समाजख़बर भारत में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और मानवाधिकारों का हनन जारी: ह्यूमन राइट्स वॉच

भारत में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और मानवाधिकारों का हनन जारी: ह्यूमन राइट्स वॉच

वैश्विक स्तर पर कई बार भारत के खिलाफ आरोप रहे हैं कि यह हाशिये पर रह रहे समुदायों की मानवाधिकारों का हनन कर रहे हैं। आज भारत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ होने का दावा कर रहा है। लेकिन वहीं दूसरी ओर गलत सूचनाओं का प्रकोप बढ़ चुका है और आए दिन मीडिया संस्थानों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के घर या दफ्तरों में छापे पड़ रहे हैं। ऐसे में यह और भी जरूरी है कि सरकारी संस्थाएं लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करे। इससे पहले भारत में न्याय और मानवाधिकार गहरी चिंता का कारण रही है। हाल फिलहाल में घटित घटनाएं और तमाम रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा कर रही है। हालांकि सरकार इस बात से उलट बयान देती रही हैं। लेकिन मानवाधिकार के मामले में केंद्र सरकार को एक बार फिर से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी वर्ल्ड रिपोर्ट 2024 में कहा कि साल 2023 में, भारतीय जनता पार्टी सरकार की भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी नीतियों के कारण अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई, जिससे भय का व्यापक माहौल बना और सरकार के आलोचकों पर भयावह प्रभाव पड़ा।

रिपोर्ट के अनुसार सरकार की नीतियों के कारण साम्प्रदायिक हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। मणिपुर में हुआ संघर्ष भी उसी का एक उदाहरण है। ह्यूमन राइट्स वॉच की कार्यकारी निदेशक तिराना हसन का कहना है कि मानवाधिकारों पर लगातार हमला हो रहा है। सरकार अपने अल्पकालिक राजनीतिक फ़ायदे के लिए अपने दायित्वों से मुंह मोड़ रही है ताकि उनकी कुर्सी पर किसी भी तरह का संकट ना आये।

कैसे मानवाधिकारों का हुआ हनन

यह संगठन करीब 100 से अधिक देशों में सरकारों द्वारा लिये गए फैसलों और अपनाई जाने वाली नीतियों पर नज़र रखता है। इसी आधार पर अपनी वार्षिक विश्व रिपोर्ट तैयार की जाती है। भारत की स्थिति को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का लोकतंत्र निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है। अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा किया जाने वाला दमन बढ़ गया है। जांच एजेंसियो सहित स्वतन्त्र संस्थानों को ख़त्म किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने डिजिटल सेवा संबंधी सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया ताकि सामाजिक और आर्थिक सेवाओं का विस्तार किया जा सके। लेकिन देश में बड़े पैमाने पर इंटरनेट पर पाबंदियां हुई, निजता और डेटा सुरक्षा की कमी भी देखी गई।

भारत की स्थिति को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का लोकतंत्र निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है। अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा किया जाने वाला दमन बढ़ गया है।

इस रिपोर्ट में कनाडा के प्रधानमंत्री द्वारा सितम्बर 2023 में भारत पर लगाए गए आरोपों का भी जिक्र है। अमेरिका द्वारा नवम्बर 2023 में गिरफ्तार किये गए सरकार के एक अधिकारी का भी उल्लेख है, जिस पर एक अलगाववादी सिख नेता की हत्या करने के लिए की गई असफल कोशिश का आरोप है। कानून-व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी सबंधित राज्य सरकार की होती है। इस रिपोर्ट का कहना है कि भाजपा शासित राज्यों में पुलिस अल्पसंख्यकों के खिलाफ किये गए अपराधों की समुचित जांच करने में विफल रही है। यही नहीं प्रशासनिक अधिकारियों ने पीड़ित समुदायों और साथ ही ऐसे उत्पीड़नों का विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ़ सीधे दंडात्मक कार्रवाई भी की है।

इस रिपोर्ट ने बच्चों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, आदिवासी समूहों और दलितों के संरक्षण के लिए बनी संवैधानिक और वैधानिक संस्थाओं के स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाने का भी आरोप लगाया है। यह पहली बार नहीं है जब भारत को मानवाधिकार के मुद्दे पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा हो। इससे पहले भी कई बार भारत को मानवाधिकारों के हनन के आरोप झेलने पड़े हैं।

रिपोर्ट इस बात की ओर भी ध्यान खींचती है कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर की वायरल हुए वीडियो की घटना पर बयान देने में ही तीन महीने लगा दिए थे। सरकार की लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा था कहा कि स्थिति राज्य पुलिस के नियंत्रण में नहीं है।

मणिपुर की हिंसा का ज़िक्र

बीते वर्ष, भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई और अल्पसंख्यक कुकी समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ था। इस संघर्ष को सरकार समय से नियंत्रित नहीं कर पाई थी। इसमें करीब 200 से अधिक लोगों की जान चली गई और हज़ारों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। रिपोर्ट में 4 मई के उस वीडियो का भी जिक्र है जिसमें मैतेई भीड़ दो कुकी महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन हिंसा करती नज़र आई थी। 

तस्वीर साभार: India Today

नागरिक समाज के कार्यकर्त्ताओं के आरोपों का हवाला देते हुए यह रिपोर्ट बताती है कि भाजपा के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हिंदू-बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के हिंसक समूहों को राजनीतिक संरक्षण दिया और कुकी समुदाय पर मादक पदार्थों की तस्करी में संलिप्तता एवं म्यांमार के शरणार्थियों को आश्रय देने का आरोप लगाकर बदनाम किया। इससे दोनों समुदायों के बीच विभाजन को बढ़ावा मिला। रिपोर्ट इस बात की ओर भी ध्यान खींचती है कि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर की वायरल हुए वीडियो की घटना पर बयान देने में ही तीन महीने लगा दिए थे। सरकार की लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना पड़ा था कहा कि स्थिति राज्य पुलिस के नियंत्रण में नहीं है।

जम्मू और कश्मीर में जारी रही समस्याएं

तस्वीर साभार: Firstpost

रिपोर्ट बताती है कि भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और अन्य अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना जारी रखा। वहां से पूरे साल सुरक्षा बलों द्वारा गैर-न्यायिक हत्याओं की रिपोर्टें सामने आती रहीं। इसमें प्रमुख कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज़, पत्रकार इरफ़ान मेहराज सहित और भी कई कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर आरोप और केस का जिक्र किया गया।

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में महिला पहलवानों के साथ सरकार के द्वारा किये गए बर्ताव को भी जगह दी है। रिपोर्ट का कहना है कि सरकार ने सत्तारूढ़ दल के सांसद बृज भूषण शरण सिंह पर लगे यौन शोषण के आरोपों की जांच करने में देरी की।

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर शिकंजा

रिपोर्ट के अनुसार सरकारी व्यवस्था ने नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं, स्वतंत्र पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों को धमकियों और राजनीति से प्रेरित आरोपों के जरिए चुप कराने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसमें राजनीतिक प्रतिपक्षियों को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक जरिया है। रिपोर्ट बताती है कि सरकार ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का पालन न करते हुए वर्ष 2022 में पूरी दुनिया में सबसे अधिक बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई। ये पाबंदियां सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों को अधिक प्रभावित करती हैं। राशन वितरण से लेकर मनरेगा की उपस्थिति दर्ज कराने तक के लिए भी आज इंटरनेट की ज़रूरत पड़ती है। मणिपुर में महिलाओं के साथ हो रही यौन हिंसा के बारे में देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों को तब पता चला था जब वहां इंटरनेट पर लगी पाबंदी को हटाया गया था।

महिला पहलवानों के मामले में सरकार का रवैया

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में महिला पहलवानों के साथ सरकार के द्वारा किये गए बर्ताव को भी जगह दी है। रिपोर्ट का कहना है कि सरकार ने सत्तारूढ़ दल के सांसद बृज भूषण शरण सिंह पर लगे यौन शोषण के आरोपों की जांच करने में देरी की। अप्रैल महीने में सात महिला पहलवानों ने पुलिस में बृज भूषण के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने इस शिकायत के बाद किसी भी तरह की जांच शुरू नहीं की।

तस्वीर साभार: Hindustan Times

जब महिला पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की, उसके बाद ही पुलिस ने जांच शुरू की थी। जंतर-मंतर पर धरना दे रही महिला पहलवानों को धरनास्थल से गिरफ्तार कर लिया था। महिला पहलवान साक्षी मलिक ने निराश होकर अब कुश्ती से सन्यास ले लिया है। तो वहीं विनेश फोगाट ने हताश होकर अपना खेल रत्न वापस लौटा दिया है।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का स्थान लगातार कमजोर होता जा रहा है। वर्ष 2022 में भारत, विश्व प्रेस स्वतंत्रता की सूची में 150वें पायदान पर था। वर्ष 2023 में भारत लुढ़क कर 161वें स्थान पर आ पहुंचा है।

सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहा है देश

रिपोर्ट में सांप्रदायिक हिंसा के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें हरियाणा के नूंह जिले में एक हिंदू जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठने का जिक्र है, जहां हिंसा के बाद सरकारी तंत्र ने मुसलामानों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में सैकड़ों मुसलामानों की संपत्तियों को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया था और अनेक मुस्लिम व्यक्तियों को हिरासत में लिया था। यह एक तरफ़ा कार्रवाई थी। इन कार्रवाहियों का संज्ञान लेते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से सवाल किया था कि क्या वह ‘नृजातीय सफाया’ कर रही है? गौरतलब है कि पिछले वर्ष ऐसे कई सांप्रदायिक घटनाएं देशभर में हुई थीं।

मीडिया की आज़ादी पर संकट

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का स्थान लगातार कमजोर होता जा रहा है। वर्ष 2022 में भारत, विश्व प्रेस स्वतंत्रता की सूची में 150वें पायदान पर था। वर्ष 2023 में भारत लुढ़क कर 161वें स्थान पर आ पहुंचा है। फरवरी महीने में आयकर विभाग के अधिकारियों ने बीबीसी के कार्यालयों पर छापा डाला था। रिपोर्ट में बताया गया कि यह साफ तौर पर दो-भाग वाली उस डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण के खिलाफ बदले की कार्रवाई थी जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान करने में विफलता को उजागर किया गया था। बता दें कि दरअसल बीबीसी ने जनवरी 2023 में ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ शीर्षक से दो भागों में एक डॉक्यूमेंट्री जारी की थी।

इसमें तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी की भूमिका पर चर्चा की गई थी। केंद्र सरकार ने देश के सूचना प्रौद्योगिकी नियमों से मिली आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए जनवरी में इस बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर भारत में पाबंदी लगा दी थी। वहीं अक्टूबर 2023 में, समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक, के कार्यालय और इसके पत्रकारों और लेखकों के घरों पर पुलिस ने छापा डाला। यह छापेमारी न्यूज़क्लिक द्वारा चीन से अवैध धन लेने के आरोपों पर की गई थी। हालांकि, वेबसाइट इससे इनकार करती रही है। इस रिपोर्ट में सामाजिक कार्यकर्त्ता तीस्ता सीतलवाड के घर पर डाले गए छापे का भी जिक्र किया गया है।

सुरक्षा और कानून में कहां हुई चूक

रिपोर्ट में सुरक्षा बलों के द्वारा की गई ज्यादतियों का भी उल्लेख किया है। माओवादी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ की जाने वाली कार्रवाहियों में ग्रामीणों के साथ किये जाने वाले सुलूक का भी जिक्र है। रिपोर्ट के अनुसार सरकारी तंत्र ने अक्सर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादी या माओवादी समर्थक बताकर बदनाम करने का प्रयास किया है। रिपोर्ट इस बात की ओर भी ध्यान खींचती है कि कैसे भारत में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम से जुड़ा कानून ठीक से लागू नहीं किया गया है। इसके कारण मूल रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं बदनामी और बदले की कार्रवाई के डर से न्याय से वंचित रह जाती हैं। भारत के सन्दर्भ में यह रिपोर्ट बाल अधिकार, विकलांगता अधिकार, शरणार्थियों के अधिकार और लैंगिक पहचान से जुड़े विषयों पर भी बात करती है।

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