समाजमीडिया वॉच सोशल मीडिया के दौर में ‘कैंसल कल्चर’ क्या है?

सोशल मीडिया के दौर में ‘कैंसल कल्चर’ क्या है?

जब कोई सेलिब्रिटी या सार्वजनिक व्यक्ति ऐसा कुछ कहता, लिखता या करता है जिसे जनता अनुचित और आपत्तिजनक मानती है। इसका तंत्र कुछ इस प्रकार काम करता है जैस अगर सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग किसी सार्वजनिक हस्ती की किसी हरकत का विरोध करते हैं, तो उस व्यक्ति को कैंसल करने की तेजी होने लगती है।

दोस्तों और परिचितों के समूह में हो रही आपसी बातचीत में सहमति और अपनी पसंद-नापसंद के बारे में बात करने के बाद अचानक एक परिचित आकर कहती हैं कि मैं इस विषय पर आपके विचारों से सहमत हूं, लेकिन सार्वजनिक या अपने परिचितों के सामने इस तरह के विचार रखने से डरती हूं। उनका कहना है कि मुझे डर है कि मैं लीक से हटकर कुछ कहा या पूछा तो मुझे नकार दिया जाएगा, मतलब मैं कैंसल हो जाऊंगी। इसके बाद मेरे दिमाग में यह शब्द ठहर गए कि हमारा इस तरह का डर और शर्म किस तरह से लोगों को ऊहापोह की स्थिति में जीने को मजबूर करती है। लोग इस तरह का सेल्फ डिफेंस मैकेनिजम की कोशिश करते हैं, जिससे वे सार्वजनिक रूप से नकारे जाने (कॉल आउट) से बच सकें।

इस तरह से हम उस दौर में है जहां बिना किसी डर और शर्म की स्थिति में जीने पर भी आपको नकारा जा सकता है और इसके विपरीत अगर आप वोकल नहीं है तो भी आपको नकारा जा सकता है। अगर आप ‘वोक’ नहीं हैं, तो आप ‘कैंसल’ किए जाने के जोखिम में हैं या ‘वोक बैशिंग’ (वोक होने के कारण आलोचना) का सामना कर सकते हैं। कैंसल कल्चर हमारे समाज के ताने-बाने में इतनी गहराई तक समा चुका है कि इस वजह से कुछ लोग सीखने, बातचीत करने और अपनी बात रखने से पीछे हटने लगे हैं। इसे ही कैंसल कल्चर कहते हैं। 

कैंसल कल्चर एक सांस्कृतिक घटना है, जिसमें किसी व्यक्ति को यह मानते हुए कि उसने किसी अस्वीकार्य तरीके से काम किया है या कोई अनुचित बात कही है, बहिष्कृत, तिरस्कृत, नौकरी से निकाला या अपमानित किया जाता है, जिसमें अक्सर सोशल मीडिया की भूमिका भी होती है।

आखिर कैंसल कल्चर है क्या?

कैंसल कल्चर एक अवधारणा के रूप में हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर फैला है। इसकी उत्पत्ति एक विशेष सामाजिक कार्यकर्ता समूह से हुई थी, लेकिन यह मुख्यधारा में तेज़ी से लोकप्रिय हो गया है। कैंसल कल्चर एक नई अवधारणा है, जो विशेष रूप से पिछले एक दशक से कुछ ज्यादा सामने आई है और मुख्य रूप से इंटरनेट कल्चर का उत्पाद रही है। इस शब्द का सटीक अर्थ अभी भी पूरी तरह निर्धारित नहीं हुआ है। शायद इसलिए क्योंकि यह नया है और इसके दायरे का विस्तार ऑनलाइन व्यवहार के साथ हो रहा है।

मेरियम-वेबस्टर के अनुसार, यदि कोई विज्ञापन अभियान अनुचित है या असफल विपणन रणनीति साबित होता है, तो उसे ‘कैंसल’ किया जाता है। इसी तरह, यदि किसी टेलीविज़न शो की रेटिंग बेहद खराब होती है, तो उसे भी ‘कैंसल’ कर दिया जाता है। लंबे समय तक ‘कैंसल’ शब्द का मतलब बहुत जटिल नहीं था, लेकिन पिछले दशक में, विशेष रूप से इंटरनेट की भाषा में, इसने एक नया अर्थ प्राप्त कर लिया है। आज, इंटरनेट अगर सामूहिक रूप से तय कर ले कि किसी चीज़ या व्यक्ति को ‘कैंसल’ किया जाना चाहिए, तो वह हो सकता है। यहां ‘सामूहिक रूप से’ शब्द महत्वपूर्ण है, क्योंकि किसी चीज़ को ‘कैंसल’ करना वास्तव में एक जन आंदोलन का परिणाम होता है, जो रूप और प्रभाव दोनों में सामूहिक होता है।

तस्वीर साभारः The Affirmative Couch

कैंसल कल्चर एक सांस्कृतिक घटना है, जिसमें किसी व्यक्ति को यह मानते हुए कि उसने किसी अस्वीकार्य तरीके से काम किया है या कोई अनुचित बात कही है, बहिष्कृत, तिरस्कृत, नौकरी से निकाला या अपमानित किया जाता है, जिसमें अक्सर सोशल मीडिया की भूमिका भी होती है। इस तरह का बहिष्कार सामाजिक या पेशेवर दायरे तक फैल सकता है, चाहे वह सोशल मीडिया पर हो या आमने-सामने। हमने अक्सर देखा है कि चर्चित मशहूर हस्तियों के मामले में रातों-रात उन्हें निकाल कर, प्रोजेक्ट रद्द करके उनका बहिष्कार किया जाता है। जिन लोगों का इस तरह से बहिष्कार किया जाता है, उन्हें ‘कैंसल’ कर दिया जाता है। सबसे स्पष्ट उदाहरण तब देखे जाते हैं जब कोई सेलिब्रिटी या सार्वजनिक व्यक्ति ऐसा कुछ कहता, लिखता या करता है जिसे जनता अनुचित और आपत्तिजनक मानती है। इसका तंत्र कुछ इस प्रकार काम करता है जैस अगर सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग किसी सार्वजनिक हस्ती की किसी हरकत का विरोध करते हैं, तो उस व्यक्ति को कैंसल करने की तेजी होने लगती है।

कैंसल कल्चर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें न्यायिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि बहुत से लोग अनुचित रूप से बदनाम किए जाते हैं।

कैंसल कल्चर की शुरुआत

इंडियन एक्सप्रेस में छपी जानकारी के अनुसार #MeToo आंदोलन के दौरान जब महिलाओं ने सार्वजनिक मंचों पर अपने साथ हुई हिंसा और शोषण के बारे में खुलकर बात करनी शुरू की तो उन्हें नकारा गया। कुछ अन्य लोगों के अनुसार, अमेरिकी रूढ़िवादियों ने इंटरनेट के आने से पहले भी एक प्रकार के “कैंसल कल्चर” का अभ्यास किया था। जब कोई विचार या व्यक्ति उनके पारंपरिक विचारों के अनुरूप नहीं होता था, तो उसे बहिष्कृत किया जाता था। वाशिंगटन पोस्ट में स्तंभकार मेहदी हसन लिखते हैं, “रूढ़िवादी ‘कैंसल कल्चर’ का निशाना करने वालों की सूची दशकों पुरानी है, इंटरनेट के आने से बहुत पहले की। 1966 में, दक्षिणपंथी ईसाइयों ने जॉन लेनन को ‘कैंसल’ करने की कोशिश की, जब उन्होंने दावा किया कि बीटल्स ‘यीशु से ज्यादा लोकप्रिय’ हैं। इसके बाद, इस ब्रिटिश बैंड को अमेरिका में मौत की धमकियां मिलीं और बर्मिंघम, अलबामा के एक रेडियो स्टेशन ने एक अलाव जलाने की घोषणा की, जिसमें किशोरों को बीटल्स के रिकॉर्ड जलाने के लिए आमंत्रित किया गया।”

कैंसल कल्चर के तरीके

कैंसल कल्चर की एक प्रमुख प्रवृत्ति ‘पाइल-ऑन’ भी है, जहां सोशल मीडिया उपयोगकर्ता सामूहिक रूप से किसी व्यक्ति पर हमला करते हैं, जिसे सार्वजनिक रूप से कॉल आउट किया गया हो। कैंसल कल्चर की उपयोगिता को लेकर बहस जारी है। कुछ लोग इसे सामूहिक दंड (कलेक्टिव पनिशमेंट) मानते हैं, जिसका शिकार सार्वजनिक हस्तियों के साथ-साथ अब आम लोग भी होने लगे हैं। इसका एक पहलू जवाबदेही लागू करना भी है, हालांकि इस पर कानूनी और नैतिक बहस होती रही है कि यह उचित है या नहीं।

सोशल मीडिया और कैंसल कल्चर

सोशल मीडिया कैंसल कल्चर को तेजी से फैलाने में मुख्य भूमिका निभाता है। सोशल मीडिया कैंपेन के माध्यम से यह बहुत जल्दी वायरल हो जाता है, जिससे प्रभावित व्यक्ति या संगठन को तुरंत और कभी-कभी अन्यायपूर्ण दंड झेलना पड़ता है। परंतु इस कैंसल कल्चर का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि जिन मूल्यों और मानदंडों के आधार पर किसी को ‘कैंसल’ किया जाता है, वे समय, स्थान और व्यक्ति के अनुसार बदलते रहते हैं। यानी एक ही नियम सभी पर समान रूप से लागू नहीं होते।

तस्वीर साभारः Tekedia

स्वतंत्रता बनाम सामाजिक दंड

कैंसल कल्चर को सामाजिक दबाव का विकृत रूप माना जा सकता है। यह किसी के थोड़े अलग विचारों को खारिज करने या उन्हें लक्षित करने के लिए एक हथियार के रूप में उपयोग किया जाता है। घृणास्पद, नफरती भाषण को रोका जाना आवश्यक है, लेकिन किसी की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को केवल इसलिए दबा देना कि वह किसी को पसंद नहीं आई, लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ जाता है। डैन कोवालिक अपनी पुस्तक ‘कैंसल दिस बुक: द प्रोग्रेसिव केस अगेंस्ट कैंसल कल्चर’ में लिखते हैं कि जो विचार या भाषण किसी को आहत कर सकते हैं, लेकिन किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों को बाधित नहीं करते, उन्हें दबाने के बजाय तर्क-वितर्क और संवाद से निपटना चाहिए।

कैंसल कल्चर का असर न्यायिक प्रक्रिया का अभाव और समाजिक प्रभाव को देखना भी बहुत ज़रूरी है। कैंसल कल्चर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें न्यायिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि बहुत से लोग अनुचित रूप से बदनाम किए जाते हैं। बिना किसी जांच-दायरे के पहले से ही प्रचलित राय हावी हो जाती है। जैसा हमें फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ के समय देखने को मिला। इस फिल्म के रिलीज होने से पहले ही इसके ख़िलाफ़ प्रचार अभियान शुरू कर दिया गया और झूठे दावे, मानकों पर नकारा जाने लगा। 

कैंसल कल्चर में ‘लेबलिंग’ का खतरा बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से लोगों पर ठप्पे लगा दिए जाते हैं। आम हो या ख़ास हस्ती हर कोई इस दायरे में है।

सोशल मीडिया पर लेबलिंग और कैंसल कल्चर को बढ़ावा

कैंसल कल्चर में ‘लेबलिंग’ का खतरा बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से लोगों पर ठप्पे लगा दिए जाते हैं। आम हो या ख़ास हस्ती हर कोई इस दायरे में है। किसी एक पक्ष में खड़े होने व्यक्ति को नकार दिया जाता है। धार्मिक, लैंगिक और यौनिकता की पहचान के आधार पर लोगों को कैंसल कर दिया जाता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कैंसल कल्चर को जो बढ़ावा वह मौलिक अधिकारों का हनन है। यह तरीका व्यक्ति की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और समाज की समग्र प्रगति के लिए हानिकारक है। साथ ही कैंसल कल्चर भय और आत्म-सेंसरशिप का माहौल तैयार करता है, जहां लोग डर के कारण अपनी राय व्यक्त करने से बचते हैं। एक लोकतांत्रिक और सामवेशी समाज में असहमति को स्थान देना आवश्यक है। भिन्न विचारों को सुनना और उनका सम्मान करना समाज में सद्भाव बढ़ाने और एक-दूसरे की बेहतर समझ विकसित करने में मदद करता है।

सोर्सः

  1. Sunday Guardian live
  2. The indian Express
  3. Freedom Forum

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