ट्रिगर वार्निंग: हिंसा और दुर्व्यवहार का उल्लेख
“मैम- प्लीज कुछ करें मुझे बहुत दर्द हो रहा है।” दिल्ली की रहने वाली नेहा ने प्रसव के दौरान चीखते हुए कहा। “पति से अंदर डलवाते में दर्द नहीं हुआ” – महिला डॉक्टर ने नेहा की टांग पर एक चांटा मारते हुए कहा। नेहा गुरु तेग़ बहादुर अस्पताल में अपने प्रसव के लिए आई थी। वह चिकित्सक का जवाब सुन कर सुन्न रह गयी। उसे डॉक्टर से इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। हर गर्भवती महिला को अपनी गर्भावस्था और प्रसव के दौरान गरिमापूर्वक और सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने का अधिकार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सम्मानजनक मातृत्व देखभाल (आरएमसी) को सभी महिलाओं के लिए इस तरह से व्यवस्थित और प्रदान की गई देखभाल के रूप में परिभाषित करता है, जो प्रसव के दौरान उनकी गरिमा, गोपनीयता और सम्मान बनाए रखता है, नुकसान और दुर्व्यवहार से मुक्ति सुनिश्चित करता है, और सूचित विकल्प और निरंतर समर्थन को सक्षम बनाता है।
गर्भावस्था और प्रसव के समय एक महिला और प्रसूति देखभाल प्रदाताओं के बीच विकसित होने वाला संबंध महत्वपूर्ण है। इस संवेदनशील समय का अनुभव या तो उसके आत्मसम्मान को बढ़ा सकता है या अनादर या दुर्व्यवहार होने पर स्थायी रूप से भावनात्मक आघात हो सकता है। किसी भी तरह से, महिलाओं के बीच अक्सर बच्चे पैदा करने के अनुभवों का आदान-प्रदान होता है, जो मातृत्व देखभाल सेवाओं के संबंध में आत्मविश्वास या संदेह के माहौल में योगदान देता है। इस प्रकार इन आवश्यक और संभावित जीवन-रक्षक सेवाओं की तलाश करने के उनके निर्णयों को प्रभावित करता है। इसका असर मां के साथ-साथ नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
“मैम- प्लीज कुछ करें मुझे बहुत दर्द हो रहा है।” नेहा ने प्रसव के दौरान चीखते हुए कहा। “पति से अंदर डलवाते में दर्द नहीं हुआ” – महिला डॉक्टर ने नेहा की टांग पर एक चांटा मारते हुए कहा। नेहा गुरु तेग़ बहादुर अस्पताल में अपने प्रसव के लिए आई थी।
डेलीवेरी रूम में शारीरिक और मौखिक हिंसा
डेलीवेरी रूम खासकर सार्वजनिक अस्पतालों में चिकित्सकों, कर्मचारियों और गर्भवती महिलाओं सभी के लिए अत्यधिक तनाव का स्थान है। डेलीवेरी रूम में महिलाओं के साथ शारीरिक और मौखिक दुर्व्यवहार होना आम बात है। एक रिसर्च के अनुसार, 31 प्रसवों में से 10 गर्भवती महिलाओं को शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा। उनमें से 17 को अपमानित किया गया, धमकाया गया या उनपर चिल्लाया गया। उदाहरण के लिए, एक मेडिकल कॉलेज में नीरजा की डिलीवरी के दौरान, उसे चिल्लाना बंद करने के लिए कई बार धमकी दी गई थी। नर्स ने एक स्टाफ सदस्य का जिक्र करते हुए, जो शिफ्ट पर नहीं थी कहा, “अगर वह यहां होती, तो वह आपकी योनि में अपना हाथ डालती, अपने दस्ताने को गंदा कर देती, और फिर इसका इस्तेमाल आपके चेहरे पर थप्पड़ मारने के लिए करती। वह उन मरीजों का इलाज इसी तरह करती है जो बहुत चिल्लाते हैं।”
महिलाओं के साथ डेलीवेरी रूम में क्रूर व्यवहार
महिलाओं का प्रसव के दौरान रोने या चिल्लाने पर नियंत्रण मुमकिन नहीं और नतीजन पूरे प्रसव के दौरान दर्द और तकलीफ से हो सकता है कि वे चिल्लाते या कराहते रहें। बदले में उन्हें चिकित्सकों की डांट, अपमान और यहां तक कि मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक हिंसा सहन करना पड़ता है। अपने अनुभव बताती हुई साक्षी बताती हैं कि वह प्रसव के दौरान बार-बार अपनी स्थिति बदल रही थी। इसी दौरान गलती से बिस्तर की चादर फर्श पर गिर गई। इसपर सहायककर्मी ने उसे थप्पड़ मारते हुए कहा, “अगर यह फिर से चादर गिरी, तो तू ही इसे उठाएगी।” इस बात से वह सतर्क हो गई और चिंता और बढ़ गई। उसने पूरे समय बेडशीट को कसकर पकड़ रखा था। अगले किसी भी दुर्व्यवहार से बचने के लिए वह दो काम कर रही थी। पहला अपने बच्चे की डेलीवेरी और दूसरा यह सुनिश्चित करना कि चादर न गिरे। दर्द से राहत के विकल्प शायद ही कभी पेश किए जाते हैं। एपिओस्टॉमीज़, या टियर को रोकने के लिए योनि पर कट मारना, नियमित रूप से महिलाओं की सहमति के बिना और अक्सर अनेस्थेसिया के बिना किया जाता है।
कैसे चिकित्सक बना देते हैं प्रसव कक्ष को हिंसा की जगह
दिल्ली के नार्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट की लगभग 100 महिलाओं के साथ बातचीत पर मैंने पाया कि सभी के साथ सार्वजनिक अस्पताल में प्रसव के दौरान किसी न किसी प्रकार की हिंसा हुई थी। 100 में से 45 महिलाओं ने अपने साथ शारीरिक हिंसा को क़ुबूल किया, जिसमें मुख्य रूप से पैर पर थप्पड़ मारना शामिल था। 22 महिलाओं ने बताया कि प्रसव कक्ष में मौजूद स्वास्थ्यकर्मियों ने उनके साथ बदतमीज़ी की थी। 80 महिलाएं ऐसी थी जिनके साथ चिकित्सक ने पूरे प्रसव के दौरान कभी न कभी अपमान भरे शब्द कहे थे। रिसर्च के दौरान एक महिला ने बताया कि वह एंग्जायटी से ग्रसित थी। प्रसव के दौरान उसे बहुत जटिलता हो रही थी। उसने इसके लिए चिकित्सक से मदद की गुहार की। इसपर चिकित्सक ने कहा, “वो तो बच्चा करने से पहले सोचना था न।” उन्होंने अपना प्रसव कक्ष का अनुभव साझा करते हुए बताया, “अंदर का हाल बहुत बुरा था। डॉक्टर हर किसी को डांट-फटकार रही थी। शायद ही कोई महिला ऐसी हो जिसे किसी न किसी वजह से डांट न पड़ी हो।”
लेबर रूम में अनादर और दुर्व्यवहार से मानसिक तनाव
लेबर रूम में अनादर और दुर्व्यवहार कोई नई बात नहीं है। प्रसव के दौरान अनादर और दुर्व्यवहार एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है क्योंकि यह शारीरिक शोषण, गैर-सहमति देखभाल, गरिमापूर्ण देखभाल में कमी, देखभाल की गोपनीयता और भेदभाव के रूप में प्रचलित है। वैश्विक स्तर पर विभिन्न अध्ययनों ने इस तथ्य को उजागर किया है कि प्रसव के दौरान महिलाओं के प्रति अनादर और दुर्व्यवहार प्रचलित है, जिसका दर 15 फीसद से 98 फीसद तक है। भारतीय अध्ययनों की एक व्यवस्थित समीक्षा से पता चला है कि भारत में यह 20.9 फीसद से 100 फीसद तक है। मणिपुर में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि 96.5 फीसद महिलाओं ने किसी न किसी प्रकार के दुर्व्यवहार का अनुभव किया।
2019 में अलीगढ़ और 2018 में वाराणसी में किए गए अध्ययनों में, अनादर और दुर्व्यवहार की व्यापकता 84.3 फीसद और 71.2 फीसद पाई गई थी। प्रसव के दौरान महिला के शरीर से मल का बाहर आना एक सामान्य प्रक्रिया है। इसपर महिला का कोई नियंत्रण नहीं होता है। इसके बावजूद कई बार प्रसव कक्ष में उपस्थित सफाई कर्मचारी प्रसव के दौरान महिलाओं के मल के बाहर आने पर उसे अपमानित कर देते हैं। सफाई कर्मचारियों के इस अपमानजनक रवैये पर चिकित्सक भी कुछ नहीं कहते हैं।
सीमित स्वास्थ्य सुविधाएं
सरकार के मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को कम करने के अभियान के परिणामस्वरूप अधिक संख्या में महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में पाया गया कि संस्थागत जन्म पिछले दौर के 79 फीसद की तुलना में बढ़कर 89 फीसद हो गया है। लेकिन, इसके कारण स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ बढ़ गया है। इसलिए वे सभी मरीज़ों पर सही से ध्यान भी नहीं दे पाते हैं। सरकार का लक्ष्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर सम्मानजनक मातृत्व देखभाल सुनिश्चित करते हुए गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाना होना चाहिए। हालांकि सार्वजनिक अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं के अनुभवों पर ध्यान देने से पता चलता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में कई महिलाओं को मौखिक और शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है।
डॉक्टरों की मनमानी और महिलाओं की एजेंसी की अनदेखी
मैंने अपनी बात करूँ, तो बेटी के जन्म के समय दिल्ली के नामी-गिरामी अस्पताल में स्वास्थ्य चिकित्सकों और उनके सहयोगियों को गर्भवती महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव करते देखा। मेरी बेटी का जन्म दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में हुआ। मेरी गर्भवस्था में बहुत अधिक जटिलताएं थीं। इसीलिए, मेरी डॉक्टर ने मुझ पर दबाव डाला कि बच्चे का जन्म किसी ऐसे अस्पताल में किया जाए जहां हर प्रकार की मशीन और सुविधा हो, ताकि किसी भी इमरजेंसी के समय इधर-उधर न भागना पड़े। मेरी डॉक्टर ने ही इस अस्पताल का सुझाव मुझे दिया। लेकिन बच्चे के जन्म के समय लेबर रूम में महिला चिकित्सकों और उनकी सहायकों का व्यवहार गर्भवती महिलाओं के साथ बहुत बुरा था। डॉक्टर मरीज़ों की कोई सुध नहीं ले रही थीं। वे केवल मरीज़ के पास तब आतीं जब बच्चे का सिर बाहर आने लगता या कोई महिला बहुत चीख-पुकार करती। यही नहीं डॉक्टर्स उन लड़कियों को भी बिना पूछे या ज़बरदस्ती आईयूडी लगा रहीं थी जिनके पहले बच्चे की डेलीवेरी थी।
“तुम लोग मौज-मस्ती करते हो, और फिर हमारे लिए परेशानी पैदा करते हो। अभी तो तुम आईयूडी लगवाने को मन कर रही हो, लेकिन जब तुम्हारा पति तुमसे सेक्स के लिए पूछेगा तो तू फिर से उसके पास भागेगी।”
महिलाओं को सेक्स लाइफ के लिए शर्मसार करना
सार्वजनिक अस्पतालों में प्रसव के बाद महिलाओं को अक्सर उनके प्रजनन विकल्पों के लिए अपमानित किया जाता है और उनकी पूरी जानकारी या सहमति के बिना अंतर्गर्भाशयी उपकरण (आईयूडी) डाले जाते हैं। प्रसव कक्षों में आम तौर पर मौखिक दुर्व्यवहार का एक अन्य रूप महिलाओं की सेक्स लाइफ और प्रजनन क्षमता को शर्मसार करना होता है। जीटीबी के एक चिकित्सक ने प्रसव के समय एक महिला से कहा, “तुम लोग मौज-मस्ती करती हो, और फिर हमारे लिए परेशानी पैदा करती हो। अभी तो तुम आईयूडी लगवाने को मन कर रही हो, लेकिन जब तुम्हारा पति तुमसे सेक्स के लिए पूछेगा तो तू फिर से उसके पास भागेगी।”
भारत में अधिकांश महिलाएं बच्चे पैदा करने के निर्णय खुद नहीं ले पाती। इसके बावजूद प्रसव कक्ष में बेज़्ज़ती महिलाओं की होती है। लेबर रूम में हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और मानवाधिकारों का हनन होता है। यह माँ और शिशु के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसी स्थिति में महिलाएं सार्वजनिक अस्पतालों के बजाय घर या अनियमित निजी सुविधाओं में प्रसव कराती हैं, जिससे शिशु स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार करना स्वास्थ्य और महिलाओं के मानवाधिकारों के लिए जरूरी है।