क्या आपको पता है हर साल 20 अक्टूबर को विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस के रूप में मनाया जाता है? इस दिवस को मनाने का उद्देश्य पूरी दुनिया के लोगों को हड्डी के रोगों की रोकथाम, निदान और उपचार के बारे में जागरूक करना है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि पूरी दुनिया में बुज़ुर्गों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर 2018-2050 के बीच ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से होनेवाले कूल्हे के फ्रैक्चर के मामले दोगुने तक हो जाएंगे। महिलाओं को इस बीमारी के होने की संभावना ज़्यादा होती है। एक अध्ययन के मुताबिक़ विदेशी महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं को यह बीमारी 10-20 साल पहले ही अपनी गिरफ़्त में ले रही है। आइए जानें क्या है यह बीमारी और कैसे कर सकते हैं इससे बचाव।
क्या है ऑस्टियोपोरोसिस?
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों से जुड़ी एक बीमारी है, जिसमें हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं। इस बीमारी में हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है और उनमें फ्रैक्चर होने का ख़तरा बढ़ जाता है। वैसे तो यह महिलाओं और पुरुषों दोनों में पाई जाती है, लेकिन अध्ययनों के मुताबिक़ महिलाओं को यह बीमारी होने का ख़तरा अधिक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 6 करोड़ लोग इस बीमारी का सामना करते हैं, जिनमें 80 प्रतिशत महिलाएं हैं। वैसे तो 50 से ज़्यादा की उम्र की महिलाएं इससे अधिक प्रभावित होती हैं, लेकिन यह 20 से 40 साल की महिलाओं को भी हो सकती है। यह एक लाइलाज बीमारी है। हालांकि समय पर उपचार से इसकी रोकथाम की जा सकती है और इसके गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है। यह अपनेआप में एक जानलेवा बीमारी नहीं है, लेकिन इससे लोगों के जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। कूल्हे में फ्रैक्चर होने की स्थिति में कई बार लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं और दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। लम्बे समय तक बिस्तर पर रहने से उनमें बिस्तर के घाव होने और उनकी मृत्यु होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
क्या होते हैं इसके लक्षण
ऑस्टियोपोरोसिस काफ़ी ख़ामोशी से हड्डियों को कमज़ोर करती है। लोगों को इसका पता तब तक नहीं चलता, जब तक कि उनकी कोई हड्डी टूट न जाए। इससे सबसे ज़्यादा कूल्हे, कलाई और रीढ़ की हड्डियां प्रभावित होती हैं। वैसे तो इसके कुछ ख़ास नज़र आनेवाले लक्षण नहीं होते, लेकिन कुछ लोगों में नीचे लिखे लक्षण नज़र आ सकते हैं—
- लंबाई का कम हो जाना
- शरीर का आगे की ओर झुक जाना
- पीठ में दर्द
- ज़रा सी ऊंचाई से गिरने पर फ्रैक्चर हो जाना या फिर हड्डियों पर थोड़ा भी तनाव पड़ने, जैसे झुकने या खाँसने की वजह से भी उनमें दरार आ जाना
महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस होने की वजहें
ऑस्टियोपोरोसिस होने की कई वजहें होती हैं। महिलाओं में इसके होने की संभावना ज़्यादा इसलिए होती है क्योंकि पुरुषों की तुलना में उनकी हड्डियां छोटी और पतली होती हैं। इसके अलावा महिलाओं में पाया जानेवाला हॉर्मोन एस्ट्रोजन स्वस्थ हड्डियों के लिए ज़रूरी होता है, लेकिन मेनोपॉज की शुरुआत में और इसके बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्तर काफ़ी कम होने लगता है, इसके कारण भी उनमें यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ और कारक भी इसके होने में योगदान देते हैं।
जैसे, सामान्य से कम वज़न का होना, खान-पान में विटामिन डी, फॉस्फोरस और कैल्शियम की कमी होना, हद से ज़्यादा डाइटिंग करना और भोजन में प्रोटीन की कमी होना। इसके अलावा आनुवांशिक कारणों से, कम शारीरिक गतिविधियां करने से भी कुछ लोगों को यह बीमारी होने की संभावना रहती है। इसके अलावा महिलाएं औसतन पुरुषों से 5 साल ज़्यादा जीती हैं, जिसका सीधा सा मतलब यह है कि उन्हें बूढ़ी हड्डियों के साथ जीना पड़ता है। यह भी महिलाओं में इस बीमारी का जोखिम अधिक होने की एक वजह है।
पौष्टिक खान-पान में कमी
इनमें से आनुवांशिक, जैविक और कुछ अन्य कारणों को छोड़ दें, तो हम पाएंगे कि इस बीमारी के होने की कुछ वजहें सामाजिक भी हैं। मसलन स्वस्थ हड्डियों के लिए शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी चाहिए होता है और सूरज की रोशनी विटामिन डी का एक प्राकृतिक स्रोत होती है, लेकिन हमारी सामाजिक संरचना ऐसी है जिसमें कई महिलाओं का ज़्यादातर समय घर के भीतर घर के कामों में ही बीत जाता है। इस कारण से उन्हें सूरज की पर्याप्त रोशनी नहीं मिल पाती। शोध दर्शाता है कि 90 प्रतिशत से भी अधिक महिलाओं को सूरज की रोशनी और खान-पान से विटामिन डी, फ़ॉस्फोरस की समुचित मात्रा नहीं मिल पाती। इसके अलावा हमारे परिवारों में खान-पान के मामले में लड़कों के आहार को तो महत्व दी जाती है। लेकिन लड़कियों के साथ भेदभाव किए जाते हैं। इन्हीं भेदभावों की वजह से बहुत सी लड़कियों का वज़न सामान्य से कम हो जाता है, वे दुबली-पतली हो जाती हैं और उनमें इसका जोखिम बढ़ने की आशंका होती है।
शारीरिक रूप से कम सक्रिय हैं महिलाएं
इसके अलावा दूध विटामिन डी और कैल्शियम का एक बढ़िया स्रोत होता है। लेकिन कई परिवारों में बढ़ती उम्र की लड़कियों को दूध नहीं दिया जाता। वहीं घरों में लड़कों को दूध देने को प्राथमिकता दी जाती है। यही नहीं हमारे समाज में महिलाओं के दुबले-पतले होने को सुंदरता का पैमाना बना दिए जाने की वजह से भी बहुत सी लड़कियां बेवजह डाइट करने लगती हैं, जिससे उनके शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसी तरह अगर भारतीय महिलाओं की शारीरिक सक्रियता की बात करें तो हमारी सामाजिक संरचना ऐसी है कि छोटी उम्र की लड़कियों को भी खेलों में सक्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता। जब वे वयस्क हो जाती हैं तो उनसे घर पर रहकर घर और परिवार वालों की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में उनकी भूमिका घर में खाना बनाने और परिवार के दूसरे सदस्यों की देखभाल तक ही सीमित हो जाती है और उनकी शारीरिक गतिविधियां सीमित हो जाती हैं।
कैसे करें इससे बचाव
कई दूसरी बीमारियों की तरह, कुछ परहेज करके और खान-पान का ध्यान रखकर इससे बचा जा सकता है। खान-पान में कैल्शियम और विटामिन डी युक्त आहार लेने से इसके होने की संभावना को कम किया जा सकता है। शारीरिक रूप से सक्रिय रहकर, अगर आपका वज़न सामान्य से कम है तो वज़न को ठीक रखने के लिए पर्याप्त पोषण और कैलोरीयुक्त आहार लेकर इससे बचा जा सकता है। इसके अलावा बोन डेन्सिटी टेस्ट यानी अस्थि घनत्व परीक्षण के ज़रिए भी गंभीर रूप लेने से पहले ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इस परीक्षण में एक्सरे के ज़रिए आपकी हड्डियों में कैल्शियम और अन्य खनिजों की मात्रा और उनके घनत्व को मापा जाता है। डॉक्टर मेनोपॉज से गुज़र रही महिलाओं को नियमित तौर पर इस परीक्षण को कराने की सलाह देते हैं। इसके अलावा हमें यह भी ध्यान देना होगा कि महिलाएं ऊपर लिखे हुए बचाव के तरीक़े अपना सकें इसके लिए उन्हें इस बीमारी के बारे में जागरूक करना होगा।
उन्हें यह बताना होगा कि हड्डियों का स्वास्थ्य क्यों ज़रूरी है और इन्हें स्वस्थ रखने के लिए किन उपायों को अपनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही घर में बुज़ुर्गों के होने की स्थिति में यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि वे गिरें नहीं, वरना गिरने से भी उनकी हड्डियां टूटने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन जिस समाज में महिलाओं को कदम-कदम पर भेदभाव का सामना करना पड़ता हो, उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को नजरअंदाज किया जाता हो, और जहां ऐसे हालात हों कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य की अनदेखी करने के लिए मजबूर हो जाती हों, ऐसे समाज से हम महिलाओं के स्वास्थ्य की परवाह करने, बीमारी होने से पहले एहतियातन जांच करवाने की क्या ही अपेक्षा करें।