इतिहास प्रवीणा मेहता: भारतीय वास्तुकार, योजनाकार और राजनीतिक कार्यकर्ता| #IndianWomenInHistory

प्रवीणा मेहता: भारतीय वास्तुकार, योजनाकार और राजनीतिक कार्यकर्ता| #IndianWomenInHistory

प्रवीणा मेहता का वास्तुकला के प्रति दृष्टिकोण केवल तकनीकी या सौंदर्यात्मक नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक पहलुओं को भी गहराई से शामिल किया गया था। उन्होंने मिनेट डी सिल्वा और यास्मीन लारी के साथ मिलकर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के उत्थान के लिए काम किया।

प्रवीणा मेहता भारतीय वास्तुकला, शहरी योजनाओं और सामाजिक कामों में एक प्रसिद्ध नाम हैं। उनका योगदान न केवल भारत में वास्तुकला और शहरी विकास में अहम रहा है, बल्कि वे एक प्रेरणादायक राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं। सर जेजे कॉलेज ऑफ़ आर्किटेक्चर में वास्तुकला का अध्ययन शुरू करने से पहले, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, वह स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू से प्रेरित थीं और ब्रिटिश राज के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग भी लिया था।

प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

प्रवीणा मेहता का जीवन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से गहराई से जुड़ा था। सरोजिनी नायडू से प्रेरित होकर, उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ़ कई विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। इस कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उनका यह समर्पण दिखाता है कि वे सिर्फ एक पेशेवर नहीं, बल्कि समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझने वाली महिला थीं। उन्होंने सर जे.जे. कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर, मुंबई में अपनी वास्तुकला की पढ़ाई शुरू की। लेकिन आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी। इसके बाद, वे आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई, जहां उन्होंने इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन और शिकागो विश्वविद्यालय से वास्तुकला में डिग्री प्राप्त की।

सर जेजे कॉलेज ऑफ़ आर्किटेक्चर में वास्तुकला का अध्ययन शुरू करने से पहले, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, वह स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू से प्रेरित थीं और ब्रिटिश राज के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग भी लिया था।

1956 में भारत लौटने के बाद, प्रवीणा ने वास्तुकला और शहरी विकास के क्षेत्र में काम शुरू किया। उन्होंने घरों, कारखानों, स्कूलों, और शहरी संस्थानों के डिजाइनों पर काम किया। उनके डिज़ाइन केवल इमारतों तक सीमित नहीं थे, वे सामाजिक संरचनाओं और सांस्कृतिक परिवर्तनों को भी दिखाते थे। उनकी सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक नवी मुंबई (नई बॉम्बे) परियोजना थी। 1964 में उन्होंने चार्ल्स कोरिया और शिरीष पटेल के साथ मिलकर एक ऐसी योजना लाई, जिसमें मुंबई का विस्तार उसके मुख्य द्वीप क्षेत्र से बाहर किया गया। यह योजना, जिसे बाद में महाराष्ट्र सरकार ने लागू किया, आधुनिक शहरी विकास के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई। इस परियोजना के तहत, आवास, सड़कें, औद्योगिक क्षेत्र और पुलों का निर्माण किया गया।

उनकी सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक नवी मुंबई (नई बॉम्बे) परियोजना थी। 1964 में उन्होंने चार्ल्स कोरिया और शिरीष पटेल के साथ मिलकर एक ऐसी योजना लाई, जिसमें मुंबई का विस्तार उसके मुख्य द्वीप क्षेत्र से बाहर किया गया।

प्रवीणा मेहता का वास्तुकला के प्रति दृष्टिकोण केवल तकनीकी या सौंदर्यात्मक नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक पहलुओं को भी गहराई से शामिल किया गया था। उन्होंने मिनेट डी सिल्वा और यास्मीन लारी के साथ मिलकर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के उत्थान के लिए काम किया। उनका लक्ष्य इन लोगों के लिए बेहतर और सस्ते आवास तैयार करना था। वह भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास और पर्यावरणीय संवेदनशील योजनाओं पर भी सक्रिय रहीं। उनके डिजाइनों में कम लागत और टिकाऊपन पर विशेष ध्यान दिया जाता था, ताकि गरीब वर्ग के लोग भी बेहतर जीवन जी सकें।

प्रमुख वास्तुकला परियोजनाएं

तस्वीर साभार: Black Mountain College

उनके उल्लेखनीय वास्तुशिल्प डिजाइनों में पटेल हाउस, काहिम शामिल है। पटेल हाउस साल 1962 में बना समुद्र के सामने एक वीकेंड रिसॉर्ट है। ऐसा कहा जाता है कि यह ली कोर्बुसिए से प्रभावित था। उनका एक और लोकप्रिय डिज़ाइन महाराष्ट्र में फैक्ट्री चिंचवाड़ा था, जिसे जेबी आडवाणी ओर्लिकॉन इलेक्ट्रोड्स फैक्ट्री कहा जाता था। इसे 1963 में श्रम-गहन ऑन-साइट निर्माण के साथ बनाया गया था, और इसकी वेंटिलेशन और रोशनी खिड़कियों की लयबद्ध व्यवस्था द्वारा प्रदान की गई थी। प्रवीणा मेहता और उनके पति नृत्य कला से जुड़े थे, और उन्होंने इसे अपने वास्तु डिजाइनों में भी स्थान दिया।

प्रवीणा मेहता का वास्तुकला के प्रति दृष्टिकोण केवल तकनीकी या सौंदर्यात्मक नहीं था, बल्कि इसमें सामाजिक पहलुओं को भी गहराई से शामिल किया गया था। उन्होंने मिनेट डी सिल्वा और यास्मीन लारी के साथ मिलकर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के उत्थान के लिए काम किया।

उनके अनुसार, वास्तुकला और नृत्य दोनों में लय और संतुलन की जरूरत होती है। अरेही में 600 वर्ग फीट के एक ऑडियोविजुअल रिकॉर्डिंग सेंटर के निर्माण में उन्होंने इस लयबद्धता को बखूबी दिखाया। प्रवीणा, चार्ल्स कोरिया और शिरीष पटेल के प्रस्तावित नवी मुंबई योजना को 1979 में लागू किया गया। इस योजना में सड़कें, पुल, और औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन शैली को संरक्षित करने का भी प्रयास किया गया। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले पदों पर आसीन किया गया।

उनका दृष्टिकोण और संघर्ष

तस्वीर साभार: AD

एक पुरुष-प्रधान समाज में काम करते हुए, प्रवीणा मेहता ने कई चुनौतियों का सामना किया। लेकिन उनका कहना था कि जब एक महिला अपने करियर के प्रति पूरी तरह समर्पित होती है, तो वह अपनेआप को सिर्फ एक महिला नहीं, बल्कि एक पेशेवर के रूप में देखती है। यही विचारधारा उन्हें अपने क्षेत्र में सफलता की ऊँचाइयों तक ले गई। उनकी योजनाओं में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण और आधुनिक तकनीकों का समावेश दोनों था। उनका मानना था कि पारंपरिक भारतीय कला रूपों को ‘कंक्रीट और मोर्टार की भाषा’ में ढाला जा सकता है। 

उनकी योजनाओं में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण और आधुनिक तकनीकों का समावेश दोनों था। उनका मानना था कि पारंपरिक भारतीय कला रूपों को ‘कंक्रीट और मोर्टार की भाषा’ में ढाला जा सकता है। 

प्रवीणा मेहता ने केवल भवन नहीं बनाए, बल्कि समाज के लिए एक नई दृष्टि प्रस्तुत की। उन्होंने अपने काम में वास्तुकला को कला, संस्कृति और समाज से जोड़ा। उनके योगदान का महत्व केवल उनके समय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आज भी उनके सिद्धांत और दृष्टिकोण भारतीय वास्तुकला और शहरी नियोजन में प्रासंगिक हैं। उनकी विरासत आज भी जीवित है, और वह आने वाली पीढ़ियों के वास्तुकारों और योजनाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी। उनके कार्यों ने यह साबित कर दिया कि सही दृष्टिकोण और समर्पण के साथ कोई भी बाधा पार की जा सकती है। प्रवीणा मेहता का जीवन यह दिखाता है कि एक महिला वास्तुकार कैसे समाज और वास्तुकला के माध्यम से स्थायी प्रभाव छोड़ सकती है।

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