स्वास्थ्यमानसिक स्वास्थ्य पहला पीरियड्स होने से पहले ‘पीरियड्स’ की सही जानकारी क्यों सभी के लिए है अहम?

पहला पीरियड्स होने से पहले ‘पीरियड्स’ की सही जानकारी क्यों सभी के लिए है अहम?

पहली बार पीरियड होना मेरे लिए जीवन की बड़ी घटना नहीं थी। मुझे कुछ अलग नहीं लगा। मैंने अपनी माँ को इसके बारे में इतनी सहजता से बताया कि वह मेरी सहजता देखकर चौंक गई थीं। मैं इसके बारे में अपने सभी फ़्रेंड्स, चाहे वे मेल हों या फीमेल, से खुलकर बात कर लेती थी। औरत के रूप में अपने शरीर के साथ मैं पूरी तरह से सहज थी।

हाल ही में मुम्बई की एक 14 वर्षीय बच्ची पीरियड्स की वजह से इतना ज़्यादा तनाव में आ गई कि उसकी आत्महत्या से मौत हो गई। एनडीटीवी में छपी खबर के अनुसार ऐसा तब हुआ जबकि उसकी माँ ने उसे बताया था कि यह एक ‘सामान्य’ प्रक्रिया है। इस तरह की खबरें किशोर मन की संवेदनशीलता और नाज़ुकता को दर्शाती है। इसलिए शायद सिर्फ यह बताना ही काफ़ी नहीं होगा कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है बल्कि इसके लिए बहुत विस्तार से बातचीत की ज़रूरत होती है। किसी महिला के जीवन में पीरियड्स की शुरूआत 9 से 15 साल के बीच हो सकती है और यह एक स्वाभाविक जैविक प्रक्रिया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पीरियड्स की प्रक्रिया साँस लेने जितनी स्वाभाविक है। यह नहीं होगी तो हममें से कोई नहीं होगा। इसे लेकर जागरूकता पहले की तुलना में थोड़ी बढ़ी है।

अब लड़कियों को इसके बारे में जानकारी देने के लिए व्यापक स्तर के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर भी प्रयास हो रहे हैं। इसके महत्त्व को देखते हुए ही अब मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाने लगा है। अलग-अलग राज्यों की सरकारें स्कूलों की लड़कियों को मुफ़्त में सैनिटरी पैड्स देती है और इसके बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही है। यूनेस्को जैसे संगठनों द्वारा ऐसे मॉड्यूल भी तैयार किए जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल करके पीरियड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। इसके साथ ही अब कई ऐसी किताबें भी तैयार की जा रही हैं, जिनका इस्तेमाल किशोरावस्था की दहलीज़ पर कदम रख चुकी लड़कियों को पीरियड्स के लिए मानसिक रूप से तैयार करने के लिए किया जा सकता है। 

जब मुझे पहली बार पीरियड्स हुए तो मैं तेरह साल की थी। मेरे स्कूल में लड़के और लड़कियां दोनों पढ़ते थे तो स्कूल में किसी भी शिक्षक ने इस बारे में कुछ नहीं बताया था और न ही घर पर माँ ने। पीरियड्स शुरू हुए तो मैं बड़ी कन्फ्यूज थी। मैंने अखबार में बवासीर के बारे में पढ़ा था तो मुझे लगा मुझे वही हो गया है। मैंने अपनी सलवार उतारकर घर के एक कोने में एक रख दी और दूसरी पहन ली। माँ से भी कुछ नहीं कहा।

पीरियड्स की जानकारी क्यों जरूरी है

लेकिन कोई लड़की पीरियड्स के लिए मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार नहीं होती तो उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर इसके कम या ज्यादा समय के लिए खतरनाक प्रभाव पड़ सकते हैं। पीरियड्स को लेकर जागरूकता का किसी लड़की पर क्या प्रभाव पड़ता है इसे समझने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने दो तरह की लड़कियों से बात करने की कोशिश की। एक वे जिन्हें इसके बारे में स्कूल में और न ही घर में कुछ भी नहीं बताया गया था और दूसरी वे जिन्हें पीरियड्स के होने के पीछे की वजह और इस समय अपना ध्यान कैसे रखना है यह मालूम था। हमने यह समझने की कोशिश की कि इसका उनके भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा। 

पीरियड्स की जानकारी न होने पर अनुभव

कानपुर की रहनेवाली शब्बो 40 साल की हैं और एक गृहिणी हैं। वे बताती हैं, “जब मुझे पहली बार पीरियड्स हुए तो मैं तेरह साल की थी। मेरे स्कूल में लड़के और लड़कियां दोनों पढ़ते थे तो स्कूल में किसी भी शिक्षक ने इस बारे में कुछ नहीं बताया था और न ही घर पर माँ ने। पीरियड्स शुरू हुए तो मैं बड़ी कन्फ्यूज थी। मैंने अखबार में बवासीर के बारे में पढ़ा था तो मुझे लगा मुझे वही हो गया है। मैंने अपनी सलवार उतारकर घर के एक कोने में एक रख दी और दूसरी पहन ली। माँ से भी कुछ नहीं कहा।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

माँ ने सलवार देखी, तो बोलीं, “कपड़ा नहीं लेती हो? मेरे यह पूछने पर कि कैसा कपड़ा? तो वह बोली कि ये शुरू हो गया है तो कपड़ा लेना चाहिए था। फिर वह आगे समझाती हुई बोलीं, “ये औरतों को हर महीने होता है। मैं तुम्हारे लिए लंगोटी बना दूँगी, हम लोग तो वही पहनते थे।” मेरे पास पैंटी, पैड्स कुछ भी नहीं था। मैं घर के पुराने कपड़ों से काम चलाती थी।” 

मुझे केवल इतना पता था कि पीरियड्स होगा। लेकिन जो आधी-अधूरी जानकारी मिली थी वो स्कूल की एक क्लासमेट के जरिए मिली थी। साइंस की किताब में इसका ज़िक्र था। लेकिन मुझे कक्षा 6 से लेकर 10 तक पुरुष शिक्षकों ने विज्ञान पढ़ाया था और उन्होंने इस पर कोई बात नहीं की थी। मेरे पास सैनिटरी नैपकिन नहीं रहता था क्योंकि वो बहुत महंगा मिलता था।

पीरियड्स के लिए साफ सुथरा कपड़ा भी नहीं मिला  

30 वर्षीय सुनीता एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं। वो बताती हैं, “मुझे केवल इतना पता था कि पीरियड्स होगा। लेकिन जो आधी-अधूरी जानकारी मिली थी वो स्कूल की एक क्लासमेट के जरिए मिली थी। साइंस की किताब में इसका ज़िक्र था। लेकिन मुझे कक्षा 6 से लेकर 10 तक पुरुष शिक्षकों ने विज्ञान पढ़ाया था और उन्होंने इस पर कोई बात नहीं की थी। मेरे पास सैनिटरी नैपकिन नहीं रहता था क्योंकि वो बहुत महंगा मिलता था।”

तस्वीर साभार: यूथ की आवाज़

वह आगे बताती हैं, “मैं घर में रखे हुए पुराने कपड़े निकालकर वैसे ही इस्तेमाल कर लेती थी। मुझे किसी ने यह तक नहीं बताया था कि कपड़ा सूती का होना चाहिए, वो भी धुला हुआ। मैं एक ही कपड़े को धो-धोकर और ऐसी जगह पर सुखाकर इस्तेमाल कर लेती थी जहां उन्हें ठीक से धूप तक नहीं मिलती थी। मैं बहुत दिनों इस प्रक्रिया को घिनौनी और उस खून को गंदा समझती रही। बहुत बाद में एक किताब में पढ़ी कि पीरियड्स का खून बिल्कुल भी गंदा नहीं होता। अब सोचती हूँ तो लगता है काश सही से जानकारी मिली होती, पैड न भी होता, कम से कम साफ़-सुथरा सूती कपड़ा ही इस्तेमाल कर पाई होती।” 

पीरियड्स की जानकारी होने पर इसका अनुभव

इसके बाद हमने उन लड़कियों से बात की जिन्हें सही समय पर सही जानकारी दी गई थी। उनके द्वारा पीरियड्स को सहजता से स्वीकार करने और खुद का ध्यान रखने में फ़र्क साफ नज़र आए। अहमदाबाद में रहने वाली 16 वर्षीय रिमशा अभी ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती हैं। वे बताती हैं, “मैं उस समय सातवीं कक्षा में थी। मेरे स्कूल में व्हिसपर कंपनी की ओर से दो लड़कियां आई थीं। उन्होंने कक्षा 6 से लेकर 8 तक की लड़कियों को एक साथ बैठाकर बताया था कि पीरियड्स क्यों आते हैं, इसमें क्या होता है और इस समय हम अपना ध्यान कैसे रख सकते हैं।”

तस्वीर साभार: Vogue India

वह आगे बताती हैं, “यह जानकारी मिलने के दो साल बाद मुझे पीरियड्स शुरू हुए, तो मैं इसके लिए पहले से ही तैयार थी। मुझे पीरियड्स शुरू होने पर अच्छा तो नहीं महसूस हुआ। लेकिन उतनी दिक्कत भी नहीं हुई। मैंने मम्मी को बताया तो उन्होंने मुझे सैनिटरी नैपकिन दिया और उसे लगाने का तरीका बताया।” रिमशा ने यह भी बताया कि उनके घर में सैनिटरी नैपकिन को लेकर किसी किस्म की हिचकिचाहट नहीं है। उनके पापा हर महीने घर के राशन के साथ में सैनिटरी नैपकिन के पैकेट्स भी लाकर रख देते हैं। 

मैं बहुत दिनों इस प्रक्रिया को घिनौनी और उस खून को गंदा समझती रही। बहुत बाद में एक किताब में पढ़ी कि पीरियड्स का खून बिल्कुल भी गंदा नहीं होता। अब सोचती हूँ तो लगता है काश सही से जानकारी मिली होती, पैड न भी होता, कम से कम साफ़-सुथरा सूती कपड़ा ही इस्तेमाल कर पाई होती।

पीरियड्स की सही जानकारी किस तरह मदद करती है

बैंगलोर की रहनेवाली 36 वर्षीय स्नेहा शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं। उन्हें 11 वर्ष की उम्र में पीरियड्स शुरू हुए थे। वे बताती हैं, “मेरे स्कूल में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए अलग से कक्षाएं होती थीं। इसमें हमारे विज्ञान के शिक्षक हमें हमारे बदलते हुए शरीर बारे में जानकारी देते थे। छठी और सातवीं में लड़कों और लड़कियों की अलग से कक्षा होती थी और आठवीं में एक साथ।”

वह बताती हैं, “मुझे पीरियड्स होने के वैज्ञानिक कारण, इस दौरान मेरे शरीर में किस तरह के बदलाव आएंगे सभी कुछ बताया गया था। इसके साथ में इसके भावनात्मक प्रभावों पर वीडियो भी दिखाए गए थे। पहली बार पीरियड होना मेरे लिए जीवन की बड़ी घटना नहीं थी। मुझे कुछ अलग नहीं लगा। मैंने अपनी माँ को इसके बारे में इतनी सहजता से बताया कि वह मेरी सहजता देखकर चौंक गई थीं। मैं इसके बारे में अपने सभी फ़्रेंड्स, चाहे वे मेल हों या फीमेल, से खुलकर बात कर लेती थी। औरत के रूप में अपने शरीर के साथ मैं पूरी तरह से सहज थी।” 

मुझे पीरियड्स होने के वैज्ञानिक कारण, इस दौरान मेरे शरीर में किस तरह के बदलाव आएंगे सभी कुछ बताया गया था। इसके साथ में इसके भावनात्मक प्रभावों पर वीडियो भी दिखाए गए थे। पहली बार पीरियड होना मेरे लिए जीवन की बड़ी घटना नहीं थी। मुझे कुछ अलग नहीं लगा।

पीरियड्स में समाज और पुरुषों की सहभागिता

इस महिलाओं से बातचीत के आधार पर हम कह सकते हैं कि जब लड़कियों को पीरियड्स की जानकारी पहले से दी जाती है तो वे इसे ज्यादा आसानी से स्वीकार कर पाती हैं। उनके लिए यह किसी सदमे की तरह नहीं आता। इसके अलावा रिमशा और स्नेहा को जिस तरह से उनके बदलते हुए शरीर की जानकारी दी गई उसमें भी फ़र्क है। रिमशा की तुलना में स्नेहा को ज़्यादा विस्तार से जानकारी दी गई, साथ ही स्नेहा के स्कूल में लड़कों और लड़कियों दोनों को शामिल किया। यह जानकारी जितनी लड़कियों के लिए ज़रूरी होती है, उतनी ही लड़कों के लिए भी ज़रूरी होती है। अगर हम एक समावेशी और संवेदनशील समाज बनाना चाहते हैं, तो हमें लड़कों और लड़कियों दोनों को एक दूसरे के शरीर में होनेवाले बदलावों की जानकारी सही समय पर और सही तरीके से देनी होगी। 

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