इतिहास शमीभा पाटिल: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकमात्र ट्रांसजेंडर उम्मीदवार

शमीभा पाटिल: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकमात्र ट्रांसजेंडर उम्मीदवार

शमीभा पाटिल 2019 से वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) की सदस्य हैं। वह 2007 से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), तुलजापुर में अतिथि संकाय सदस्य भी हैं और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की वकालत करने के लिए गहराई से प्रतिबद्ध हैं।

भारतीय राजनीति हमेशा से एक  पुरुष-प्रधान क्षेत्र रहा है। ऐसे में महिलाओं का आगे आना एक उम्मीद की किरण बांधता है। लेकिन, आज भी ट्रांस समुदाय का राजनीति में सक्रिय भागीदारी नहीं दिखती है। एक ऐसे समाज में जहां ट्रांस समुदाय आज भी अपने अस्तित्व और लैंगिक पहचान को लेकर ढेर सारे सवालों से जूझ रहा है, वहां किसी भी ट्रांस समुदाय के व्यक्ति का राजनीति में आना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन, इन सभी चुनौतियों को पार कर के जिन्होंने महाराष्ट्र के राजनीति में अपना नाम दर्ज किया है, वो है शमीभा पाटिल। 39 वर्षीय शमीभा को उम्मीदवार के रूप में वंचित बहुजन आघाडी (वीबीए) ने रावेर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा है। वह महाराष्ट्र  की पहली ट्रांस महिला उम्मीदवार हैं । आज भी हमारा समाज ट्रांसजेंडर समुदाय के हिस्सेदारी को जल्दी स्वीकार नहीं करना चाहता। लेकिन, आज ट्रांस व्यक्ति समाज के पूर्वाग्रहों और चुनौतियों के बावजूद हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं। वे अपने काम और काबिलियत के दम पर हर क्षेत्र में परचम लहरा रहे हैं।

हालांकि भारतीय परिदृश्य में राजनीति किसी के लिए भी आसान नहीं लेकिन ट्रांस महिलाओं के लिए राजनीति में आना और भी मुश्किल हो जाता है। भारतीय राजनीति में हम जब ‘ट्रांसजेंडर समुदाय’ में खासकर ‘ट्रांस महिलाओं’ की हिस्सेदारी को लेकर बात करते हैं, तब कुछ चेहरा उभर कर हमारे सामने आता है। उदाहरण के तौर पर बॉबी पार्षद, शबनम मौसी, अनन्या कुमारी अलेक्स, काजल नायक, एम.राधा, भवानी माँ वाल्मीकि, स्नेहा काले, अश्विती राजप्‍पन,आदि। ‘ट्रांसजेंडर समुदाय’ को हमेशा ही एकतरह से हाशिये का समुदाय बनाकर रखा गए है और अलगाव का बोध कराया गया है। लेकिन फिर भी कई ट्रांस महिलाओं ने समाजिक रूढ़िवाद को तोड़ते हुए लैंगिक असामनता को दरकिनार करते हुए राजनीति में अपनी जगह बनाई है। हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव रहा है। लेकिन वे रूकी नहीं।  

39 वर्षीय शमीभा को उम्मीदवार के रूप में वंचित बहुजन आघाडी (वीबीए) ने रावेर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा है। वह महाराष्ट्र  की पहली ट्रांस महिला उम्मीदवार हैं ।

शमीभा का जन्म और कामकाज 

शमीभा का जन्म महाराष्ट्र के फैज़पुर में हुआ। उन्होंने महाराष्ट्र विश्वविद्यालय से ‘मराठी साहित्य’ में स्नातक और उन्होंने कवित्री बहिनाबाई चौधरी उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय जलगांव से मराठी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है। शमीभा पाटिल 2019 से वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) की सदस्य हैं। वह 2007 से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), तुलजापुर में अतिथि संकाय सदस्य भी हैं और ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की वकालत करने के लिए गहराई से प्रतिबद्ध हैं। वह वर्तमान में महाराष्ट्र के ‘राज्य ट्रांसजेंडर अधिकार’ समिति में शामिल है।

तस्वीर साभार: CNBC

वह लंबे समय से आदिवासियों के अधिकारों की वकालत करने के साथ-साथ अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए छात्रवृति हासिल करने में शामिल रही हैं। शमीभा वंचित और हाशिये  पर रह रहे समुदायों की आवाज़ है। उनका मानना है कि अगर हाशिये पर रह रहे समुदायों के जीवन में पर्याप्त सुधार लाना है, तो उसका एक मात्र जरिया राजनीति ही है, जहां से एक मंच प्रदान होगा और उस मंच के माध्यम से हाशिये पर रहे समुदायों की बात हो सकती है।

राजनीति में आखिर क्यों

शमीभा पाटिल उस समाज की आवाज़ है जिस समाज को आज भी बोलने का हक़ नहीं के बराबर है। आज भी ट्रांस समुदाय समाजिक रूप से अपनेआप को अलग-थलग महसूस करता है। मिंट में छपी एक खबर के अनुसार पाटिल ने कहा कि हाशिए पर पड़े समुदायों के जीवन में पर्याप्त सुधार लाने का एकमात्र तरीका राजनीति है। वह कहती हैं कि महाराष्ट्र के इतिहास में पहली बार किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया है। शमीभा ‘ट्रांसजेंडर समुदाय’ को लेकर समाज का नजरिया बदलना चाहती है। उन्हें जो मंच मिला है वह उसके माध्यम से ‘ट्रांसजेंडर समुदाय’ की बात रखना चाहती है और उनके अधिकारों के लिए लड़ना चाहती हैं।

वे कहती हैं कि अगर वह निर्वाचित होती हैं, तो वे चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो, वह ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए 1 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के लिए लड़ाई जारी रखेंगी ताकि वे सम्मान के साथ रह सकें। पाटिल कहती हैं कि अगर निर्वाचित होती हैं, तो मुझे इन मुद्दों पर सीधे काम करने का अवसर मिलेगा।

वह राजनीतिक क्षेत्र में आकर अनेक मुददे पर काम करना चाहती है। वह चुनाव प्रचार में अपने लैंगिक पहचान के कारण पितृसत्तात्मक चुनौतियों का भी सामना करती हैं। वह श्रमिकों और ख़ासकर महिलाओं के स्वास्थ्य पर काम करना चाहती हैं। वे कहती हैं कि अगर वह निर्वाचित होती हैं, तो वे चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो, वह ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए 1 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के लिए लड़ाई जारी रखेंगी ताकि वे सम्मान के साथ रह सकें। पाटिल कहती हैं कि अगर निर्वाचित होती हैं, तो मुझे इन मुद्दों पर सीधे काम करने का अवसर मिलेगा।

महिलाओं और ट्रांस समुदाय के लिए काम की इच्छा

तस्वीर साभार: FreePress Journal

पाटिल को जिस क्षेत्र से उन्हें निर्वाचित किया गया है, उस क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में केले की खेती होती है। यहां पर 1.75 लाख से अधिक श्रमिक काम करते हैं, जिनमें से 40 प्रतिशत महिलाएं हैं। ये महिलाएं काम के दौरान अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाती है, जैसे पीठ दर्द, पीसीओडी आदि।  शमीभा उन महिलाओं के स्वास्थ्य, वितीय और सामाजिक सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए भी काम कर रही हैं। शमीभा पाटिल एक ऐसे आदर्श समाज गढ़ने की दिशा में काम कर रही हैं, जहां पर वह वंचित, शोषित और हाशिये के समुदाय के लिए समान अधिकार हों। पाटिल ने अपना जीवन लोक संघर्ष मोर्चा और सर्व सेवा संघ जैसे विभिन्न संगठनों और आंदोलनों को समर्पित किया है, जबकि उन्होंने बी आर अंबेडकर के आदर्शों और मूल्यों को कायम रखा है। बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा के 288 विधायकों के चुनाव के लिए 20 नवंबर को चुनाव हुए हैं जिसके बाद 23 नवंबर को मतगणना हो चुकी है।

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