गांव से आई एक लड़की की कहानी, जहां पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी, गुलामी और लाचारी ने घर बना रखा था, वैसे घर में आज़ादी के सपने देखना ही एक संघर्ष था। मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मेरा जन्म एक ऐसे समाज में हुआ, जहां लड़कियों की शादी 18-19 साल की उम्र में कर देना आम बात थी। मेरे लिए रिश्ते 16 साल की उम्र से आने शुरू हो गए थे। हालांकि मेरे माता-पिता ने फैसला किया कि शादी में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन यह डर हमेशा मन में था कि पता नहीं कब शादी हो जाए। मैंने सोचा, अगर घर के काम-काज में हाथ बंटाने लगूँगी तो शायद मेरे माँ-बाप सोचें कि अब यह शादी के लिए तैयार है। इसलिए, मैं खाना पकाने और घर के दूसरे कामों से दूर रहती थी। पढ़ने में मैं बहुत कमजोर थी क्योंकि पढ़ाई बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। मैं आठवीं में थी जब मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया।
तब मुझे यह एहसास ही नहीं था कि पढ़ना कितना जरूरी है। मेरा जीवन जैसे रुक सा गया और मेरे दोस्त भी छुट गए। उसके बाद मैं खुश थी जीवन में क्योंकि अब मुझे पूरा दिन घर पर टीवी देखने को मिलता था। मेरे परिवार के लोग और माता-पिता की चिंता बढ़ गई थी और मुझे तो पढ़ना ही नहीं था, इसलिए माँ घर के काम सीखने को बोलती थी। यह उनके लिए चिंता का विषय था कि अगर लड़की पढ़े नहीं, तो उसके लिए सरकारी नौकरी वाला लड़का नहीं मिलेगा। मेरे माँ-बाप परेशान थे। आज के समाज में एक चलन है कि लड़की कम से कम स्नातक होनी चाहिए, तबही उसे सरकारी नौकरी वाला लड़का मिलेगा। अब शादी के लिए रिश्ते आते थे पर मेरे कम पढ़े-लिखे होने के कारण कोई सरकारी नौकरी वाला हाँ नहीं बोल रहा था।
पढ़ने में मैं बहुत कमजोर थी क्योंकि पढ़ाई बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। मैं आठवीं में थी जब मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया।तब मुझे यह एहसास ही नहीं था कि पढ़ना कितना जरूरी है। मेरा जीवन जैसे रुक सा गया और मेरे दोस्त भी छुट गए।
अंबेडकर आंदोलन से जुड़ाव
हालांकि मुझे पढ़ाई पसंद थी और मुझपर शादी का दबाव भी बढ़ने लगा। तब मैंने तय किया कि अगर इस दायरे से बाहर निकलना है, तो पढ़ाई ही मेरा हथियार बनेगी। बचपन में मैं पढ़ाई में कमजोर थी क्योंकि मुझे खेल-कूद और सपनों की दुनिया में खोए रहना ज्यादा पसंद था। लेकिन, मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई की इच्छा का सम्मान किया। उन्होंने न केवल मेरी शिक्षा का खर्च उठाया, बल्कि हर कदम पर मेरा साथ भी दिया। मैंने पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया और धीरे-धीरे पढ़ाई के दौरान ही मेरी मुलाकात अंबेडकर आंदोलन से जुड़े दोस्तों से हुई, जिन्होंने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला।
अब मैं भी अंबेडकर आंदोलन से जुड़ गई। अंबेडकर आंदोलन मेरे लिए सिर्फ एक राजनीतिक मंच नहीं था। यह मेरे जीवन का मकसद बन गया। इससे मुझे आत्मविश्वास और नई ऊर्जा मिली। इसी के जरिए मैंने अपनी पहचान बनाई। मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा समर्थन किया। यहां तक कि अंबेडकर आंदोलन से जुड़ने में भी। हालांकि, उनका मानना था कि शादी करना जरूरी है। वे चाहते थे कि मैं पढ़-लिख जाऊं ताकि एक सरकारी नौकरी वाले लड़के से मेरी शादी हो सके। उनका एक और उद्देश्य यह था कि अगर शादी के बाद कोई मुश्किल आए, तो मेरी शिक्षा मुझे आत्मनिर्भर बना सके।
मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई की इच्छा का सम्मान किया। उन्होंने न केवल मेरी शिक्षा का खर्च उठाया, बल्कि हर कदम पर मेरा साथ भी दिया। मैंने पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया और धीरे-धीरे पढ़ाई के दौरान ही मेरी मुलाकात अंबेडकर आंदोलन से जुड़े दोस्तों से हुई, जिन्होंने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला।
जब मुझे मिली आज़ादी जीने की
इसी सोच के चलते पढ़ाई के लिए उन्होंने मुझे गांव से 1400 किलोमीटर दूर भेजा। यही वह अवसर था, जिसने मेरे जीवन में बदलाव लाना शुरू किया। बाहर पढ़ाई करना मेरे लिए एक ऐसा अवसर था जिसने मेरी सोच और सपनों को बदल दिया। इस सफर ने मुझे जाति की सीमाओं से बाहर निकलने का अनुभव दिया। मुझे अच्छे दोस्त बनाने, दूसरी संस्कृतियों को जानने और स्वतंत्रता से जीने का मौका मिला। इस दौरान मैंने अकेले यात्रा करना, सवाल पूछना, अपने अधिकारों के लिए लड़ना और आंदोलनों में भाग लेना सीखा। मेरे परिवार और गांव की अन्य लड़कियों की तुलना में मेरा जीवन बहुत अलग रहा। मैं अपने परिवार की पहली लड़की हूं जिसे इतनी आज़ादी मिली। मेरी बड़ी बहन और गांव की अन्य लड़कियों को कभी अकेले यात्रा करने या अपनी मर्ज़ी से जीने का मौका नहीं मिला।
शिक्षा और आंदोलन का असर
मुझे अपनी पसंद के लड़के से शादी करने की छूट भी मिली। मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी पसंद से जीवन जीने का पूरा हक दिया, जो मेरे भाई को भी नहीं मिला। शिक्षा और आंदोलन से जुड़ना मेरे लिए एक रोमांचक सफर बन गया। बाहर जाकर लोगों से मिलना और आंदोलनों का हिस्सा बनना मुझे अपनी पहचान बनाने का अवसर दे गया। अब मैं आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखने से नहीं डरती। यहां तक कि हज़ारों लोगों के सामने मंच पर भी अपनी बात रख सकती हूं। इस यात्रा ने मेरे नारीवादी दृष्टिकोण को मजबूत किया और मुझे एक महिला के रूप में अपनी जगह बनाने का साहस दिया।
मैं अपने परिवार की पहली लड़की हूं जिसे इतनी आज़ादी मिली। मेरी बड़ी बहन और गांव की अन्य लड़कियों को कभी अकेले यात्रा करने या अपनी मर्ज़ी से जीने का मौका नहीं मिला।
महिलाओं और अपने समुदाय के लिए कुछ करने का जज़्बा मेरे भीतर बहुत बड़ा था। मैंने महसूस किया कि मुझे पढ़ाई करनी चाहिए क्योंकि इससे न केवल मुझे ज्ञान मिलेगा, बल्कि मैं समाज और लोगों के बारे में गहरी समझ विकसित कर सकूंगी। यही वह जज़्बा था जिसने मुझे काम करने और सीखने के लिए प्रेरित किया। गुजरात में कई समूहों के साथ काम करने का अवसर मिला और यह मेरे लिए एक साहसिक यात्रा बन गया। गांव-गांव जाना, विभिन्न लोगों से मिलना, उनकी संस्कृति के बारे में जानना मेरे लिए एक किताब पढ़ने से कहीं ज्यादा रोचक था।
मेरे अंदर की लेखिका का उदय
यह अनुभव मेरे जज़्बे को और बढ़ा देता था। इसके साथ ही एक समय ऐसा भी आया जब मैंने इन लोगों की अनकही कहानियां फोटो, वीडियो, और फिर कविता के माध्यम से लिखना शुरू किया। यह सफर खास तब हुआ जब मुझे नारीवादी संस्थान फेमिनिज़म इन इंडिया के हिंदी संस्करण में लिखने का मौका मिला। पहले तो मुझे लगा कि मैं लेखन में इतनी कुशल नहीं हूं। जब मैंने लिखना शुरू किया, तो समझ आया कि लिखने से पहले पढ़ाई और रिसर्च करना कितना जरूरी है। अब मुझे लेख लिखने में काफी आनंद आने लगा है। यही कारण है कि मैंने अपनी कविताओं को विभिन्न पत्रिकाओं और वेबसाइटों पर प्रकाशित होते देखा है। लेखन शुरू करने के बाद, मैंने अपने विचारों को पन्नों पर उतारने की कला सीखी। अब मैं नियमित रूप से लिख रही हूं और मेरे पास लिखने के लिए बहुत कुछ है। इससे मुझे अपनी पहचान एक लेखिका के रूप में बनाने का आत्मविश्वास मिला है।
जब मैंने लिखना शुरू किया, तो समझ आया कि लिखने से पहले पढ़ाई और रिसर्च करना कितना जरूरी है। अब मुझे लेख लिखने में काफी आनंद आने लगा है। यही कारण है कि मैंने अपनी कविताओं को विभिन्न पत्रिकाओं और वेबसाइटों पर प्रकाशित होते देखा है।
लेखन अब सिर्फ शब्दों का खेल नहीं रहा, बल्कि यह मुझे अपने समाज, संस्कृति, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने का अवसर देता है। मैंने जाति, धर्म, समाज, और अन्य पेचीदा मुद्दों पर काफी सोच-विचार किया और कई बार लोगों से संवाद किया। मेरे लिए लेखन अब सिर्फ जानकारी देने का तरीका नहीं हैं, बल्कि यह मुद्दों के कारणों को जानने और समझने का एक जरिया है। मेरे लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है लोगों के जीवन को समझना। उनके संघर्षों को सुनना, और उनके लिए लिखना। मैं अब ग्राउंड रिपोर्टिंग करती हूं, इंटरव्यू लेती हूं, और उनके मुद्दों पर लिखती हूं। मुझे यकीन है कि इस यात्रा में और भी बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलेगा। ये मेरा फेमिनिस्ट जॉय है कि मैं अपने समुदाय का बड़े पैमाने पर प्रतिनिधित्व कर पा रही हूं।