में घरेलू स्तर पर इस तरह की बहुत सारी जिम्मेदारियां महिलाओं पर आती हैं। इनमें से कुछ कामों में जैसे, भोजन योजनाएं, किराने का सामान खरीदना, खाना बनाना और भोजन के अवशेषों का निपटान करना शामिल है। “द इम्पैक्ट ऑफ जेंडर ऑन फूड वेस्ट एट द कन्ज्यूमर” रिसर्च के अनुसार दो लिंगों में से, महिलाओं में खाने को कम बर्बाद करने की संभावनाए ज़्यादा होती है क्योंकि वे बजट फ़्रेंडली होने के साथ घर के खर्चों पर भी अपना ध्यान देती हैं। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह जिम्मेदारी महिलाओं पर पुरुषों की तुलना में अधिक है, खास तौर से कम आय साधनों के तहत काम करने वाले परिवारों के बीच।
फूड वेस्ट मैनेजमेंट जैसी योजनाओं में जहां महिलाएं शामिल हैं, वहां महिलाएं कम्यूनिटी के स्तर पर उन परियोजनाओं की मुख्य नेतृत्व कर रही हैं वे खाने की बर्बादी को कम करने के लिए बनाई गई हैं। उदाहरण के लिए, कम्यूनिटी गार्डेन्स, कॉमपोस्टिंग प्रोग्राम्स और फूड शेरिंग नेटवर्क बना कर वे कोशिश करती हैं कि खाने को कम बर्बाद किया जाए या उसे काम में लगा कर कुछ नया और उपयोगी बनाया जा सकें। इन सभी पहलुओं में महिलाओं को शामिल करना ज़रूरी है क्योंकि वे अपने उपयोगी घरेलू नुस्खे के साथ और आसान तरीकों को अपनाकर पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद करती हैं।
हालांकि एक व्यवस्थित स्तर पर, जांच करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि नगरपालिका या संस्थागत कचरे को एकजुट करने जैसे सामान्य स्तर पर भी अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दों में लैंगिक स्वीकार्य में एक बड़ा अंतर देखने को मिलता हैं। इन क्षेत्रों में अधिकांश पॉलिसी मैकिंग और मैनिजेरीअल पदों पर पुरुषों का कब्जा है। अधिकांश समय, वे ज्ञान से संबंधित रोजमर्रे के अनुभवों को नजरअंदाज करते हुए वैज्ञानिक या तकनीकी समाधानों पर ध्यान डालते हैं जो आमतौर पर महिलाओं द्वारा घरेलू स्तर पे लाए जाते हैं। इसके उलट नगरपालिका में कचरे से जुड़े हुए दूसरे कईं कामों में महिलाओं की उपस्थिति दर्ज कारवाई जाती है, जिसमें रीसाइक्लिंग सामग्री, मेटल रीप्रोसेसिंग जैसे काम भी शामिल होते हैं।
महिलाएं न केवल खाद्य अपशिष्ट के स्तर पर बल्कि, इसके इलावा अलग-अलग प्रकारों के कचरे को इकट्ठा करना, उसे छाँटना और उसे रीसाइक्लिंग सामग्री में बदलने के काम में भी जुड़ी रहती है। वे इन सामग्रियों को रीसाइक्लिंग उत्पादों में बदलने की कोशिश करती हैं। उनका योगदान प्लास्टिक जैसी चीज़ों को फिर से उपयोग में लाने में भी महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं गरीबी में जीवन जी रही है और अनेक बीमारियों का भी सामना कर रही है। कम वेतन पर काम करने वाली अनौपचारिक रीसाइक्लिंग करने वाली महिलाओं की संख्या अभी भी ज़्यादा है, जो धातु रीप्रोसेसिंग व्यवसायों में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। महिलाएं जब इन जैसे कचरे को अपने घरों में निपटाने के लिए कारगर और नए तरीकों को अपनाती हैं, तब भी उन्हें आवश्यक ध्यान या आकर्षण नहीं मिल पाता है।
यूएनएफसीसीसी में महिला और लिंग निर्वाचन क्षेत्र की सुविधा समिति की सदस्य और ग्रीन आर्मी इंटरनेशनल और सस्टेनेबल मेंस्ट्रुएशन केरल कलेक्टिव की को-फाउंडर बबीता पी.एस. का इस विषय पर कहना है, “आप देखेंगी दिनचर्या के काम, चाहे उनकी प्रकृति कुछ भी हो, बड़े पैमाने पर जेंडर रोल्स द्वारा नियंत्रित होते हैं। कुछ खास जिम्मेदारियां मुख्य रूप से महिलाओं को सौंपी जाती हैं। हमारे पितृसत्तात्मक ढांचे में, महिलाएं अक्सर खाना पकाने, सफाई और बचे हुए खाने की अपशिष्ट के साथ-साथ अधिकांश घरेलू ज़िम्मेदारियों को निभाती हैं। हालांकि, जब व्यवस्थित संग्रह की बात आती है, तो एक आम धारणा है कि सामान्य काम महिलाओं के लिए हैं। महिलाएं इस अवैतनिक श्रम के तहत अधिकांश में कचरे को अलग करना, प्लास्टिक की सफाई करना और सूखे और गीले कचरे को छांटने जैसे कामों में शामिल होती है।”
इसके अलावा घरेलू और प्रणालीगत वेस्ट मैनेंजमेंट पर बबीता का कहना है, “घरों के भीतर, महिलाएं अक्सर कचरे को संभालने के लिए अपने तरीके अपती हैं, जैसे कि सब्जी के स्क्रैप को खाद बनाना या मुर्गियों को खिलाने के लिए खाद्य अपशिष्ट का उपयोग करना। कभी-कभी वे इन्हीं बचे कूचे खाने से दूसरा भोजन भी बना लेती हैं। इसके परे, नगरपालिकाओं या संस्थागत स्तर पर, कचरा प्रबंधन को लिंग-विशेष की बजाय एक स्ट्रकचरल समस्या के रूप में देखा जाता है। आप देख सकती है, कचरा प्रबंधन से जुड़े निर्णय लेने की भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम होती है। महिलाएं जहां कचरे को एकट्ठा करने जैसे कामों में नजर आती हैं, वहीं निर्णय लेने के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनकी पहुँच बहुत कम होती है। यह असमानता इसलिए है क्योंकि कचरा प्रबंधन के इस स्तर पर ताकत और निर्णय लेने की ज़रूरत होती है, जिन पर अधिकतर पुरुषों का कब्जा होता है।”
कचरा प्रबंधन और घरेलू कामों में लैंगिक भूमिकाएं बहुत गहराई से निहित हैं। पितृसत्तात्मक ढांचे में महिलाओं की ज़िम्मेदारियां अवैतनिक, अप्रशंसित और अक्सर अदृश्य होती हैं। कचरा प्रबंधन जैसे विषयों में लिंग के आधार पर जिम्मेदारियों का बंटवारा और उनकी भूमिका के महत्व को पहचानना बेहद ज़रूरी है। महिलाओं की भागीदारी को महज घरेलू कामकाज तक सीमित न रखते हुए निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भी उन्हें शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा, उनके पारंपरिक ज्ञान को भी वैज्ञानिक समाधानों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि एक समावेशी और प्रभावी प्रणाली बनाई जा सके।
अलग-अलग कचरा प्रबंधन तकनीकों पर काम कर चुके और पर्यावरण वैज्ञानिक सौम्या दत्ता का कहना हैं, “जब खाने के बचे हुआ हिस्सा या हर दिन सड़क पर फेंके जाने वाले कूड़े को संभालने की बात आती है, तो घरों और आसपास की जगहों में महिलाओं की भूमिका कितनी अहम होती है, ये बताने की ज़रूरत नहीं है। महिलाएं फूड वेस्ट मैनेजमेंट में गुमनाम नायक हैं। वे घर पर ज्यादातर कचरे को अलग करने और उसे सही तरीके से काम में लगा कर उपयोगी बनते हुए पाई जाती हैं, लेकिन फिर भी उनका योगदान काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता है।”
वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में धारणाओं को बदलने में शिक्षा और जागरूकता की भूमिका पर बोलते हुए सौम्या दत्ता आगे कहते हैं, “हमारे समाज में जहां वेस्ट मैनेजमेंट जैसी कोई धारणा नहीं हैं, वहां सस्टेनेबल प्रैक्टिस के बारे में पुरुषों और महिलाओं दोनों को शिक्षित और जागरूक करना बहुत ज़रूरी है। पुरुषों को वेस्ट मैनेजमेंट में महिलाओं की अहमियत को समझने और सराहना करने और घर और समुदाय दोनों में उनका समर्थन करने की बेहद ज़रूरत है। इससे यह होगा कि उन्हें वर्तमान लैंगिक गतिशीलता को बदलने और अधिक समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की ओर ले जाने में मदद मिलेगी जिससे उनके सुझावों को वो अहमियत मिलेगी जो उन्हें मिलने चाहिए थी।”
पर्यावरण वैज्ञानिक सौम्या दत्ता का कहना हैं, “महिलाएं फूड वेस्ट मैनेजमेंट में गुमनाम नायक हैं। वे घर पर ज्यादातर कचरे को अलग करने और उसे सही तरीके से काम में लगा कर उपयोगी बनते हुए पाई जाती हैं, लेकिन फिर भी उनका योगदान काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता है।”
वेस्ट मैनेजमेंट में समवेशिता और समानता की बड़े स्तर पर आवश्यकता है। महिलाओं के योगदान को पहचानने और मूल्यांकन करने की ज़रूरत हैं। इससे पर्यावरण को फायदा पहुंचाएगा, बल्कि सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता को भी बढ़ावा मिलेगा जिससे समाज में लैंगिक भेदभाव को हराया जा सकता हैं। फिर भी, फूड वेस्ट मैनेजमेंट में लैंगिक भूमिकाएं ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक कारणों से जटिल और अलग हैं। महिलाएं फूड वेस्ट मैनेजमेंट के सभी पहलुओं में गंभीर रूप से शामिल हैं, जिसमें व्यक्तिगत घरेलू मुद्दों से लेकर कम्यूनिटी से जुड़े प्रयासों से लेकर नीति-संबंधी जुड़ाव तक सब कुछ शामिल हैं। इसलिए, पर्यावरण के बारे में सोचते हुए फूड वेस्ट को कम करने की बेहतर तैयारियों को शुरू करने में उनके निवेश को पहचानना और उनका समर्थन करना ज़रूरी हो जाता है।
फूड वेस्ट मैनेजमेंट में लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए एक विविध योजना की ज़रूरत है। ज़रूरतमंद कदमों में महिलाओं के इनपुट को स्वीकार करना और उनकी सराहना करना, लिंग समावेशी निर्णय लेने की वकालत करना और ट्रैनिंग के साथ-साथ स्थिरता का अभ्यास करने के लिए निदर्श देना शामिल है। इस तरह, समाज अपशिष्ट प्रबंधन तरीके स्थापित करेंगे जो पर्यावरण के लिए बेहतर, अधिक उचित और बेहतर हैं। अगर इस क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त किया जाता है, तो न केवल कचरे के प्रबंधन के तरीके में सुधार होगा, बल्कि लैंगिक समानता को बरकरार रखने में और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में भी कदम उठाया जाएगा।