मेरी रहनवारी जन्म से लेकर अब तक गाँव में ही रही इसलिए इसी जमीन की महिलाओं के साथ मेरा जीवन बीता है। इन महिलाओं में महिला अधिकार की चेतना जगाना ही मेरा हमेशा उद्देश्य रहा है। मैं हमेशा कोशिश करती रहती हूँ कि इन महिलाओं के भीतर समता, न्याय और शिक्षा की रोशनी पहुँचे। इनसे बात करके मुझे हमेशा ऊर्जा और जीवंतता मिलती है और यही मेरे लिये मेरा फेमिनिस्ट जॉय होता है। मेरे लिए स्त्रीवाद, स्त्रियों के साथ होती लैंगिक हिंसा और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ उठती आवाज़ और संघर्ष है। मेरी कोशिश हमेशा रहती है कि मैं लैंगिक समानता की लड़ाई में योगदान दूं।
मैं जिस गाँव-जवार में रहती हूँ, यहाँ तमाम तरह के लैंगिक भेदभाव स्त्रियों के साथ होते हैं लेकिन लम्बे समय के अभ्यास के कारण वे स्त्रियां इन भेदभाव को लेकर किसी तरह का प्रतिरोध नहीं करती। मुझे बहुत बार लगता कि शायद ये ग्रामीण स्त्रियां कभी इन भेदभावों को समझ नहीं पायेगीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ मैं जब इन स्त्रियों से सामजिक न्याय से लेकर लैंगिक असमानताओं पर बातचीत करने लगी तो देखा कि ये स्त्रियां इस बातचीत को समझ ही नहीं रहीं थीं बल्कि इसमें हिस्सेदारी भी की। इस तरह इन महिलाओं के बीच अपनी बात कहना और उनकी बातें सुनना मेरे लिए फेमिनिस्ट जॉय बना। अब मैं ग्रामीण इलाकों में जहाँ भी जाती हूँ, गाँव की महिलाओं से उनके हक-अधिकार और उनकी स्वायत्तता पर बात करती हूँ। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब महिलाएं अपनी तरह से महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय पर बात करती हैं। मेरे लिए ये आनन्द और उपलब्धि की तरह होता है। इन बाचतीत में ये पता चलता है कि महिलाएं अपनी बच्चियों की पढ़ाई-लिखाई के अधिकार के लिए अपने घरों में बोल रही हैं।
मुझे यात्रा में बस, ऑटो या ट्रेन में जो भी महिलाएं मिलती हैं, उनसे बातचीत करना बहुत पसंद है। मैंने देखा कि मेरी तरह बहुत सी महिलाएं हैं जो अपनी बात कहना चाहती हैं लेकिन कहीं कह नहीं पा रही हैं। मुझे अपनी बात कहने के लिए कविता, लेख लिखने का माध्यम मिला और मैं अपनी बात कहती-रहती हूँ। अलग-अलग उम्र और वर्ग की महिलाओं के अनुभव, उनका जीवन और दुख-सुख मैं कविता, लेख में दर्ज करती हूँ। इस तरह मैं अपनी बात कहती रहती हूँ।
मेरे आसपास की सारी महिलाएं गृहणी, किसान या खेतहर मजदूर हैं, इसलिए ज्यादातर यहीं महिलाएं मेरे लेखन का केंद्र होती हैं। जिनके बीच रहकर मैं समाज में महिलाओं के संघर्ष और उनकी कठिनाइयों को समझने-जानने की कोशिश करती हूँ। जिस तरह के समाज मे मैं रहती वहाँ स्त्री प्रश्न पर कोई बहस नहीं होती है। वहाँ स्त्री-सरोकारों से स्त्रियों को जोड़ना, उन्हें स्त्री-संघर्षों के इतिहास से लेकर वर्तमान स्थिति पर बात करना मेरा प्रिय काम होता है।
कभी-कभी मैं इन ग्रामीण महिलाओं के बीच इनपर लिखे गये लेख या कविताओं को सुनाती हूँ, फिर उन्हें कुछ सहज करके बताती हूँ। महिलाएं लिखे गये को बहुत ध्यान से सुनती हैं फिर उससे जुड़े अपने-अपने अनुभव बताने लगती हैं। मैं इनके अनुभवों को ध्यान से सुनती हूँ और अपने लेखन में विशेषकर कविता में उन्हें दर्ज करती हूँ। इन ग्रामीण महिलाओं के साथ बिताया हुआ समय मुझे प्रिय होता है। मैं कभी इन महिलाओं के साथ खुद को अलग नहीं पाती क्योंकि मैं इन्हीं गवईं महिलाओं के बीच पली-बढ़ी हूँ। इनके सुख-दुख मेरे लिए हमेशा सांझे रहे। मेरे लिये इनके बीच शिक्षा और जागरूकता की पहल करना अपने लिये आनंद और संतोष ही नहीं अपना कर्तव्य भी लगता है।
नारीवाद की बहसों को इनके बीच ले जाना, उन बहसों पर इन महिलाओं की राय जानना मेरा प्रिय शगल होता है। बदलती हुई दुनिया में इन महिलाओं का जीवन कैसे बदल रहा है, सूचना क्रांति ने इनके जीवन में क्या बदलाव किया इन मुद्दों पर मैं ग्रामीण महिलाओं से बातचीत करती हूँ। इन संसाधनों के आ जाने से महिलाओं का जीवन कैसे प्रभावित हुआ है इन विषयों पर वो खूब मन से बोलती है। मैं इन महिलाओं को सुनकर प्रसन्न होती हूँ, उसमें अपनी भी बात कहती हूँ। इनके बीच जाना और कहना मुझे बेहद प्रिय है क्योंकि मैं भी इन्हीं में से एक हूँ। यही मेरा फेमिनिस्ट जॉय है।