इंटरसेक्शनलजेंडर छवि-आधारित यौन हिंसा: महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा का एक खतरनाक तरीका

छवि-आधारित यौन हिंसा: महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा का एक खतरनाक तरीका

आईबीएसए सामग्री की वायरलिटी और पोर्नोग्राफ़ी वितरण तंत्र के काम करने के तरीके के कारण, सामग्री हमेशा प्रचलन में रहती है। इसके प्रसार को रोकना और इसे ऑनलाइन और ऑफलाइन सभी स्थानों से हटाना चुनौतीपूर्ण है। सामग्री का जल्द से जल्द पता लगाना और उसे हटाना जरूरी है।

हाल ही में कर्नाटक के पूर्व जनता दल (सेक्युलर) सांसद प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ़ यौन शोषण के मामले और आरोपों ने भारत में इमेज बेस्ड सेक्शुअल अब्यूज़ यानी छवि-आधारित यौन शोषण पर बातचीत करने पर हमें मजबूर कर दिया। छवि-आधारित यौन हिंसा (आईबीएसए) को आमतौर पर ‘रिवेंज पोर्न’ के रूप में भी जाना जाता है। यह किसी व्यक्ति (सर्वाइवर) की ऐसी छवियों या वीडियो को साझा करने को बताता है, जो यौन रूप से स्पष्ट हैं (जैसे नग्नता या व्यक्ति को यौन संबंध में लिप्त दिखाना)। छवियों या वीडियो को विशेष ‘रिवेंज पोर्न’ वेबसाइटों पर, सोशल मीडिया पर, ईमेल, टेक्स्ट या मैसेजिंग सेवाओं के माध्यम से साझा किया जा सकता है, या विशिष्ट व्यक्तियों, जैसे कि सर्वाइवर के परिवार या नियोक्ताओं के साथ साझा किया जा सकता है। छवियों को ऑफ़लाइन भी साझा किया जा सकता है। फ़ोटोशॉप की गई या किसी भी तरह से बदली गई छवियों या वीडियो को साझा करना भी छवि-आधारित यौन शोषण माना जा सकता है।

जर्मन-ब्रिटिश अकादमिक प्रकाशन कंपनी स्प्रिंगर नेचर के शोध से पता चलता है कि छवि-आधारित यौन शोषण मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा महिलाओं के खिलाफ़ किया जाता है और यह अक्सर बलात्कार, पीछा करने और मारपीट जैसे पुरुष के महिलाओं पर हमलों के ऑफ़लाइन रूपों के साथ होता है। शोध बताता है कि इसके अतिरिक्त, ऑनलाइन छवि-आधारित यौन शोषण की समस्याओं में योगदान देने वाले कारकों के दायरे को और अधिक समझने के लिए, शोधकर्ताओं को छवि-आधारित यौन शोषण और पोर्नोग्राफ़ी उपभोग के बीच संबंधों की जांच करनी चाहिए। आईबीएसए किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी नग्न या यौन रूप से स्पष्ट छवियों या वीडियो को बिना सहमति के कैद करना, बनाना, प्रकाशित करना या वितरित करना (या ऐसा करने की धमकी देना) है। यह विदेश के अलावा भारत में भी आज बहुत आम है।

जर्मन-ब्रिटिश अकादमिक प्रकाशन कंपनी स्प्रिंगर नेचर के शोध से पता चलता है कि छवि-आधारित यौन शोषण मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा महिलाओं के खिलाफ़ किया जाता है और यह अक्सर बलात्कार, पीछा करने और मारपीट जैसे पुरुष के महिलाओं पर हमलों के ऑफ़लाइन रूपों के साथ होता है।

डीपफेक पोर्नोग्राफ़ी या अपस्कर्टिंग

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

आईबीएसए में निजी यौन छवियों को बिना सहमति के लेना, जैसेकि किसी व्यक्ति के कपड़ों के बिना अंतरंग छवियों को कैद करना, जिसे ‘अपस्कर्टिंग’ भी कहा जाता है, शामिल है। इसके अलावा, इसमें आर्टफिशल इन्टेलिजन्स के माध्यम से एक छवि को दूसरे पर बिना सहमति के स्थानांतरित करना जिससे यह भ्रम पैदा होता है कि चित्रित व्यक्ति यौनिक रूप से इक्स्प्लिसिट व्यवहार में शामिल है, जिसे ‘डीपफेक पोर्नोग्राफ़ी’ भी कहा जाता है। ‘शेम द रेपिस्ट’ अभियान और अलजज़ीरा और टाइम्स ऑफ इंडिया की जांच से पता चलता है कि भारत में बलात्कार के वीडियो का एक स्थिर बाजार है। अलजज़ीरा की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में छोटे दुकानों में देशभर से बलात्कार प्रतीत होने वाले वीडियो 3 डॉलर से भी कम में बेचे जाते हैं। अलजज़ीरा को कई वीडियो मिले, जिनमें राज्य भर में बलात्कार की बिक्री को दिखाया गया था। इनकी कीमत 20 रुपये से लेकर 200 रुपये तक थी और इन्हें कुछ ही सेकंड में ग्राहक के मोबाइल फोन पर भेज दिया जाता है।

क्यों चुनौतीपूर्ण है आईबीएसए उत्पीड़न का पता लगाना

विभिन्न सीमाओं के कारण आईबीएसए उत्पीड़न और अपराध के स्तर का सटीक अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है। पॉवेल एट अल के 2022 में किए गए एक सर्वेक्षण का उद्देश्य यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में वयस्कों द्वारा स्वयं रिपोर्ट किए गए आईबीएसए के अपराध की सीमा, प्रकृति और सहसंबंधों की जांच करना था। सर्वेक्षण में पाया गया कि 17.5 फीसद प्रतिभागियों ने किसी न किसी रूप में आईबीएसए किया था, जिनमें से 15.8 फीसद ने बिना सहमति के नग्न या यौन चित्र लिए थे, 10.6 फीसद ने नग्न या यौन चित्र साझा किए थे और 8.8 फीसद ने चित्रित व्यक्ति की सहमति के बिना नग्न या यौन चित्रों को प्रसारित करने की धमकी दी थी। आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द ‘रिवेंज पोर्न’ अपराध के दायरे और प्रकृति और इसके प्रभाव को पूरी तरह से नहीं दिखाता है। अपराधी बदला लेने के अलावा, कई कारकों से प्रभावित हो सकते हैं।

आईबीएसए में निजी यौन छवियों को बिना सहमति के लेना, जैसेकि किसी व्यक्ति के कपड़ों के बिना अंतरंग छवियों को कैद करना, जिसे ‘अपस्कर्टिंग’ भी कहा जाता है, शामिल है।

इसमें वित्तीय लाभ, सर्वाइवर पर नियंत्रण की इच्छा, सर्वाइवर को मजबूर करने या परेशान करने की इच्छा, या प्रसिद्धि, सामाजिक स्थिति या बदनामी की इच्छा शामिल है। इसके अलावा, ‘बदला’ पर जोर देना, सर्वाइवर को ही दोषी ठहराते हुए, उसके साथ किए गए नुकसान से ध्यान हटा देता है। आईबीएसए को समझने के लिए जरूरी है कि हम ये समझें कि शादीशुदा या रोमांटिक रिश्ते में कॉन्सेंट जरूरी है, विशेषकर तब जब आप एक ऐसे युग में रह रहे हों, जहां तकनीक का गलत इस्तेमाल आसान है। ये भी समझना जरूरी है कि एक-दूसरे से चाहे आप कितना ही प्यार करते हों, निजी पलों को यादगार बनाने के लिए आप चाहे कैमरा का इस्तेमाल करें, लेकिन इसमें दोनों साथी की रजामंदी के साथ-साथ सावधानी बरतने की जरूरत है।

क्यों आईबीएसए पर त्वरित काम करना जरूरी है

तस्वीर साभार: End Cyber Abuse

आईबीएसए सर्वाइवर के जीवन को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक या आर्थिक तौर पर भी तहस-नहस कर सकता है। ऐसी घटनाएं होने पर कई लोग आत्महत्या से मौत तक करने पर विचार करते हैं। एक बार तस्वीरें या वीडियो बाहर आने पर यानी रिलीज़ होने के बाद, ये इंटरनेट पर तेज़ी से फैलती हैं। आईबीएसए सामग्री की वायरलिटी और पोर्नोग्राफ़ी वितरण तंत्र के काम करने के तरीके के कारण, सामग्री हमेशा प्रचलन में रहती है। इसके प्रसार को रोकना और इसे ऑनलाइन और ऑफलाइन सभी स्थानों से हटाना चुनौतीपूर्ण है। सामग्री का जल्द से जल्द पता लगाना और उसे हटाना जरूरी है। समय पर कार्रवाई करने से सामग्री का प्रसार बहुत कम हो जाता है और सर्वाइवरों को होने वाला नुकसान काम हो सकता है। आईबीएसए पर रोक के लिए भारत सरकार ने पिछले कुछ सालों में सैकड़ों पोर्नोग्राफ़िक वेबसाइट्स को ब्लॉक किया है।

अलजज़ीरा की एक रिपोर्ट अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में, जो मुख्य रूप से खेल के सामान के निर्माण के लिए जाना जाता है, स्थानीय संपर्कों से पता चला कि ‘बलात्कार वीडियो’ के रूप में मार्केटिंग की गई फिल्म फाइलें आस-पास के गांवों में उपलब्ध थीं।

पर इनमें से कई ऐसी हैं जो सहमति से पोर्नोग्राफ़ी दिखाती हैं या यौन सेवाएं देती हैं। मार्च 2024 में, सरकार ने 18 ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं को ब्लॉक कर दिया जो अपने ‘अश्लील सामग्री’ के लिए पेशेवर रूप से निर्मित वयस्क मनोरंजन प्रदर्शित करती थीं। हालांकि आईबीएसए सामग्री को स्वतंत्र रूप से प्रदर्शित करने वाली कई वेबसाइटें ब्लॉक सूची में नहीं हैं। भारत में उन्हें एक्सेस करने से रोकने के बावजूद वे दुनिया के अन्य हिस्सों में और यहां तक कि भारत में भी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क जैसे उपायों के माध्यम से देखा जा सकता हैं। इस मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आईबीएसए सामग्री होस्ट करने वाले चैनलों और वेबसाइटों को बंद करने और उनके ऑपरेटरों के खिलाफ मुकदमा चलाने सहित एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण जरूरी है।

आईबीएसए की गंभीरता, विक्टिम ब्लेमिंग और कानून की कमी  

आईबीएसए के मामलों मेंअक्सर सर्वाइवर पर अपनी अंतरंग तस्वीरें या वीडियो बनाकर या किसी ऐसे व्यक्ति को तस्वीरें उपलब्ध कराकर ‘इस घटना को खुद आमंत्रण देने’ का आरोप लगाया जाता है। अमूमन इन फिल्मों में महिलाओं के चेहरे साफ दिखाई देते हैं। उनकी आवाजें साफ होती हैं। अलजज़ीरा की एक रिपोर्ट अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में, जो मुख्य रूप से खेल के सामान के निर्माण के लिए जाना जाता है, स्थानीय संपर्कों से पता चला कि ‘बलात्कार वीडियो’ के रूप में मार्केटिंग की गई फिल्म फाइलें आस-पास के गांवों में उपलब्ध थीं। हालांकि आईबीएसए सैद्धांतिक रूप से अनैतिक और अवैध है। लेकिन इसे आज भी गंभीर यौन अपराध नहीं माना जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि ऑनलाइन आईबीएसए के सर्वाइवरों के अनुभव की जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं ऑफ़लाइन यौन शोषण के कारण होने वाली समस्याओं से मिलती-जुलती हैं। पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, चिंता, अवसाद, आत्महत्या से मौत के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव सर्वाइवरों में आम हैं, खासकर उन लोगों में जो फिर से ऐसी घटनाओं का सामना होने की चिंता में रहते हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

छवि-आधारित यौन शोषण अपमानजनक या समस्याजनक रिश्ते के मामले में हो सकता है। ऐसे में छवियों को जारी करना या जारी करने की धमकी देना घरेलू हिंसा के पैटर्न का हिस्सा है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि दुर्व्यवहार करने वाले को सर्वाइवर पर नियंत्रण बनाए रखने की ‘अनुमति’ मिली होती है। छवियों को जारी करने की धमकी का इस्तेमाल ब्लैकमेल टूल के रूप में किया जा सकता है। यहां अपराधी छवियों को साझा करने की धमकी दे सकता है जबतक कि सर्वाइवर यौन संबंधों में या किसी अन्य अवांछित व्यवहार में शामिल न हो जाए। भारत में आम जनता के बीच ही नहीं, बल्कि विधानसभा में निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा पोर्नोग्राफी देखने की घटनाएं भी हुई हैं। लेकिन भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) ने आईबीएसए को धारा 77 के तहत संबोधित किया है, जिसमें वॉयेरिज्म के अपराध का विवरण दिया गया है, जिसमें यह परिवर्तन किया गया है कि अब किसी भी व्यक्ति पर, चाहे उसका लिंग कुछ भी हो, इस अपराध का आरोप लगाया जा सकता है।

अलजज़ीरा की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में छोटे दुकानों में देशभर से बलात्कार प्रतीत होने वाले वीडियो 3 डॉलर से भी कम में बेचे जाते हैं। अलजज़ीरा को कई वीडियो मिले, जिनमें राज्य भर में बलात्कार की बिक्री को दिखाया गया था। इनकी कीमत 20 रुपये से लेकर 200 रुपये तक थी।

हालांकि धारा 77 केवल महिलाओं को संभावित सर्वाइवर के रूप में पहचानता है। बीएनएस के तहत आईबीएसए के खिलाफ़ पुरुषों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कोई सुरक्षा नहीं है। कानून सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 66ई, 67 और 67ए के माध्यम से इसकी भरपाई जरूर होती है जहां कानून सभी के लिए यौन रूप से स्पष्ट छवियों को कैप्चर या वितरित करके गोपनीयता के आक्रमण को आपराधिक बनाता है। आईबीएसए न केवल एक गंभीर सामाजिक अपराध है, बल्कि यह सर्वाइवरों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी गहराई से प्रभावित करता है। भारत में इसे रोकने के लिए कड़े कानूनों और सामाजिक जागरूकता की सख्त जरूरत है। तकनीक के बढ़ते उपयोग के इस दौर में, हर व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत डेटा और छवियों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ दूसरों की सहमति का सम्मान करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। आईबीएसए जैसे अपराधों को खत्म करने के लिए समाज, कानून और तकनीकी प्लेटफॉर्म्स को मिलकर काम करना होगा।

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