मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल में एक अमिट छाप छोड़ी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने साल 2022 में 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के बाद देश की सेवा को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता देने का वादा किया था। उन्होंने न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता में सहायता के लिए तकनीकी सुधार किए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कई नवोन्मेषी पोर्टल शुरू किए हैं, जिनमें ‘सुस्वागत’, ‘ई-फाइलिंग 2.0,’ ‘सुप्रीम कोर्ट मोबाइल ऐप 2.0,’ ‘एडवोकेट अपीयरेंस पोर्टल,’ और ‘ई-एससीआर प्रोजेक्ट’ शामिल हैं। उन्होंने न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए व्हाट्सएप के साथ आईटी सेवाओं को भी एकीकृत किया है। हालांकि चंद्रचूड़ सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम प्रणाली में कोई संरचनात्मक परिवर्तन करने में विफल रहे हैं। चंद्रचूड़ अपने प्रगतिशील निर्णयों और भारत के संविधान को बनाए रखने की प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। उन्हें व्यापक रूप से सुप्रीम कोर्ट के सबसे प्रभावशाली और सम्मानित न्यायाधीशों में से एक माना जाता है।
मई 2016 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वह 2013 से 2016 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और 2000 से 2013 तक बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के सबसे सफल न्यायाधीशों में से एक रहे हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान 220 से अधिक निर्णयों में योगदान दिया। हम उनके कार्यकाल के दौरान सर्वोच्च न्यायालय में लिए गए कुछ सबसे महत्वपूर्ण निर्णय और घटनाक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं और समझते हैं उनका कार्यकाल कैसा रहा।
1. निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है
अगस्त 2017 में के. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि गोपनीयता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के एक आंतरिक भाग के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक भाग के रूप में संरक्षित किया गया है। इस फैसले में, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने पीठ के अन्य सभी सदस्यों के साथ, एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (28 अप्रैल, 1976) के मामले में आपातकाल के दौर के फैसले को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया।
2. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश
इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य, 2019 मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि सबरीमाला मंदिर से 10-50 वर्ष की आयु की महिलाओं का बहिष्कार संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इसने उनकी स्वायत्तता, स्वतंत्रता और गरिमा को नष्ट कर दिया है। विशिष्ट रूप से, उन्होंने माना कि यह प्रथा अनुच्छेद 17 का भी उल्लंघन करती है, जो अस्पृश्यता पर रोक लगाती है, क्योंकि यह महिलाओं को अशुद्धता की धारणा प्रदान करती है।
3. धारा 377 को अपराध की श्रेणी से हटाना
जून 2016 में, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता भरतनाट्यम नर्तक नवतेज सिंह जौहर और चार अन्य, जो खुद एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के सदस्य हैं, ने आईपीसी के धारा 377 को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। अपने फैसले में, पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आईपीसी धारा 377 को इस हद तक खारिज कर दिया कि यह होमोसेक्शूऐलिटी को अपराध बनाती है। ‘नवतेज’ फैसले में कहा गया कि एलजीबीटीक्यू समुदाय समान नागरिक हैं और इस बात पर जोर दिया गया कि यौनिकता और जेंडर के आधार पर कानून में भेदभाव नहीं किया जा सकता है। डीवाई चंद्रचूड़ भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर और इंदु मल्होत्रा के साथ पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे।
4. अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है
प्रसिद्ध हादिया विवाह मामले में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक व्यक्ति के निजता के अधिकार की पुष्टि करते हुए कहा कि एक वयस्क का विवाह या धर्म परिवर्तन पर निर्णय लेने का अधिकार उनकी निजता और स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है। साल 2018 में हादिया की धर्म और विवाह साथी की पसंद को बरकरार रखा। हादिया ने इस्लाम अपना कर याचिकाकर्ता शफीन जहां से शादी कर ली थी, जिस समय उसके माता-पिता ने आरोप लगाया था कि उसका ब्रेनवॉश किया गया था। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विवाह या धर्म में निर्णय लेने का एक वयस्क का अधिकार उसकी निजता के क्षेत्र में आता है।
5. स्थायी आयोग
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का निर्देश देने वाले एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि कमांड असाइनमेंट से महिलाओं का पूर्ण बहिष्कार अनुचित और संविधान का उल्लंघन था। एक कदम आगे बढ़ते हुए, जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में लैंगिक भूमिका रूढ़िवादिता के बारे में बात करते हुए कहा कि सेना में सच्ची समानता लाने के लिए मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है।
6. सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने महिलाओं के प्रजनन और शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जहां यह कहा गया कि सभी महिलाएं, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, सुरक्षित और कानूनी अबॉर्शन की हकदार हैं।
7. दो-अंगुली परीक्षण को ख़त्म
महिलाओं के अधिकारों से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने बलात्कार के मामलों में टू-फिंगर टेस्ट को खारिज कर दिया और कहा कि यह पितृसत्तात्मक और सेक्सिस्ट है। टू-फिंगर टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह इस गलत धारणा पर भी आधारित है कि एक यौन सक्रिय महिला का बलात्कार नहीं किया जा सकता है।
8. ‘गर्भवती महिला’ से ‘गर्भवती व्यक्ति’ तक का सफर
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार एक फैसले में ‘गर्भवती महिला’ या ‘गर्भवती लड़की’ के बजाय ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया है। उच्चतम न्यायालय की ओर से उपयोग किया गया यह शब्द अपने आप में बहुत मायने रखता है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसले में यह बात कही। पीठ ने कहा कि हम ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का उपयोग कर रहे हैं और मानते हैं कि सिस्जेंडर महिलाओं के अलावा, गर्भावस्था का अनुभव कुछ गैर-बाइनरी लोगों और अन्य लिंग पहचान वाले ट्रांसजेंडर पुरुषों द्वारा भी किया जा सकता है। भारतीय उच्चतम न्यायलय की ओर से यह टिप्पणी कनाडाई सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आई है जिसमें कनाडाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘महिला’ के बजाय ‘योनि वाला व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। न्यायालयों की ओर से इस प्रकार की ‘जेंडर नूट्रल’ टिप्पणियां समाज में बदलाव लाने में सहायक होंगी, जहां ‘जेंडर नूट्रल’ शब्द लिंग आधारित शब्दों की जगह ले सकते हैं।
9. सेम सेक्स मैरेज को वैध बनाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सेम सेक्स मैरेज को वैध बनाने से इनकार कर दिया जिससे विवाह समानता की मांग करने वाले लाखों एलजीबीटीक्यू+ लोगों की उम्मीदें धराशायी हो गई। इसके बजाय न्यायालय ने होमोसेक्शुअल जोड़ों को अधिक कानूनी अधिकार और लाभ देने पर विचार करने के लिए एक पैनल गठित करने के सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। हालांकि मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ सहित दो न्यायाधीशों ने नागरिक संघ और होमोसेक्शुअल जोड़ों को भी ‘विवाहित लोगों को मिलने वाले लाभ’ प्रदान करने का समर्थन किया।
10. राम मंदिर मामला
एम सिद्दीक (डी) थ्री एलआरएस बनाम महंत सुरेश दास एवं अन्य मामले में, सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि पूरी विवादित भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए गठित किए जाने वाले ट्रस्ट को सौंप दिया जाए और मुसलमानों को, ‘समानता’ के नाम पर, मस्जिद बनाने के लिए स्थल के पास या ‘अयोध्या में किसी उपयुक्त प्रमुख स्थान’ पर अधिग्रहित भूमि में से पांच एकड़ जमीन दी जाए। डी वाई चंद्रचूड़, सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे, अशोक भूषण और एस ए नजीर के साथ पीठ का हिस्सा थे। इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले को पलट दिया, जिसमें निर्मोही अखाड़ा संप्रदाय, देवता रामलला विराजमान और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन-तरफ़ा बांटने का आदेश दिया गया था।
हालांकि, उनके कार्यकाल में कुछ ऐसे भी मुद्दे रहे जहां वे आलोचना का शिकार हुए। महिलाओं के लिए लैंगिक प्रतिनिधित्व में सुधार की उनकी प्रतिबद्धता के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय में महिला न्यायाधीशों का अनुपात कम ही रहा। इसके अतिरिक्त, कुछ संवेदनशील मामलों में न्यायालय की ओर से त्वरित कार्यवाही की कमी को लेकर भी सवाल उठे हैं, विशेषकर राजनीतिक विरोधियों की जमानत से जुड़े मामलों में। यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि पिछले कुछ वर्षों में, सर्वोच्च न्यायालय ने कितनी बार चुनौती मिलने पर केंद्र सरकार की कार्रवाइयों को रद्द कर दिया है? उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे राजनीतिक विरोधियों की जमानत पर सुनवाई सुनिश्चित नहीं करने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते कि वे बिना मुकदमे के जेल में बंद रहें। ऐसा नहीं है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल में केवल प्रगतिशील फैसले ही दिए और अपने वादे पूरे किये हैं।
महिलाओं के अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण मामले, जैसे तीन तलाक के अपराधीकरण की चुनौती और वैवाहिक अधिकारों की बहाली, उनके कार्यकाल के दौरान अक्सर सूचीबद्ध किए गए लेकिन सुनवाई के लिए नहीं लिए गए। वैवाहिक बलात्कार अपवाद मामले की सुनवाई केवल एक दिन के लिए की गई ताकि न्यायालय यह निष्कर्ष निकाल सके कि सेवानिवृत्ति से पहले पूरे मामले की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं था। कुल मिलाकर, चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारत के न्यायिक इतिहास में एक उल्लेखनीय अध्याय है, जहां प्रगतिशील फैसलों के साथ सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया, हालांकि कुछ मुद्दों पर उनके प्रदर्शन में सुधार की गुंजाइश भी दिखाई दी।