इंटरसेक्शनलधर्म आखिर देश में प्यार क्यों एक निजी नहीं बल्कि राजनीतिक फैसला है?

आखिर देश में प्यार क्यों एक निजी नहीं बल्कि राजनीतिक फैसला है?

देश के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में दो धर्म, जाति या समुदाय के लोगों का कानूनन शादी, बच्चे, घर खरीदना, या महज रिश्ते में होना एक ‘जटिल काम’ है। अमूमन प्यार और शादी निजी विषय होते हुए भी, देश में ये सिर्फ निजी फैसला नहीं होता।

साल 2024 में करण जौहर द्वारा निर्मित और सोमेन मिश्रा की रचित ‘लव स्टोरियां‘ रिलीज हुई, जिसमें छह अलग-अलग निर्देशक छह जोड़ों की वास्तविक जीवन की प्रेम कहानियों को दिखाती है। ये प्रेम कहानियां कोई आम कहानियां नहीं थी। ये वो कहानियां थी जिनके खिलाफ़ समाज कड़ा विरोध करता है। लव स्टोरियां ने इंडिया लव प्रोजेक्ट के डाक्यूमेन्ट की गई कहानियों को ली, जो पत्रकार प्रिया रमानी, समर हलर्नकर और निलोफर वेंकटरमन का बनाया गया एक इंस्टाग्राम पेज है। यह पेज उन लोगों की कहानियों को बताती है जिन्होंने अपने प्रिय व्यक्ति के साथ रहने के लिए सभी प्रकार की सामाजिक बाधाओं को पार किया है।

हमारा देश जो प्यार और सहिष्णुता के दावे करता है, यहां एक रिश्ता कायम रखना बेहद मुश्किल है। देश के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में दो धर्म, जाति या समुदाय के लोगों का कानूनन शादी, बच्चे, घर खरीदना, या महज रिश्ते में होना एक ‘जटिल काम’ है। अमूमन प्यार और शादी निजी विषय होते हुए भी, देश में ये सिर्फ निजी फैसला नहीं होता। खासकर तब जब अंतरधार्मिक या अंतरजातीय रिश्ता हो। पिछले कुछ सालों में देश में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किए गए हैं, जिससे अंतर-सामुदायिक जोड़ों के लिए कानूनन एक साथ रहना और भी मुश्किल हो गया है। ये राज्य-स्तरीय कानून अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, जो व्यक्तियों को अपना धर्म बदलने की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।

हम दोनों के घरों में रिश्ते को लेकर विरोध था। हालांकि मेरे परिवार ने मुझे काफी परेशान किया, पर मैं शुक्रगुजार हूं कि घरवालों ने मामा या चाचा को मेरे जीवन के बारे में ज्यादा बताया नहीं वरना इमरान का जीवन खतरे में आ जाता। मेरी शादी की पहली शर्त यही थी कि मैं धर्म परिवर्तन नहीं करूंगी और इससे इमरान को कोई दिक्कत नहीं थी।

सामाजिक सुरक्षा की जायज़ चिंता

सरकार विवाह के संदर्भ में अवैध धर्म परिवर्तन‘ को प्रतिबंधित करना चाहती है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत को खारिज कर दिया था। लेकिन भारत के 29 राज्यों में से आधे से ज़्यादा राज्यों ने विवाह के ज़रिए किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून बनाए हैं। धर्म और प्यार बेहद निजी विषय होते हुए भी सरकार लोगों पर निगरानी करने से नहीं बच रही। ऐसे हजारों जोड़े हैं, जो प्यार में धर्म परिवर्तन की न तो जरूरत महसूस करते हैं और न ही करते हैं। लेकिन, इन लोगों के सामने होती हैं अनगिनत चुनौतियां और समस्याएं, जिसमें सरकार या प्रसाशन भी मदद नहीं करती। सुरभि चतुर्वेदी और इमरान अली पिछले चार सालों से शादीशुदा हैं और राजधानी दिल्ली में साथ रह रहे हैं। आज उनके दो बच्चे भी हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

लेकिन, आम और सुकून भरी दिखने वाली जिंदगी उनके लिए आसान नहीं रही। सुरभि दिल्ली में पली-बढ़ी है, लेकिन वह उत्तर प्रदेश के एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार से आती हैं। वहीं, इमरान एक मुस्लिम परिवार से संबंध रखते हैं। धर्म परिवर्तन, सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों के विषय में सुरभि बताती हैं, “हम दोनों के घरों में रिश्ते को लेकर विरोध था। हालांकि मेरे परिवार ने मुझे काफी परेशान किया, पर मैं शुक्रगुजार हूं कि घरवालों ने मामा या चाचा को मेरे जीवन के बारे में ज्यादा बताया नहीं वरना इमरान का जीवन खतरे में आ जाता। मेरी शादी की पहली शर्त यही थी कि मैं धर्म परिवर्तन नहीं करूंगी और इससे इमरान को कोई दिक्कत नहीं थी।”

मेरी माँ इस कदर विरोध करती थीं कि एक बार उन्होंने पुलिस बुला ली और कहा कि मैं पैसे और गहने लेकर भाग रही थी और रोकने पर उन्हें मारने की कोशिश की। उनको लगा कि भले मैं जेल चली जाऊं, पर शादी न हो। मेरे साथ शारीरिक हिंसा भी हुई। मैं मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से परेशान थी। इसलिए, मैं एक दिन घर से निकल गई और एक साल तक घरवालों से मेरा कोई कान्टैक्ट नहीं था।

सुरभि आगे कहती हैं, “आज भी इमरान पर अपने परिवार का डर हावी हो जाता है। मेरी बेटियां हुई तो मेरी सास सिर्फ दुखी ही नहीं थीं, बल्कि उन्होंने मुझे ब्लेम किया कि चूंकि अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ़ हमने शादी की, मेरे माँ की बददुआ के कारण बच्चियां हुई हैं। ये जानने के बाद कि बच्चियां हुई हैं, इनके सभी घरवाले वापस चले गए और मेरी माँ भी मिलने नहीं आईं।” रूढ़िवादी भारतीय परिवारों में अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को लंबे समय से नापसंद किया जाता रहा है, लेकिन हाल के सालों में, इस तरह की शादियों के बारे में बातचीत और भी अधिक मुश्किल हो गई है। अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों में भी सबसे अधिक तिरस्कार हिंदू महिलाओं और मुस्लिम पुरुषों के बीच हो रही शादियों के लिए आरक्षित है।

धर्म परिवर्तन की थ्योरी और परिवारवालों का उत्पीड़न   

मुस्लिम लड़कों का हिन्दू महिलाओं को बहकाने वाली थ्योरी काफी आम है। सुरभि बताती हैं, “मेरे परिवार ने मुझे पढ़ाने-लिखाने के बावजूद, सिर्फ यही सिखाया गया कि अच्छी हाउसवाइफ कैसे बनना है।  इमरान से मिलने के बाद, मैं समझ पाई कि मेरे विचारों का भी महत्व है और मैं अपने फैसले खुद ले सकती हूं। फैसले लेने के लिए फाइनैन्शल इंडिपेंडेंस भी बहुत जरूरी है। मैं अपनी माँ से पूछती थी कि मुझे इतना अक्लमंद समझा गया कि मैं किसी भी अंजान व्यक्ति का घर बसा देती पर क्या मुझे इतनी अक्ल नहीं है कि मैं अपना जीवनसाथी खुद चुन सकूँ।” अक्सर ऐसे घरों में जहां अंतरधार्मिक रिश्तों को लेकर विरोध होता है, वहां अपनों के शामिल होने के बावजूद, लोग रिश्ते को खत्म करने के लिए किसी भी हद तक जाते हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

सुरभि बताती हैं, “मेरी माँ और बहन हमेशा विरोध में रही हैं। मेरी आज तक बहन से बात नहीं होती। मेरी माँ इस कदर विरोध करती थीं कि एक बार उन्होंने पुलिस बुला ली और कहा कि मैं पैसे और गहने लेकर भाग रही थी और रोकने पर उन्हें मारने की कोशिश की। उनको लगा कि भले मैं जेल चली जाऊं, पर शादी न हो। मेरे साथ शारीरिक हिंसा भी हुई। मैं मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से परेशान थी। इसलिए, मैं एक दिन घर से निकल गई और अगले एक साल तक घरवालों से मेरा कोई कान्टैक्ट नहीं था। हम ऐसे देश में रहते हैं कि सामाजिक समस्याओं से किसी को कोई परेशानी नहीं होती। लेकिन, दो लोग जो आपस में प्यार करते हैं, उनसे दिक्कत है और हम कोई अशिक्षित लोगों की बात नहीं कर रहे। मेरी माँ और बहन दोनों शिक्षित हैं।”

ऐसा भी हुआ है कि मेरा बॉयफ्रेंड होटल पहले पहुंच गया और रूम की बुकिंग हो चुकी थी। लेकिन, मेरे जाने पर उन्होंने कमरा देने से मना कर दिया और हमें मजबूरन दूसरी जगह देखनी पड़ी। मैं पढ़ी-लिखी बालिग लड़की हूं और रिश्ते से बाहर निकलना भी मेरे लिए आसान होगा। लेकिन, चूंकि वो मुस्लिम है, मुझे उसकी चिंता ज्यादा होती है।

क्या सरकार की निगरानी मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं

आम तौर पर एक जोड़े के तौर पर बाहर घूमना-फिरना, बेहद आम है। लेकिन, बात जब अंतरधार्मिक जोड़ों की आती है, तो उनका अनुभव बिल्कुल अलग होता है। हिन्दू परिवार से ताल्लुक रखने वाली अवन्तिका (नाम बदला हुआ) उत्तर प्रदेश के एक नामी संस्थान से पीएचडी कर रही हैं। इस विषय पर वह बताती हैं, “सांस्कृतिक तौर पर मुझे और मेरे बॉयफ्रेंड जो मुस्लिम हैं, दिक्कत नहीं होती क्योंकि हम दोनों ही धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा नहीं देते। लेकिन, हम जब कभी भी बाहर गए हैं, तो हमें अलग-अलग धर्म के कारण मुश्किल हुई है। ऐसा भी हुआ है कि मेरा बॉयफ्रेंड होटल पहले पहुंच गया और रूम की बुकिंग हो चुकी थी। लेकिन, मेरे जाने पर उन्होंने कमरा देने से मना कर दिया और हमें मजबूरन दूसरी जगह देखनी पड़ी। मैं पढ़ी-लिखी बालिग लड़की हूं और रिश्ते से बाहर निकलना भी मेरे लिए आसान होगा। लेकिन, चूंकि वो मुस्लिम है, मुझे उसकी चिंता ज्यादा होती है। उत्तर प्रदेश में हमें इस बात का खास ख्याल रखना पड़ता है कि हम कहां जा सकते हैं या घूम सकते हैं।”   

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

देश में सांप्रदायिकता वाली मानसिकता कितनी गहरी है, यह उस घटना से स्पष्ट होती है, जब लोकप्रिय आभूषण ब्रांड तनिष्क को सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी प्रतिक्रिया के बाद, एक अंतरधार्मिक जोड़े को दिखाने वाले विज्ञापन को वापस लेना पड़ा। विज्ञापन में एक हिंदू माँ के लिए उसके मुस्लिम ससुराल वालों द्वारा आयोजित एक गोद भराई समारोह दिखाया गया था। अंतरधार्मिक रिश्तों पर अपना अनुभव बताते हुए मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली कोलकाता की रहने वाली 25 वर्षीय रिसर्च स्कालर हीना (नाम बदल हुआ) बताती हैं, “मैं कुछ साल पहले एक हिन्दू उच्च जाति के लड़के को डेट कर रही थी पर उसने कभी किसी को नहीं बताया कि वो मुझे डेट कर रहा है।”

मैं कुछ साल पहले एक हिन्दू उच्च जाति के लड़के को डेट कर रही थी पर उसने कभी किसी को नहीं बताया कि वो मुझे डेट कर रहा है। बाद में हमारा ब्रेकअप हो गया और मैंने देखा कि वो किसी हिन्दू लड़की के साथ है जिसके बारे में सोशल मीडिया और दोस्तों के बीच उसने खुलकर बात रखी। ये काफी अजीब था क्योंकि ये मुझे एहसास कराना था कि मैं उस समुदाय से नहीं हूं।

वह आगे बताती हैं, “बाद में हमारा ब्रेकअप हो गया और मैंने देखा कि वो किसी हिन्दू लड़की के साथ है जिसके बारे में सोशल मीडिया और दोस्तों के बीच उसने खुलकर बात रखी। ये काफी अजीब था क्योंकि ये मुझे एहसास कराना था कि मैं उस समुदाय से नहीं हूं। परिवार की बात करूं तो हालांकि मेरी माँ फेमिनिस्ट हैं, लेकिन फिर भी मेरे अंतरधार्मिक रिश्ते के लिए उनकी सहमति नहीं होती क्योंकि उन्हें चिंता होती है कि ये अनुभव मेरे लिए अच्छा नहीं रहेगा। रीति-रिवाज के नाम पर सब असहमत हो जाते हैं। लेकिन, किसी भी समुदाय के अंदर पितृसत्ता के कारण लड़कियों के लिए कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है।”   

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में लगभग दो-तिहाई हिंदू चाहते हैं कि हिंदू महिलाएं अपने धर्म से बाहर शादी न करें। भारतीय मुसलमानों के भी एक बड़े हिस्से ने मुस्लिम महिलाओं के बारे में यही कहा। सुरभि और इमरान आज भी कुछ चुनिंदा समय में कुछ रास्तों से आना-जाना नहीं करते क्योंकि सामाजिक तौर पर वे कमजोर महसूस करते हैं। अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह भारत में हमेशा से रहा है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि ये शहरीकरण, सहशिक्षा और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव का परिणाम हैं। वहीं, कुछ रूढ़िवादी इसे पश्चिमी प्रभाव भी मानते हैं।

जब आप फाइनैन्शल और सामाजिक तौर पर स्ट्रॉंग होते हैं तो चीजें आसान होती है। इसी देश में सैफ और करीना जैसे जोड़े भी हैं और उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती। इसलिए, हम गरीबी या कमतर सामाजिक स्तर अफोर्ड नहीं कर सकते क्यों फिर धर्म ज्यादा आड़े आएगा।

इमरान कहते हैं, “जब आप फाइनैन्शल और सामाजिक तौर पर स्ट्रॉंग होते हैं तो चीजें आसान होती है। इसी देश में सैफ और करीना जैसे जोड़े भी हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग से ज्यादा कोई दिक्कत नहीं होती। इसलिए, हम गरीबी या कमतर सामाजिक स्तर अफोर्ड नहीं कर सकते क्यों धर्म ज्यादा आड़े आएगा। लेकिन, हम फिर भी ऐसी जगह नहीं जाते जहां कोई दिक्कत होने की आशंका हो।” इमरान मानते हैं कि इस तरह चौकन्ना होकर जीना, या ज्यादा सावधानी बरतना मुश्किल है। वो बताते हैं कि वो साल 2014 से पहले कई मुद्दों पर सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करते थे लेकिन अब वो इन सबसे दूर हैं।  

तस्वीर साभार: NPR

मीडिया के अनुसार, जुलाई 2021 तक सिर्फ उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद’ कानून के तहत कम से कम 80 लोगों को जेल भेजा जा चुका था। इनमें से ज़्यादातर मुस्लिम पुरुष थे। भारतीय राष्ट्रीय कानून 1954 के विशेष विवाह अधिनियम के तहत अंतरधार्मिक जोड़ों को विवाह करने की अनुमति है। लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है। उन्हें निवास का प्रूफ देना होता है, स्थानीय अधिकारियों को अपने विवाह के इरादे के बारे में सूचित करना होगा और प्रतीक्षा अवधि का पालन करना होगा। इस दौरान कोई भी व्यक्ति आपत्ति दर्ज करा सकता है और सभी आपत्तियों की जांच की जानी चाहिए, जिसमें समय लगता है।

भारत में अंतरधार्मिक और अंतरजातीय प्रेम कहानियां सिर्फ दो लोगों का रिश्ता नहीं, बल्कि समाज के पूर्वाग्रहों और पितृसत्ता के खिलाफ़ संघर्ष हैं। सुरभि और इमरान जैसे जोड़े पारिवारिक विरोध, सामाजिक तिरस्कार और कानूनी अड़चनों का सामना करते हैं। धर्मांतरण विरोधी कानून और सामाजिक बहिष्कार संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन करते हैं। ऐसे रिश्ते समानता और साहस का प्रतीक है। इसलिए, सरकार और समाज को प्रेम और विवाह के अधिकारों के साथ सुरक्षित और समावेशी वातावरण सुनिश्चित करना चाहिए।

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