भारत में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा आज भी गंभीर बना हुआ है। आज़ादी के इतने सालों बाद भी महिलाओं की स्थिति में बहुत कम बदलाव आया है। चाहे घर की चार दीवारी हो या बाहरी दुनिया, महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं। यदि हम देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां महिलाओं की सुरक्षा पर कई सवाल खड़े होते हैं। यहां की सख्त सुरक्षा व्यवस्थाओं के बावजूद महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं। महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से दिल्ली में महिला आयोग की स्थापना की गई थी। इस आयोग का उद्देश्य महिलाओं से संबंधित हर तरह की समस्या का समाधान करना और उन पर होने वाले अपराधों के खिलाफ़ कार्रवाई करना है।
इसके अंतर्गत घरेलू हिंसा, धोखाधड़ी, यौन उत्पीड़न, अपहरण जैसे अपराधों पर कार्रवाई की जाती है। बावजूद इसके, पिछले ग्यारह महीनों से महिला आयोग में अध्यक्ष का पद खाली है। ऐसे में सवाल उठता है कि आयोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन किस प्रकार कर रहा है, और क्या महिलाओं को समय पर न्याय मिल पा रहा है? वहीं हाल ही में महिला आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि दिल्ली महिला आयोग ने सभी संविदा कर्मचारियों की सेवाएं तत्काल प्रभाव से बंद कर दी हैं। इससे आयोग में शिकायत दर्ज कराने आने वाली समस्याओं से गुजर रही महिलाओं के मामलों पर काम कैसे और कितनी तेजी से हो रहा है, यह एक बड़ा प्रश्न है।
एक युवक, जिसके साथ मैं रिश्ते में थी, उसने मेरे विश्वास का गलत फायदा उठाया। उसने मेरे साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए और अब इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे रहा है। मेरे परिवार में मेरी माँ के अलावा कोई मेरा साथ नहीं दे रहा है। समाज भी मुझे ही गलत समझता है।
युवा लड़कियों की समस्याएं
इसी विषय को जानने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने जमीनी स्तर पर महिलाओं की समस्याओं को जानने की कोशिश की। 17 वर्षीय प्रियांशी, जो पिछले पांच महीनों से न्याय के लिए महिला आयोग के चक्कर काट रही हैं, कहती हैं, “पिछले पांच महीनों से भटक रही हूं। लेकिन कोई भी सही से जवाब नहीं देता है। महिला आयोग का कहना है कि हम आपसे पंद्रह से बीस दिन में बात करेंगे, लेकिन ये समय मेरे लिए बहुत लंबा है। एक-एक दिन गुजारना मेरे लिए भारी पड़ रहा है। कानून व्यवस्था देखकर मेरा मन उदासीन हो गया है। इस उम्र में मुझे अपने करियर पर ध्यान देना चाहिए था। लेकिन मुझे महिला आयोग और कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। एक युवक, जिसके साथ मैं रिश्ते में थी, उसने मेरे विश्वास का गलत फायदा उठाया। उसने मेरे साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए और अब इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे रहा है। मेरे परिवार में मेरी माँ के अलावा कोई मेरा साथ नहीं दे रहा है। समाज भी मुझे ही गलत समझता है।”
अपराधों में लगातार वृद्धि और महिलाओं पर दबाव
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराधों के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2020 में ऐसे मामलों की संख्या 10,093 थी, जबकि 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 14,277 हो गया। यह उस समय की बात है जब कोरोना महामारी का प्रकोप था। 2022 में यह संख्या थोड़ी कम होकर 14,247 हो गई, लेकिन दिल्ली महिलाओं के लिए आज भी सबसे असुरक्षित शहरों में से एक है। आंकड़ों में दर्ज होने वाले अपराधों की संख्या मात्र आधा सच बताती है क्योंकि बहुत सी महिलाएं सामाजिक और नैतिक दबाव के कारण अपराधों के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पातीं। समाज में जो महिलाएं कोर्ट जाती हैं, उन्हें अच्छा नहीं समझा जाता। हमारे समाज में महिलाओं को बचपन से ही सहने और परिवार का मान-सम्मान बनाए रखने की शिक्षा दी जाती है। जो महिलाएं चुपचाप शोषण सहती हैं, उन्हें ही अक्सर ‘आदर्श महिला’ का दर्जा दिया जाता है।
महिला आयोग और कानूनी सहारे की कमी
लेकिन कुछ महिलाएं इस सामाजिक दबाव को झेलते हुए भी अपने स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़ती हैं। परिवार, समाज, और रिश्तेदारों के तानों को सहते हुए वे कानूनी मदद लेती हैं। फिर भी, कानून उन्हें कितना समर्थन देता है, यह एक बड़ा सवाल है। 25 वर्षीय कोमल राजस्थान की रहने वाली हैं। वह फिलहाल दिल्ली के आनंद पर्वत इलाके में रहती हैं। वह बताती हैं, “जब मैं पांचवी कक्षा में थी, तब मेरी शादी कर दी गई थी। जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मुझे किसी और से प्रेम हो गया। मेरे पहले पति के साथ मेरा रिश्ता जबरदस्ती का लगता था। इसलिए मैंने अपने परिवार के खिलाफ़ जाकर प्रेमी को चुना और हम साथ रहने लगे। इससे मुझे एक बच्चा भी हुआ। लेकिन बाद में मेरा प्रेमी भी मुझे धोखा देकर किसी और से शादी कर ली। अब वह जब भी मेरे पास आता है, तो मेरे साथ शारीरिक हिंसा करता है।” वह कहती हैं, “इस मामले को लेकर मैं पिछले तीन सालों से महिला आयोग के चक्कर लगा रही हूं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आयोग का कहना है कि मेरा कोई केस नहीं बनता क्योंकि मैंने अपने पति से तलाक लिए बिना ही प्रेमी के साथ रहना शुरू कर दिया। बचपन में हुई शादी की तो वैसे भी मान्यता नहीं है। ऊपर से किसी महिला के साथ हो रहे अपराध को भी देखना चाहिए।”
घरेलू हिंसा और आर्थिक शोषण में जीती महिलाएं
घरेलू हिंसा का मुद्दा भारतीय समाज में महिलाओं की असुरक्षा का एक बड़ा कारण है। कई महिलाएं आज भी घर की चार दीवारी के अंदर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक शोषण का सामना कर रही हैं। दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामले लगातार सामने आते हैं। इसमें कई बार महिलाओं की जान भी चली जाती है। यह स्थिति न केवल ग्रामीण इलाकों में बल्कि शहरी इलाकों में भी आम है। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, वर्ष 2021 के पहले आठ महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में पिछले वर्ष की तुलना में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। समाज में लैंगिक असमानता, पितृसत्तात्मक सोच, और रूढ़िवादी मान्यताएं महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुख्य कारणों में से एक हैं।
इस मामले को लेकर मैं पिछले तीन सालों से महिला आयोग के चक्कर लगा रही हूं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आयोग का कहना है कि मेरा कोई केस नहीं बनता क्योंकि मैंने अपने पति से तलाक लिए बिना ही प्रेमी के साथ रहना शुरू कर दिया। बचपन में हुई शादी की तो वैसे भी मान्यता नहीं है। ऊपर से किसी महिला के साथ हो रहे अपराध को भी देखना चाहिए।
60 वर्षीय कोमल, जो दिल्ली के पलवल इलाके में रहती हैं, बताती हैं, “पति के निधन के बाद बेटा और बहु मुझे छोड़ कर चले गए। मैं अपनी जीविका के लिए रेहड़ी लगाकर पैसे कमाती हूं। लेकिन मेरा बेटा और बहु उन पैसों को भी ले लेते हैं। जब मैं पैसे देने से मना करती हूं तो मेरे साथ बुरी तरह मार-पीट करते हैं। बेटा-बहु के खिलाफ़ कई बार पुलिस के पास गई, शिकायत भी दर्ज करवाई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब महिला आयोग में शिकायत की है, लेकिन यहां भी मुझे कोई उचित जवाब नहीं मिल रहा है। महिला आयोग का कार्यालय मेरे घर से भी बहुत दूर है और इस उम्र में रोज यहां आना मेरे लिए मुश्किल है।”
बढ़ता अपराध और दिल्ली महिला आयोग की चुनौतियां
देश में महिलाओं के खिलाफ़ अपराध का दायरा केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में देशभर में महिलाओं के खिलाफ 4,45,256 आपराधिक मामले दर्ज किए गए। इनमें हत्या, अपहरण, और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। 2021 की तुलना में ये आंकड़े बढ़े हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में दिल्ली महिला आयोग का कार्यकारी न होना, महिलाओं और हाशिये के समुदायों के लिए मुश्किल हो सकता है। दिल्ली महिला आयोग, जो कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक प्रमुख संस्था है, पिछले ग्यारह महीनों से अध्यक्ष पद के बिना काम कर रही है। आयोग की सदस्य वंदना सिंह बताती हैं, “अभी जितने भी केस आयोग में दर्ज हो रहे हैं, उनपर मदद की जा रही है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रबंधन ठप हो गया है और अन्यत्र स्थानांतरित किया गया है। पहले जब कोई शिकायतकर्ता महिला 181 पर कॉल करती थी, तो हमारी टीम काउंसलर उसके पास जाकर सहायता करती थी। लेकिन अब ये व्यवस्था टूट चुकी है।”
अभी जितने भी केस आयोग में दर्ज हो रहे हैं, उनपर मदद की जा रही है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रबंधन ठप हो गया है और अन्यत्र स्थानांतरित किया गया है। पहले जब कोई शिकायतकर्ता महिला 181 पर कॉल करती थी, तो हमारी टीम काउंसलर उसके पास जाकर सहायता करती थी। लेकिन अब ये व्यवस्था टूट चुकी है।
फेमिनिज़म इन इंडिया ने ईमेल के माध्यम से दिल्ली महिला आयोग में पिछले कई महीनों से अध्यक्ष न होने और बिना अध्यक्ष के कामकाज की स्थिति पर जवाब मांगने की कोशिश की। लेकिन, हमें अब तक इसपर कोई अधिकारिक जवाब नहीं मिला है। आयोग के समस्याओं पर वंदना सिंह आगे बताती हैं, “फंड की कमी के कारण हमारे कर्मचारियों को पिछले साल नवंबर से वेतन नहीं मिला है। आयोग की स्थिति इतनी खराब है कि यदि स्पीड पोस्ट से कोई पत्र भेजना हो, तो उसके लिए भी पैसे नहीं हैं। आयोग की मौजूदा हालत को देखते हुए उम्मीद की जाती है कि जल्द से जल्द खाली पदों पर नियुक्तियां होंगी, क्योंकि यह संस्था महिलाओं के संवेदनशील मुद्दों पर काम करती है।” दिल्ली महिलाओं के लिए एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन भारत में महिलाओं की सुरक्षा एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है, जिसे तत्काल हल किए जाने की आवश्यकता है। समाज में महिलाओं की स्थिति को सुरक्षित बनाने के लिए कानूनी और सामाजिक स्तर पर ठोस प्रयास जरूरी हैं। चाहे वो घरेलू हिंसा हो, यौन उत्पीड़न, या आर्थिक शोषण- महिलाओं को निडर और स्वतंत्र जीवन जीने के लिए एक सुरक्षित माहौल चाहिए।