बीते दिनों नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में करीब 18 लोगों की मौत हो गई और कम से कम 10 लोग घायल हो गए। बीबीसी में छपी रिपोर्ट में अधिकारियों द्वारा जारी की गई सूची के अनुसार, मृत लोगों में चार बच्चे थे, जबकि 10 महिलाएं थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुम्भ मेला के परिप्रेक्ष्य में हुए इस तीसरी भगदड़ की घटना पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर महज एक पोस्ट में कहा कि उनकी संवेदनाएं उन सभी लोगों के साथ हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है। पिछले कुछ सालों में देश में धार्मिक कार्यक्रमों में अनेक भगदड़ की घटना हुई है, जहां हजारों लोगों की जानें गई है।
पिछले एक या दो सालों में कुछ प्रमुख भगदड़ की घटनाओं में प्रयागराज महाकुंभ में 29 जनवरी की घटना शामिल है, जिसमें 30 लोगों की मृत्यु हुई और 60 से अधिक घायल हो गए। वहीं हाथरस, उत्तर प्रदेश में जुलाई 2024 में स्वयंभू भोले बाबा के सत्संग में भारी भीड़ के चलते भगदड़ मची, जिसमें 121 लोगों की जान गई, जिनमें अधिकांश महिलाएं थीं। इसके अलावा, मध्य प्रदेश के इंदौर में 31 मार्च 2023 को रामनवमी के अवसर पर एक मंदिर में हवन के दौरान बावड़ी का स्लैब ढहने से 36 लोगों की मृत्यु हुई थी। धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के दौरान भारी भीड़ की संभावना होती है, जिसके लिए पहले से तैयारी और सुदृढ़ प्रबंधन जरूरी है। बार-बार होने वाली भगदड़ की घटनाएं प्रशासनिक लापरवाही और देश में भीड़ प्रबंधन में कमी को उजागर करती है।
पिछले एक या दो सालों में कुछ प्रमुख भगदड़ की घटनाओं में प्रयागराज महाकुंभ में 29 जनवरी की घटना शामिल है, जिसमें 30 लोगों की मृत्यु हुई और 60 से अधिक घायल हो गए। वहीं हाथरस, उत्तर प्रदेश में जुलाई 2024 में स्वयंभू भोले बाबा के सत्संग में भारी भीड़ के चलते भगदड़ मची, जिसमें 121 लोगों की जान गई, जिनमें अधिकांश महिलाएं थीं।
सामूहिक जमावड़ा किसे कहेंगे
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों के सामूहिक जमावड़े को ‘किसी निश्चित समय के लिए, किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए, किसी विशिष्ट स्थान पर एक निश्चित संख्या से अधिक लोगों का एकत्रित होने,’ के रूप में परिभाषित किया गया है। सामूहिक जमावड़ा उन आयोजनों को कहते हैं, जो किसी खुली जगह या अस्थायी सुविधा में होते हैं जहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। ऐसे आयोजनों में भाग लेने वाले लोगों और दर्शकों की भारी भीड़ होती है। आपातकालीन स्थितियों में, इन जगहों तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है, जिससे चिकित्सा और राहत सेवाओं में देरी हो सकती है। शोधकर्ताओं के किसी आयोजन को सामूहिक जमावड़ा घोषित करने के लिए 24 घंटे से अधिक की अवधि के लिए अनुमानित भीड़ का आकार 25,000 व्यक्ति, 5000 व्यक्ति और 1000 व्यक्ति से अधिक होना चाहिए।
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शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्रकाशनों और साहित्य की खोज के माध्यम से साल 1971 से 2011 के बीच की अवधि के लिए सामूहिक समारोहों में हुई आपदाओं की घटनाओं को संकलित किया। साइंस डायरेक्ट के देश में धार्मिक उत्सवों के दौरान मानव भगदड़ पर एक शोध के अनुसार साल 1980 से 2007 तक मानव भगदड़ की घटनाओं की समीक्षा की गई और पाया कि दुनिया भर में 215 भगदड़ की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 7069 मौतें हुईं और 14,000 से अधिक लोग घायल हुए। विकासशील देश सामूहिक समारोहों के दौरान भगदड़ के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं, जहां दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में आठ गुना अधिक मृत्यु दर है। भारत के एक शोधकर्ता ने केरल में सबरीमाला में धार्मिक समागम के दौरान भगदड़ के पीछे विज्ञान की भी जांच की, जहां कुछ ही हफ्तों के अंतराल में मंदिर में भक्तों की संख्या राज्य की कुल आबादी से अधिक हो गई थी।
साइंस डायरेक्ट के देश में धार्मिक उत्सवों के दौरान मानव भगदड़ पर एक शोध के अनुसार साल 1980 से 2007 तक मानव भगदड़ की घटनाओं की समीक्षा की गई और पाया कि दुनिया भर में 215 भगदड़ की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 7069 मौतें हुईं और 14,000 से अधिक लोग घायल हुए।
देश में भगदड़ का इतिहास
भारत में भीड़ प्रबंधन की समस्याएं नई नहीं हैं। पिछले बीस सालों में कुछ प्रमुख हादसों में निम्नलिखित शामिल हैं, जिनमें अधिकतर धार्मिक जमावड़े हैँ।
- जनवरी, 2025: उत्तर प्रदेश राज्य में महाकुंभ मेले या ग्रेट पिचर फेस्टिवल में भगदड़ मचने से दर्जनों लोगों की मौत हो गई।
- जनवरी, 2025: आंध्र प्रदेश में भारत के सबसे व्यस्त और सबसे अमीर मंदिरों में से एक के पास भगदड़ मचने से कम से कम छह लोगों की मौत हो गई और 35 लोग घायल हो गए। यह घटना तब हुई थी जब हजारों श्रद्धालु मुफ्त दर्शन पास हासिल करने के लिए वहां एकत्र हुए थे।
- जुलाई 2024: उत्तर प्रदेश राज्य के हाथरस जिले में एक हिंदू उपदेशक की नज़दीकी झलक पाने के लिए हज़ारों भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी, जिसमें लगभग 121 लोगों की मौत हो गई।
- जनवरी 2022: जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ मचने से कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे। यह घटना उस समय हुई जब भक्तों की एक बड़ी भीड़ ने संकरे मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की।
- अक्टूबर 2013: मध्य प्रदेश के रतनगढ़ मंदिर में भगदड़ मचने से करीब 115 लोगों की मौत हो गई और सौ से ज़्यादा लोग घायल हो गए। यह भगदड़ 150,000 से ज़्यादा लोगों के नवरात्रि मनाने के लिए इकट्ठा होने के बाद मची।
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- फरवरी 2013: उत्तर प्रदेश में कुंभ मेले के सबसे व्यस्त दिन भगदड़ में कम से कम 36 हिंदू तीर्थयात्री मारे गए थे। मरने वालों में 27 महिलाएं थीं, जिनमें एक आठ साल की बच्ची भी शामिल थी।
- मार्च 2010: उत्तर प्रदेश के एक मंदिर में मुफ़्त भोजन और कपड़ों के लिए भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 63 लोग मारे गए थे, जिनमें आधे से ज़्यादा बच्चे थे।
- सितंबर 2008: राजस्थान के उत्तरी रेगिस्तानी राज्य में चामुंडागर मंदिर में नवरात्रि मनाने के लिए तीर्थयात्री इकट्ठा हुए थे, जिसमें कुल 250 लोग कुचलकर मारे गए थे।
- अगस्त 2008: हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी की चोटी पर स्थित नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफवाहों के कारण मची भगदड़ में लगभग 145 तीर्थयात्री मारे गए थे।
- जनवरी 2005: महाराष्ट्र के वाई शहर में मंधारदेवी मंदिर में मची भगदड़ में 265 से अधिक श्रद्धालु मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। मीडिया की रिपोर्ट मुताबिक मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियों पर फिसलन होने के कारण भगदड़ मची थी।
सरकार की जिम्मेदारी अहम क्यों है
मानव भगदड़ की घटनाएं वैश्विक स्तर पर होती हैं, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों को प्रभावित करती हैं। पहले वर्णित मानव भगदड़ डेटाबेस में घटनाओं की संख्या, जिसे (Ngai) न्गाई खोज विधि के रूप में जाना जाता है, साल 1980 और 2012 के बीच 215 से बढ़कर 350 हो गई। दिल्ली भगदड़ की घटना में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कुछ सूत्रों ने कहा कि ट्रेनों के प्रस्थान में देरी और हर घंटे 1,500 जनरल टिकटों की बिक्री के कारण, स्टेशन पर अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई, जबकि अन्य ने बताया कि प्लेटफॉर्म बदलने के बारे में गलत घोषणा के कारण भ्रम की स्थिति पैदा हुई, जिसके कारण भगदड़ मची। साइंस डायरेक्ट के एक शोध अनुसार भारत में होने वाली 79 फीसद भगदड़ धार्मिक सभाओं और तीर्थयात्राओं के कारण होती हैं। शोध में 15 भारतीय राज्यों से ऐसी घटनाएं और हताहतों की सूचना मिली है और कुछ स्थानों पर बार-बार भगदड़ की घटनाएं हुई हैं। अलग-अलग समय पर हुए भगदड़ पर ध्यान दें, तो धार्मिक त्योहारों के दौरान भगदड़ से निपटने के लिए जोखिम प्रबंधन रणनीतियां काफी अपर्याप्त हैं और देश में लगातार विफल रही हैं क्योंकि बड़ी भीड़ और आयोजन स्थल का लगातार विस्तार हो रहा है।
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विभिन्न केस अध्ययनों से मानव भगदड़ के ट्रिगर्स की पहचान की गई है और यह निष्कर्ष निकाला गया है कि एक साधारण दुर्घटना, एक जानबूझकर किया गया काम या यहां तक कि एक अफवाह भी भीड़ में उपद्रव पैदा कर सकती है। दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश में भीड़भाड़ एक लगातार समस्या बनी हुई है, लेकिन असली समस्या बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजनों की माँगों का अनुमान लगाने और उनकी व्यवस्था करने, उनपर प्रतिक्रिया देने में सरकार की विफलता है। भीड़ से होने वाली दुर्घटनाओं पर बढ़ते ध्यान के बावजूद, मानव भगदड़ का व्यवस्थित अध्ययन और रोकथाम अभी भी बहुत सीमित है। इसलिए, ये जरूरी है कि ऐसी घटनाओं को सरकार न सिर्फ मानें बल्कि इनपर शोध के माध्यम से बेहतर आपदा प्रबंधन की तकनीक विकसित करे।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रेजेंट की गई एक पेपर के अनुसार कुंभ मेले में साल 1840, 1906, 1954 और 1986 में घातक भगदड़ हुई है। साल 1954 में उत्सव में भगदड़ शुरू होने से पहले कई अन्य दुर्घटनाएं हुई थीं।
कुंभ में भगदड़ का इतिहास
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हालांकि ये ये पहली बार नहीं कि कुंभ मेले के परिप्रेक्ष्य में ऐसी घटनाएं हुई हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रेजेंट की गई एक पेपर के अनुसार कुंभ मेले में साल 1840, 1906, 1954 और 1986 में घातक भगदड़ हुई है। साल 1954 में उत्सव में भगदड़ शुरू होने से पहले कई अन्य दुर्घटनाएं हुई थीं। भीड़ की दो छोटी-मोटी भगदड़ में कई लोग मारे गए और पानी और अग्निशमन दल के विफल होने पर आग लगने से सैकड़ों झोपड़ियाँ जल गईं थी। तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू वहां स्नान करने आए थे, जिससे भीड़ उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ी थी। ऐसे में 3 फरवरी, 1954 को भीड़ नियंत्रण के प्रयास विफल हो गए क्योंकि लोग संगम की ओर एक साथ उमड़ते रहे। इस शोध के अनुसार, साल 2013 में कुंभ आने वाले तीर्थयात्री भी मुख्य रूप से भारत भर के गरीब ग्रामीण थे।
साइंस डायरेक्ट के एक शोध अनुसार भारत में होने वाली 79 फीसद भगदड़ धार्मिक सभाओं और तीर्थयात्राओं के कारण होती हैं। शोध में 15 भारतीय राज्यों से ऐसी घटनाएं और हताहतों की सूचना मिली है और कुछ स्थानों पर बार-बार भगदड़ की घटनाएं हुई हैं।
ये ध्यान देने वाली बात है कि आम तौर पर इन जमावड़ों में आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित या निम्न मध्यम वर्ग के लोग ही आते हैं, जिनके लिए कानूनी रूप से सिस्टम के विरुद्ध लड़ना मुश्किल है। इन घटनाओं को सिर्फ़ त्रासदी कहना काफी नहीं है। भारत की भीड़ प्रबंधन प्रणालियों में खामियों को गंभीरता से समझने की ज़रूरत है। साल 2014 में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भीड़ प्रबंधन पर एक गाइड जारी की थी, जिसमें भीड़ नियंत्रण की योजना बनाने और उसे पेशेवर बनाने के महत्व को रेखांकित किया गया था। इस गाइड में बड़ी भीड़ वाले आयोजनों के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक सम्पूर्ण दृष्टिकोण की जरूरत पर ज़ोर दिया गया था। कुंभ मेले और दिल्ली रेलवे स्टेशन की घटनाएं व्यवस्थागत विफलताओं और लापरवाही का परिणाम हैं। इसलिए, सरकार को ऐसे घटनाओं की ज़िम्मेदारी लेते हुए भीड़ सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।