उन्नीसवीं सदी की बात है। भारत अंग्रेजों की क्रूरता और गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। देश के अलग- अलग हिस्सों में देशभक्ति और राष्ट्रवादी भावनाएं मुखर हो रही थीं। कोने-कोने तक क्रांतिकारियों के विद्रोह की गूंज सुनाई दे रही थी और इस गूंज का एकमात्र उद्देश्य था- अंग्रेजों से आज़ादी। उन्हीं दिनों, उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक और क्रांतिकारी वीरांगना जन्म ले रही थी। 5 मार्च 1902 को एक छोटे से गांव खेखड़ा में सेठ छज्जूमल के घर इस लड़की ने जन्म लिया और सेठ ने बड़े प्यार से उसका नाम रखा नीरा आर्य। वही नीरा आर्य, जो आगे चलकर भारत की पहली महिला जासूस बनी और वीरांगनाओं की पंक्ति में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज कर दिया।
नीरा को बचपन से ही देशभक्ति और राष्ट्र कल्याण में विशेष रुचि थी। उन्हें हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, नीरा आज़ाद हिंद फौज में रानी झांसी रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में शामिल हो गईं। उनके भाई बसंत कुमार आज़ाद हिंद फौज के सक्रिय सदस्यों में से एक थे। नीरा के लिखे गए एक लेख से जानकारी मिलती है कि वे आजाद हिंद फौज में गुप्तचर थी जो अंग्रेजों के घरों, दफ्तरों में वेश बदलकर काम करती थी और वहां से हासिल जानकारियों को नेताजी तक पहुंचाती थी। उन्हें आज़ाद हिंद फौज की पहली महिला जासूस होने का गौरव प्राप्त है।
नीरा को बचपन से ही देशभक्ति और राष्ट्र कल्याण में विशेष रुचि थी। उन्हें हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, नीरा आज़ाद हिंद फौज में रानी झांसी रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में शामिल हो गईं।
आज़ाद हिंद फौज में नीरा की भूमिका
नीरा आर्य के पिता ब्रिटिश अधिकारियों से प्रभावित थे। इसलिए, उन्होंने उनका विवाह ब्रिटिश भारत में सी.आई.डी इंस्पेक्टर श्रीकांत जय रंजन दास से कर दिया। श्रीकांत अंग्रेजों के एक वफादार अधिकारी थे। लेकिन नीरा आर्य के होते यह आसान नहीं था। उनकी विचारधारा श्रीकांत के विचारधारा से एकदम अलग था। वे आज़ाद हिंद फौज में सेनानी थीं और अपने देश की आजादी के लिए लड़ रही थीं। जब श्रीकांत को यह बात पता चली कि नीरा आजाद हिंद फ़ौज की सेना में शामिल है, तो उन्होंने कई बार नीरा से नेताजी के बारे में जानने की कोशिश की। लेकिन वह अपने इरादों के प्रति मजबूत थी। वो टस-से-मस नहीं हुईं और उन्होंने श्रीकांत को नेताजी के बारे में कुछ नहीं बताया।
आजीवन कारावास की सजा क्यों?
नीरा के पति श्रीकांत को ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को मारने की जिम्मेदारी सौंपी थी। ऐसे ही एक दिन जब नीरा कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने के लिए नेताजी से मिलने गई, तभी श्रीकांत ने उनका पीछा किया और मौका पाते ही नेताजी पर गोली चला दी। उस गोली से नेताजी तो बच गए लेकिन वह गोली उनके ड्राइवर को लग गई। उसके बाद नेताजी को बचाने के लिए नीरा ने जो कदम उठाया, भारतीय इतिहास में शायद ही किसी महिला ने इतना बड़ा बलिदान दिया होगा। नीरा ने अगले ही पल बिना कुछ सोचे अपने पति पर वार कर दिया। इसके बाद दिल्ली के लालकिले में उनपर मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि अंग्रेजों ने पहले उन्हें कलकत्ता जेल में रखा था फिर काले पानी की सजा देकर अंडमान निकोबार भेज दिया।

लेखिका और इतिहासकार मधू धामा ने नीरा आर्य की जीवनी ‘फर्स्ट लेडी स्पाई ऑफ आईएनए’ में उनके जीवन के संघर्षों और यातनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है। उन्होंने लिखा है कि जब नीरा को कलकत्ता जेल से अंडमान-निकोबार ले जाया गया, तो वहां उन्होंने अमानवीय यातनाएं सहन की। ऐसे ही एक घटना का जिक्र करते हुए मनु धामा लिखती हैं- एक बार, जब जेल में लोहार उनकी बेड़ियां खोल रहा था, तो उसने जंजीरों के साथ-साथ उनके पैरों की हड्डियों पर भी प्रहार किया। इस दर्दनाक आघात पर नीरा आर्य ने विरोध करते हुए लोहार से कहा कि तुम अंधे हो? तब जेलर ने उन्हें प्रस्ताव दिया कि यदि वे सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानकारी दे दें, तो उन्हें इन यातनाओं से मुक्त कर दिया जाएगा। इसपर उन्होंने कहा कि नेताजी हमारे दिल में रहते हैं। जेलर यह सुनकर गुस्सा हो गया और उसने लोहार को इशारा किया। लोहार ने एक लोहे का औजार उठाया, जो ब्रेस्ट रिपर जैसा दिखता था। इस औजार से उसने नीरा आर्य के स्तनों को काटने का प्रयास किया।
वे आज़ाद हिंद फौज में सेनानी थीं और अपने देश की आजादी के लिए लड़ रही थीं। जब श्रीकांत को यह बात पता चली कि नीरा आजाद हिंद फ़ौज की सेना में शामिल है, तो उन्होंने कई बार नीरा से नेताजी के बारे में जानने की कोशिश की। लेकिन वह अपने इरादों के प्रति मजबूत थी। वो टस-से-मस नहीं हुईं और उन्होंने श्रीकांत को नेताजी के बारे में कुछ नहीं बताया।
नीरा का साहस और देशभक्ति
नीरा ने इन अमानवीय यातनाओं को सहते हुए भी कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और न ही नेताजी के प्रति अपनी निष्ठा से विचलित हुईं। उनका जीवन त्याग, साहस, ईमानदारी का एक अनूठा उदाहरण है। उनको आज़ाद हिंद फौज की पहली महिला जासूस के रूप में जाना जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने खुद उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी। वे अपनी साथी सरस्वती राजमणि और मानवता आर्य के साथ अंग्रेजों के घरों और दफ्तरों में वेश बदलकर सफाईकर्मी के रूप में काम किया करती थी। वे वहां से गुप्त जानकारियां एकत्र कर नेताजी तक पहुंचाती थीं। इसका उल्लेख उन्होंने म्यांमार के संस्मरण में भी किया है। नीरा आर्या जैसी वीरांगनाएं सदियों में एक बार होती हैं, जिन्होंने देश के लिए अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दिया। लेकिन उनके आखिरी दिन सुखद नहीं थे। नीरा अपने अंतिम दिनों में सड़कों पर फूल बेचा करती थीं। वे हैदराबाद में एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी, जो सरकारी जमीन पर बनी होने के कारण तोड़ दी गई थी।
उनको आज़ाद हिंद फौज की पहली महिला जासूस के रूप में जाना जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने खुद उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी। वे अपनी साथी सरस्वती राजमणि और मानवता आर्य के साथ अंग्रेजों के घरों और दफ्तरों में वेश बदलकर सफाईकर्मी के रूप में काम किया करती थी।
वृद्धावस्था में अत्यधिक कष्ट, गरीबी और बीमारी की हालत में 26 जुलाई 1998 को उनकी मृत्यु उस्मानिया अस्पताल में हो गई। यह एक दुखद घटना है कि एक ऐसी महिला जिसने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, उन्हें अपने अंतिम दिनों में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई वीरों और वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दिया। लेकिन कई ऐसी वीरांगनाएं हैं जिनके बलिदानों को इतिहास ने भुला दिया है। उनमें से एक नाम नीरा आर्य का है, जिन्होंने अपनी वीरता से देश में परचम लहराया है। नीरा आर्य की वीरता और देशभक्ति की कहानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है। वे नारीशक्ति और देश प्रेम की एक अद्भुत मिसाल हैं।
सोर्स: