देश में महिलाएं आज भी सार्वजनिक जगहों से लेकर अपने घरों तक असुरक्षित महसूस करती हैं। भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति अपराध आम होते जा रहे हैं। रोज़ाना खबरों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं सुनने को मिलती हैं, जिनसे मन विचलित हो उठता है। लेकिन अब ये घटनाएं इतनी सामान्य हो गई हैं कि लोग इसे अनदेखा करने लगे हैं। महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर समाज की सोच अब भी सीमित लगती है। जब भी कोई घटना होती है, तब न्याय की मांग से ज्यादा महिलाओं के चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। अक्सर सुनने को मिलता है, “लड़की की गलती रही होगी,” “उसने सही कपड़े नहीं पहने होंगे,” या “उसका चाल-चलन सही नहीं रहा होगा।” हमारे रूढ़िवादी समाज में महिलाओं पर इल्ज़ाम लगाना हमेशा से आसान समझा गया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में महिलाओं के खिलाफ़ 4,45,256 अपराध दर्ज किए गए यानी प्रत्येक घंटे लगभग 51 प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की गई। यह पिछले वर्ष की तुलना में 4 फीसद की वृद्धि है। महिलाओं के खिलाफ़ अपराध की दर प्रति लाख जनसंख्या पर 66.4 रही, जबकि आरोप पत्र दाखिल करने की दर 75.8 फीसद रही। ये आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा कितना गंभीर है। लेकिन इसे आज भी उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। महिलाओं की सुरक्षा पर चर्चा तब होती है जब कोई बड़ी घटना सामने आता है। आज के समय में महिलाओं का कार्यस्थल पर सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है। जहां महिलाएं संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में सेवा दे रही हैं, ये जरूरी है कि न सिर्फ उसे सुरक्षा मिले, बल्कि सभी नियमों का पालन हो। घर और बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभा रही महिलाओं के लिए यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि वह अपने दफ्तर या कार्यस्थल पर अपनेआप को कितना सुरक्षित महसूस कर रही हैं।
पुरुषों को यह समझना होगा कि महिलाएं क्या पसंद करती हैं और क्या नहीं। कई बार मुझे अपने सहकर्मियों के साथ असुरक्षित महसूस हुआ है। कोई कुछ नहीं कहता, लेकिन डबल मीनिंग बातें करना या गलत तरीके से छूना, ये सब होता है।
कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा है अहम
काम की जगह पर सुरक्षा को लेकर हमने कई महिलाओं से उनके कामकाजी स्थिति के बारे में बात की। दिल्ली में रह रही उत्तर प्रदेश की 45 वर्षीय मोनिका पेशे से वकील हैं। वह कहती हैं, “हम महिलाएं जहां काम करती हैं, वहां बहुत कुछ नज़रअंदाज़ करती हैं। लोग हमेशा महिला सुरक्षा की बात करते हैं, लेकिन अपने जीवन में इसे लागू नहीं करते। पुरुषों को यह समझना होगा कि महिलाएं क्या पसंद करती हैं और क्या नहीं। कई बार मुझे अपने सहकर्मियों के साथ असुरक्षित महसूस हुआ है। कोई कुछ नहीं कहता, लेकिन डबल मीनिंग बातें करना या गलत तरीके से छूना, ये सब होता है।” आगे मोनिका कहती हैं, “जब एक महिला काम की जगह पर अपनेआप यह देखने लगे कि उसके कपड़े ठीक है या नहीं, दुप्पटा अपनी जगह पर है या नहीं, इसका मतलब यह है कि वो अपने काम कि जगह पर सुरक्षित नहीं है। मुझे यह हमेशा महसूस होता है कि कहीं न कहीं किसी न किसी कोने से कोई हमें देख रहा है। फिर मैं अपनेआप को देखने लगती हूं कि कहीं मेरा शरीर का कोई हिस्सा तो नहीं दिख रहा है। काम की जगह पर अगर ऐसा महसूस हो रहा है तो इसका मतलब वो जगह मेरे लिए सुरक्षित नहीं है।”
9 अगस्त 2024 को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 36 घंटे की शिफ्ट के बाद आराम कर रही एक जूनियर महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की गई। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। घटना के बाद महिला सुरक्षा को लेकर चर्चा शुरू हुई, और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए। कोलकाता में लाखों लोग सड़कों पर उतरे और महिला सुरक्षा पर जल्द न्याय की मांग करने लगे। जब पश्चिम बंगाल में प्रदर्शन जारी थे, उसी दौरान मध्यप्रदेश के उज्जैन में एक महिला के साथ सार्वजनिक स्थान पर बलात्कार किया गया। लेकिन वहां उपस्थित लोग उसे बचाने के बजाय वीडियो बना रहे थे। बताया गया कि वह महिला फुटपाथ पर कचरा बीनने का काम करती थी।
हमारे पेशे में महिलाओं के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। जो महिलाएं ऑफिस में काम करती हैं, वहां भी सीसीटीवी होने के बावजूद वे सुरक्षित नहीं हैं। मैं जहां काम करती हूं, वह एक खुली जगह है। वहां तरह-तरह के लोग आते हैं। कई लोग बिना किसी वजह से लड़ने लगते हैं और गलत तरीके से व्यवहार करते हैं।
हाशिए पर रह रहीं महिलाओं की सुरक्षा
55 वर्षीय जरीना, दिल्ली में कचरा बीनने का काम करती हैं। वह कहती हैं, “हमारे पेशे में महिलाओं के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। जो महिलाएं ऑफिस में काम करती हैं, वहां भी सीसीटीवी होने के बावजूद वे सुरक्षित नहीं हैं। मैं जहां काम करती हूं, वह एक खुली जगह है। वहां तरह-तरह के लोग आते हैं। कई लोग बिना किसी वजह से लड़ने लगते हैं और गलत तरीके से व्यवहार करते हैं।” वह बताती हैं कि उनकी उम्र अधिक हो गई है, फिर भी उन्हें लोगों की निगाहों से बचना पड़ता है। वह इस विषय पर आगे कहती हैं, “काम की जगह पर भी कई लोग गलत तरीके से देखते हैं, जिससे वहां खुद को सुरक्षित महसूस करना मुश्किल हो जाता है। हालात ऐसे हो गए हैं कि अब काम पर जाने का मन नहीं करता है।”
पितृसत्तात्मक समाज की चुनौतियां
महिलाओं के खिलाफ़ हो रही हिंसा पर कई कदम उठाए गए हैं। लेकिन कोई भी राज्य सरकार पूरी तरह से इस पर रोक लगाने में सक्षम नहीं हो सकी है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में हर दिन औसतन 90 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि कई महिलाएं और लड़कियां सामाजिक प्रतिष्ठा खराब होने की डर से यौन हिंसा की रिपोर्ट दर्ज नहीं करातीं। दिल्ली में काम कर रही उत्तर प्रदेश की मूल निवासी रीमा एक गार्ड के पद पर काम करती हैं। वह कहती हैं, “आज के समय में महिलाएं कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं। मैं जहां लोगों की सुरक्षा के लिए खड़ी होती हूं, वहां खुद को बचाना मुश्किल हो जाता है। कई बार मेरे सहकर्मी ही अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं या गलत नजरों से देखते हैं। उन्हें लगता है कि कामकाजी महिलाएं पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं। यह उनकी धारणा बनी होती है।”
रीमा आगे कहती हैं, “हमारे पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष महिलाओं को घर की चारदीवारी में बंद रखना चाहते हैं। वे समय-समय पर अपनी मर्दवादी ताकत का इस्तेमाल करते हैं। देश में हो रही घटनाओं को देखकर मन सुन्न हो जाता है, लेकिन सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती। ऐसे में महिलाएं कैसे सुरक्षित होंगी?” भारतीय समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराध बेहद चिंता का विषय बन गया है। जब भी महिला सुरक्षा की बात होती है, महिलाओं के कपड़े और उनके आचरण पर सवाल उठाए जाते हैं, जो समाज में पनप रही रूढ़िवादी सोच को दर्शाता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुख्य कारण पितृसत्तात्मक सोच और पुरुषवादी वर्चस्व है। इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब सभी जेंडर के लोग मिलकर इस सोच को खत्म करने का प्रयास करें।
लैंगिक समानता की बात करना ही नहीं, उसे समझना और अपने जीवन में लागू करना भी ज़रूरी है, तभी महिलाओं को वह सुरक्षा मिल सकेगी, जिसकी वे हक़दार हैं। यह सिर्फ महिलाओं की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है कि वह लैंगिक समानता को बढ़ावा दे और महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। जब तक सभी जेंडर एकजुट होकर इस समस्या से लड़ने के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक बदलाव संभव नहीं होगा। हमें न केवल महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरूरत है, बल्कि मानसिकता में भी बदलाव लाना होगा, ताकि महिलाएं हर क्षेत्र में खुद को सुरक्षित और समान महसूस कर सकें।