मेनोपॉज आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की उम्र के बीच होता है। यह कोई बीमारी नहीं बल्कि शरीर में आने वाला एक जैविक परिवर्तन है, जो उम्र के साथ स्वाभाविक रूप से होता है। फिर भी, समाज में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां और कलंक जुड़े हुए हैं, जिससे लोगों को विशेषकर महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शहरों की तुलना में ग्रामीण भारत में पीरियड्स की तरह ही, मेनोपॉज को लेकर भी जागरूकता कम है। जहां पीरियड्स में महिलाओं में मेंस्ट्रुएशन शुरू होती है, तो वही मेनोपॉज में पीरियड्स साइकिल हमेशा के लिए बंद हो जाती है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट अनुसार भारत में 66 फीसद महिलाएं, खासकर ग्रामीण महिलाएं मेनोपॉज पर बात करने में आज भी असहज महसूस करती हैं। महिलाओं में इस दौरान हार्मोनल बदलाव की वजह से हॉट फ़्लैशेज़ (अचानक तेज़ गर्मी महसूस करना), चिड़चिड़ापन, नींद ना आना जैसी समस्याएं हो सकती है। इन समस्याओं के बावजूद, गांवों में जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं के कमी के चलते महिलाओं के लिए इसपर खुलकर बात करना मुश्किल है।
मेनोपॉज कब और क्यों होता है
सरल शब्दों में कहा जाए तो मेनोपॉज महिलाओं के शरीर में बढ़ती उम्र के साथ होने वाला एक सामान्य जैविक बदलाव है। मेनोपॉज महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है, जो उम्र बढ़ने के साथ होती है। यह तब होता है जब महिला के अंडाशय (ओवरी) एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन बनाना कम कर देते हैं, जिससे पीरियड्स रुक जाता है। जब पीरियड्स लगभग 12 महीनों तक नहीं होते तो उसे मेनोपॉज कहते हैं। मेनोपॉज होने के बाद महिलाएं मां नहीं बन सकती हैं। मेनोपॉज भारत में महिलाओं में 45- 55 साल में कभी भी या कुछ महिलाएं में इससे पहले भी हो सकता है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट अनुसार मेनोपॉज एक दम से और आसानी से होने वाला शारीरिक बदलाव नहीं है। इसके लिए महिलाओं को मेनोपॉज के अलग-अलग पड़ाव से गुजरना पड़ता है और कई मानसिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मेनोपॉज सभी महिलाओं के लिए एक जैसा नहीं होता। एक महिला लगभग सात सालों तक मेनोपॉज की अवस्था से गुजरती है लेकिन कुछ महिलाएं 14 साल तक भी इस प्रकिया से गुजर सकती है।
जब मुझे घर की बुजुर्ग औरतों से पता चला कि मेरा पीरियड्स अब बंद हो जाएगा, क्योंकि मैं बूढ़ी हो चुकी हूं तो इसके बाद मुझे पहली बार बूढ़े होने का एहसास हुआ। तब मैंने करवा चौथ का व्रत रखना बंद कर दिया। मुझे शर्म आती थी साजो श्रंगार करके व्रत करने में क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि अब मैं पहले जैसी जवान नहीं रही हूं।
मेनोपॉज के तीन पड़ाव
- प्री मेनोपॉज: मेनोपॉज के इस चरण में 30-40 वर्ष की महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती है। इसमें महिलाओं को पीरियड्स हर महीने आते हैं, लेकिन प्रजनन के लिए ज़रूरी हार्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर कई बार बदलता है।
- पेरी मेनोपॉज: मेनोपॉज के इस स्टेज में महिलाओं को सबसे ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह स्टेज महिलाओं में प्रजनन क्षमता के खत्म होने का संकेत देता है। इस दौरान एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर तेजी से कम हो जाता है। महिलाओं के पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं, और कई बार महीनों नहीं होते तो कभी जल्दी-जल्दी होने लगते हैं। पीरियड्स का फ्लो अचानक से बहुत तेज भी हो सकता है। इस दौरान महिलाओं को हॉट फ़्लैशज (अचानक तेज गर्मी लगना), बैचेनी और नींद न आने जैसी समस्याएं हो सकती है।
- पोस्ट मेनोपॉज: यह आखिरी स्टेज है। इसमें आखिरी पीरियड्स के बाद 12 महीने तक पीरियड्स नहीं होते और यह निश्चित हो जाता कि मेनोपॉज हो चुका है और अब उनके मां बनने की क्षमता खत्म हो चुकी है। महिलाओं की पेरी मेनोपॉज के दौरान होने वाली समस्याएं भी इसके बाद खत्म हो जाती है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट अनुसार मेनोपॉज एक दम से और आसानी से होने वाला शारीरिक बदलाव नहीं है। इसके लिए महिलाओं को मेनोपॉज के अलग-अलग पड़ाव से गुजरना पड़ता है और कई मानसिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
ग्रामीण महिलाएं मेनोपॉज को कैसे देखती हैं?
मेनोपॉज को कई बार ‘महिला के युवापन के अंत’ के रूप में देखा जाता है, जिससे महिलाओं को अपने शरीर को लेकर शर्मिंदगी महसूस होती है। समाज में यह धारणा है कि प्रजनन क्षमता के खत्म होने के बाद महिला की भूमिका सीमित हो जाती है, जबकि सच्चाई यह है कि यह उनके जीवन का एक नया चरण हो सकता है। मेनोपॉज को लेकर गांवों में भी महिलाओं की अलग-अलग सोच है। लेकिन ये अक्सर शैक्षिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य से प्रभावित होती है। कुछ महिलाएं इसको पीरियड्स से आज़ादी की तरह देखती है, तो कुछ में उम्रदराज होने का दुख भी है, जिससे वो शर्म की वजह से खुलकर किसी से नहीं कहती हैं। मेनोपॉज को लेकर बुंदेलखंड के एक गांव की 56 वर्षीय ज्ञानबाई कहती हैं, “जब मुझे घर की बुजुर्ग औरतों से पता चला कि मेरा पीरियड्स अब बंद हो जाएगा, क्योंकि मैं बूढ़ी हो चुकी हूं तो इसके बाद मुझे पहली बार बूढ़े होने का एहसास हुआ। तब मैंने करवा चौथ का व्रत रखना बंद कर दिया। मुझे शर्म आती थी साजो श्रंगार करके व्रत करने में क्योंकि मुझे ऐसा लगता था कि अब मैं पहले जैसी जवान नहीं रही हूं।”

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कई महिलाएं मेनोपॉज से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेती हैं क्योंकि इसे ‘स्वाभाविक’ मानकर समस्याओं को चुपचाप सहने की सीख दी जाती है। इसपर खुलकर बात नहीं होने के कारण महिलाएं चिकित्सकीय सहायता लेने में झिझकती हैं। मेनोपॉज पर बुंदेलखंड की 53 वर्षीय कैलाशपति मेनोपॉज को पीरियड्स से आजादी की तरह देखती हैं। वह कहती हैं, “मुझे जब पता चला कि इस भारी समस्या (पेरी- मेनोपॉज के दौरान) के बाद मेरा पीरियड्स हमेशा के लिए बंद हो जाएगा, तो मैंने सोचा चलो यह अच्छा है कि हर महीने की यह झंझट खत्म हो जाएगी क्योंकि पीरियड्स में इस्तेमाल के लिए मुझे सूती कपड़े बड़ी मुश्किल से मिलते थे।”
मुझे इस दौरान समस्याएं हुई लेकिन इसकी जानकारी नहीं थी कि यह मेनोपॉज की वजह से हो रहा है। मुझे एक बार इतनी ज्यादा समस्या हुई कि मैं पेट का दर्द सह नहीं पा रही थी। तब मुझे गांव में एक वैध ने जंगली जड़ी-बूटी दी और आराम हो गया। फिर कुछ सालों तक जब भी दिक्कत हुई मैंने वही जंगली जड़ी-बूटी को खाया क्योंकि मेरी सास ने बोला, यह समस्या सभी औरतों को होता है और इस जड़ी-बूटी से ठीक हो जाएगा। इसमें डॉक्टर को क्या दिखाना।
मेनोपॉज पर जागरूकता की कमी
मेनोपॉज के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों को अक्सर ‘मूड स्विंग्स’ कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। हालांकि यह महिलाओं के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है। महिलाओं को बताया जाता है कि ‘यह सब सहना पड़ेगा,’ जिससे वे अपने अनुभवों को साझा करने से कतराती हैं। मेनोपॉज पर 50 वर्षीय सावित्री कहती हैं, “मैंने सोचा अब उम्र हो गयी है। भगवान की पूजापाठ अच्छे से कर पाउंगी और मन्दिर जाने में भी कोई अब परेशानी नहीं है।” जागरूकता की कमी के चलते ग्रामीण महिलाएं मेनोपॉज को लेकर उम्र ढलने और बूढ़े होने तक ही समझती है, और यह कम जागरूकता के चलते वो अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा यह सोच कर जीतीं है कि अब वो बूढी हो चुकी है उन्हें पहले जैसे सज संवार कर रहने की कोई जरूरत नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के अनुसार मेनोपॉज के आम लक्षण जो महिलाएं में दिखते हैं जैसे हॉट फ़्लैशेज़ ( अचानक तेज गर्मी लगना), नींद कम आना, डिप्रेशन, बेचैनी, ब्रेन फ़ॉग और यौन इच्छा में कमी आदि के अलावा मेनोपॉज के 48 अलग-अलग लक्षण हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट अनुसार भारत में मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर मेनोपॉज का औसत उम्र 50 साल है लेकिन भारत में यह 46 से 47 साल है। रिपोर्ट के अनुसार देश में चिकित्सकीय व्यवस्था की कमी के कारण हर किसी के लिए मेनोपॉज का इलाज कराना मुमकिन नहीं है। महानगरों की बात करें, तो दिल्ली का राम मनोहर लोहिया अस्पताल एक ऐसा एकलौता सरकारी अस्पताल है जहां मेनोपॉज में हो रहे समस्याओं के इलाज की व्यवस्था है। देश के ग्रामीण इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केन्द्रों में मेनोपॉज में हो रहे समस्याओं के इलाज़ की कोई सुविधा नहीं है। हालांकि इंडियन मेनोपॉज सोसाइटी के अनुसार भारतीय महिलाएं अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा मेनोपॉज के बाद जीती है।
मुझे जब पता चला कि इस भारी दिक्कत (पेरी- मेनोपॉज के दौरान) के बाद मेरा पीरियड्स हमेशा के लिए बंद हो जाएगा, तो मैंने सोचा चलो यह अच्छा है कि हर महीने की यह झंझट खत्म हो जाएगी क्योंकि पीरियड्स में इस्तेमाल के लिए मुझे सूती कपड़े बड़ी मुश्किल से मिलते थे।
मेनोपॉज के इन सभी लक्षणों और समस्याओं को महिलाएं विशेषकर ग्रामीण महिलाएं, स्वास्थ्य सेवाओं और जागरूकता न होने के कारण बहुत कम जानती हैं। मेनोपॉज के दौरान होने वाली समस्याओं को लेकर बुंदेलखंड के एक गांव की 50 वर्षीय प्रेमा देवी कहती हैं, “मुझे इस दौरान समस्याएं हुई लेकिन इसकी जानकारी नहीं थी कि यह मेनोपॉज की वजह से हो रहा है। मुझे एक बार इतनी ज्यादा समस्या हुई कि मैं पेट का दर्द सह नहीं पा रही थी। तब मुझे गांव में एक वैध ने जंगली जड़ी-बूटी दी और आराम हो गया। फिर कुछ सालों तक जब भी दिक्कत हुई मैंने वही जंगली जड़ी-बूटी को खाया क्योंकि मेरी सास ने बोला, यह समस्या सभी औरतों को होता है और इस जड़ी-बूटी से ठीक हो जाएगा। इसमें डॉक्टर को क्या दिखाना।”

मेनोपॉज के दौरान होने वाली समस्याओं को लेकर 49 वर्षीय सर्वेश कहती हैं, “मुझे इसके चलते बहुत गर्मी लगती है तो मैं ठंडे पानी का शरबत बनाकर पी लेती हूं तो फिर ठीक लगता है।” वहीं 47 वर्षीय रीना देवी कहती हैं, “जब से मेनोपॉज शुरू हुआ है तो मुझे घुटनों और कमर में बहुत दर्द रहता है लेकिन दिनभर खेत और घर का काम करने से समझ ही नहीं आता। इतना पता भी नहीं था कि ऐसी दिक्कत में डाक्टर को दिखाना है।” ग्रामीण महिलाएं मेनोपॉज के दौरान होने वाले सभी लक्षणों को स्वास्थ्य सेवाओं और जागरूकता की कमी के चलते एक ऐसी शारीरिक परेशानी मानने लगती हैं जो सभी महिलाओं को होती है और इसके लिए किसी डॉक्टर को क्या दिखाना। इस सोच के चलते मेनोपॉज के दौरान होने वाली समस्याओं का चुपचाप सामना करती हैं। मेनोपॉज पर खुली चर्चा महिलाओं को इस प्रक्रिया को सहजता से अपनाने में मदद कर सकती है। मेनोपॉज एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है। समाज में इसे लेकर जागरूकता बढ़ाना और इसपर खुलकर चर्चा करना बेहद जरूरी है ताकि महिलाएं अपनी समस्याओं को बता सकें और इस बदलाव अपना सकें।