16 वर्षीय प्रीति कहती हैं, “स्कूल जाते थे तो कुछ लड़के कभी-कभी कमेंट करते रहते थे। एक दिन हम लोग अच्छे से सुना दिए, खूब ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर उनको बोलने लगे। आस-पास लोग भी जमा हो गए थे। सब मिलकर उन लड़कों को खूब डांटे। उसके बाद से आज तक कोई लड़का कमेंट नहीं करता है। हम लोग अब आराम से स्कूल जाते हैं। असल में लड़कों को लगा कि हम कमज़ोर हैं। हम डर से कुछ नहीं बोलेंगे। लेकिन अब उन्हें समझ में आ गया कि हम जागरूक हैं और अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ उठा सकते हैं।” प्रीति बिहार में पटना के स्लम बस्ती ‘बघेरा मोहल्ला’ की रहने वाली है। दसवीं में पढ़ने वाली प्रीति के पिता ऑटो ड्राइवर और मां घरेलू कामगार के रूप में काम करती है।
प्रीति कहती हैं कि पहले वे उन लड़कों के कमेंट को नज़रअंदाज़ कर देती थीं। घर में भी डर से नहीं बताती थीं कि कहीं उनकी पढ़ाई न छुड़वा दिया जाए। लेकिन, जब ये साधारण दिखने वाली यौन हिंसा प्रतिदिन बढ़ने लगी, तो उन्होंने पलटकर जवाब देना शुरू किया। प्रीति के साथ स्कूल जाने वाली उसकी दोस्त अर्चना (नाम बदला हुआ) कहती हैं “जब हम लोग गलत नहीं हैं तो क्यों डरें। डर कर रहते हैं इसीलिए इन लोगों का मनोबल बढ़ जाता है। स्कूल में महिला हेल्पलाइन नंबर लिखा हुआ है। हालांकि हमें इसके बारे में कभी बताया नहीं गया। लेकिन हम उस नंबर की महत्ता के बारे में अच्छी तरह जानते हैं।”
शहर के बीच में होने के बावजूद शैक्षणिक रूप से यह बस्ती अभी भी पिछड़ा हुआ है। अधिकतर लड़के 12वीं के बाद पिता के साथ उनके कामों से जुड़ जाते हैं। वहीं लड़कियों की 12वीं के बाद या तो शादी हो जाती है या फिर उनकी पढ़ाई छुड़वा कर घर के कामों में लगा दी जाती हैं।
बघेरा बस्ती की स्थिति
बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सहित कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित बघेरा मोहल्ला पटना के गर्दनीबाग इलाके में स्थित है। यह बस्ती पटना हवाई अड्डे से महज 2 किमी दूर और बिहार हज भवन के ठीक पीछे आबाद है। इस बस्ती तक पहुंचने के लिए आपको एक खतरनाक नाला के ऊपर बना लकड़ी के एक कमजोर और चरमराते पुल से होकर गुजरना होगा। यहां रहने वाली 80 वर्षीय रुकमणी देवी बताती हैं, “मैं इस बस्ती में पिछले 40 सालों से रह रही हूं। इस बस्ती में करीब 250-300 घर हैं, जिनकी कुल आबादी लगभग 700 के करीब है। 1997 में सरकार ने इस बस्ती को स्लम क्षेत्र घोषित किया था। यहां लगभग 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति समुदाय के लोग रहते हैं, जिनका मुख्य काम मजदूरी और ऑटो रिक्शा चलाना है।” रुकमणी देवी इस क्षेत्र की सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो इस बस्ती की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का काम करती रही हैं।
शैक्षणिक रूप से पिछड़ा बस्ती
वह कहती हैं, “शहर के बीच में होने के बावजूद शैक्षणिक रूप से यह बस्ती अभी भी पिछड़ा हुआ है। अधिकतर लड़के 12वीं के बाद पिता के साथ उनके कामों से जुड़ जाते हैं। वहीं लड़कियों की 12वीं के बाद या तो शादी हो जाती है या फिर उनकी पढ़ाई छुड़वा कर घर के कामों में लगा दी जाती हैं। पहले से अब बहुत कुछ बदल गया है। अब लड़कियां डरने की जगह अमूमन निडर होकर जवाब देने लगी हैं। वह पुरुषों द्वारा बनाये गए समाज के उसूलों को चुनौती देने लगी हैं। सर झुका कर स्कूल और कॉलेज आने-जाने की हिदायत दी जाती थी। लेकिन, पहले की तरह अब ऐसा कम होता है। अब किशोरियां किसी यौन हिंसा का जवाब देने का हौंसला रखती हैं। हालांकि अभी भी यह बड़े पैमाने पर देखने को नहीं मिलता है। कई जगह लड़कियों के साथ शारीरिक या मानसिक हिंसा की ख़बरें आती रहती हैं, जिसे समाप्त करने की ज़रूरत है।”
मैंने महिला हेल्पलाइन के बारे में सिर्फ सुना है, लेकिन नंबर पता नहीं है। कई बार लड़कों के कमेंट से उसे मानसिक पीड़ा होती है। लेकिन वह सिर्फ इस डर से उनका जवाब नहीं देती है कि कहीं उसका घर से निकलना बंद न करवा दिया जाए।
रुकमणी देवी का विचार है कि सरकार की ओर से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं और कार्यक्रम चलाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त 24 घंटे महिला सुरक्षा हेल्पलाइन भी संचालित की जाती है। लेकिन महिलाओं और किशोरियों को इसकी बहुत कम जानकारी होती है, जिसकी वजह से वह इसका उपयोग नहीं कर पाती हैं। वह कहती हैं, “कई बार सामाजिक दबावों की वजह से परिवार भी पुलिस थानों के चक्कर से बचने के लिए यौन हिंसा या मौखिक और मानसिक हिंसा करने वाले लड़कों के खिलाफ़ शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहते हैं, जो गलत है। इससे किशोरियों पर मानसिक दबाव पड़ता है।”
उनकी यह बात इसी बस्ती से महज़ तीन किमी दूर एक अन्य बस्ती अदालतगंज में सच होती नज़र आती है। यहां रहने वाली अधिकतर महिलाओं और किशोरियों को महिला हेल्पलाइन नंबर और इसके उपयोग के बारे में बहुत कम जानकारी है। यहां रहने वाली 20 वर्षीय पूजा कहती हैं, “मैंने महिला हेल्पलाइन के बारे में सिर्फ सुना है, लेकिन नंबर पता नहीं है। कई बार लड़कों के कमेंट से उसे मानसिक पीड़ा होती है। लेकिन वह सिर्फ इस डर से उनका जवाब नहीं देती है कि कहीं उसका घर से निकलना बंद न करवा दिया जाए।” पटना सचिवालय के करीब यह स्लम बस्ती तीन मोहल्ले अदालतगंज, ईख मोहल्ला और ड्राइवर कॉलोनी में बंटा हुआ है, जिसकी कुल आबादी लगभग एक हज़ार के आसपास है।
इसके लिए स्कूल और कॉलेज में विशेष अभियान चलाकर लड़कियों को जागरूक किया जाना चाहिए। इसकी उपयोगिता और महत्ता के बारे में बताना चाहिए ताकि लड़कियां इसका उपयोग कर कमेंट करने वालों के खिलाफ कारवाई कर सकें।
अल्पसंख्यक समुदाय और बस्तियों का संबंध
यहां करीब 60 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग और 20 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के लोग निवास करते हैं। यहां रहने वाली 21 वर्षीय पूनम, 18 वर्षीय आरती, 15 वर्षीय प्रिया और ज्योति कहती हैं कि उन्हें अक्सर स्कूल या कॉलेज आते-जाते लड़कों के यौन हिंसा का सामना पड़ता है। लेकिन, वे इसे नज़रअंदाज़ करने पर मजबूर हैं। यह लड़कियां कहती हैं कि उन्हें महिला हेल्पलाइन नंबर के बारे में कुछ भी पता नहीं है। वह इसके प्रयोग का तरीका भी नहीं जानती हैं।
वह कहती हैं, “इसके लिए स्कूल और कॉलेज में विशेष अभियान चलाकर लड़कियों को जागरूक किया जाना चाहिए। इसकी उपयोगिता और महत्ता के बारे में बताना चाहिए ताकि लड़कियां इसका उपयोग कर कमेंट करने वालों के खिलाफ कारवाई कर सकें। इस प्रकार के मौखिक हिंसा से हम लड़कियां मानसिक रूप से परेशान और तनाव में रहती हैं। हमपर मानसिक दबाव पड़ता है जिससे हमारी शिक्षा प्रभावित होती है। यह हमारे साथ एक प्रकार से हिंसा है।”
महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा की स्थिति
राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) को साल 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 28,811 शिकायतें प्राप्त हुईं थीं। इसमें सबसे अधिक शिकायतें गरिमा के अधिकार श्रेणी में प्राप्त हुईं, जिसमें घरेलू हिंसा के अलावा अन्य उत्पीड़न शामिल थी। ऐसी शिकायतों की संख्या 8,540 थी। इसके बाद घरेलू हिंसा की 6,274 शिकायतें आईं। वहीं दहेज उत्पीड़न की 4,797, यौन हिंसा की 2,349, महिलाओं के प्रति पुलिस की उदासीनता की 1,618 और बलात्कार और बलात्कार के प्रयास की 1,537 शिकायतें मिलीं थी। आयोग के अनुसार, यौन उत्पीड़न की 805, साइबर अपराध की 605, पीछा करने की 472 और झूठी शान से संबंधित अपराध की 409 शिकायतें दर्ज की गईं। आंकड़ों में कहा गया कि उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 16,109 शिकायतें मिलीं, जबकि बिहार से 1312 शिकायतें प्राप्त हुईं जो देश में चौथा सबसे अधिक था। हालांकि 2022 में बिहार में महिलाओं के प्रति हिंसा के 20,222 मामले दर्ज किये गये थे और 2021 में 17,950 और 2020 में 15,359 शिकायतें दर्ज की गई थी।
जब हम लोग गलत नहीं हैं तो क्यों डरें। डर कर रहते हैं इसीलिए इन लोगों का मनोबल बढ़ जाता है। स्कूल में महिला हेल्पलाइन नंबर लिखा हुआ है। हालांकि हमें इसके बारे में कभी बताया नहीं गया। लेकिन हम उस नंबर की महत्ता के बारे में अच्छी तरह जानते हैं।
बिहार में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा को रोकने के प्रयास
महिला हिंसा से निपटने के लिए बिहार सरकार द्वारा 1999 में सबसे पहले पटना में 24 घंटे का 181 हेल्पलाइन नंबर शुरू किया गया था, जिसे बाद में पूरे राज्य में संचालित किया जाने लगा। इसके अलावा टोल फ्री नंबर, व्हाट्सएप नंबर तथा सभी ज़िलों के थानों में महिलाओं और किशोरियों की मदद के लिए अलग-अलग नंबर भी संचालित किये जा रहे हैं। राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास निगम द्वारा संचालित 181 हेल्पलाइन नंबर पर साल 2021-22 में 78268, 2022-23 में 83233 और 2023-24 मार्च तक 104146 फोन आये है, जिनमें घरेलू हिंसा 3050 मामले और दहेज हिंसा के 794 मामले सहित मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक हिंसा, साइबर क्राइम और यौन हिंसा सहित अन्य मामलों को लेकर फोन किया गया है। इन कॉल्स से स्पष्ट है कि महिलाएं और किशोरियां पहले की तुलना में जागरूक होने लगी हैं। पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती देने वाली ऐसी आवाज़ें बुनियादी सुविधाओं से वंचित बघेरा मोहल्ला जैसे स्लम बस्ती से उठने लगी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अदालतगंज जैसी स्लम बस्तियों की किशोरियों की तरफ से भी जल्द ही शोषण के ऐसे किसी भी रूप के खिलाफ़ आवाज़ें बुलंद होने लगेंगी।
नोट- यह आलेख बिहार के पटना से रजनी प्रकाश और सोनम कुमारी ने संयुक्त रूप से चरखा फीचर्स के लिए लिखा है। दोनों ही कॉलेज की छात्राएं हैं और किशोरी सशक्तिकरण से जुड़ी स्थानीय संस्था आंगन ट्रस्ट की सक्रिय कार्यकर्ता हैं।