भारत में बढ़ता अपराध दर, विशेषकर महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलित समुदायों के खिलाफ अपराधों के संदर्भ में, कानूनी जागरूकता आवश्यक हो जाती है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, अल्तमस कबीर ने इसके बारे में टिप्पणी की थी कि कानूनी जागरूकता और शिक्षा की कमी हाशिए पर रहने वाली आबादी, विशेषकर महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय का मुख्य कारण है। भारत जैसी विविध परंपराओं और जटिल सामाजिक गतिशीलता वाले देश में, महिलाएं लंबे समय से समानता और न्याय के प्रयासों में आगे रही हैं। उनकी प्रगति का समर्थन करने के लिए, भारत की कानूनी प्रणाली उन्हें कई अधिकार और सुरक्षा तंत्र प्रदान करती है। जैसे-जैसे समाज विकसित हो रहा है, प्रत्येक महिला को रोजगार, घरेलू जीवन और व्यक्तिगत सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून भी विकसित हो रहे हैं। सभी महिलाओं को इन कानूनों की जानकारी और समझ होनी चाहिए ताकि उन्हें शोषण का सामना न करना पड़े।
भारत ने महिलाओं की शिक्षा, सशक्तिकरण और आर्थिक भागीदारी के क्षेत्र में काफी प्रगति की है, लेकिन महिलाओं की कानूनी साक्षरता अभी भी शुरुआती चरण में है। अभी तक आधे से अधिक महिलाओं को उनके हक़ में बनाए गए कानूनी अधिकारों की समझ नहीं है। पारिवारिक कानून हो या संपत्ति संबंधित कानून, महिलाओं को उनका ज्ञान नहीं है। हालांकि एक विवाहित महिला की सुरक्षा के लिए कई मजबूत कानून मौजूद हैं, लेकिन इनके बारे में जागरूकता व्यापक न होने के कारण उनका शोषण आसानी से होता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2022 में महिलाओं के खिलाफ़ 4.45 लाख से अधिक अपराध हुए, यानी हर 51 मिनट में एक अपराध महिला के खिलाफ़ दर्ज किया गया। ये आंकड़ें केवल उन अपराधों के हैं जिनको रिकॉर्ड किया गया है। ऐसे कई अपराध हैं, जो सामान्य समझकर छोड़ दिए जाते हैं या फिर जिनके बारे में ये समझ नहीं है कि वे अपराध के दायरे मैं आते हैं। कभी-कभी सामाजिक कलंक से डर से महिलाओं को चुप रहना होता है।
क्या है कानूनी साक्षरता ?
कानूनी साक्षरता या कानूनी जागरूकता लोगों को कानून के सिद्धांतों, प्रथाओं और सिद्धांतों पर शिक्षित करता है। कानूनी साक्षरता लोगों के लिए कानून के कर्तव्य को समझने, कानून के तहत महिलाओं के अधिकारों पर स्पष्ट विचार रखने और समाज में बदलाव लाने के साधन के रूप में उनके अधिकारों को प्राप्त करने के लिए एक टूल के रूप में काम करती है। इसे हम एक उदाहरण से बेहतर समझ सकते हैं। ऐसे देश में जहां एक विवाहित महिला के साथ उसके पति और ससुराल वालों द्वारा दुर्व्यवहार और शोषण असामान्य नहीं है, ऐसे दुर्व्यवहार को खत्म करने के लिए बनाए गए कानूनों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। शोषण का सामना कर रही विवाहित महिलाओं को मोटे तौर पर तीन व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। एक समूह जो जानता है कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है और यह एक अपराध है, लेकिन कार्रवाई करने में बहुत असुरक्षित या भयभीत महसूस करती हैं।
दूसरा समूह, जो जानता है कि वे जो अनुभव कर रहे हैं वह दुर्व्यवहार है, लेकिन इस तथ्य से बेखबर है कि उनका दुर्व्यवहार और पीड़ा कानूनी रूप से अपराध या तलाक के आधार के रूप में मान्यता प्राप्त है। तीसरा समूह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ है कि उनके साथ जो किया जा रहा है वह दुर्व्यवहार है, अपराध तो दूर की बात है। वे इसे केवल नैतिक ज़िम्मेदारी या पति का हक़ समझ कर उनके साथ रह रहे होते हैं। पारिवारिक कानून के ज्ञान के बिना, भारत में अनगिनत महिलाएं दुर्व्यवहार, शोषण और हिंसा सहती रहती हैं। महिलाओं के बीच कानूनी साक्षरता की कमी, खासकर जब वैवाहिक कानूनों के तहत उनके अधिकारों की बात आती है, महिला सशक्तिकरण में सबसे महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक है। असल में न तो सरकार ने, न हमने यह सुनिश्चित करने के पर्याप्त प्रयास किए कि इन कानूनों की जानकारी भारत की हर महिला को हो।
अपराध को समझने की जरूरत
क्या कभी महिलाओं को नैतिक गलतियों और कानूनी अपराध के बीच क्या अंतर है, वह समझाया है, जिससे कि शादी के बाद पति द्वारा किया गया शोषण फिर चाहे वो मानसिक हो या शारीरिक हो या आर्थिक- नैतिक गलती समझ के महिला द्वारा भुगता नहीं जा रहा हो। पारिवारिक संबंधों में एक बात बहुत महत्वपूर्व होती है और वह है नैतिक गलतियां और कानूनी अपराध के अंतर् को समझना। नैतिक गलतियों और कानूनी अपराधों के बीच मुख्य अंतर यह है कि अपराध कानून द्वारा परिभाषित होते हैं। हालांकि नैतिक मूल्य समाज के अनुसार भिन्न होते हैं। नैतिक कानूनों का उद्देश्य व्यक्तिगत चरित्र में सुधार करना है, जबकि आपराधिक कानूनों का उद्देश्य सामुदायिक मानदंडों के खिलाफ़ होने वाले दुर्व्यवहार को संबोधित करना है।
हमें हर महिला को यह बताने की जरूरत है कि उसके पति का उसपर हाथ उठाना, ससुराल वालों का दहेज की मांग, लगातार ताने और ससुराल में आर्थिक तंगी पर ताने देना न केवल नैतिक गलतियां हैं, बल्कि कानूनी उल्लंघन, अपराध भी हैं। तलाक के लिए और वह अपनी समस्या को समाप्त करने के लिए कानूनी सुरक्षा और उचित कार्रवाई की मांग कर सकती है। ऐसा करके, हम उसे खुद को बचाने और दुर्व्यवहार के खिलाफ़ खड़े होने के लिए एक रास्ता दे सकते हैं। यदि एक महिला जानती है कि वह अपने साथ दुर्व्यवहार करने वालों को दूर करते हुए भी आर्थिक सुरक्षा, भरण-पोषण, हिरासत आदि की अंतरिम और स्थायी राहत मांग सकती है, तो वह असहाय, निराश और परेशान विवाह में फंसी हुई महसूस नहीं करेगी।
कानूनी साक्षरता क्यों आवश्यक है ?
कानूनी साक्षरता का मतलब केवल यह जानना ही नहीं है कि किसी विषय पर कानून मौजूद है। इसमें यह समझना भी शामिल है कि ये कानून व्यावहारिक रूप में कैसे लागू होते हैं और महिलाएं अपने अधिकारों की रक्षा के लिए और दुर्व्यवहार या हिंसा से खुद को बचाने के लिए उनका प्रभावी ढंग से उपयोग कैसे कर सकती हैं। जब महिलाएं कानूनी रूप से साक्षर होती हैं, तो वे सालों तक चुपचाप अत्याचार और शोषण सहने के बजाय कानूनी उपाय खोजने में सक्रिय कदम उठाने में सक्षम होती हैं। ऐसे समाज में जहां पितृसत्ता अभी भी प्रचलित है, एक समतापूर्ण वातावरण बनाने के लिए महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी देकर सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है। हालांकि इसे प्राप्त करने के लिए, यह काफी नहीं है कि कानून कागज पर मौजूद हो। समग्र रूप से समाज को सक्रिय रूप से जागरूकता फैलाने की जरूरत है। स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों, कानूनी सहायता क्लीनिकों और गैर सरकारी संगठनों को यह सुनिश्चित करने के लिए हाथ मिलाना चाहिए कि भारत में हर महिला कानूनी रूप से साक्षर हो। वे महिलायें जो अनपढ़ हैं उन्हें भी कानूनी रूप से लीगल लिटरेसी प्रोग्राम के ज़रिये साक्षर किया जाना आवश्यक है।
कानूनी साक्षरता हर महिला को यह जानने में मदद करेगी कि उसे संपत्ति में अपने भाई के बराबर अधिकार प्राप्त है और यदि उसके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है, तो वह आवाज उठा सकती है। कानूनी साक्षरता महिलाओं को हिंसा और शोषण के खिलाफ बोलने और लड़ने में हिम्मत देगा। सालों साल पति के हाथों शारीरिक शोषण सहने से अच्छा है कि एक महिला इज़्ज़त और सुकून की ज़िंदगी गुज़ार सके। इससे एकल महिला को पता चल जाएगा कि उसके पास बच्चा गोद लेने का विकल्प है, भले ही वह शादीशुदा न हो। यदि किसी किशोरी लड़की का यौन उत्पीड़न किया जा रहा है, तो उसे कानूनी साक्षरता प्रदान करने से उसे पता चलेगा कि उसे अपनी स्थिति से बाहर निकालने के लिए कानूनी उपाय हैं। जब यह लड़की अपनी मां को यौन उत्पीड़न के बारे में बताएगी, तो मां आत्मविश्वास से अपनी बेटी का हाथ पकड़कर उसे पुलिस स्टेशन ले जाएगी और उचित कदम उठाएगी।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कानूनी साक्षरता न केवल दुरुपयोग का जवाब देने के बारे में है, बल्कि इसे रोकने के बारे में भी है। जब महिलाएं अपने अधिकारों और दुर्व्यवहार के कानूनी परिणामों के बारे में जागरूक होती हैं, तो वे अपने घरों के भीतर समानता और सम्मान पर बातचीत करने के लिए मजबूत स्थिति में होती हैं। ऐसे कानूनों के बारे में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी शिक्षित करने से आपसी सम्मान और समझ को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे स्वस्थ और अधिक न्यायसंगत रिश्तों को बढ़ावा मिल सकता है। कानूनी साक्षरता के साथ महिलाओं को सशक्त बनाना उन्हें बदलाव के कारक में बदल सकता है। कानूनी साक्षरता सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं है, यह एक सामाजिक और नैतिक अनिवार्यता है।
सरकार द्वारा चलाये जाने वाले प्रोग्राम के अलावा गैर सरकारी संगठन और सीएसओ (सिविल सोसायटी संगठन) भी कानूनी साक्षरता के प्रसार में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए, पूरे देश के लिए कानूनी साक्षरता महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह किसी भी सामान्य नागरिक को न केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी न्याय मांगने के लिए सशक्त बना सकती है। कानूनी रूप से जागरूक नागरिक खुद के साथ-साथ दूसरों को भी शोषण, असमानता और कई अन्यायों से बचा सकता है। अधिकारों को साकार करने के लिए इस ज्ञान का उपयोग करने के कौशल के साथ कानूनी प्रावधानों का महत्वपूर्ण ज्ञान लोगों को न्याय मांगने के लिए सशक्त बनाता है। कानूनी सुधार और न्यायिक पुनर्गठन के साथ-साथ पूरे समाज का कानूनी सशक्तिकरण सामाजिक-आर्थिक समानता और न्याय लाने में सबसे महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।