इंटरसेक्शनलजेंडर डिजिटल ओवरलोड: तकनीक के युग में महिलाओं की मानसिक और शारीरिक चुनौतियां

डिजिटल ओवरलोड: तकनीक के युग में महिलाओं की मानसिक और शारीरिक चुनौतियां

डिजिटल ओवरलोड आज एक गंभीर चुनौती बन गई है, विशेषकर इस दौर में जब डिजिटल गैजेट हमारे जीवन का एक अभिन्न भाग बन चुके हैं। इसका हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और महिलाओं की कार्यकुशलता पर भी इसके दुष्परिणाम देखे गए हैं।

डिजिटल युग में प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन के कई पहलुओं को समृद्ध किया है। मोबाइल फोन, लैपटॉप, टैबलेट और इंटरनेट ने न केवल हमारे कार्य करने के तरीके को बदला है, बल्कि बातचीत के तौर-तरीकों में भी परिवर्तन लाया है। हालांकि, इस विकास के साथ-साथ एक गंभीर समस्या भी उत्पन्न हो रही है वह है डिजिटल ओवरलोड। यह तब होता है जब हम जानकारी और सामग्री के अत्यधिक प्रवाह में फंस जाते हैं, जिससे हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। डिजिटल ओवरलोड का असर हमारे प्रभावों, विशेष रूप से महिलाओं के पेशे और व्यक्तिगत जीवन पर पड़े प्रभावों के बारे में चर्चा करना है।

काशीपुर में पढ़ रही कक्षा 11वीं की छात्रा सोनाली का कहना है, “कोरोना के बाद से स्कूल का सारा काम और होमवर्क फोन के जरिए ही कराया जाता है, जिस कारण स्कूल से आने के बाद अधिकतर समय फोन पर ही व्यतीत होता है।” वे आगे कहती हैं, “स्क्रीन टाइम ज्यादा होने के कारण मेरी आँखों में दर्द होता है और उनसे पानी निकलता है। रात को सोने से पहले ऐसा लगता है जैसे मेरे मस्तिष्क के ऊपर कुछ भारी सा रख दिया हो।” सैज जर्नल की एक रिसर्च के अनुसार, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का व्यापक उपयोग, साथ ही इन प्लेटफ़ॉर्म पर साझा की जा रही आकर्षक और इंटरैक्टिव सामग्री की बड़ी मात्रा छात्रों के बीच डिजिटल ओवरलोड का कारण बन सकती है। छात्र जो डिजिटल ओवरलोड का अनुभव करते हैं वे टेक्नोस्ट्रेस और थकावट सहित मनोवैज्ञानिक तनावों के प्रति संवेदनशील होते हैं। 

डिजिटल ओवरलोड के चलते काम और व्यक्तिगत जीवन का संतुलन बनाना बेहद कठिन हो जाता है। महिलाएं अपने परिवार और बच्चों के साथ गुणात्मक समय बिताने की इच्छा रखती हैं, किंतु डिजिटल उपकरणों के अति उपयोग से यह संतुलन प्रभावित होता है।

डिजिटल ओवरलोड क्या है?  

जब हम अपने उपकरणों का अत्यधिक प्रयोग करते हैं जैसे कि लैपटॉप या टैबलेट, तो हम मानसिक थकान का अनुभव करने लगते हैं। क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है? लगातार इन उपकरणों के साथ इंटरैक्शन में रहते हुए, आपको असहजता और थकान का सामना करना पड़ सकता है। इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर समय बिताने के चलते हमें तनाव का सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। सूचना का अत्यधिक उपयोग हमारी कार्य करने की क्षमता को कम कर देता है, जिससे काम और जीवन दोनों में गलत निर्णय लेने के साथ-साथ निर्णय लेने में असमर्थता भी हो सकती है। 

हमारे जीवन पर इसका क्या है असर

डिजिटल ओवरलोड का हमारे स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह न केवल मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डालता है। डिजिटल ओवरलोड के कारण निरंतर संदेश, ईमेल और सोशल मीडिया की सूचनाएं आती रहती हैं, जिससे हमारा मस्तिष्क लगातार सक्रिय रहता है। इस स्थिति में मन को आराम देने का समय नहीं मिलता, जिससे तनाव और चिंता की भावना विकसित हो सकती है। मानसिक थकावट के परिणामस्वरूप नींद से जुड़ी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं, जो अन्य स्वास्थ्य विकारों का कारण बन सकती हैं। 

तस्वीर साभार: BBC

ब्रिटिश मनोवेज्ञानिक सोसाइटी की एक रिपोर्ट के अनुसार नॉटिंघम विश्वविद्यालय की एलिज़ाबेथ मार्श, एल्विरा पेरेज़ वैलेजोस और एलेक्सा स्पेस ने बताया कि डिजिटल कामकाज हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है। 22 से 45 उम्र के लोगों के ऊपर शोध किया गया जिससे यह पता चला कि डिजिटल ओवरलोड उन्हें किस हद तक प्रभावित कर रहा है। एक व्यक्ति का कहना था कि मैं प्रतिदिन जितनी जानकारी संसाधित करता हूं, उससे मैं अभिभूत हूं। इसके बाद, प्रतिभागियों ने कहा मैं डिजिटल कार्यस्थल अनुप्रयोगों का उपयोग करने में झिझकता हूं, क्योंकि मुझे डर है कि मैं ऐसी गलतियां कर सकता हूं जिन्हें मैं ठीक नहीं कर सकता। इससे छूट जाने का डर डिजिटल कार्यस्थल में काम करते समय मुझे चिंता होती है कि मैं महत्वपूर्ण कार्य-संबंधी अपडेट मिस कर सकता हूं। साथ ही तनाव, थकावट और सामान्य मानसिक स्वास्थ्य के बारे में मापों पर प्रतिक्रिया दी।

सैज जर्नल की एक रिसर्च के अनुसार, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का व्यापक उपयोग, साथ ही इन प्लेटफ़ॉर्म पर साझा की जा रही आकर्षक और इंटरैक्टिव सामग्री की बड़ी मात्रा छात्रों के बीच डिजिटल ओवरलोड का कारण बन सकती है। छात्र जो डिजिटल ओवरलोड का अनुभव करते हैं, वे टेक्नोस्ट्रेस और थकावट सहित मनोवैज्ञानिक तनावों के प्रति संवेदनशील होते हैं। 

कई लोग सोने से पहले मोबाइल का उपयोग करते हैं। मोबाइल या लैपटॉप की स्क्रीनों से निकलने वाली नीली रोशनी (blue light) मस्तिष्क को सक्रिय बनाती है, जिससे नींद नहीं आ पाती। इसका परिणाम यह होता है कि नींद की गुणवत्ता बिगड़ जाती है, और सुबह उठते समय थकान का अनुभव होता है। पिछले एक साल से, मेरे सर में काफी दर्द रहता था और रात को नींद आने में काफी टाइम लग जाता था। डॉक्टर से जांच करवाने पर पता चला कि स्क्रीन टाइम ज्यादा होने के कारण यह समस्या हो रही थी। कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम एक अस्थायी नेत्र रोग है जो बिना रुके लंबे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से होता है। इसे डिजिटल आई स्ट्रेन भी कहा जाता है और यह टैबलेट और स्मार्टफ़ोन के लंबे समय तक उपयोग से भी हो सकता है। कोविड के बाद स्क्रीन टाइम में तेज़ी से वृद्धि ने कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की संख्या में काफ़ी वृद्धि की है। लंबे समय तक लगातार बैठकर स्क्रीन की ओर देखने से पीठ, गर्दन और कंधों में दर्द उत्पन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल ओवरलोड के कारण शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है, जिससे मोटापे, मधुमेह और हृदय रोगों का जोखिम बढ़ता है।

महिलाओं के जीवन पर डिजिटल ओवरलोड का प्रभाव 

तस्वीर साभारः Airswift

आधुनिक युग की महिलाएं अपने करियर और घरेलू जिम्मेदारियों के बीच संतुलन स्थापित करने में जुटी हैं। इस सफर में डिजिटल उपकरणों का उपयोग अनिवार्य हो गया है। हालांकि, यह डिजिटल ओवरलोड महिलाओं की कार्यशक्ति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक क्रॉस-नेशनल अध्ययन ने 29 देशों के 6,600 से अधिक माता-पिता के यूरोपीय सामाजिक सर्वेक्षण के डेटा का विश्लेषण किया, जिनके कम से कम एक बच्चा और एक जीवित माता-पिता थे। इसने पाया कि महिलाओं, विशेष रूप से माताओं पर मानसिक बोझ प्रौद्योगिकी द्वारा और बढ़ जाता है। शोध दल ने उत्तरदाताओं के बीच प्रौद्योगिकी के उपयोग को देखा। पुरुष काम पर सबसे अधिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं, लेकिन महिलाएं काम और घर दोनों जगह प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हैं। अध्ययन के मुख्य लेखक यूके के लैंकेस्टर विश्वविद्यालय से यांग हू कहते हैं कि हमने पाया है कि महिलाओं को काम और पारिवारिक जीवन दोनों में डिजिटल संचार के दोहरे बोझ का सामना करने की अधिक संभावना है।

काशीपुर में रह रही 35 वर्षीय राधा एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती है। घर-परिवार, बच्चों और काम के बीच तालमेल के बारे में फेमिनिज़म इन इंडिया से बातचीत के दौरान वह कहती हैं, “स्कूल से घर वापस आने के बाद भी क्लास ग्रुप में बच्चों को होमवर्क भेजने, स्कूल से कोई मेल आने के कारण वे घर पर अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाती। घर के काम काज की वजह से बच्चों के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिलता और थकान के कारण रात को जल्दी नींद आ जाती है।” डिजिटल ओवरलोड के चलते काम और व्यक्तिगत जीवन का संतुलन बनाना बेहद कठिन हो जाता है। महिलाएं अपने परिवार और बच्चों के साथ गुणात्मक समय बिताने की इच्छा रखती हैं, किंतु डिजिटल उपकरणों के अति उपयोग से यह संतुलन प्रभावित होता है। इससे मानसिक तनाव की स्थिति पैदा होती है और स्वयं के लिए समय निकालने में कठिनाई आती है।

कोविड के बाद स्क्रीन टाइम में तेज़ी से वृद्धि ने कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की संख्या में काफ़ी वृद्धि की है। लंबे समय तक लगातार बैठकर स्क्रीन की ओर देखने से पीठ, गर्दन और कंधों में दर्द उत्पन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल ओवरलोड के कारण शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है, जिससे मोटापे, मधुमेह और हृदय रोगों का जोखिम बढ़ता है।

डिजिटल ओवरलोड के कारण महिलाओं में मानसिक और भावनात्मक थकान उत्पन्न होती है। उन्हें हमेशा सूचनाओं के प्रवाह का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका मनोबल प्रभावित होता है। इसका भावनात्मक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। डिजिटल ओवरलोड आज एक गंभीर चुनौती बन गई है, विशेषकर इस दौर में जब डिजिटल गैजेट हमारे जीवन का एक अभिन्न भाग बन चुके हैं। इसका हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और महिलाओं की कार्यकुशलता पर भी इसके दुष्परिणाम देखे गए हैं। हालांकि, यदि हम उपयुक्त उपाय अपनाएं, तो इस ओवरलोड से बचना संभव है। अपने समय का विवेकपूर्ण उपयोग करें, डिजिटल उपकरणों का संतुलित ढंग से प्रयोग करें, और स्वयं तथा अपने परिवार को प्राथमिकता दें। इस प्रकार, हम डिजिटल संसार के लाभों का आनंद ले सकते हैं जबकि मानसिक शांति और स्वास्थ्य को भी बनाए रख सकते हैं।


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