समाजख़बर USAID फंडिंग रुकने से भारत के विकास पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

USAID फंडिंग रुकने से भारत के विकास पर क्या पड़ेगा प्रभाव?

अमेरिका के भारत के लिए आर्थिक सहायता बंद करने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि भारत आर्थिक रूप से संपन्न है और अब उसे विदेशी मदद की कोई ज़रूरत नहीं है। हालांकि USAID फंड ने भारत की बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, पर्यावरण, जेंडर इक्वलिटी और तकनीकी विकास में अहम भूमिका निभाई है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी USAID के तहत दुनिया भर में विकास कार्यक्रमों के लिए की जाने वाली फंडिंग को ख़त्म करने से, दुनिया भर में इसके प्रभाव पर व्यापक प्रभाव दिखने शुरू हो गए हैं। ग़ौरतलब है कि 20 जनवरी 2025 को ट्रंप सरकार ने अमेरिकी विकास सहायता पर 90 दिनों की रोक लगाने की घोषणा की थी। अलजज़ीरा में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने यूएसएआईडी के 6,200 कार्यक्रमों में से 5,200 कार्यक्रमों में कटौती की बात स्वीकार की जोकि कुल विकास कार्यक्रमों का लगभग 83 फीसद है। इससे ख़ासतौर पर अफ़्रीकी और दक्षिण एशियाई देशों में चल रहे शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए गहरा संकट दिखाई पद रहा है। अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही ट्रंप ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ की अपनी नीति पर अमल करते हुए अमेरिका की विदेश नीति में बड़े पैमाने पर बदलाव किये हैं। USAID को ख़त्म करना इसका एक अहम हिस्सा है।

USAID फंडिंग का इतिहास और वर्तमान  

यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) अमेरिकी सरकार की एक विकास एजेंसी है, जो दुनिया भर में नागरिक सहायता और विकास कार्यक्रमों के लिए जानी जाती है। इसकी स्थापना 1961 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के द्वारा की गई थी। बीबीसी में प्रकाशित कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के अनुसार 60 से अधिक देशों में मौजूद USAID दुनिया भर में 100 अधिक देशों में चल रहे विकास कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से योगदान देता आ रहा है। इस में कर्मचारियों की संख्या लगभग 10,000 थी, जिसमें अब बड़े पैमाने पर कटौती की जा रही है। अब तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 4200 कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया गया है और 1600 को नौकरी से निकाला जा चुका है। हालांकि कर्मचारियों की संख्या को लेकर इस बारे में कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है लेकिन पहले की घोषणाओं से ज़ाहिर होता है कि इसमें सिर्फ़ 611 कर्मचारियों की जगह ही रह जाएगी। इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों की कटौती हजारों परिवारों के लिए अचानक से आर्थिक संकट के लिए भी ज़िम्मेदार है।

फर्स्टपोस्ट में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय ने 2023-24 में USAID से 750 मिलियन डॉलर की 7 परियोजनाओं का उल्लेख किया है। अमेरिका के भारत की विपक्षीय सहायता साल 1951 से ही शुरू हुई थी और इसमें USAID की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

USAID की भारत में भूमिका

अमेरिका के भारत के लिए आर्थिक सहायता बंद करने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि भारत आर्थिक रूप से संपन्न है और अब उसे विदेशी मदद की कोई ज़रूरत नहीं है। हालांकि USAID फंड ने भारत की बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, पर्यावरण, जेंडर इक्वलिटी और तकनीकी विकास में अहम भूमिका निभाई है। फर्स्टपोस्ट में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में वित्त मंत्रालय ने 2023-24 में USAID से 750 मिलियन डॉलर की 7 परियोजनाओं का उल्लेख किया है। अमेरिका के भारत की विपक्षीय सहायता साल 1951 से ही शुरू हुई थी और इसमें USAID की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। बिजनस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को विभिन्न क्षेत्रों में 555 से अधिक परियोजनाओं के लिए अमेरिका की तरफ से अब तक लगभग 17 बिलियन डॉलर यानी 1.5 लाख करोड़ रुपए की सहायता दी जा चुकी है। अमेरिका ने भारत को विकास कार्यक्रमों के लिए 2001 से लेकर अब तक कुल 2.86 बिलियन डॉलर यानी 24,789 करोड़ रुपये की सहायता दी है।

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पिछले 5 सालों में ही भारत को 650 मिलियन डॉलर यानी 5634 करोड़ रूपयों का आवंटन किया जा चुका है। USAID के फंड की मदद से भारत में बुनियादी ढांचा, आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े विकास कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक संचालित किया गया है। अचानक फंडिंग बंद होने से न सिर्फ़ इन सब पर असर पड़ेगा बल्कि भारत की विदेश नीति और कूटनीतिक संबंधों पर भी इसका दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा। USAID ने लंबे समय से भारत के स्वास्थ्य और बीमारी उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पोलियो, टीबी, एचआईवी और एड्स जैसी बीमारियों से लड़ने में इसकी ख़ास भूमिका रही है। इसके साथ ही मातृ और शिशु कल्याण में भी इससे मदद मिली है। इसी तरह पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक समृद्धि, महिला सशक्तीकरण, बुनियादी संरचना और समावेशी विकास में भी USAID के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

2023 में भारत को पर्यावरण परियोजनाओं के लिए 9.6 मिलियन डॉलर का फंड मिला था। इसके अलावा महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास, कृषि और खाद्य सुरक्षा, आपदा राहत, ट्रांसजेंडर और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय, मानसिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में USAID पिछले कई दशकों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था।

USAID फंडिंग रुकने से भारत पर क्या होगा असर

मनीकन्ट्रोल के अनुसार, अमेरिकी एजेंसी का फंड बंद होने से सबसे ज़्यादा असर भारत की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी परियोजनाओं पर पड़ेगा, क्योंकि पिछले कुछ सालों में USAID फंड के तहत भारत को मिली धनराशि का लगभग दो तिहाई हिस्सा स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं के लिए था। स्वास्थ्य के अलावा पर्यावरण से जुड़ी परियोजनाओं को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा। ग़ौरतलब है कि 2023 में भारत को पर्यावरण परियोजनाओं के लिए 9.6 मिलियन डॉलर का फंड मिला था। इसके अलावा महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास, कृषि और खाद्य सुरक्षा, आपदा राहत, ट्रांसजेंडर और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय, मानसिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में USAID पिछले कई दशकों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। इसके बंद होने से इन क्षेत्रों में चल रहे विकास कार्यक्रम काफ़ी हद तक प्रभावित होंगे। जल्द ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था न होने से पहले से ही हाशिए पर रह रहे समुदायों की स्थिति और भी चिंतनीय हो सकती है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रभाव

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USAID बंद होने से इस की सहायता से चल रहे महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है। टीबी की रोकथाम और उन्मूलन से जुड़ा ‘ब्रेकिंग द बैरियर्स’ पहल देश के विभिन्न हिस्सों में टीबी रोग के इलाज और जागरुकता फैलाने के लिए चलाया जा रहा था। फंडिंग बंद होने से इसपर असर पड़ेगा जिससे बीमारी बढ़ने की आशंका कई गुना बढ़ जाएगी। भारत में एचआईवी एड्स की रोकथाम के लिए चल रहे कार्यक्रमों और परियोजनाओं के तहत 500 से अधिक कर्मचारियों ने 2 लाख से अधिक रोगियों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। 2030 तक एचआईवी उन्मूलन के लक्ष्य में सहायता करने के लिए USAID को 2026 तक अनुदान की मंजूरी मिली थी लेकिन ट्रम्प सरकार के इसे बंद करने के आदेश के बाद इसके लिए भी संकट उत्पन्न हो गया है। 

भारत में एचआईवी एड्स की रोकथाम के लिए चल रहे कार्यक्रमों और परियोजनाओं के तहत 500 से अधिक कर्मचारियों ने 2 लाख से अधिक रोगियों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है।

इसी तरह ट्रांसजेंडर और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए USAID की मदद से एचआईवी टेस्टिंग, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और हार्मोन थेरेपी जैसी सेवाएं दी जा रही थीं, फंडिंग रुकने से इनके बंद होने की आशंका भी बढ़ गई है। इससे हैदराबाद, थाने और पुणे में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए चलाए जा रहे ‘मित्र क्लिनिक’ के अस्तित्व पर भी खतरा़ पैदा हो गया है। बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, इन क्लीनिक में लगभग 6000 से अधिक लोगों को देखभाल और इलाज की सुविधाएं दी जा चुकी हैं। भारत में प्रसव पूर्व देखभाल, नवजात शिशु स्वास्थ्य और टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से USAID ने  मातृ एवं शिशु मृत्यु दर कम करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब फंड बंद होने से इन पर भी व्यापक असर पड़ सकता है।

पर्यावरण पर प्रभाव

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भारत में पर्यावरण की दिशा में चल रहे अनेक कार्यक्रम जो पानी, हवा और मिट्टी की गुणवत्ता से संबंधित है उनकी फंडिंग USAID पर ही निर्भर थी। इसके साथ ही जल संरक्षण और स्वच्छ हरित ऊर्जा के लिए भी इसकी मदद से कई परियोजनाएं चल रही थीं। अब इन्हें भी पैसे की कमी का सामना करना पड़ेगा। भारत में जल और स्वच्छता के लिए चल रही परियोजना ‘सपोर्ट टू वॉटर एंड सैनिटेशन इन इंडिया’ (SUWAS) जो 4,050,001 डॉलर की फंडिंग के साथ मार्च 2026 तक जारी रखनी थी, फंडिंग बंद होने के साथ अब इसपर कार्यक्रम बंद होने का ख़तरा पैदा हो गया है।

शिक्षा और आर्थिक विकास पर असर और राजनीतिक प्रभाव

भारत में बुनियादी शिक्षा में सुधार के लिए लाइब्रेरी की सुविधा के लिए 2,115,879 डॉलर का आवंटन किया गया था, जो कि सितंबर 2025 को ख़त्म हो रहा था। इसी तरह 5G तकनीक की बेहतरी के लिए ओ-आरएएन रिसर्च लैब्स जैसे तकनीकी मंच को 3,300,000 डॉलर आवंटित किए गए हैं, इसके ख़त्म होने की अवधि भी सितंबर 2025 है। इनके बंद होने से भारत की शिक्षा व्यवस्था और डिजिटल अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। अमेरिकी फंडिंग बंद होने से न सिर्फ़ भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास पर असर पड़ेगा बल्कि यह दोनों देशों के आपसी संबंधों पर भी प्रभाव डालेगा। इससे टैरिफ शीत युद्ध बढ़ सकता है जोकि खुली और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से भी पीछे जाने वाला कदम साबित हो सकता है।

भारत के लिए संभावित समाधान

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USAID फंड बंद होने से भारत सरकार के सामने भारी चुनौतियां सामने आ गई हैं। सरकार को अपने बजट में इन कार्यक्रमों के लिए ज्यादा धन आवंटित करना होगा। इसके लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की भागीदारी को भी बढ़ावा देना होगा। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग के नए स्रोत खोजना भी बेहद ज़रूरी है। भारत विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं से भी सहयोग लेने के लिए प्रयास कर सकता है। अमेरिकी फंडिंग बंद होने से भारत को और नए सहयोगियों की ज़रूरत होगी, जिसमें जापान, जर्मनी, रूस और यूरोप जैसे देशों से सहायता ली जा सकती है, जो USAID की भरपाई करने में मदद कर सकें। इसके साथ ही सरकार को देश-विदेश के उद्योगपतियों से निजी तौर पर संबंधों को मजबूत कर फंडिंग के लिए प्रयास करना होगा।

सरकार स्टार्टअप और रिसर्च फंडिंग को बढ़ाकर नई तकनीकों के जरिए स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने में सक्षम हो सकती है। USAID फंडिंग बंद होने से निश्चित तौर पर देश के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, पर्यावरण, बुनियादी ढांचा, आर्थिक विकास, महिला सशक्तिकरण और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय पर असर पड़ेगा लेकिन इसके लिए सरकार गंभीरता से प्रयास करे तो कुछ हद तक इसे कम किया जा सकता है। इससे घरेलू फंडिंग अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर भारत के आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी साबित हो सकता है।

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