संस्कृतिसिनेमा झांसी का राजकुमार: हल्के-फुल्के अंदाज में लैंगिक भूमिकाओं की परतों पर बात करती फिल्म

झांसी का राजकुमार: हल्के-फुल्के अंदाज में लैंगिक भूमिकाओं की परतों पर बात करती फिल्म

राजकुमार की बेटी को स्कूल की टीचर ने पापा के ऊपर निबंध लिखने के लिया कहा था जब टीचर निबंध सुनती है तो वह बच्ची कहती है, “मेरे पापा हाउसवाइफ हैं” सुनकर वह टीचर पूरी क्लास में हंसती है। अध्यापक जो नई पीढ़ी, नई सोच को जन्म देने वाला होता है वह भी समाज के उन्हीं दूषित विचारों से ग्रसित हो जाता है।

फिल्म ‘झाँसी का राजकुमार’ में मध्यवर्गीय परिवार के आर्थिक एवं सामाजिक संघर्ष को केंद्र में रख कर प्रस्तुत किया गया है। भारतीय पितृसत्तात्मक सोच के विरुद्ध नारीवादी जागरण का स्वर प्रमुख रूप से दिखाई पड़ता है। जिस सामाज ने स्त्रियों को किचन और पुरुषों को ऑफिस तक महदूद कर दिया है उस सीमा को तोड़ते इस फिल्म में पाया गया है। नारीवादी विचार पुरुषों के अधिकारों का हनन नहीं करता है बल्कि पुरुषों को भी समाज के बेफिजूल बंधनों से आज़ाद कर समानता प्रदान करता है। घर को चलाने के लिए स्त्री और पुरुष का होना महत्त्व नहीं है। स्त्री और पुरुष में अधिक भार उठाने में सक्षम कौन है जिससे घर के माहौल का संतुलन बना रहे।

फिल्म की मुख्या भूमिका में गुलशन देवैया, नमिता दुबे, विपिन शर्मा, सुनीता राजवार एवं विवेक मदान मुख्य भूमिका मे हैं। जहां गुलशन देवैया है राजकुमार की भूमिका में और नमिता दुबे के किरदार का नाम देवयानी है। ये दोनों पति पत्नी हैं जिनके दो बच्चे हैं। देवयानी गवर्नमेंट जॉब वाली महिला है। वहीं राजकुमार दिल्ली में केटरिंग का काम करता था। देवयानी के प्रोमोशन की वजह से झांसी आने के बाद अब वह बच्चों समेत घर के काम को देखता है। पूरी कॉलोनी में वह इकलौता मर्द होता है जो
किचन में दिखाई देता है। मोहल्ले के बदमाश लड़के देवयानी को ‘हाउसवाइफ की वाइफ’ कहकर चिढ़ाते हैं। सकीर्णता की गहराई को देखे तो यहां तानों के मौके पर भी हाउसवाइफ शब्द का इस्तेमाल होता है।

राजकुमार की बेटी को स्कूल की टीचर ने पापा के ऊपर निबंध लिखने के लिया कहा था जब टीचर निबंध सुनती है तो वह बच्ची कहती है, “मेरे पापा हाउसवाइफ हैं” सुनकर वह टीचर पूरी क्लास में हंसती है। अध्यापक जो नई पीढ़ी, नई सोच को जन्म देने वाला होता है वह भी समाज के उन्हीं दूषित विचारों से ग्रसित हो जाता है।

बच्चों को दूध पिलाना, उन्हें सुलाना, स्कूल तैयार करके भेजना और स्कूल से वापस लाना ये सारे काम राजकुमार हंसी-ख़ुशी अपनी पत्नी को सपोर्ट करने के लिए करता रहता है। दिल्ली में रहते हुए उसे किसी बात से शिकायत नहीं थी। झांसी आने
के बाद भी करता रहा। हालांकि सोसाइटी बार-बार उसे यह याद दिलाती है कि तुम मर्द हो। स्वेच्छा से भी कोई मर्द अपनी पत्नी को खुलकर सपोर्ट करे तो यह समाज उसके लिए शर्म पैदा करने का काम निरंतर करता रहता है। झांसी की सामाजिक चुनौतियों में लगातार द्वंद बना रहता है। बड़े शहरों और छोटे शहरों के सामाजिक परिवेश में अंतर होता है। इस दोहरी मानसिकता को लेखक निकोलस खर्कोंगोर ने बहुत बेहतरीन ढंग से समेटा है। देवयानी का छोटा बेटा मात्र आठ महीने का था जब उसे ऑफिस जल्दी ज्वाइन करने की वजह से फीड करना छोड़ दिया था। इस बात को लेकर ऑफिस और मोहल्ले की महिलाएं देवयानी को हर बात पर टोकती हैं। हालांकि देवयानी का ऑफिस जाना और राजकुमार का घर पर बच्चे संभालना देख वहां की औरतें बैठ-बैठ कर बातें करती थी। जो चीजें कभी बेहद उपहास के पात्र थी देखते-देखते उन्हें वह सब कुछ अच्छा लगने लगा। राजकुमार अपनी पत्नी की साड़ी धुल कर सुखाता है जिसे देख कर उन्हें कहीं न कहीं अच्छा लगने लगता है जिसकी चर्चा वह करती भी थीं।

औरत को कभी बेरोजगार होने के ताने समाज के आलोचकों के मुंह से नहीं सुनाई पड़ते हैं लेकिन मर्दों को बेरोजगार, बीवी के पैसों पर पलने वाला कहने में देर नहीं लगाते है। क्या इस समाज में घर पर काम करने वाले रोजगार पर नहीं होते हैं? क्या वह जॉब नहीं है? राजकुमार को आते-जाते सब ताने सुनाते रहते हैं। उन्हें मॉडर्न फॅमिली के नाम से मोहल्ले में संबोधित करते हैं। सिर्फ इसलिए कि वे समाज के बनाए हुए बंधनों में फिट नहीं थे। उनके विचारों में वे मॉडर्न इसलिए थे कि उनके घर में और सबकी तरह स्त्री-पुरुष के लैंगिक आधार पर काम बंटे हुए नहीं थे। राजकुमार जब कहीं बाहर जाता बाकी महिलाओं की तरह वह गोद में बच्चा उठा कर चलता जिसे देख कर उसका मज़ाक बनाया जाता था। कहीं बाहर बिल पेमेंट के समय उसकी पत्नी यानी देवयानी पर्स निकाल कर देती जिसे देख कर आसपास के लोग बड़ी हीनदृष्टि से उसे देखा करते थे। इन सबसे कहीं न कहीं उसका मनोबल क्षीण होता दिखाई पड़ने लग रहा था।

समाज के अशिक्षित लोगों पर यह दोष लगाया जाता है कि वह पढ़े-लिखे नहीं हैं जिसकी वजह से वह किसी बदलाव को होता देख उसकी आलोचना में लग जाते हैं पर ऐसा कहना कतई ठीक नहीं है। समाज के पढ़े-लिखे लोग भी इस व्यंग्यात्मक शैली के आलोचक होते हैं। राजकुमार की बेटी को स्कूल की टीचर ने पापा के ऊपर निबंध लिखने के लिया कहा था जब टीचर निबंध सुनती है तो वह बच्ची कहती है, “मेरे पापा हाउसवाइफ हैं” सुनकर वह टीचर पूरी क्लास में हंसती है। अध्यापक जो नई पीढ़ी, नई सोच को जन्म देने वाला होता है वह भी समाज के उन्हीं दूषित विचारों से ग्रसित हो जाता है। मोहल्ले के बदमाश लोग राजकुमार की मजाक उड़ाते है। वह छुप-छुप कर चलता लोगों से ताकि कोई उसे देख कर फिर मज़ाक बनाना शुरू न कर दे। उसको यह सजा सिर्फ अपनी पत्नी को बराबर रखने की वजह से मिलता है।

तस्वीर साभारः TOI

मर्द चाहे राजकुमार को ताने दें लेकिन वहीं कॉलोनी की औरतों को सब समझ आ रहा था। वह राजकुमार की तरह अपने पतियों से घर के कामों में हिस्सा लेने के लिए ज़ोर देने लगी थीं जो उन पितृसत्तात्मक सोच के पुरुषों को अखरने लगा। इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए कॉलोनी के सभी मर्द इकठ्ठा होकर नीतियाँ बनाने लग जाते हैं। वे सब सोचते हैं अगर राजकुमार कहीं जॉब करता तो उसकी पत्नी घर पर काम करती। उन सबने राजकुमार को भड़काना शुरू किया। अगली सुबह राजकुमार जॉब की तलाश में निकलता है जहाँ उसे एक टूरिस्ट गाइडेंस की नौकरी मिलती है जो कि पूरे 30,000 की थी। अब राजकुमार और देवयानी दोनों जॉब पर जाते और घर का काम भी दोनों मिलकर आधा-आधा करते थे।

देवयानी की मुश्किलें इस बीच बढ़ने लगती है और राजकुमार भी जॉब के लिए पूरी तरह से सक्षम नहीं था। महीनों तक ये मानसिक तनाव दोनों झेलते रहते हैं। एक दिन राजकुमार जॉब छोड़ कर पहले की तरह रहना चाहता है जिसे सुन कर उसका ओनर उसकी सैलरी 30,000 से 40,000 करके उसे मनाने की कोशिश करता है। हालांकि राजकुमार इस जॉब के लिए फिट नहीं था फिर उसे शक होता है आखिर मेरे मैनेजर ने ऐसा क्यों किया? पता करने पर उसे मालूम चलता है कॉलोनी के सारे मर्द उससे इसलिए परेशान थे कि वह अपनी पत्नी को जो इज्ज़त और प्यार देता था वह सब अपनी पत्नियों को दे पाने में नाकाम थे। तब उन्होंने मिलकर उसे जॉब पर भेजने की यह रणनीति बनाई थी जिसमें वे सब मिलकर राजकुमार के मैनेजर को अपनी जेब से पैसा देते थे। सब सच जानने के बाद राजकुमार समाज की दूषित मानसिकता से वाकिफ़ हो जाता है और दुबारा से अपनी वही पुरानी दिनचर्या शुरू कर देता है।

राजकुमार इस जॉब के लिए फिट नहीं था फिर उसे शक होता है आखिर मेरे मैनेजर ने ऐसा क्यों किया? पता करने पर उसे मालूम चलता है कॉलोनी के सारे मर्द उससे इसलिए परेशान थे कि वह अपनी पत्नी को जो इज्ज़त और प्यार देता था वह सब अपनी पत्नियों को दे पाने में नाकाम थे।

इस बार बदलाव राजकुमार भी महसूस कर रहा था। अब वह पहले की तरह शर्म नहीं महसूस करता था न उसका मनोबल कमज़ोर था इस बार। दोनों पति-पत्नी फिर ख़ुशी ख़ुशी अपने अपने काम को करने लग जाते हैं। यह कुल 1 घंटे 32 मिनट की शार्ट फिल्म है। स्त्री पुरुष के समानता पर बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है। जिन स्त्रियों को अपने अधिकारों का पता नहीं होता है, उन्हें पता लगने पर वह चुप नहीं रहती हैं अपना अधिकार पाने के लिए विद्रोह करती रहती हैं। फिल्म के माध्यम से मोहल्ले की महिलाओं को दिखाया गया है। पितृसत्ता इसलिए भी स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखता है ताकि उन्हें अधिकारों का ज्ञान न हो जाये। फिल्म में राजकुमार को घर का काम छुड़वा कर उसे जॉब के लिए इसलिए भड़काया गया ताकि वह अपनी पत्नी के काम को न करे जिसे देख कर बाकी महिलाएं अपने पतियों से भी काम में हाथ बटाने की मांग लेकर न जाये। फिल्म में दिखाया गया है समाज में किस तरह लैंगिक भूमिकाओं को तय करके महिलाओं को उन्हें अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इस फिल्म में इन्हीं मुद्दों पर बात की गई है।


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