पिछले दिनों अमेरिकी लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक महत्व के एक पल में, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को हराकर अपनी जीत दर्ज की। 78 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस में चुने गए सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति हैं। हालांकि वे अमेरिका के पदभार ग्रहण करने वाले पहले दोषी अपराधी भी हैं। इतिहास में सबसे बड़ी राजनीतिक वापसी करने वाले ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनें जिससे उन्हें अपने देश में व्यापक राजनीतिक शक्ति मिलेगी। अमेरिका में ट्रंप के जीत ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। एक व्यवसायी और रियलिटी टीवी स्टार रह चुके ट्रंप की 2024 की राजनीतिक वापसी को सबसे प्रभावशाली माना जा रहा है क्योंकि उन्हें कई आपराधिक आरोपों, दो राष्ट्रपति महाभियोग और एक आपराधिक सजा का सामना करना पड़ा। यह पहली बार है जब किसी अपराध में दोषी ठहराए गए उम्मीदवार ने न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि अमेरिकी चुनावों में उम्मीदवार भी बने हैं। हालांकि ट्रंप की राजनीति और उनकी नीतियां हमेशा से विवाद का केंद्र रही हैं।
ट्रंप की राजनीति का एक प्रमुख पहलू उनकी प्रतिक्रियावादी नीतियों और उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ विचारधारा में देखा जा सकता है। उनकी कई नीतियां महिलाओं, अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों और प्रवासियों के खिलाफ़ मानी गई हैं। उनकी नीतियों ने न केवल अमेरिका में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी विवाद खड़े किए हैं। उनके नेतृत्व में अमेरिका ने कई मुद्दों पर कठोर नीतियां अपनाईं, जिनका असर सिर्फ अमेरिकी नागरिकों पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पड़ा। ट्रंप के नेतृत्व में अबॉर्शन के अधिकारों पर प्रतिबंध और ‘प्रोजेक्ट 2025’ जैसी योजनाओं का समर्थन शामिल है। ट्रंप के इस जीत ने साल 2016 में पेन्सिलवेनिया के कॉलम को पलट दिया। राज्य के 19 इलेक्टोरल वोट जीतकर उन्होंने ‘ब्लू वॉल’ जीतने का रास्ता सुनिश्चित किया, जो डेमोक्रेट पार्टी के सदस्य जो बिडेन के पोल में जीत के चार साल बाद है। 1948 से लेकर अब तक, किसी भी डेमोक्रेट ने पेन्सिलवेनिया पर कब्ज़ा किए बिना राष्ट्रपति चुनाव नहीं जीता है। ट्रंप के लिए एक और सकारात्मक बात यह रही कि पार्टी ने सीनेट पर बहुमत हासिल कर लिया है।
जनता को अलग-अलग खेमों में बांटने की कोशिश
एक सदी से भी अधिक समय में, ट्रंप 1897 के बाद से दो कार्यकाल जीतने वाले दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए हैं। लेकिन माना जाता है कि उन्होंने नस्ल, धर्म, लिंग और राष्ट्रीयता के आधार पर जनता को अलग-अलग खेमों में बांटने की कोशिश की, जिसका अमेरिका की सामाजिक संरचना पर भी गहरा असर पड़ा। हालांकि उनके समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का था जो मानते थे कि ट्रंप उनके लिए ‘असली अमेरिकी’ हितों की रक्षा कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में प्यू रिसर्च सेंटर में अध्ययन से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था, नस्लीय न्याय, जलवायु परिवर्तन, कानून प्रवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव और कई अन्य मुद्दों पर डेमोक्रेट और रिपब्लिकन के बीच असहमति बढ़ती जा रही है। साल 2020 के राष्ट्रपति चुनाव ने इन गहरे मतभेदों को और उजागर किया था। बिडेन और डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों का मानना है कि उनके बीच मतभेद सिर्फ़ राजनीति और नीतियों से कहीं ज़्यादा हैं।
अमेरिकी राजनीति में जनता की मतों में विभाजन
साल 2020 की कोविड महामारी ने यह उजागर किया था कि अमेरिकी राजनीति में अन्य देशों के तुलना में जनता की राय में अंतर विभाजन कितना व्यापक है। प्यू रिसर्च सेंटर के शोध अनुसार 76 फीसद रिपब्लिकन (जिनमें पार्टी के प्रति झुकाव रखने वाले स्वतंत्र लोग भी शामिल हैं) ने महसूस किया कि अमेरिका ने कोरोना वायरस प्रकोप से निपटने में अच्छा काम किया है, जबकि रिपब्लिकन पार्टी से अलग रहने वालों में से सिर्फ़ 29 फीसद ने ऐसा महसूस किया। 14 देशों में सर्वे में शामिल लोगों में से जो लोग सत्ताधारी पार्टी का समर्थन करते हैं और जो इसका समर्थन नहीं करते हैं, उनके बीच यह 47 प्रतिशत अंकों का सबसे बड़ा अंतर था। इसके अलावा, 77 फीसद अमेरिकियों ने कहा कि देश अब महामारी के प्रकोप से पहले की तुलना में ज़्यादा विभाजित है, जबकि सर्वे में शामिल 13 अन्य देशों में यह औसत 47 फीसद था।
अबॉर्शन के अधिकार का विरोध
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पहली बहस में, डोनाल्ड ट्रंप ने अबॉर्शन पर स्पष्ट रुख अपनाने से इनकार किया था और इसे राज्यों पर छोड़ने की बात कही थी। उन्होंने अबॉर्शन के मामले में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की बात कही, जिससे उनके कई समर्थकों में असंतोष फैल गया। ट्रंप का प्रशासन अमेरिका के अबॉर्शन-विरोधी आंदोलन के समर्थन में स्पष्ट रूप से खड़ा रहा। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक ‘प्रो-लाइफ’ राष्ट्रपति होने का दावा किया और अबॉर्शन के खिलाफ़ कई प्रतिबंधों का समर्थन किया। ट्रंप ने तीन सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों को नियुक्त करके अबॉर्शन विरोधी आंदोलन को बल दिया, जिसने Roe v Wade जैसे निर्णय को उलटकर अबॉर्शन के अधिकार को समाप्त कर दिया।
ट्रंप ने फेडरल जजों की नियुक्ति करते समय ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी, जो अबॉर्शन के खिलाफ थे, जिसके कारण महिला अधिकार संगठनों और अबॉर्शन समर्थक कार्यकर्ताओं ने इसपर आपत्ति भी जताई थी। अबॉर्शन का अधिकार महिलाओं के लिए एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानवाधिकार का विषय होने के बावजूद, ट्रंप की नीतियों के कारण इन्हें कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अबॉर्शन पर ट्रंप का सबसे विवादास्पद कदम ‘मेक्सिको सिटी पॉलिसी’ को रीवाइव करना था, जिसमें उन अंतरराष्ट्रीय संगठनों को आर्थिक सहायता नहीं दी जाती, जो अबॉर्शन सेवाएं प्रदान करते हैं या इसके पक्ष में हैं। यह नीति उन महिलाओं के लिए भी हानिकारक रही, जिन्हें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर निर्भर रहना पड़ता था।
मुस्लिम विरोधी और इमिग्रेशन की नीतियां
ट्रंप के प्रशासन में मुसलमानों के खिलाफ़ नीतियों की एक लहर देखी गई, जिसे उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सही ठहराया। मुस्लिम देशों से अमेरिका में प्रवास को रोकने के लिए ‘मुस्लिम बैन’ के रूप में चर्चित यात्रा प्रतिबंध लागू किया गया, जिससे कुछ मुस्लिम-बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगाई गई। ट्रंप ने इस नीति को ‘राष्ट्र की सुरक्षा’ के लिए आवश्यक बताया, लेकिन इसके खिलाफ कई मानवाधिकार संगठनों और अदालतों ने इसे भेदभावपूर्ण माना। इससे अमेरिका में मुस्लिम समुदाय के भीतर असुरक्षा का माहौल पैदा हुआ और उनके खिलाफ़ पूर्वाग्रह को बढ़ावा मिला। ट्रंप की नीतियां अपने कठोर इमिग्रेशन यानी आव्रजन विरोधी दृष्टिकोण के लिए चर्चा का विषय रहा है। ‘अमेरिका फर्स्ट’ की विचारधारा के तहत उन्होंने कई सख्त आव्रजन नीतियां लागू कीं।
‘ज़ीरो टॉलरेंस’ पॉलिसी के तहत, मेक्सिको से अवैध तरीके से अमेरिका में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को हिरासत में लिया गया और उनके बच्चों को कथित रूप से उनसे अलग कर दिया गया। इस नीति की व्यापक आलोचना हुई क्योंकि यह प्रवासियों, विशेष रूप से बच्चों, के लिए अत्यधिक अमानवीय मानी गई। इसके अतिरिक्त, ट्रंप ने अमेरिका में बसने के इच्छुक लोगों के लिए वीजा नियमों को कड़ा किया और शरणार्थियों के प्रवेश पर रोक लगाई। इन नीतियों ने कई प्रवासी परिवारों को प्रभावित किया और शरणार्थियों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई। ट्रंप ने कहा है कि वह अपने 2019 में ‘मेक्सिको में रहने वाले’ कार्यक्रम को बहाल करेंगे, जिसने कुछ राष्ट्रीयताओं के शरण-चाहने वालों को अपने मामलों के संकल्प के लिए मेक्सिको में प्रतीक्षा करने के लिए दक्षिणी सीमा पर अमेरिका में प्रवेश करने का प्रयास किया। ट्रंप ने ‘ड्रीमर्स’ कार्यक्रम को समाप्त करने का भी प्रयास किया, जो कि ऐसे अप्रवासियों के लिए था जो बचपन में अवैध रूप से अमेरिका आए थे।
परियोजना 25: अमेरिकी सरकार को बदलने की योजना
‘प्रोजेक्ट 2025‘ का उद्देश्य भविष्य में सरकार को और अधिक नियंत्रण देना और संघीय एजेंसियों के स्वतंत्र संचालन को सीमित करना है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य कार्यकारी शाखा की शक्तियों को मजबूत करना और उन नीतियों को लागू करना है जो ट्रंप के राजनीतिक दृष्टिकोण के अनुकूल हों। यह प्रोजेक्ट अधिकारों के हनन और राजनीतिक विरोध को कुचलने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संघीय शासन प्रणाली पर असर पड़ सकता है। इस प्रोजेक्ट का समर्थन करने वाले लोग इसे ‘अमेरिकी संविधान को मजबूत करने’ के रूप में प्रचारित करते हैं, लेकिन इसके आलोचकों का मानना है कि यह अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाल सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां कई मायनों में विवादास्पद रही हैं। उनके फैसलों का प्रभाव महिलाओं, मुस्लिम समुदाय, और आप्रवासियों पर पड़ा है, जिससे अमेरिका में समानता और समावेशिता को लेकर सवाल खड़े होते हैं। डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां उनके समर्थकों के लिए राष्ट्रवाद का प्रतीक बन चुकी हैं। वहीं उनके विरोधियों के लिए वे मानवाधिकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों, और सामाजिक न्याय के लिए एक चुनौती रही हैं। ‘प्रोजेक्ट 2025’ के तहत उनके भविष्य की योजनाएं इस बात की ओर संकेत करती हैं कि उनके राजनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव की संभावना कम है और वे सत्ता के केंद्रीकरण के माध्यम से नीतियों को और अधिक कठोर बनाने के इरादे रखते हैं। आने वाले दिनों में अमेरिका में कानून किस ओर ले जाता है, ये वक्त ही बता सकता है।