इंटरसेक्शनलजेंडर महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा का एक जटिल रूप है विच हन्ट

महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा का एक जटिल रूप है विच हन्ट

महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोई नई बात नहीं है। लेकिन, विच करार देकर प्रथा के नाम पर महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा की जाती है, गांव से बेदखल कर दिया जाता है, मार-पीट, बिना वस्त्र के हर जगह घुमाया जाता है, ज़िंदा जला कर हत्या कर दी जाती है और यहां तक कि मानव मल खाने पर मजबूर किया जाता है, जो मानवाधिकारों का हनन है।

विच हन्ट एक सामाजिक कुप्रथा है, जो भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, आज भी प्रचलित  है। हालांकि ये देश के कई हिस्सों में पाया जाता है, लेकिन यह प्रथा मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और असम जैसे राज्यों में देखी जाती है। यह एक ऐसी प्रथा है जिसमें महिलाओं को झूठे आरोपों के आधार पर विच घोषित किया जाता है और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोई नई बात नहीं है। लेकिन, विच करार देकर प्रथा के नाम पर महिलाओं के साथ शारीरिक हिंसा की जाती है, गांव से बेदखल कर दिया जाता है, मार-पीट, बिना वस्त्र के हर जगह घुमाया जाता है, ज़िंदा जला कर हत्या कर दी जाती है और यहां तक कि मानव मल खाने पर मजबूर किया जाता है, जो मानवाधिकारों का हनन है।

अक्सर देखा जाता है जब किसी महिला के ‘पति की मृत्यु हो जाती है’ या ‘किसी महिला को बच्चा नहीं हो पाता है’ या ‘किसी का शरीर या चेहरा समाज के बनाए ढांचे में फिट न बैठता हो’ तब उन्हें समाज में अक्सर विच बातकर हिंसा की जाती है। लेकिन, अगर कोई महिला ज्यादा उम्र तक ज़िंदा है और उसके पति या बेटे की मृत्यु हो जाए तब भी समाज के लोग महिला को ताना देते हैं। आम तौर पर ऐसी महिलाओं को किसी भी सामाजिक तीज-त्योहार या जमावड़े में भी नहीं बुलाई जाती हैं। अगर ग्रामीण इलाकों में किसी का बच्चा बीमार हो, तो लोग डॉक्टर के पास जाने से पहले यह कहते हुए पाए जाते हैं कि ज़रूर किसी ने जादू–टोना किया होगा। फेमिनिज़म इन इंडिया ने इस विषय पर कुछ महिलाओं से बात की, जिनपर विच (डायन) होने के आरोप लगाए गए और वे आए दिन हिंसा का सामना करती हैं।

निरंतर संस्था और बिहार महिला फेडरेशन के सर्वे अनुसार, सर्वे में शामिल 145 महिलाओं में से 114 महिलाओं (78 फीसदी) ने कहा कि उन्हें मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है। 32 फीसदी महिलाओं के साथ गाली-गलौच हुई या उन्हें ताना मारा गया और 28 फीसदी महिलाओं ने कहा कि गांववालों द्वारा उनका बहिष्कार किया गया।

विच हन्ट के आड़ में महिलाओं के साथ हिंसा

तस्वीर साभार: Down to Earth

मुजफ्फरपुर की 50 वर्षीय गीता कहती हैं, “कुछ समय पहले की बात है कुछ पड़ोसी मेरे पास आए और कहने लगे कि घर में मेरा बच्चा बीमार है, तुम ही टोटका की हो। चलो जल्दी उसे ठीक करो। मैं यह सुनकर एकदम सन्न रह रही गई। मैंने बोला कि मैं ऐसा कुछ नहीं की हूं। अगर आपका बच्चा बीमार है, तो आप डॉक्टर के पास जाएं लेकिन वो लोग माने नहीं और मेरे साथ शारीरिक हिंसा और गाली-गलौज करने लगे। इसके बाद मैंने पुलिस को बुला लिया। हालांकि उस समय सब ठीक हो गया था पर उस घटना के बाद से मेरे ऊपर एक दाग जैसा लगा दिया गया है। अब कोई भी आसानी से कह कर चला जाता है और मैं किस-किस को जवाब दूँ। सदियों से यह सोच समाज में मौजूद है। मेरे साथ-साथ और कितनी ही महिलाएं हैं जो रोज इन समस्याओं का सामना करती हैं। कोई बीमार हो तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए न कि ओझा के पास। इसको खत्म करने के लिए सबको एक साथ काम करना होगा।”

क्या बताते हैं आँकड़े

भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, साल 2000 से अब तक 2,500 से अधिक महिलाओं की विच हन्ट के तहत हत्या की जा चुकी है। असल में यह संख्या और भी अधिक हो सकती है क्योंकि ढ़ेरों ऐसे मामले हैं जो दर्ज़ तक नहीं होते। अगर आंकड़ों की बात करें, तो महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और उत्पीड़न से जुड़े मामलों में लगातार इज़ाफ़ा ही देखने को मिलता है। कानून और सख्त कर दिए जाते हैं पर महिलाओं के जीवन से हिंसा खत्म होने का नाम नहीं लेती। आज भी महिलाओं को विच कहकर उनका शोषण किया जाता है। लेकिन इसके पीछे की मूल वजह कई बार कुछ और भी होते हैं। कभी जमीन जायजाद का मसला तो कभी निजी दुश्मनी, तो कभी किसी महिला को आगे बढ़ते हुए न देख पाना महिलाओं को आसानी से निशाना बना पाने के कारक हैं।

मेरे पड़ोसी की भैंस दूध नहीं दे रही थी। इसलिए कुछ लोग मेरे पास आए और बोलने लगे कि तुम्हारी वजह से मेरी भैंस दूध नहीं दे रही है। तुम ही नज़र लगाई हो। मैं बोली कि मुझे नहीं पता, मैंने कुछ नहीं किया है। लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुना और मेरे साथ शारीरिक हिंसा करने लगे। भीड़ ने मेरी आवाज़ तक नहीं सुनी।

निरंतर संस्था की रिपोर्ट क्या बताती है

तस्वीर साभार: KBIA

2023-2024 में निरंतर संस्था और बिहार महिला फेडरेशन के एक सर्वे के अनुसार, बिहार राज्य के 10 ज़िलों में विच हन्ट प्रताड़ना को लेकर एक सर्वे किया। इस सर्वे के दौरान 114 गांवों से 145 महिलाओं के साथ बातचीत की गई जिन्हें विच (डायन) होने के आरोप में हिंसा का सामना करना पड़ा था। सर्वे के नतीजों के अनुसार विच हन्ट हिंसा का सामना ज्यादातर वैसी महिलाएं करती हैं, जो एकल, विधवा हैं, परित्यक्ता या जो बच्चे पैदा नहीं कर सकी हैं। सर्वेक्षण में शामिल 145 महिलाओं में 121 महिलाएं शादीशुदा, मतलब 83 फीसदी महिलाएं ऐसी थी  जो शादीशुदा थी। ऐसे में साफ है कि वे शादीशुदा होते हुए भी अपनेआपको इस हिंसा से सुरक्षित नहीं रख पाई। इस सर्वे में शामिल महिलाओं में 108 महिलाओं की उम्र 46 से 66 के बीच की थी। 

परिवार से ही हो रही है शुरुआत हिंसा की

इसका मतलब है कि वे महिलाएं है जो प्रजनन की उम्र को पार कर चुकी होती हैं, उन्हें आसानी से विच हन्ट के अंतर्गत प्रताड़ित किया जा सकता है। विच हन्ट में सबसे ज्यादा भागीदारी परिवार के लोग निभाते हैं। सर्वे के अनुसार 43 फीसदी महिलाओं ने बताया कि ‘विच’ बोलने की शुरुआत परिवार के सदस्यों ने ही की। इसके बाद आस-पड़ोस (19 फीसदी), और फिर पूरे गांव ने विच (डायन) बोलना शुरू कर दिया। इस मसले पर बिहार के बेतिया की 60 वर्षीय जुलैना कहती हैं, “किसी भी चीज़ की शुरुआत परिवार से होती है। सबसे पहले मेरी बहु ही बोली थी कि मैं विच(डायन) हूं। उसके बाद गांव के लोगों ने बोलना शुरू कर दिया। अब जो भी घटना होती है, उसे लेकर मुझे ही जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। अभी हाल ही की घटना है। मेरे पड़ोसी की भैंस दूध नहीं दे रही थी। इसलिए कुछ लोग मेरे पास आए और बोलने लगे कि तुम्हारी वजह से मेरी भैंस दूध नहीं दे रही है। तुम ही नज़र लगाई हो। मैं बोली कि मुझे नहीं पता, मैंने कुछ नहीं किया है। लेकिन किसी ने कुछ नहीं सुना और मेरे साथ शारीरिक हिंसा करने लगे। भीड़ ने मेरी आवाज़ तक नहीं सुनी।”

विच हन्ट के नाम पर जिन महिलाओं के साथ हिंसा हुई उनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं दलित, पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय से आती हैं। इनमें से बहुसंख्यक महिलाएं भूमिहीन परिवारों से हैं।

महिलाओं का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हो रहा है प्रभावित

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएं हमेशा से ही निचले पायदान पर रही हैं। अभी भी गांवों में बुनियादी सेवाएं बेहद सीमित है। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जल्दी कोई डॉक्टर के पास नहीं जाता है। कभी आर्थिक तंगी,  कभी अंधविश्वास और सामाजिक मान्यताएं इसमें कारक बनते हैं। ग्रामीण इलाकों में आज भी नौकरी चले जाना, बीमार हो जाना, किसी की मौत या बच्चे पैदा न कर पाने जैसी घटनाओं के लिए विच का प्रकोप माना जाता है जिसके आधार पर अमूमन महिलाओं को मारा-पीटा जाता है, शारीरिक हिंसा और अभद्र व्यवहार किया जाता है। निरंतर संस्था और बिहार महिला फेडरेशन के सर्वे अनुसार, सर्वे में शामिल 145 महिलाओं में से 114 महिलाओं (78 फीसदी) ने कहा कि उन्हें मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है। 32 फीसदी महिलाओं के साथ गाली-गलौच हुई या उन्हें ताना मारा गया और 28 फीसदी महिलाओं ने कहा कि गांववालों द्वारा उनका बहिष्कार किया गया। आर्थिक दंड, मल-मूत्र खिलाना, सिर मुँड़वाना, यौन हिंसा, हत्या, विच हन्ट के तहत महिलाओं के साथ हिंसा के कई प्रकार हैं। 

विच हन्ट में आर्थिक, सामाजिक और आर्थिक कारक

तस्वीर साभार: New York Times

सर्वेक्षण में शामिल 84 फीसदी महिलाओं ने कहा कि जब से उन्हें विच बताया गया उसके बाद से वे शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने लगी हैं। यह एक गंभीर समस्या है, जिसका प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। विच हन्ट के नाम पर हो रही शारीरिक और मानसिक हिंसा में जाति व्यवस्था और वर्ग भेदभाव का भी बड़ा हाथ है। महिलाओं को घरेलू हिंसा के साथ-साथ सामजिक, धार्मिक, आर्थिक और जातीय हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। विच हन्ट के नाम पर जिन महिलाओं के साथ हिंसा हुई उनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं दलित, पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय से आती हैं। इनमें से बहुसंख्यक महिलाएं भूमिहीन परिवारों से हैं। यह समस्या सदियों से समाज में मौजूद है। आए दिन अनेकों महिलाएं इस घटना का सामना करती हैं।

कुछ समय पहले की बात है कुछ पड़ोसी मेरे पास आए और कहने लगे कि घर में मेरा बच्चा बीमार है, तुम ही टोटका की हो। चलो जल्दी उसे ठीक करो। मैं यह सुनकर एकदम सन्न रह रही गई।

हालांकि खबरों में वही घटनाएं आती हैं जो लोगों के बीच ज्यादा बढ़ जाए या प्रचलित हो। बहुत सी घटनाएं तो समाज  में कहीं दबकर रह जाती हैं। कई महिलाएं तो सामाजिक लोकलाज में रहकर हिंसा को सहती पर मजबूर होती हैं। कई बार जागरूकता की और एजेंसी की कमी में न तो वह आवाज़ उठा पाती हैं, न ही कोई कार्रवाई करती हैं। लेकिन अब जरूरी हो गया है कि इस मुददे पर हर तरह की बात हो। इस विषय को लेकर समाज को जागरूक किया जाए। यह तब ही संभव होगा जब सभी जेंडर के लोग साथ मिलकर इस दिशा में बात करें और जिम्मेदार हो।

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