काम और अच्छे अवसर की तलाश में रोज हमारे महानगरों की ओर बड़ी संख्या में लोग प्रवास करते हैं। मुंबई जैसे शहर में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। हाशिये के समुदाय के लोग अक्सर बड़ी संख्या में इन जगहों पर बेघर रहने को मजबूर है। जगह, पैसो के अभाव में इन विस्थापित लोगों ने अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार जहां भी संभव हो सके वहां बड़े पुलों के नीचे, फुटपाथ, बड़ी पाइपों में, सड़क-नालियों के किनारे, खुले स्थान पर अपनी झोपड़ियां बनाकर रहने लगते हैं। मूलभूत सुविधाओं के अभाव और शिक्षा तक पहुंच न होने के कारण इनके पास उचित दस्तावेजों तक का अभाव है। बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं उन तक कोई पहुंच नहीं है।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लैंगिक पहचान के चलते बेघर महिलाओं के सामने चुनौतियां और भी अधिक हो जाती है। विभिन्न स्तरों पर बेघर महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। तमाम तरह की अल्पताओं के बीच जीवन गुजर बसर करने वाली इन महिलाओं के पास हर स्तर पर जानकारी का अभाव है। अपने स्वास्थ्य को लेकर भी जागरूकता और जानकारी की कमी है। विषम परिस्थितियों और अभाव में जीवन गुजारती इन महिलाओं को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक समस्याओं को सामना करना पड़ता है। अस्वच्छ पानी के इस्तेमाल की वजह से कई तरह की स्वास्थ्य परेशानियां होती है। सार्वजनिक शौचालय में भी गंदे पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इस वजह से यूरीन इंफेक्शन जैसी समस्याएं इनमें आम है।
बेघर महिला लक्ष्मी चव्हाण कहती है, “मेरी पहले दो बच्चों की डिलीवरी घर पर ही हुई थी लेकिन तीसरे बच्चे के समय कई तरह की जटिलताओं के कारण डिलीवरी के समय मुझे अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उस समय उन्होंने मुझे वहां अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया था क्योंकि मैंने इससे पहले उनसे कोई चेकअप नहीं कराया था।”
देश में बड़ी संख्या में बेघर लोग
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुमानित 17 लाख बेघर लोग हैं। पहले से ही कठिन जीवन-परिस्थितियों का सामना कर रहे इन लोगों के पास बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य सेवा की कमी के कारण जीवन की परिस्थितियां और भी गंभीर हो जाती है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले शहर मुंबई में 57,416 बेघर लोग दर्ज किए गए थे। इंडियन एक्सप्रेस में छपी जानकारी के अनुसार मुंबई महानगरपालिक के द्वारा साल 2021 के सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि मुंबई में 11,915 बेघर लोग थे। मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र (एमएमआर) के अंतर्गत आने वाले इलाकों में ठाणे में केवल 147, नवी मुंबई में 103 और कल्याण में 228 बेघर लोग दर्ज किए गए। इसके अलावा, अन्य बड़े शहरों जैसे पुणे, नागपुर और नासिक में क्रमनुसार 1,060, 1,060 और 894 बेघर लोग थे। शहर के बेघर लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया
मुंबई के बोरीवली के आर सेंट्रल वार्ड में स्थित परथी समुदाय से ताल्लुक रहने वाली कुछ बेघर महिलाओं से हमने उनकी स्वास्थ्य को लेकर बात की। ये महिलाएं बड़े स्तर पर अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं और उनके समाधान के बारे में नहीं जानती है। बेघर महिला लक्ष्मी कहती है, “मेरी पहले दो बच्चों की डिलीवरी घर पर ही हुई थी लेकिन तीसरे बच्चे के समय कई तरह की जटिलताओं के कारण डिलीवरी के समय मुझे अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उस समय उन्होंने मुझे वहां अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया था क्योंकि मैंने इससे पहले उनसे कोई चेकअप नहीं कराया था। अक्सर हमारी स्थिति को देखकर अस्पताल में हमारे साथ ठीक व्यवहार नहीं होता है। लोग हमसे ठीक से बात तक नहीं करते हैं। उन्हें हम गंदे लगते हैं।”
कई बेघर महिलाओं ने यह बात सामने रखी है कि अस्पताल उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता है। उनके मैले कपड़ों को देखकर लोग उनसे बेहतर तरीके से बात नहीं करते हैं। जानकारी देने से बचते हैं। घर-पता न होने के कारण सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं तक उनकी पहुंच नहीं है। ये जिन अस्थायी पतों पर रहती हैं वहां तक गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और रिकॉर्ड के लिए आंगनवाड़ी की भी कोई सुविधा नहीं है। बेघर महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य कई तरह से ताक पर रहता है। असुरक्षित यौन संबंध, अनपेक्षित गर्भावस्था, पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के अभाव की वजह से यौन और प्रजनन स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
गरीब आदमी को बीमार पड़ने का भी हक नहीं है
दिहाड़ी मजदूरी का काम करने वाली रुक्मिणी पवार कहती है, “हम गंदगी में ही रहने वाले, गंदगी में ही काम करने वाले है इस वजह से लोगों को लगता है कि हमें कोई बीमारी नहीं होगी। हम भी गिरते हैं, बीमार होते हैं ये है कि छोटे-मोटे दुख पर ध्यान नहीं देते हैं। छुट्टी लेकर बैठ जाएंगे तो खाएंगे-पिएंगे क्या। यहां हर चीज़ रूपये खर्च करके मिलती है। दवाई खर्चे का पैसा कहां से लाएंगे। सही बोलू तो गरीब आदमी के बस में बीमार होना भी नहीं है।” सड़क किनारे जीवन गुजारने के दौरान महिला होने के नाते और पीरियड्स के दौरान वह किस तरह से स्थिति को मैनेज करती है इस सवाल पर आगे बोलते हुए रूक्मिणी का कहना है, लोगों को बड़ा भ्रम है सड़क किनारे रहते है तो स्वच्छता को लेकर कुछ नहीं जानते हैं। जितनी क्षमता है उसके अनुसार स्थिति को संभालते है। इससे ज्यादा पीरियड्स क्यों आते है और किस तरह का ख्याल इन दिनों रखा जाता है वो हमें नहीं मालूम है।”
सड़क किनारे रहने वाली महिलाओं ने प्लास्टिक की पन्नी से बने अपने घरों के सामने ही प्लास्टिक के बैनर से छोटे-छोटे स्नानघर बनाये हुए हैं। यहां रहने वाली महिलाओं ने बताया है कि वे इन जगहों का रात में ही इस्तेमाल करती है। दिन में बार-बार पेशाब न आये इसलिए ज्यादा पानी नहीं पीती है। घर या एक सुरक्षित जगह के अभाव की वजह से महिलाओं को जानबूझकर इस तरह का व्यवहार अपनाना पड़ता है।
सरकारी योजनाओं में बेघर लोग
भारत में सभी राज्यों में शहरी बेघर लोगों के लिए स्थायी आश्रयों का निर्माण केंद्र सरकार की शहरी बेघर आश्रय योजना (एसयूएच) के तहत किया जाता है। यह योजना दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन का हिस्सा है। साल 2013 में शुरू की गई इस योजना में केंद्र सरकार 60 प्रतिशत और अधिकतर मामलों में राज्य 40 प्रतिशत वित्त पोषण करते हैं। योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक एक लाख शहरी जनसंख्या के लिए कम से कम 100 लोगों को समायोजित करने वाला एक आश्रय स्थल बनाया जाना चाहिए। न्यूजलॉड्री.कॉम में छपी जानकारी के अनुसार प्रत्येक स्थायी आश्रय स्थल में आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता जैसे पर्याप्त शौचालय सुविधाएं, पानी की व्यवस्था और आग से सुरक्षा के उपाय होने चाहिए। इसके अलावा, आश्रय स्थल में अच्छी वेंटिलेशन वाले कमरे होने चाहिए। आश्रय स्थल पर एक सामूहिक रसोई या खाना पकाने की जगह होनी चाहिए।
बेघर होना, पर्याप्त आवास के मानव अधिकार का सबसे गंभीर उल्लंघन है। बेघर लोग, विशेषकर महिलाएं, देश में सबसे अधिक हाशिए पर, उपेक्षित और भेदभाव का सामना करने वाले लोगों में शामिल हैं। किसी भी प्रकार के आश्रय के बिना सड़कों पर रहना बेघर महिलाओं की शोषण, यौन हिंसा, चोट, बीमारी, मानसिक रोग और मृत्यु के खतरे को कई गुना बढ़ा देता है। बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलू हिंसा की परिस्थितियों से घर से निकलकर बेघर हो जाती हैं। इसके अलावा एचआईवी या मानसिक रोग की वजह से भी उन्हें अपने घरों से निकाल दिया जाता है। बेघर महिलाओं, खासकर युवा महिलाओं को सबसे ज्यादा हिंसा और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। वे यौन शोषण, तस्करी और उत्पीड़न का ज्यादा सामना करती है। बलात्कार, यौन उत्पीड़न और युवा किशोरी लड़कियों की सुरक्षा के लिए रात भर जागते रहना बेघर महिलाओं के लिए आम है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचना बेघर लोगों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं जहां महिलाओं को इलाज से वंचित किया गया है और अस्पतालों से वापस लौटा दिया गया है।