समाजकार्यस्थल देश में महिला उद्यमियों का उदय: चुनौतियां, सफलताएं और संभावनाएं

देश में महिला उद्यमियों का उदय: चुनौतियां, सफलताएं और संभावनाएं

शोध से पता चलता है कि महिलाएं ऋण उधारकर्ताओं के रूप में अधिक ज़िम्मेदारी दिखाती हैं। अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में उनका समय पर ईएमआई चुकाने की संभावना 10 फीसद अधिक होती है। लेकिन, इसके बावजूद मार्केट में महिलाओं को भरोसेमंद नहीं माना जाता।

पिछले कुछ दशकों में महिलाओं ने बिजनस के क्षेत्र में अपना खास स्थान बनाया है। आम तौर पर सदियों से बिजनस चुनिंदा वर्ग, जाति और समुदाय के पुरुषों का क्षेत्र रहा है। लेकिन आज 21वीं सदी में भारत विभिन्न व्यवसाय का न सिर्फ उभार देख रहा है, बल्कि महिलाओं और हाशिये के समुदायों की उपस्थिति भी दर्ज कर रहा है। सतत आर्थिक विकास, लैंगिक समानता और गरीबी मिटाने के लिए अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बेहद जरूरी है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआई) का अनुमान है कि 2025 तक भारत 68 मिलियन अधिक महिलाओं को भारत के कार्यबल में लाकर, अपनी जीडीपी को 0.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा सकता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि भारत कार्यबल में 50 फीसद महिलाओं को शामिल करके सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को 1.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।

कोविड महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी के बाद, आज भारत ने अपनी स्थिति में सुधार किया और 2019 में विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रैंकिंग में 62वें स्थान पर रहा। भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है। महिलाओं के व्यवसाय में आने से न सिर्फ अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि श्रम बाजार और कामकाजी माहौल में लैंगिक समानता की उम्मीद बनती है। कई शोध और साक्ष्य बताते हैं कि कम से कम एक महिला संस्थापक वाले व्यवसायों में अधिक समावेशी काम की संस्कृति होती है, पुरुषों की तुलना में 3 गुना अधिक महिलाओं को रोजगार मिलता है और 10 फीसद अधिक संचयी राजस्व उत्पन्न (क्यूमूलएटिव रेवेन्यू) होता है। लेकिन, देश में महिलाओं की उद्यमशीलता स्थिर हो गई है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि देश में सभी उद्यमों में से केवल 20 फीसद का स्वामित्व महिलाओं के पास है। महिलाओं के नेतृत्व वाले इन उद्यमों में से 82 फीसद सूक्ष्म इकाइयां हैं, जो एकमात्र स्वामित्व के रूप में चलती हैं, जबकि अधिकांश अनौपचारिक क्षेत्र में केंद्रित हैं।

बिजनस और कॉर्पोरेट हाउस तक पहुंच बनाना मुश्किल होता है। खासकर तब जब आप फंड की डिमांड कर रहे हों और हमें बिजनस की भाषा में अपने काम को पेश करना है। एक महिला संस्थापक होने के कारण मुझे जो सबसे मुश्किल लगी, वह बिजनस से जुड़े लोगों के बीच नेटवर्किंग है। साथ ही महिलाओं के लिए घर-परिवार के साथ-साथ बिजनस मैनेज करना मुश्किल है।

क्या होता है ‘महिला संस्थापक’ होना 

तस्वीर में अंजू सैगल, साभार: मालविका धर

व्यवसाय की दुनिया में महिलाओं का अपनी जगह बनाना आसान नहीं है। व्यवसाय के अलावा, उनके जेंडर के कारण भी उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत की महिला संस्थापकों को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में न सिर्फ अपने व्यवसायों के वित्तपोषण में भेदभाव बल्कि लैंगिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। वैश्विक-विविधता-केंद्रित नेटवर्क एनक्यूबे की एक रिपोर्ट के अनुसार, जून 2023 और फरवरी 2024 के बीच 799 फंडिंग सौदे हुए, जिनमें से कम से कम एक महिला संस्थापक वाले उद्यम सिर्फ 163 सौदे ही कर पाए। इस दौरान, स्टार्टअप्स ने 6,646 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई। लेकिन, महिला संस्थापकों वाले उद्यमों ने सिर्फ 300 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई जो कुल फंडिंग का महज 4.5 फीसद था। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि महिला किस व्यवसाय से जुड़ी है और क्या वह महिला संस्था की अकेली संस्थापक है।

तस्वीर में बच्चों के साथ अंजू सैगल , साभार: मालविका धर

एक संस्था चलाने की चुनौतियों पर बात करते हुए गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर इक्विटी एंड क्वालिटी इन यूनिवर्सल एजुकेशन (सीईक्यूईई) की संस्थापक और निदेशक अंजू सैगल कहती हैं, “मुझे कभी लगा नहीं कि महिला होने के नाते इस लाइन में कुछ अलग चैलेंज है। लेकिन, शुरुआती सालों में संस्था के लिए पैसे लाना, फंड जुटाना मुश्किल है क्योंकि शुरुआत में आपका कोई ब्रांड नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती ये होती है कि जब कोई महिला गैर सरकारी संस्था शुरू करती है, तो कई बार लोगों को लगता है कि ये शौकिया है। वहीं, बिजनस और कॉर्पोरेट हाउस तक पहुंच बनाना मुश्किल होता है। खासकर तब जब आप फंड की डिमांड कर रहे हों और हमें बिजनस की भाषा में अपने काम को पेश करना है। एक महिला संस्थापक होने के कारण मुझे जो सबसे मुश्किल लगी, वह बिजनस से जुड़े लोगों के बीच नेटवर्किंग है। साथ ही महिलाओं के लिए घर-परिवार के साथ-साथ बिजनस मैनेज करना मुश्किल है।”

इन्फ्लैशन के कारण आज हमारा मार्जिन बहुत कम हो गया है। साथ ही, हमें रॉ मटीरीअल मंगवाने समय पूरे पैसे देना पड़ता है। पर हम जहां सप्लाइ देते हैं, वहां अधिकतर समय पेमेंट एक से तीन महीने बाद होती है। ऐसे में स्थायी कर्मचारी रखना चुनौतीपूर्ण है।

छोटे व्यवसाय करने वाली महिलाओं की चुनौतियां

तस्वीर में पूजा श्रीवास्तव, साभार: मालविका धर

नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट अनुसार आज देश में 63 मिलियन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) हैं, जिनमें से लगभग 20 फीसद महिला स्वामित्व वाले हैं, जो 22 से 27 मिलियन लोगों को रोजगार देते हैं। मास्टरकार्ड इंडेक्स ऑफ़ वूमेन एंटरप्रेन्योर्स (MIWE, 2021) में भारत 65 देशों में 57वें स्थान पर है। अनुमान बताते हैं कि महिला उद्यमिता में तेज़ी लाकर भारत 30 मिलियन से ज़्यादा महिला स्वामित्व वाले उद्यम बना सकता है, जिससे संभावित रूप से 150 से 170 मिलियन नौकरियां पैदा होंगी। लेकिन व्यवसाय से जुड़े महिला संस्थापकों के लिए समस्या सिर्फ फंड की नहीं होती। चूंकि व्यवसाय की दुनिया में मूल रूप से पुरुषों का वर्चस्व है, इसलिए कई बार ये महिलाओं के लिए मुश्किलें खड़ा करता है।

छोटे व्यवसाय के चुनौतियों के बारे में बात करते हुए फरीदाबाद में रह रहीं इनएंडस इंटरप्राइजेज की संस्थापक पूजा श्रीवास्तव कहती हैं, “हम पहले ऑनलाइन बिजनस कर रहे थे जिसमें काफी दिक्कतें आती थीं। हम फैन्सी ड्रेस और स्कूलों के कार्यक्रमों में कपड़े सप्लाइ करते थे। कोविड के समय एकाएक स्कूल बंद हो गए और हमें काफी नुकसान उठाना पड़ा। अब हम कॉर्पोरेट कंपनियों को यूनिफॉर्म सप्लाइ करते हैं। शुरुआती दौर में फैब्रिक प्रोक्योर करना ही अपनेआप में चुनौती थी। जिस दाम में लोग पूरा सामान ले सकते थे, उस दाम में हमें रॉ मटीरीअल लेना होता था। इन्फ्लैशन के कारण आज हमारा मार्जिन बहुत कम हो गया है। साथ ही, हमें रॉ मटीरीअल मंगवाने समय पूरे पैसे देना पड़ता है। पर हम जहां सप्लाइ देते हैं, वहां अधिकतर समय पेमेंट एक से तीन महीने बाद होती है। ऐसे में स्थायी कर्मचारी रखना चुनौतीपूर्ण है।”

मेरे करियर में चुनौतियां बहुत थीं, लेकिन एक महिला होने के कारण मुझे पक्षपात का सामना नहीं करना पड़ा। नोटबंदी, जीएसटी, कोविड और लॉकडाउन से गुजरना आसान नहीं रहा। लेकिन मैं इसे उद्यमी होने का संघर्ष कहूँगी। मेरी सबसे बड़ी बाधा बिक्री, खातों और अन्य भूमिकाओं के बारे में सीखने के लिए अपने दिमाग में अपने अवरोधों को ठीक करना था।

महिला संस्थापकों की दिक्कतें 

तस्वीर में अनुरूपा रॉय, साभार: मालविका धर

बिजनस का एक महत्वपूर्ण भाग है कि आप कैसे फंड रेज़ करते हैं या फाइनैन्स मैनेज करते हैं। फिनटेक प्लेटफ़ॉर्म फ़ाइब ने महिला उधारकर्ताओं की क्रेडिट आदतों के बारे में दिलचस्प जानकारी दी थी। शोध से पता चलता है कि महिलाएं ऋण उधारकर्ताओं के रूप में अधिक ज़िम्मेदारी दिखाती हैं। अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में उनका समय पर ईएमआई चुकाने की संभावना 10 फीसद अधिक होती है। लेकिन, इसके बावजूद मार्केट में महिलाओं को भरोसेमंद नहीं माना जाता। इसलिए लोन, उधर और पैसे लेन-देन के मामले में ये उम्मीद होती है कि वे नहीं समझेंगी या उनके समझने के लिए कंपनी में पुरुष समकक्ष का होना जरूरी है।

तस्वीर में अनुरूपा रॉय, साभार: मालविका धर

भारतीय कठपुतली कलाकार, कठपुतली डिजाइनर और कठपुतली थियेटर की निदेशक और दिल्ली स्थित कठपुतली थियेटर समूह कट-कथा कठपुतली कला ट्रस्ट की संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी अनुरूपा रॉय फेमिनिज़म इन इंडिया से कहती हैं, “मैंने जब संस्था शुरू किया था, तो लोग मानते थे कि ये सिर्फ एक शौक है। हमारे साथ महिलाएं और पुरुष दोनों काम कर रहे हैं जो लोगों के लिए आश्चर्य की बात है। ये और भी ज्यादा आश्चर्य की बात इसलिए था क्योंकि इससे पहले ऐसा काम कोई और संस्था नहीं कर रही थी। आज हम सरकारी स्कूल, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कॉलेज और संस्थाओं से जुड़कर काम कर रहे हैं और यही हमारा रेवेन्यू मॉडल है। लेकिन शुरुआती दौर में इसमें परेशानी हुई। साथ ही, सरकार की ओर से हमें कोई सहायता या छूट नहीं है, जैसे गैर सरकारी संस्थाओं को है। इसलिए, हमारे जैसे छोटे संस्थान के लिए ये एक बड़ी चुनौती है।”  

व्यवसाय में खुदकी मानसिकता से लड़ने की भी जरूरत

कहते हैं व्यवसाय सभी के लिए नहीं होता। इसके लिए सही सोच और अवसर के अलावा, अपने सोच को भी बिजनस ऑरिएन्टेड करने की जरूरत होती है। मीडिया संस्थान पिकल जार मीडिया की संस्थापक-सीईओ वसंती हरिप्रकाश इस विषय पर कहती हैं, “मेरे करियर में चुनौतियां बहुत थीं, लेकिन एक महिला होने के कारण मुझे पक्षपात का सामना नहीं करना पड़ा। नोटबंदी, जीएसटी, कोविड और लॉकडाउन से गुजरना आसान नहीं रहा। लेकिन मैं इसे उद्यमी होने का संघर्ष कहूँगी। मेरी सबसे बड़ी बाधा बिक्री, खातों और अन्य भूमिकाओं के बारे में सीखने के लिए अपने दिमाग में अपने अवरोधों को ठीक करना था। रेडियो, प्रिंट और टीवी में 2 दशकों से अधिक समय तक काम करने से मेरे पास कान्टैक्ट थे लेकिन ‘व्यवसाय’ और ‘राजस्व’ को हम बुरे शब्द मानते हैं या पत्रकार होने के नाते खुद को इनसे दूर रखते हैं। फिर आप इस रास्ते पर चलते हुए सीखते हैं कि इन्हें सीखना गलत नहीं है और वास्तव में अच्छा है। इस युग में, जहां मीडिया घराने खराब या बिना किसी राजस्व मॉडल के चलते ढह रहे हैं, अपने कई कर्मचारियों के जीवन और करियर को खतरे में डाल रहे हैं, नैतिक रूप से व्यवसाय बनाने में कुछ संतुष्टि और खुशी भी है। मुझे पता है कि वेतन देना है, उन लोगों का विश्वास बनाए रखना है, जिन्होंने अपने काम और परियोजनाओं को पूरा करने के लिए आप पर भरोसा किया है।”

मैंने जब संस्था शुरू किया था, तो लोग मानते थे कि ये सिर्फ एक शौक है। हमारे साथ महिलाएं और पुरुष दोनों काम कर रहे हैं जो लोगों के लिए आश्चर्य की बात है। ये और भी ज्यादा आश्चर्य की बात इसलिए था क्योंकि इससे पहले ऐसा काम कोई और संस्था नहीं कर रही थी।

महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से व्यवसाय और उद्यमिता का क्षेत्र अधिक समावेशी और प्रगतिशील जरूर बन रहा है। हालांकि, इस राह में चुनौतियां कम नहीं हैं। फंडिंग में लैंगिक असमानता, परिवार और व्यवसाय का संतुलन, और आर्थिक संसाधनों तक सीमित पहुंच जैसी बाधाएं महिलाओं को अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में अड़चन डालती हैं। फिर भी, महिलाओं का जज्बा और संघर्ष इस क्षेत्र को नई दिशा दे रहा है। महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यम न केवल अर्थव्यवस्था को गति दे रहे हैं, बल्कि लैंगिक समानता और सामाजिक बदलाव का प्रतीक भी बन रहे हैं। महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर अधिक सहयोग मिले। लोन, फंडिंग और अन्य संसाधनों तक आसान पहुंच के साथ-साथ महिलाओं को व्यवसाय प्रबंधन और नेतृत्व में प्रशिक्षण देने की जरूरत है। यह बदलाव न केवल महिलाओं के लिए लाभकारी होगा, बल्कि समाज और देश की आर्थिक स्थिति को भी सशक्त बनाएगा।

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