समाजख़बर 9 साल की बच्चियों की शादी की अनुमति देकर बाल विवाह और यौन शोषण को वैध बनाने की ओर बढ़ता इराक़

9 साल की बच्चियों की शादी की अनुमति देकर बाल विवाह और यौन शोषण को वैध बनाने की ओर बढ़ता इराक़

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों की बात करें तो अधिकांश देशों में विवाह के लिए न्यूनतम आयु पर कानून हैं। जैसे ईरान में महिलाओं के लिए शादी की उम्र 13 साल है तो  यमन में 15 साल और ट्यूनीशिया में 20 साल है।

हाल ही में इराक़ में एक नया कानून प्रस्तावित किया गया है, जो पुरुषों को 9 वर्ष की आयु तक की लड़कियों से शादी करने की अनुमति देगा। ये क़ानून देश में महिला अधिकारों पर एक बड़ा प्रहार माना जा रहा है। इस कानून के तहत लड़कियों के विवाह की कानूनी उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 9 वर्ष करने का प्रस्ताव रखा गया है, जो न केवल महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि ये छोटी बच्चियों के यौन और शारीरिक शोषण को क़ानूनी रूप से वैध बना देगा। इराक़ की शिया बहुल संसद में देश के ‘व्यक्तिगत स्थिति कानून’ में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया गया है।

इस विधेयक का उद्देश्य इस्लामी शरिया कानून के मुताबिक  विवाह की उम्र को कम करना है, और धार्मिक गुरुओं को पारिवारिक निर्णयों में ज़्यादा अधिकार देना है। हालांकि इस क़ानून के आलोचकों का कहना है कि इस  कानून के लागू होने से महिलाओं के अधिकारों को बड़ा झटका लग सकता है, ठीक वैसे ही जैसे तालिबान शासित अफगानिस्तान की नितियों में देखा जा सकता है। आलोचकों का तर्क है कि यह कानून महिलाओं के किसी भी तरह के निर्णय लेने के अधिकार को ख़त्म कर देगा, और ‘बचपन में बलात्कार को वैध’ बना देगा। इससे लड़कियों को उनके शिक्षा के अधिकार और आत्मनिर्भरता के अवसरों से वंचित होना पड़ेगा।

इराक़ में एक नया कानून प्रस्तावित किया गया है, जो पुरुषों को 9 वर्ष की आयु तक की लड़कियों से शादी करने की अनुमति देगा। इस कानून के तहत लड़कियों के विवाह की कानूनी उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 9 वर्ष करने का प्रस्ताव रखा गया है।

क्या कह रहे हैं मानवाधिकार कार्यकर्ताएं

तस्वीर साभार: Telegraph

इराक़ी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये क़ानून महिलाओं के लिए आपदा  है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यह कानून लड़कियों की कम उम्र में शादी करने की अनुमति देगा और  साथ ही सभी पारिवारिक निर्णय धार्मिक नेताओं के हाथों में सौंप देगा। इससे महिलाओं के तलाक, बच्चों की कस्टडी, और विरासत के अधिकार भी सीमित हो सकते हैं। गार्डीअन में छपी खबर अनुसार एक इराक़ी प्रतिनिधि का कहना है कि ये दुर्भाग्य है  कि इस कानून का समर्थन करने वाले पुरुष सांसद पितृसत्तात्मक तरीके से बात करते हैं और पूछते हैं कि नाबालिग से शादी करने में क्या गलत है? उनका कहना है कि ऐसे लोगों की सोच बेहद संकीर्ण है। यह विधेयक युवा लड़कियों को यौन और शारीरिक हिंसा के अधिक खतरे में डालता है, और इससे लड़कियों  को स्कूल से निकालना भी आसान हो जाएगा, जिससे वे शिक्षा से वंचित रह जाएंगी। वहीं शिया पार्टियों के गठबंधन के नेतृत्व वाली रूढ़िवादी सरकार का तर्क है कि उनका लक्ष्य लड़कियों को ‘अनैतिक संबंधों’ से बचाने के प्रयास में प्रस्तावित संशोधन को पारित करना है।

कानून और व्यक्तिगत जीवन में दखल

यह विधेयक नागरिकों को पारिवारिक मामलों पर निर्णय लेने के लिए धार्मिक प्राधिकारियों या सिविल न्यायपालिका में से किसी एक को चुनने की अनुमति भी देगा। विधेयक के अनुसार, विवाह करने वाले जोड़ों को अपने धार्मिक जुड़ाव के आधार पर, लागू होने वाले कानूनों का भी चयन करना होगा। विकल्पों में शिया या सुन्नी मुस्लिम गुरुओं के माध्यम  से विकसित धार्मिक कानून शामिल हैं, जिन्हें लागू करने के लिए सिविल कोर्ट बाध्य होंगे। अगर कोई जोड़ा इस बात पर सहमत नहीं हो पाता है कि वो कौन सा कानूनी कोड चुनना चाहता है, तो कोर्ट पति के धर्म के कानूनों को लागू करेगा। इराक़ी अधिकार समूह और कार्यकर्ता इस संशोधन का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। अलग-अलग दलों के 15 से अधिक महिला संसद सदस्यों का एक समूह ने एकजुट होकर इस विधेयक का विरोध किया है। इससे पहले भी संसद ने 2014 और फिर 2017 में व्यक्तिगत स्थिति कानून में इसी तरह के संशोधन प्रस्तावित किए थे, पर तब दोनों ही बार संशोधन पारित नहीं हो पाया था। लेकिन वर्तमान में संसद में धार्मिक समूहों के मजबूत बहुमत होने के कारण यह विधेयक पारित की गई है।

गार्डीअन में छपी खबर अनुसार एक इराक़ी प्रतिनिधि का कहना है कि ये दुर्भाग्य है  कि इस कानून का समर्थन करने वाले पुरुष सांसद पितृसत्तात्मक तरीके से बात करते हैं और पूछते हैं कि नाबालिग से शादी करने में क्या गलत है?

कहां है महिलाओं के अधिकार

इस नियम के पारित होने से धार्मिक  क़ानून लागू होगा जिसके तहत तलाकशुदा महिलाओं की सुरक्षा भी लगभग ख़त्म हो जाएगी। जाफ़री स्कूल ऑफ लॉ के अनुसार अगर कोई महिला तलाक लेती है तो उसे उसके पति के घर में या पति की तरफ़ से भरण-पोषण का कोई अधिकार नहीं मिलता है। साथ ही, बच्चे केवल दो साल तक उसके साथ रह सकते हैं। वहीं मौजूदा व्यक्तिगत स्थिति कानून के तहत, अगर पति तलाक का अनुरोध करता है, तो पत्नी को पति के खर्च पर तीन साल तक अपने वैवाहिक घर में रहने और दो साल तक पति से मिलने वाले भरण-पोषण मिलने का अधिकार है। अगर पत्नी तलाक का अनुरोध करती है, तो परिस्थितियों के आधार पर न्यायाधीश उसे इनमें से कुछ लाभ दे सकता है। एक गैर-सरकारी संगठन इक्वालिटी नाउ के मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका के प्रतिनिधि कहते हैं कि इराक़ सहित इस क्षेत्र में सभी धार्मिक पारिवारिक कानूनों के साथ समस्या यह है कि इनमें  व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के ज़्यादातर पहलुओं को धार्मिक संस्थाओं और पुरुष मौलवियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो पितृसत्तात्मक मानसिकता को दिखाता है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में इराक़ में 3.3 मिलियन बाल वधुएँ थीं, जिनमें से लगभग 9,17,200 की शादी 15 वर्ष की आयु से पहले हुई थी।

कानून के आने से बाल विवाह और बाल बलात्कार वैध होगा

ऐतिहासिक रूप से देखें तो 1959 में इराक़ में एक प्रगतिशील कानून ‘कानून 188’ पारित किया गया था, जिसने विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष निर्धारित की थी और इस क़ानून में धार्मिक भेदभाव की भी कोई जगह नहीं है। वहीं 2021 के संयुक्त राष्ट्र के एक रिपोर्ट से पता चलता है कि इराक़ में पिछले दो दशकों में बाल विवाह में वृद्धि देखी गई है। वहीं यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में इराक़ में 3.3 मिलियन बाल वधुएं थीं, जिनमें से लगभग 9,17,200 की शादी 15 वर्ष की आयु से पहले हुई थी। यूनिसेफ ने बताया कि इराक़ में 28 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है, जबकि अपंजीकृत विवाहों में से 22 प्रतिशत में 14 वर्ष से कम आयु की लड़कियां शामिल थीं। इस विधेयक के आने से ये शादियां  क़ानूनी रूप से मान्य हो जाएंगी। वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच की मार्च 2024 की रिपोर्ट से पता चलता है कि इराक में अपंजीकृत विवाह पहले से ही बाल विवाह को बढ़ावा दे रही है। इराक़ में पिछले 20 वर्षों में बाल विवाह की दरें बढ़ रही हैं ।

तस्वीर साभार: Business Standard

रिपोर्ट के अनुसार अपंजीकृत विवाह के  कारण महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें उन्हें  मिलने वाली सरकारी सेवा, अपने बच्चों के जन्म को पंजीकृत करने और अपने अधिकारों का दावा करने की क्षमता पर बहुत हानिकारक प्रभाव शामिल है। सिविल विवाह प्रमाणपत्र के बिना, महिलाएं और लड़कियां अस्पतालों में बच्चे को जन्म देने में असमर्थ होती है, जो अपने आप में स्वास्थ्य सेवा में असमानता और लिंग आधारित भेदभाव को दिखता है। ऐसे विवाह की वजह से महिलाओं को इमरजेंसी डिलीवरी जैसी सेवाओं की सुविधा भी नहीं मिल पाती, जिस कारण महिलाओं को घर पर ही बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इससे चिकित्सा जटिलताओं का जोखिम बढ़ जाता है, जो माँ और उसके बच्चे दोनों के जीवन को खतरे में डालता है। बता दें कि नवजात  शिशु और युवा महिलाएं गर्भावस्था की कुछ जटिलताओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होती हैं।

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों की बात करें तो अधिकांश देशों में विवाह के लिए न्यूनतम आयु पर कानून हैं। जैसे ईरान में महिलाओं के लिए शादी की उम्र 13 साल है तो  यमन में 15 साल और ट्यूनीशिया में 20 साल है। लेकिन इन कानूनों के अस्तित्व में होने के बावजूद कुछ परिवार बाल विवाह  करने के लिए धार्मिक कानूनों का सहारा लेते हैं

क्या बाल विवाह से बच पाएंगी बच्चियां

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों की बात करें तो अधिकांश देशों में विवाह के लिए न्यूनतम आयु पर कानून हैं। जैसे ईरान में महिलाओं के लिए शादी की उम्र 13 साल है तो यमन में 15 साल और ट्यूनीशिया में 20 साल है। लेकिन इन कानूनों के अस्तित्व में होने के बावजूद कुछ परिवार बाल विवाह  करने के लिए धार्मिक कानूनों का सहारा लेते हैं, जो कम उम्र में शादी की अनुमति देता है। ऐसी शादी के बाद लड़कियों को शादी की कानूनी उम्र तक पहुंचने तक आधिकारिक पंजीकरण को नहीं हो पाता है। इससे बाल वधुओं को मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से नुकसान पहुंचता है। बाल विवाह के कारण लड़कियों को शिक्षा में रूकावट, प्रजनन क्षमता में असंतुलन और गरीबी के दुष्चक्र का सामान करना पड़ता है।

तस्वीर साभार: Fox News

लड़कियों की सुरक्षा के लिए विवाह के लिए न्यूनतम कानूनी आयु निर्धारित करना और उसे लागू करना आवश्यक है, क्योंकि बाल विवाह की प्रथा से लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक प्रभावित होती हैं। बाल विवाह की ये स्थिति तब है, जबकि इसे रोकने के लिए अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समझौते मौजूद हैं जो बच्चों को बाल विवाह से बचाते हैं, जिनमें मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948), महिलाओं के खिलाफ़ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन का सम्मेलन (1979), बाल अधिकारों पर सम्मेलन (1989), और बाल अधिकारों और कल्याण पर अफ्रीकी चार्टर (1990) शामिल हैं।

इराक़ी अधिकार समूह और कार्यकर्ता इस संशोधन का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। अलग-अलग दलों के 15 से अधिक महिला संसद सदस्यों का एक समूह ने एकजुट होकर इस विधेयक का विरोध किया है।

इराक़ ने भी महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) को 1986 में मंज़ूर किया था। लेकिन प्रस्तावित विधेयक इस कन्वेंशन का भी उल्लंघन करता है। यह विधेयक महिलाओं और लड़कियों को उनके लिंग के आधार पर उनके अधिकारों से वंचित करता है। यह संशोधन बाल अधिकारों पर कन्वेंशन का भी उल्लंघन करता है, जिसे इराक़ ने 1994 में मंज़ूर किया था। देखा जाए तो इस समय इराक एक महत्वपूर्ण विधायी बदलाव के कगार पर है, जिससे पुरुषों को छोटी लड़कियों से विवाह करने की अनुमति मिल सकती है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार इराक़ के इस फैसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक निंदा हुई है। ह्यूमन राइट्स वॉच और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इस कानून के मसौदे पर गहरी चिंता व्यक्त की है। यह कह सकते हैं कि इराक़ में प्रस्तावित यह कानून देश को पिछली सदी की ओर ले जाने वाला कदम माना जा रहा है, जहां लड़कियों को शादी के बंधन में बांधकर उनके अधिकारों का हनन किया जाएगा। समय है कि इराकी संसद इस विधेयक के दुष्परिणामों पर गंभीरता से विचार करे और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अपने कानूनों को बनाए रखे, ताकि इराकी महिलाओं और लड़कियों को उनका उचित अधिकार और स्वतंत्रता मिल सके।

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