गर्ल्स विल बी गर्ल्स फ़िल्म का नाम सुनकर एकबारगी लग सकता है ‘स्त्री अन्ततः स्त्री होगी।’ ये बार-बार का कहा गया कोई पारंपरिक कहावत जैसा कुछ कहा जा रहा है। लेकिन ये बात उससे कहीं आगे की है। इस वाक्य में स्त्री की पहचान की अपनी दृष्टि के विकसित होने की कहानी है। माँ-बेटी के संबंधों में अंतर्विरोधों और टकराहटों के बावजूद स्त्री होने के बहनापे का मजबूत आधार होता है जिसे फिल्म ने शान्त दृश्यों और कुछ-कुछ ठहरे से संवादों के जरिये बहुत खूबसूरती से कहा है। यह फ़िल्म स्त्री की इच्छा, चयन, कोशिश, सही- गलत की दृष्टि और सार्थकता तक पहुँचते उसके कदम का खूबसूरत रूपांतरण है।
गर्ल्स विल बी गर्ल्स फ़िल्म को देखते हुए 2015 में अश्विनी नैयर तिवारी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नील बटे सन्नाटा’ की याद आएगी। इन दोनों फिल्मों की पृष्ठभूमि में वर्गीय अंतर जरूर है लेकिन पढ़ी-लिखी मध्यवर्गीय माँ और मजदूर माँ की चिंताएं एक जैसी हैं। जनरेशन गैप और बेटी की सुरक्षा और भविष्य की चिंता में लड़ती-टूटती माँओं का संघर्ष इन फिल्मों का विषय है। गर्ल्स विल बी गर्ल्स की कहानी हिमालय की गोद में स्थित एक कठोर अनुशासन वाले बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने वाली सोलह साल की लड़की मीरा और उसकी माँ की है। मीरा एक टॉप की स्टूडेंट है जिसे स्कूल की प्रिंसिपल बहुत पसंद करती है।
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प्रिंसिपल के कठोर अनुशासन में मीरा पढ़ाई और स्कूल के नियमों का कठोरता से पालन करती है। स्कूल के लड़के मीरा की तरफ आकर्षित होते हैं लेकिन मीरा उनकी तरफ ध्यान नहीं देती। इसी बीच स्कूल में मीरा की मुलाकात श्री नाम के एक लड़के से होती है। श्री एक एनआरआई है। किशोरावस्था की उम्र में हर किशोर की तरह मीरा भी देह और प्रेम के प्रति आकर्षित है। वह जल्दी ही श्री के प्रति आकर्षित हो जाती है। मीरा ऐसी उम्र में है जहां ‘रोमांस’ महसूस करना एक सहज संवेदना होती है। मीरा देखती है कि उसके आस-पास के सारे लड़के-लड़कियां किसी न किसी के प्रति आकर्षित हैं।
फ़िल्म स्त्री की इच्छाओं, उसकी अंतर्दृष्टि, समझदारी, स्त्रियों द्वारा एक-दूसरे को समझने और मजबूत बनाने की पहल को विकसित करने की दिशा में अच्छी कहानी प्रस्तुत करती है।
किशोरावस्था की कामुकता और मनोभावों का चित्रण
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हालांकि उस बोर्डिंग स्कूल में लड़के-लड़कियों के साथ समय बिताने को लेकर कड़ा अनुशासन रहता है। मीरा एक मेधावी स्टूडेंट है उसने अपनी एक समझदारी विकसित की थी कि उसे इस तरह की चीजों में नहीं पड़ना है। लेकिन उम्र के बदलाव में आकर्षण से वो अछूती नहीं रही। वहीं उसकी क्लास में पढ़ने वाला हार्दिक उसे प्रपोज करता है लेकिन वह उसे मना कर देती है। उसके लिए उसके मन में कोई भावना नहीं पनपती क्योंकि वह मानती थी कि वह अच्छा लड़का नहीं था। मीरा को स्कूल में आए नये लड़के श्रीनिवास पसंद आता है जो समाज के नियमों के अनुसार विनम्र और शिष्ट है। फिल्म में एक लड़की की किशोरावस्था की कामुकता और मनोभावों को बहुत खूबसूरती से दिखाया किया गया है। फ़िल्म के एक दृश्य में हस्थमैथुन करती मीरा कहीं से भी वल्गर नहीं लगती।
आधुनिक जीवन और सोच-विचार में जीती लड़कियों को कैसे संस्थानों में तरह-तरह से उत्पीड़नों को झेलना पड़ता है, ये बोर्डिंग स्कूल के दृश्यों में दिखता है। इन सब में जो पुरूष इन हरकतों से परे रहता है, इनका विरोध करता है, वह स्त्री को अपना लगने लगता है। मीरा के जीवन में श्री की अहमियत इसी तरह बढ़ी। एक दिन बायोलॉजी लैब में स्कूल के कुछ लड़के मीरा की स्कर्ट के नीचे झाँकते रहते हैं। श्री बहाने से आकर मीरा को सावधान करता है। फ़िल्म ये भी बताती है कि इस समाज की ऐसी कंडीशनिंग होती है कि इस तरह के लड़कों को भी लड़कियां पसंद करती हैं। मीरा की दोस्त और रूम-पार्टनर प्रिया इन लड़कों में से एक की करीब है।
एक सवाल के जबाब में वो माँ को लेकर श्री से कहती है कि ‘आई कांट स्टैंड हर’। यहां एक सूक्ष्म किस्म का विद्रोह दिखता है जब वो कहती है कि वह अपने पिता जैसी बनना चाहती है। मीरा के पिता एक आधुनिक नियंत्रक पिता की तरह हैं लेकिन मीरा को पिता जैसा होना है, माँ जैसा नहीं।
माँ-बेटी का रिश्ता और पिता का पारिवारिक नियंत्रण
फ़िल्म की दूसरी प्रमुख पात्र मीरा की माँ अनिला हैं। अनिला एक आधुनिक गृहिणी और जिम्मेदार माँ हैं। उनकी बेटी मीरा उनके जीवन की पहली प्राथमिकता है। वो मीरा को कुछ हद तक अनुशासन में रखती है। शायद यह कारण है कि मीरा अपनी माँ से बहुत खुलकर नहीं रहती। हालांकि कोई विद्रोह उसमें नहीं दिखता। एक सवाल के जबाब में वो माँ को लेकर श्री से कहती है कि ‘आई कांट स्टैंड हर’। यहां एक सूक्ष्म किस्म का विद्रोह दिखता है जब वो कहती है कि वह अपने पिता जैसी बनना चाहती है। मीरा के पिता एक आधुनिक नियंत्रक पिता की तरह हैं लेकिन मीरा को पिता जैसा होना है, माँ जैसा नहीं। हालांकि फिल्म के कुछ दृश्यों में दिखता है कि बेटी के लिए माँ; पिता से कहीं ज्यादा लिबरल है। मध्यवर्गीय भारतीय परिवारों में ये स्थापित सामाजिक ताकत और सत्ता के प्रति मनुष्य का आकर्षण होता है। परिवारों में बहुत बार देखा जाता है कि बेटियां पिता की तरह तानाशाह अंदाज में बोलती हैं जबकि जीवन में पिता उन्हें नियंत्रित करते हैं।
पितृसत्तातमक समाज के अधीन संस्थाएं
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मीरा की माँ ने अपने युवा जीवन में प्रेम किया है। इक्कीस साल की उम्र में उन्होंने विवाह किया लेकिन बेटी के प्रेम संबंध को लेकर भयभीत रहती हैं। देर रात बेटी को किसी लड़के से फोन पर बातें करते देख वह उससे पूछताछ करती है। उस लड़के को अपने घर बुलाती है। वह एक समझदार संवेदनशील मनुष्य की तरह मामले को सुलझाने की कोशिश करती हैं। वे श्री से दोस्ताना व्यवहार करती हैं। लेकिन अनिला की ये ट्रिक ज्यादा काम नहीं आती। मीरा का किशोरावस्था का मन श्री से दूरी बर्दाश्त कर पाता। माँ का श्री के साथ निकटता उसे खलने लगती है।
अक्सर संस्थाएं भी समाज की तरह व्यवहार करती हैं। बोर्डिंग स्कूल की प्रिंसपल का व्यवहार पितृसत्तात्मक समाज से उपजा व्यवहार होता है। वह लड़कियों को लड़कों से कहीं ज्यादा कठोर अनुशासन में रखती हैं। वह लड़कों के किये गए यौन हिंसा से बचने के लिए लड़कियों को उनसे दूर रहने के लिए कहती हैं। उस स्कूल में मीरा पहली लड़की है जिसे स्कूल का हेड प्रीफेक्ट बनाया जाता है। फ़िल्म लड़कियों की योग्यता पर सवाल को खारिज करती है। स्त्री का स्त्री होना उसे कमजोर नहीं करता बल्कि समाज की मर्दवाद सोच उसकी काबिलियत पर संदेह करती है।
फ़िल्म यह संदेश देती है कि स्त्रियों को अपनी इच्छाओं और अंतर्दृष्टि के आधार पर अपनी राह चुनने का अधिकार है। यह कहानी सशक्तिकरण, अंतर्दृष्टि और स्त्री के आत्मविश्वास को एक नई दिशा देने का प्रयास करती है।
बात स्त्री की इच्छाओं, उसकी अंतर्दृष्टि की
फ़िल्म में श्री के चरित्र के माध्यम से दृश्यों को बहुत बारीकी से दर्शाया गया है, जहां स्त्री को केवल हिंसक और नियंत्रित करने वाले पुरुषों को ही नहीं पहचानना है, बल्कि श्री जैसे विन्रम लेकिन उपयोग करने वाले पुरुषों की भी पहचान करनी होगी। फ़िल्म में जब बत्तमीजी करते लड़कों का झुंड मीरा को घेर लेता है तो मीरा अपनी माँ अनिला को फोन करती है और वो आकर मीरा को घर ले जाती है। स्कूल की टीचर मीरा पर ही सवाल उठाती है, तो उसकी माँ उन्हें जबाब देती हैं। कच्ची उम्र के संबंध हमेशा सही दिशा में नहीं होते। फ़िल्म इस तथ्य को भी सही तरीके से दिखाती है। फ़िल्म स्त्री की इच्छाओं, उसकी अंतर्दृष्टि, समझदारी, स्त्रियों द्वारा एक-दूसरे को समझने और मजबूत बनाने की पहल को विकसित करने की दिशा में अच्छी कहानी प्रस्तुत करती है।
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मीरा और श्री में अंतर है। मीरा जितनी इनोसेंट है, श्री वैसा नहीं है। वह देश-विदेश में पढ़कर बड़ा हुआ है। स्त्रियों को प्रभावित करने का तरीका उसे पता है। मीरा उससे मिलता-जुलता रहे, इसलिए उसकी माँ से घुल-मिल जाता है। उसके बारे में जानने की रुचि दिखाता है, उससे रोमांस के टिप्स लेता है, उसका बनाया भोजन चाव से खाता है। माँ इस लड़के में इतनी रुचि लेने लगती है कि बेटी उस लड़के और अपनी माँ दोनों की तरफ से उपेक्षित महसूस करती है। लड़के के साथ वह अपना एकांत चाहती है, लेकिन माँ उसे यह मौका नहीं देना चाहती। लेकिन स्कूल के कठोर अनुशासन और माँ की निगरानी के बावजूद वह अपना एकांत खोज ही लेती है। फ़िल्म में माँ के जीवन का अकेलापन बहुत ही सहज ढंग से दृश्य में दिखता है और श्री इसका फायदा उठाता है।
फ़िल्म ‘गर्ल विल बी गर्ल’ एक स्त्री की इच्छाओं, उसकी पहचान और उसके सशक्तिकरण की कहानी को बेहद संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है। यह केवल माँ-बेटी के रिश्ते की उलझनों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि समाज की पितृसत्तात्मक सोच और उसके प्रभावों को चुनौती देती है। फ़िल्म यह संदेश देती है कि स्त्रियों को अपनी इच्छाओं और अंतर्दृष्टि के आधार पर अपनी राह चुनने का अधिकार है। यह कहानी सशक्तिकरण, अंतर्दृष्टि और स्त्री के आत्मविश्वास को एक नई दिशा देने का प्रयास करती है।