भारत, दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है लेकिन साथ ही यह सबसे अधिक असमानताओं वाला भी देश है। यहां अमीर बहुत अमीर हो रहा है। पिछले तीन दशकों में यह असमानता भारत में तेजी से बढ़ी है। सत्ता के साथ गठजोड़ और विरासत में मिले धन की वजह से केवल कुछ अमीरों ने धन के बड़े हिस्से को हथिया लिया है। अमीर जितनी तेजी ये यहां अमीर हो रहा है गरीब उतनी ही तेजी से गरीब होता जा रहा है। भारत में बड़ी संख्या में लोग बेहद अमानवीय स्थिति में रहने को मजबूर है। हाल ही में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब लोग रहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के ‘ऑक्सफर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव’ के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक अरब से ज्यादा कई स्तर की गरीबी में जीवनयापन करने को मजबूर है। रिपोर्ट के मुताबिक़ 83 फीसदी लोग अत्याधिक गरीब इलाकों में रह रहे हैं। ग्लोबल मल्टीडायमेंशियल पॉवर्टी इंडेक्स 2024 (एमपीआई) के अनुसार 1.1 अरब लोग अत्यंत गंभीर गरीबी में जी रहे हैं जिनमें से 40 फीसदी युद्ध, अस्थिरता और शांति की कमी का सामना करने वाले देशों में रह रहे हैं। 1.1 अरब गरीब लोगों में से आधे 58.4 करोड़ से अधिक 18 साल से कम उम्र के बच्चे हैं। वैश्विक स्तर पर 27.9 फीसदी बच्चे गरीबी में जी रहे हैं। व्यस्कों में यह आंकड़ा 13.5 फीसदी है। अफगानिस्तान में जहां गरीबी बढ़ रही है वहां गरीब बच्चों की संख्या और भी ज्यादा है। तमाम आंकड़े दिखाते है कि गरीबी की समस्या के बीच नई पीढ़ी बढ़ रही है। वे बचपन से ही गरीबी, कम संसाधनों के बीच जीवन जी रहे हैं।
एमआईपी इंडेक्स में 112 देशों के 6.3 अरब लोगों की जनसंख्या के आंकड़ों को शामिल किया गया है। डेटा की कमी की वजह से एमपीआई में दस साल के डेटा (2021-2023) को मापा गया है। इस रिपोर्ट में प्रत्येक देश की गरीबी के आंकड़ों को उस समय देश के संघर्ष, अस्थिरता की स्थिति से मिलाया गया है। रिपोर्ट में संघर्ष और गरीबी के बीच के ओवरलैप को नए स्तर पर समझने की कोशिश की है। एमआईपी इंडेक्स के अनुसार 1.1 अरब लोग अत्याधिक गरीबी में जी रहे हैं जिनमें से आधे से अधिक पांच देशों में रहते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब लोग भारत में रहते हैं। भारत में 23.4 करोड़ लोग गरीबी में रहने को मजबूर हैं। पाकिस्तान में 9.3 करोड़, इथियोपिया में 8.6 करोड़, नाइजीरिया में 7.4 करोड़ और कांगो में 6.6 करोड़ लोग अत्याधिक गरीबी में जीवन जीने को मजबूर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये पाँच देश मिलकर दुनिया के 48.1 फीसदी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है 45.5 करोड़ गरीब लोग उन देशों में रहते हैं जो हिंसक संघर्ष का सामना कर रहे हैं जिससे गरीबी कम करने की दिशा में हासिल की गई कठिन प्रगति बाधित हो रही है।
रिपोर्ट के अनुसार अमानवीय हालातों में रहने वाले लोगों में से बड़ी संख्या के पास पर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं (82.8 करोड़), आवास (88.6 करोड़) और खाना पकाने के ईंधन (99.8 करोड़) की कमी है। 1.1 अरब गरीब लोगों में से आधे से अधिक यानी 63.7 करोड़ लोग ऐसे घरों में रहते हैं जहां कोई न कोई व्यक्ति कुपोषित है। दक्षिण एशिया में 27.2 करोड़ गरीब लोग ऐसे परिवारों में रहते हैं जिनमें कम से कम एक व्यक्ति कुपोषित है और उप-सहारा अफ्रीका में यह संख्या लगभग 25.6 करोड़ है।
दुनिया के सभी क्षेत्रों में ग्रामीण इलाकों के लोग शहरी इलाकों के लोगों की तुलना में अधिक गरीब हैं। लगभग 83.7 प्रतिशत गरीब लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। कुल मिलाकर, वैश्विक ग्रामीण आबादी का 28.0 फीसदी हिस्सा गरीब है, जबकि शहरी आबादी का 6.6 फीसदी लोग गरीब है। 1.1 अरब गरीब लोगों में से 218 मिलियन (19.0 प्रतिशत) लोग युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़ 86 देशों में समन्वित आंकड़ों के अनुसार 76 देशों ने कम से कम एक समयावधि में एमपीआई मान के अनुसार गरीबी में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की है।
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े स्तर पर इस साल की रिपोर्ट में युद्दों के बीच रह रहे गरीबों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। युद्ध वाले देशों में गरीबी का आंकड़ा 34.8 फीसदी हैं जो युद्ध या मामूली संघर्ष से प्रभावित नहीं होने वाले देशों की तुलना में कहीं अधिक है जहां यह दर 10.9 फीसदी है। कम शांतिपूर्ण देशों में दोगुने से अधिक गरीबी है। सतत विकास लक्ष्य साल 2020 के डेटा के अनुसार, भारत की जनसंख्या में सबसे अधिक गरीब लोग हैं। दक्षिण एशिया का भारत एकमात्र देश है जहां महिला-प्रमुख घरों में गरीबी का स्तर पुरुष-प्रमुख घरों के मुकाबले अधिक है, जो 19.7 फीसदी है जबकि पुरुष-प्रमुख घरों में यह 15.9 फीसदी है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, 2015-16 और 2019-21 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी में कमी की दर 11.9 फीसदी वार्षिक रही है। साल 2005-06 और 2015-16 के बीच की 8.1 फीसदी वार्षिक दर की तुलना में तेजी से थी। राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों की तुलना में गोवा, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सबसे तेजी से गरीबी में कमी देखी गई। साल 2015-16 में दर्ज 10 सबसे गरीब राज्यों में से पश्चिम बंगाल 2019-21 में शीर्ष 10 की सूची से बाहर हो गया है। अन्य राज्य जैसे बिहार, झारखंड, मेघालय, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान अभी भी सबसे गरीब राज्यों में बने हुए हैं। भारत में बड़ी संख्या में पोषण, खाना पकाने के ईंधन, आवास और स्वच्छता में वंचनाएं 12.5 करोड़ भारतीयों की आवश्यकताओं को एकीकृत नीति के तहत पैकेज करने की आवश्यकता को दिखाती हैं।
भारत में गरीबी एक बड़ी समस्या है। तमाम आंकड़े दिखाते है कि दुनियाभर में सबसे ज्यादा गरीबी हमारे मुल्क में हैं। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट भारत की चिंताजनक स्थिति और उन सरकारी दावों को गलत साबित करती है जहां सरकार अपनी योजनाओं से गरीबी उन्मूलन के बड़े दावें करती नज़र आती है। लेकिन इस तरह की बातें केवल कागज पर है। डीडब्ल्यू में प्रकाशित जानकारी के अनुसार सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग के अनुसार पिछले नौ वर्षों में लगभग 24.8 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। नीति आयोग के अनुसार बीते नौ वर्षों में बहुआयामी गरीबी मं 18 फीसदी की कमी बताई गई है जिसमें इस स्थिति में रहने वाले लोगों का हिस्सा 29 फीसदी से घटकर 11 फीसदी हो गया है। सरकार के दांवें दिखाते हैं कि वह एक प्रतिशत गरीबी कम करने के लक्ष्य की प्रगति की ओर है। वहीं अर्थशास्त्रियों ने भारत सरकार के मल्टीडायमेंशियल पॉवर्टी इंडेक्स पर गंभीर संदेह जताया है। उनका मानना है कि यह रिपोर्ट पूरी तस्वीर नहीं दिखाती है।