महाश्वेता देवी की “आफ्टर कुरूक्षेत्र” महाभारत महाकाव्य की घटना से प्रेरित एक किताब है। महाश्वेता इस किताब में महिलाओं और सामान्य वर्ग के लोगों के जीवन में धर्मयुद्ध के प्रभाव को दिखाती हैं। वह सामान्य वर्ग, समुदाय और जाति से आने वाली महिलाओं को जनवृत्ता/लोकवृत्ता कहती हैं, जबकि राजपरिवार और कुलीन वर्ग की महिलाओं को राजवृत्ता के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने इस किताब को मूलतः बांग्ला भाषा में लिखा था। इस समीक्षा के लिए अंजुम कटियाल द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित “आफ्टर कुरूक्षेत्र” को लिया गया है। महाश्वेता देवी एक प्रसिद्ध नारीवादी कार्यकर्ता और बांग्ला लेखिका थीं। यह किताब तीन अध्यायों में विभाजित है, जिनमें देवी अलग-अलग जनवृत्ता महिलाओं के जीवन को ऐतिहासिक धर्मयुद्ध की पृष्ठभूमि में दिखाती हैं।
पंचकन्या: धर्मयुद्ध के पैदल सैनिकों की स्त्रियां
इस भाग में पांच लोकवृत्ता महिलाओं की कहानी है, जिनके पति धर्मयुद्ध में पैदल सैनिक थे और युद्ध में मारे जा चुके हैं। ये महिलाएं कुरुजंगल से कुरु राजधानी में अपने मृत पतियों के शरीर की तलाश में आई हैं। यहां उन्हें अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा की संगिनी के रूप में आर्या सुभद्रा द्वारा रखा गया है। ये महिलाएं महल की अन्य दासियों की तरह नहीं हैं। वे कुरु राजधानी से दूर गांवों की निवासी हैं, जहां वे अपने किसान पतियों के साथ खेतों में काम करती थीं और पशुपालन करती थीं। कुरुजंगल वह क्षेत्र है जहां से राजपरिवार के लिए अनाज और कर आता है। वहीं कुरुक्षेत्र की भूमि अब लाखों मरे हुए सैनिकों की चिताओं की आग से तप रही है, और जब वह भूमि ठंडी होगी, तो ये महिलाएं वापस अपने गांव लौट जाएंगी। कुरुजंगल जनवृत्ता लोगों का घर है। यहां के किसानों को युद्ध में यह कहकर बुलाया गया था कि यह धर्मयुद्ध है, जिसमें भाग लेने पर स्वर्ग मिलेगा। देवी दिखाती हैं कि लाखों पैदल सैनिक मारे गए, लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में संस्कार संभव नहीं था। देवलोक सिर्फ राजपरिवार और उच्च जातियों के लिए था, जहां विधिपूर्वक अंतिम संस्कार हुआ।
महाश्वेता दिखाती हैं कि लाखों पैदल सैनिक मारे गए, लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में संस्कार संभव नहीं था। देवलोक सिर्फ राजपरिवार और उच्च जातियों के लिए था, जहां विधिपूर्वक अंतिम संस्कार हुआ।
विधवाओं का इहिलोक बनाम पुनर्विवाह की स्वतंत्रता
इस युद्ध में राजवृत्ता और जनवृत्ता स्त्रियों, दोनों ने अपने पतियों, बेटों और भाइयों को खोया। पंचकन्याएं जनवृत्ता महिलाएं हैं, जिनके पति पैदल सैनिक थे। वही उत्तरा, जो राजवृत्ता है, उसके पति अभिमन्यु भी युद्ध में मारे गए। इस अध्याय में देवी दिखाती हैं कि कैसे राजवृत्ता स्त्रियों का जीवन पति के बिना फीका और एकाकी हो जाता है। उन्हें महल की चारदीवारी में “इहिलोक” में रहना पड़ता है, जो विधवा स्त्रियों के लिए बना स्थान है। कौरवों की कई स्त्रियां और पांडव पक्ष की उत्तरा इसी इहिलोक में रहती हैं। इसके विपरीत, जनवृत्ता स्त्रियों को पुनर्विवाह की स्वतंत्रता है। वे युद्ध समाप्ति के बाद लौटकर फिर से जीवन शुरू करेंगी, क्योंकि उनका जीवन प्रकृति के चक्र पर आधारित होता है। जैसे युद्ध के बाद की तपती भूमि बारिश में ठंडी होती है और फिर से हरी-भरी होती है, वैसे ही जीवन भी चलता है। आर्या सुभद्रा, उत्तरा से कहती है कि वह आर्या कुंती जैसी बने। लेकिन पंचकन्याओं और उत्तरा की कहानी से यह स्पष्ट होता है कि जनवृत्ता स्त्रियों को अपनी एजेंसी, यौनिकता और प्रजनन पर अधिक स्वतंत्रता थी।
कुंती और निषादिन: दो दुनियाओं की स्त्रियां
इस अध्याय में देवी, राजवृत्ता कुंती और लोकवृत्ता निषादिन की कहानी बताती हैं। निषादिन एक आदिवासी समुदाय की महिला है जो जंगलों में रहती है और अपनी कुलदेवी आरण्यक की पूजा करती है। कुंती युद्ध के बाद वनवास में अपने पापों पर पश्चाताप कर रही है, खासकर कर्ण को समाज के डर से अपना नाम न दे पाने को लेकर। पांडव भी नियोग से जन्मे थे, लेकिन विवाहिता होने के कारण समाज ने कुंती को दोषी नहीं ठहराया। वहीं, माधवी जैसी स्त्रियों ने पिता की आज्ञा से नियोग से संतानें पैदा की, जिसे समाज ने गलत नहीं माना। देवी इस प्रसंग में यह दिखाती हैं कि स्त्रियों की पहचान पुरुषों से तय होती है—चाहे वह पति हो या पिता। इतिहास में स्त्री की एजेंसी, यौनिकता और प्रजनन को हमेशा नियंत्रित किया गया है। दूसरी ओर, निषादिन की कहानी लाक्षागृह की त्रासदी से जुड़ी है, जिसमें उसका पति और परिवार राजनैतिक षड्यंत्र के कारण मारे गए थे। वह कुंती पर आरोप लगाती है कि वह कभी आदिवासियों को आमंत्रित नहीं करती थीं, लेकिन अपने स्वार्थ के लिए उन्हें मरवा दिया।
निषादिन एक आदिवासी समुदाय की महिला है जो जंगलों में रहती है और अपनी कुलदेवी आरण्यक की पूजा करती है। कुंती युद्ध के बाद वनवास में अपने पापों पर पश्चाताप कर रही है, खासकर कर्ण को समाज के डर से अपना नाम न दे पाने को लेकर।
निषादिन की स्वतंत्रता और प्रकृति का न्याय
कुंती पूछती है कि निषादिन के ये बच्चे किसके हैं, जब उसका पति मर चुका था। निषादिन बताती है कि उनके समुदाय में स्त्रियों को पुनर्विवाह की स्वतंत्रता है, और विवाह से पहले भी संतान जन्मना कोई अपराध नहीं। प्रकृति ही उन्हें यह सिखाती है। वह कहती है कि जंगल में आग लगी है और कुंती को अपने पापों की सजा प्रकृति से मिलेगी। यह एक प्रतीकात्मक दृश्य है, जो बताता है कि जनवृत्ता समुदायों की स्वतंत्रता, नैतिकता और प्रकृति से जुड़ाव, राजवृत्ता की तुलना में कहीं अधिक मानवीय और न्यायसंगत है।
सौवाली: दासी से जनवृत्ता मां बनने की यात्रा
सौवाली एक जनवृत्ता वैश्या थी, जिसे धृतराष्ट्र की यौन साथी के रूप में नियुक्त किया गया था, जब गांधारी गर्भवती थीं। देवी उसके माध्यम से नगर के बाहर की बस्तियों और जातिव्यवस्था की बात करती हैं। सौवाली से धृतराष्ट्र को एक पुत्र होता है—युयुत्सु, जिसे कौरव दासी पुत्र कहकर अपमानित करते हैं। लेकिन जब धृतराष्ट्र की मृत्यु होती है, तो यही दासी पुत्र तर्पण करता है। राजमहल में वह युयुत्सु था, लेकिन जनवृत्ता समाज में वह सौवाल्या था। देवी इस माध्यम से दिखाती हैं कि जनवृत्ता समाज में एक स्त्री को अपनी पहचान के लिए किसी पुरुष के नाम की आवश्यकता नहीं थी। सौवाली एक स्वतंत्र स्त्री और सिंगल मदर थी, जिसकी अपनी एजेंसी थी। उसे धृतराष्ट्र की मृत्यु का कोई दुख नहीं होता, क्योंकि राजमहल में उसे सिर्फ एक दासी समझा गया। जनवृत्ता में वह स्वतंत्र और सम्मानित थी।
इतिहास की परछाइयों से निकली स्त्रियों की आवाज
महाश्वेता देवी की “आफ्टर कुरूक्षेत्र” महर्षि व्यास की महाभारत से बिल्कुल अलग है। मात्र 55 पृष्ठों में देवी ने वर्ग, जाति और जेंडर के इंटरसेक्शन को नारीवादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। जहां महाभारत में राजवृत्ता की कथाएं प्रमुख थीं, देवी ने जनवृत्ता स्त्रियों की कहानियों को केंद्र में रखा। उन्होंने दिखाया कि इतिहास में किस तरह निचले वर्गों, जातियों और स्त्रियों का शोषण उच्चवर्गीय पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने किया है। यह किताब एक ऐतिहासिक पुनर्पाठ है, जिसमें हाशिये की आवाजों को केंद्र में लाया गया है। देवी का लेखन इस बात की याद दिलाता है कि नारीवादी इतिहास लेखन केवल राजाओं और युद्धों की नहीं, बल्कि उन स्त्रियों की भी कहानी है जो इन युद्धों का बोझ ढोती रहीं।