इतिहास सुनयनी देवीः भारत की पहली आधुनिक कला महिला चित्रकार| #IndianWomenInHistory

सुनयनी देवीः भारत की पहली आधुनिक कला महिला चित्रकार| #IndianWomenInHistory

सुनयनी देवी आधुनिक भारतीय कला की अग्रणी कलाकार थीं, जिन्होंने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में आधुनिक भारतीय कला में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब कला जगत में अकादमिक नैचुरलिज़्म का प्रभुत्व था, तब उनकी साहसिक और मौलिक चित्रकृतियों को उनकी नवीन प्रिमिटिविस्ट सौंदर्यशैली के लिए आलोचकों ने सराहा। शुरुआत में वह केवल एक उत्साही शौकिया कलाकार थीं और उन्होंने कला की कोई शिक्षा तक नहीं हासिल की थी।

जब हम आजाद भारत के कलाकारों के बारे में बात करते हैं तो राजा रवि वर्मा, अबनींद्रनाथ टैगोर या नंदलाल बोस का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। इन नामों से ऐसा लगता है कि यह केवल पुरुषों का क्षेत्र है लेकिन ऐसा नहीं था। उस दौर में कई महिला चित्रकार हुई हैं जिनमें से एक नाम सुनयनी देवी का है। सुनयनी देवी भारत की पहली महिला कलाकारों में से एक हैं जो अपनी कोमल और अभिव्यक्तिपूर्ण वॉटरकलर पेंटिंग्स के लिए जानी जाती हैं। वह भारत में प्रिमिटिविज़्म और आधुनिक कला की अग्रणी थीं।

सुनयनी देवी आधुनिक भारतीय कला की अग्रणी कलाकार थीं, जिन्होंने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में आधुनिक भारतीय कला में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब कला जगत में अकादमिक नैचुरलिज़्म का प्रभुत्व था, तब उनकी साहसिक और मौलिक चित्रकृतियों को उनकी नवीन प्रिमिटिविस्ट सौंदर्यशैली के लिए आलोचकों ने सराहा। शुरुआत में वह केवल एक उत्साही शौकिया कलाकार थीं और उन्होंने कला की कोई औपचारिक शिक्षा तक नहीं हासिल की थी। सुनयनी देवी ने केवल 15 वर्षों तक चित्रकारी की थी। उनकी सहज, बालसुलभ कलाकृतियों ने औपनिवेशिक भारत में अग्रगामी कला की दिशा को प्रभावित किया।

सुनयनी देवी ने बंगाल की लोक कला परंपराओं, विशेष रूप से कालीघाट पट चित्रकला और देशी गुड़ियों से प्रेरित होकर एक अनोखी प्रिमिटिव, बालसुलभ शैली विकसित की। उनके चित्रों में घुमावदार, गोल आकृतियां होती थीं और न्यूनतम मॉडलिंग का प्रयोग किया जाता था।

जन्म और शुरुआती जीवन 

सुनयनी देवी का जन्म 18 जून 1875 में कोलकाता के प्रतिष्ठित टैगोर परिवार में हुआ था, जो बंगाल पुनर्जागरण में अग्रणी भूमिका निभाने वाला परिवार था। उनके माता-पिता गुणेन्द्रनाथ ठाकुर और सौदामिनी देवी थे। 1887 में, मात्र 12 वर्ष की आयु में, उनका विवाह रजनीमोहन चट्टोपाध्याय से हुआ। सुनयनी देवी का बचपन एक ऐसे परिवार में बीता जहां सांस्कृतिक और कलात्मक गतिविधियां निरंतर चलती रहती थीं, लेकिन समाज में प्रचलित लैंगिक आधार पर होने वाले भेदभाव का ही परिणाम है कि उन्हें औपचारिक शिक्षा या कला प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर नहीं मिला। उनके चाचा, नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है कि टैगोर परिवार में पुरुष बाहरी हिस्से में रहते थे, जबकि महिलाएं अंदरूनी क्षेत्र तक सीमित थीं। उनके भाई अबनींद्रनाथ टैगोर और गगनेन्द्रनाथ टैगोर आधुनिक भारतीय कला के अग्रणी थे और वे बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट से जुड़े हुए थे। उस समय में उच्चवर्गीय परिवार की महिलाओं के लिए शिक्षा केवल पारंपरिक रूप से “स्त्रियों के योग्य” मानी जाने वाली चीज़ों तक सीमित थी, जैसे संगीत और स्थानीय भाषा का ज्ञान। 

एक कलाकार के रूप में

ए लेडी विद पेरेट, सुनयनी देवी की कलाकृति। तस्वीर साभारः Prinseps

सुनयनी देवी, बचपन से ही चित्रकला की ओर आकर्षित थीं और राजा रवि वर्मा की भक्तिपूर्ण पेंटिंग्स और उनकी लिथोग्राफ प्रिंट्स का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिन्हें उन्होंने अपने आसपास देखा था। हालांकि, उन्होंने चित्र बनाना 1908 के आसपास, जब वे तीस के दशक में थीं, अपने पति के प्रोत्साहन और समर्थन से शुरू किया। धीरे-धीरे परिवार के प्रोत्साहन से उनकी रचनात्मक प्रतिभा निखरने लगी। अपने भाइयों की आधुनिक चित्रकला शैली से प्रेरित होकर, उन्होंने 1915 में इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट (जो टैगोर परिवार द्वारा स्थापित की गई थी) में अपनी कलाकृतियां प्रदर्शित करना शुरू किया। उनकी शुरुआती ऑयल पेंटिंग्स में मुख्य रूप से हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं, देवताओं और महाकाव्यों से प्रेरित चित्र और पोर्ट्रेट शामिल थे।

सुनयनी देवी ने बंगाल की लोक कला परंपराओं, विशेष रूप से कालीघाट पट चित्रकला और देशी गुड़ियों से प्रेरित होकर एक अनोखी प्रिमिटिव, बालसुलभ शैली विकसित की। उनके चित्रों में घुमावदार, गोल आकृतियां होती थीं और न्यूनतम मॉडलिंग का प्रयोग किया जाता था। उन्होंने अबनींद्रनाथ टैगोर द्वारा विकसित की गई वॉश तकनीक को अपनाया और हल्के पेस्टल ब्लू, येलो, ग्रीन और ब्राउन रंगों का प्रयोग किया। कला समीक्षकों ने उनकी अनूठी शैली को सराहा। महज 15 साल तक चित्रकारी करने वाली सुनयनी देवी अपनी कलाकृतियों से भारत में अग्रगामी कला की दिशा को बनाने का काम किया। 

साल 1911 में क्रिस्टल पैलेस, लंदन में फेस्टिवल ऑफ़ एम्पायर, किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के अवसर पर भारतीय ओरिएंटल आर्ट सोसाइटी द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में सुनयनी देवी की कलाकृतियों का भी प्रदर्शन किया गया था।

सुनयनी देवी को बंगाल आर्ट स्कूल की एक सच्ची प्रिमिटिविस्ट कलाकार माना जाता है। उन्होंने पट लोक चित्रकला शैली से प्रेरणा ली, जो टैगोर परिवार की महिलाओं के लिए परिचित थी, और अपने चित्रों में अक्सर भारतीय महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं के दृश्यों को दिखाया। उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में साधिका, अर्धनारीश्वर, सतीर देहत्याग, मिल्कमेड्स और यशोदा और कृष्ण हैं। ऑस्ट्रियाई कला इतिहासकार स्टेला क्रामरिश के अनुसार, सुनयनी देवी भारत की पहली आधुनिक चित्रकार थीं। उनकी कृतियों को 1922 में कोलकाता में बॉहाउस आर्टिस्ट्स’ एक्ज़ीबिशन में प्रदर्शित किया गया था। उनकी कला शुरुआत से ही मौलिक और साहसिक रही है, जिसमें प्राचीन जैन पांडुलिपि चित्रों की झलक मिलती है। उन्होंने वॉश तकनीक का पूरी तरह इस्तेमाल किया और उनकी बाद की कृतियों में देशी छवियों की प्रतिध्वनि सुनाई दी। उन्होंने खुद को एक राष्ट्रवादी कलाकार के रूप में स्थापित किया। 

पश्चिमी कलाकारों द्वारा कला की सराहना

सुनयनी देवी की कृति अर्धनारीश्वर, तस्वीर साभारःpaintphotographs.com

1920 के दशक में, देवी की पेंटिंग्स को यूरोपीय आधुनिकतावादियों द्वारा खूब सराहा गया। उनकी अनूठी शैली और तकनीक की प्रशंसा दुनिया में की गई। ऑस्ट्रियाई चित्रकार नोरा वुथेनब्राच ने 1927 में लंदन के विमेंस इंटरनेशनल आर्ट क्लब में आयोजित उनकी प्रदर्शनी के लिए एक भावनात्मक लेख लिखा। उन्होंने देवी की पेंटिंग्स की खूब प्रंशसा की। वुथेनब्राच ने उनके चित्रों की भव्य आकृतियों और भित्तिचित्रों (फ्रेस्को) जैसी समतल रंग भरने की तकनीक को भी नोट किया। उन्होंने भावपूर्ण शब्दों में लिखा, “ऐसा लगा जैसे अतीत की किसी दूरस्थ दुनिया की जीवन-शक्ति इनमें समाई हो।” इतना ही नहीं सुनयनी देवी की पेंटिंग्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बॉहाउस ग्रुप के अग्रणी कलाकारों के साथ भी प्रदर्शित किया गया था। प्रगतिशील यूरोपीय कलाकार, जैसे वसीली कैंडिंस्की, उनके चमकीले रंगों के उपयोग से प्रभावित हुए, जो यूरोपीय एक्सप्रेशनिस्ट कला के समान थे। उन्होंने देवी की कला में शामिल भव्य आकृतियों को खूब सराहा था। 

सुनयनी देवी की प्रमुख प्रदर्शनियां

सुनयनी देवी की कला को कई प्रशंसक मिले और इसे कई महत्वपूर्ण प्रदर्शनियों में शामिल किया गया। देश और दुनिया में उनकी कलाकृतियों को कला प्रदर्शनियों में शामिल किया गया। साल 1908, 1910, 1912 में कोलकाता में भारतीय ओरिएंटल आर्ट सोसाइटी द्वारा प्रदर्शिनियां आयोजित की गई। साल 1911 में यूनाइटेड प्रोविंसेज़ प्रदर्शनी, भारतीय ओरिएंटल आर्ट सोसाइटी द्वारा इलाहाबाद में प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। साल 1911 में क्रिस्टल पैलेस, लंदन में फेस्टिवल ऑफ़ एम्पायर, किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के अवसर पर भारतीय ओरिएंटल आर्ट सोसाइटी द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में सुनयनी देवी की कलाकृतियों का भी प्रदर्शन किया गया था। वहीं साल 1924 में भारतीय ओरिएंटल आर्ट सोसाइटी और अमेरिकन फेडरेशन ऑफ़ आर्ट द्वारा आयोजित यात्रा प्रदर्शनी, अमेरिका में भी देवी की कलाकृतियों का प्रदर्शन हुआ। 

ऑस्ट्रियाई कला इतिहासकार स्टेला क्रामरिश के अनुसार, सुनयनी देवी भारत की पहली आधुनिक चित्रकार थीं। उनकी कृतियों को 1922 में कोलकाता में बॉहाउस आर्टिस्ट्स’ एक्ज़ीबिशन में प्रदर्शित किया गया था।

सुनयनी देवी की कला और उनकी अंतिम प्रदर्शनी

साल 1927 में, उन्हें लंदन के विमेंस इंटरनेशनल आर्ट क्लब द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया। ऑस्ट्रियाई चित्रकार नोरा पर्सर उनकी कमल-नयन स्त्रियों, आकर्षक रंगों और उनकी पेंटिंग्स में भित्तिचित्रों (फ्रेस्को) जैसी भव्यता से प्रभावित हुईं। नोरा ने कोलकाता की अपनी यात्रा के दौरान एक स्थानीय आर्ट डेको मूवी थिएटर के लिए भित्तिचित्र बनाने के दौरान सुनयनी देवी से मुलाकात की थी। साल 1935 में, उनके समर्पित प्रशंसकों ने उनके घर पर उनकी पेंटिंग्स की एक प्रदर्शनी आयोजित की। यह उनकी आखिरी सार्वजनिक प्रदर्शनी थी। साल 1940 के दशक में, उनके परिवार को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिससे वह गहरे अवसाद में चली गईं और अंततः कला की दुनिया से दूर हो गईं। सुनयनी देवी की कला आज भी जीवित है। उन्होंने हर चुनौती के बावजूद अपनी कला के प्रति समर्पण बनाए रखा और भारतीय कला इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई।

स्रोतः 

  1. Wikipedia
  2. paintphotographs.com
  3. indianculture.gov.in

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