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ग्राउंड ज़ीरो से बिहार में शराबबंदी के बाद महिलाओं के अनुभव और चुनौतियां

बिहार में शराबबंदी के बाद महिलाओं के अनुभव और चुनौतियां

पश्चिम चंपारण के मझोलिया गांव के मुसहर समुदाय जो पारंपरिक तरीकों से शराब बनाते आए हैं, आज उनके पास रोजगार का साधन केवल मजदूरी रह गया है, जोकि निश्चित नहीं होती है। उनके पारंपरिक रोजगार की वजह से आज भी पूरे समुदाय को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें समय-समय पर पुलिस का शोषण का सामना भी करना पड़ता है।

बिहार के मझोलिया गांव में, घरों के सामने अपने व्यस्त दिन के बाद  महिलाएं आग जलाए घर के बाहर आँगन में बैठी हुई थीं। ठंड का मौसम था इसलिए आग के पास बैठकर ठहाके चल रहे थे। बिहार में शराब बंदी का निर्णय 2016 में लागू हुआ, जिसका उद्देश्य समाज में घरेलू हिंसा पर रोक, स्वास्थ्य और सामाजिक नैतिकता को बढ़ावा देना था। बिहार सरकार ने शराब बंदी लागू करके एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत करने का प्रयास किया था, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसका कार्यान्वयन चुनौतीपूर्ण रहा। प्रशासन ने अवैध बाजार को रोकने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन भ्रष्टाचार और अपर्याप्त निगरानी के कारण कई बार यह प्रयास सीमित साबित हुए।

इन महिलाओं से बिहार में शराबबंदी पर पूछे जाने पर उनकी आँखों में हलचल सी दिखी। कुछेक हंसने लगी। इस विषय पर पश्चिमी चंपारण जिले की लौरिया व्यासपुर गांव की कुर्मी समुदाय की 70 वर्षीय सरला (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “कौन सी बंदी? यहां तो हर कहीं मिल जाता है।” बातचीत के बीच वहां बैठी पश्चिम चंपारण के लौरिया की रहने वाली कुर्मी जाति की सबिता देवी हमें अपने घर के अंदर ले गई, जहां उन्होंने एक पुराना सा पैकेट निकाला। यह देखने में फ्रूटी के पैकेट की तरह लग रहा था। सबिता कहती हैं, “अब तो शराब अमेज़न पर डिलीवरी हो जाता है। दरवाजे तक आ जाता है। दाम देखिए, लिखा है 150 रुपये, लेकिन दुगने दाम पर मिलता है। खरीदना सबके बस की बात नहीं।”  

अब तो शराब अमेज़न पर डिलीवरी हो जाता है। दरवाजे तक आ जाता है। दाम देखिए, लिखा है 150 रुपये, लेकिन दुगने दाम पर मिलता है। खरीदना सबके बस की बात नहीं।

शराबबंदी का राजनीतिक अजेन्डा और सामाजिक प्रभाव

बिहार में इस बंदी की मांग महिलाओं ने की थी जिसे नीतीश कुमार ने अपने चुनाव प्रचार का मुद्दा भी बनाया था। उस साल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की सरकार ने नतीजन आर्टिकल 47 DPSP के तहत शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। साथ ही शराब का सेवन या बिक्री करने पर भारी जुर्माना और कम से कम 3 महीने तक की कारावास का प्रावधान किया गया। प्रतिबंध का लक्ष्य था शराब के सेवन को बंद करना, जिससे घरेलू हिंसा में कमी, स्वास्थ्य और खुशहाली की उम्मीद की गई थी। शराबबंदी के आठ साल होने बाद यह कदम  महिलाओं के पक्ष में कितना रहा, यह जानने के लिए बिहार के अलग-अलग समुदाय, क्षेत्र, और आर्थिक आधार पर कुछ महिलाओं से बातचीत की गई। शराबबंदी पर जब हमने उच्च आय वर्ग की महिलाओं बातचीत की, तो यह सामने आया कि प्रदेश में शराब के बंद होने पर उनके कामकाज और व्यापार से जुड़े कामों दूसरे तरीके से काफी असर पड़ा है। पटना के जगदेवपथ की रहने वाली 30 वर्षीय लीला (बदला हुआ नाम) एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम कर रही हैं।

तस्वीर साभार: सुष्मिता मंडल

वह बताती हैं कि उनकी कई व्यापार संधि सिर्फ इसलिए नहीं हुई क्योंकि उनके साथी  शराब बंद होने के कारण बिहार नहीं आना चाहते। इस वर्ग में शराब कहीं न कहीं सामाजिक मेल-मिलाप और खान-पान के साथ बिजनस से जुड़े कामों के विषय में बातचीत का एक जरिया है। वहीं, दूसरी ओर  निम्न वर्ग की महिलाओं का यह मानना है कि अब वह पहले से ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं।  रानी (बदला हुआ नाम) कुमहरार इलाके के अंबेडकर नगर बस्ती की रहने वाली हैं जो पटना नगर निगम में सफाई कर्मचारी का काम करती हैं। वह बताती हैं, “मैं सुबह बहुत जल्दी काम पर निकलती हूं और अब मुझे रास्ते में कोई डर नहीं लगता क्योंकि पहले की तरह सड़क पर शराब पीने वाले लोग नहीं होते।” त्योहारों के समय, जैसे दशहरा और होली में शांति बनी रहती है। वहीं, पटना स्लम की रहने वाली दयवंती देवी बताती हैं, “मैं अपने नाती-पोते के साथ विसर्जन में भी भाग लेती हूं। पहले तो घर के अंदर ही रहना पड़ता था।” 

वह बताती हैं कि उनकी कई व्यापार संधि सिर्फ इसलिए नहीं हुई क्योंकि उनके साथी  शराब बंद होने के कारण बिहार नहीं आना चाहते। इस वर्ग में शराब कहीं न कहीं सामाजिक मेल-मिलाप और खान-पान के साथ बिजनस से जुड़े कामों के विषय में बातचीत का एक जरिया है।

क्या शराबबंदी से घरेलू हिंसा में आई है कमी

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

हालांकि घर के अंदर हो रहे घरेलू हिंसा पर शराबबंदी का कोई खास असर देखने को नहीं मिला। अवैध शराब बिक्री के चलते पुरुष अभी भी या तो शराब पीकर घरेलू हिंसा करते हैं या फिर आस-पास मौजूद अन्य नशे में डूब रहे हैं और हिंसा जारी है। बातचीत के दौरान हमने यह पाया कि महिलाओं के पति न केवल शराब पी कर उन्हें प्रताड़ित करते हैं बल्कि बिना नशा किए भी घरेलू हिंसा आम है। पटना की अंबेडकर नगर बस्ती की रहने वाली 28 वर्षीय गृहणी कनक (बदला हुआ नाम) के साथ हुए घरेलू हिंसा की घटना में उनका सर तक फट गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने एक बयान में कहा था कि शराबबंदी के बाद लाखों परिवार खुशहाल और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। वहीं, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएस-5) के अनुसार, बिहार में शराबबंदी के बाद भी घरेलू हिंसा के मामलों में एनएफएचएस-4 के 43 फीसद से एनएफएचएस-5 में महज 3 फीसद की कमी, यानी 40 फीसद दर्ज हुई है। इस विषय पर बिहार के मद्ध निषेद विभाग के प्रभारी दिनबंधु कुमार बताते हैं, “पिछले कई सालों से घरेलू हिंसा के मामलों में गिरावट देखने को मिली है।” 

मैं सुबह बहुत जल्दी काम पर निकलती हूं और अब मुझे रास्ते में कोई डर नहीं लगता क्योंकि पहले की तरह सड़क पर शराब पीने वाले लोग नहीं होते।

घरेलू हिंसा और पितृसत्तातमक समझौते

तस्वीर साभार: सुष्मिता मंडल

शीला देवी (बदला हुआ नाम) पटना के बाजार समिति बस्ती की रहने वाली हैं। अपने साथ हो रहे घरेलू हिंसा की उन्होंने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई। लेकिन, जब पति पर कार्रवाई हुई, तो घर का सारा जिम्मा उनपर आ गया। ऐसे में उन्हें पति को जेल से निकालने के लिए अपने गहने तक बेचने पड़े। पटना के बम्पर टोला बस्ती की 35 वर्षीय गृहणी रश्मि (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “मेरे पति को जब जेल हुई तो बच्चों की पढ़ाई तक छुड़वाने की नौबत आ गई और हमें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।” बातचीत के दौरान कई महिलाओं ने यह बात कही कि वे उनपर हो रहे हिंसा की घटना को दर्ज नहीं करवा पाई क्योंकि उनके परिवार या रिश्तेदार उन्हें इस बात के लिए ताना देते हैं।

घरेलू हिंसा से परेशान होकर जब मैं एक दिन हेल्पलाइन नंबर पर कॉल लगाई, तो पुलिस दरवाजे तक आ चुकी थी। लेकिन मैंने उन्हें झूठ बोलकर लौटा दिया क्योंकि ससुराल वाले मुझे कहने लगे कि ‘कुलक्षिणी महिला’ है। उन्होंने कहा कि मेरा जरूर किसी और के साथ प्रेम संबंध है, तभी अपने पति को जेल भेजने से कतरा नहीं रही हूं।

वहीं गुड़िया (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “घरेलू हिंसा से परेशान होकर जब मैं एक दिन हेल्पलाइन नंबर पर कॉल लगाई, तो पुलिस दरवाजे तक आ चुकी थी। लेकिन मैंने उन्हें झूठ बोलकर लौटा दिया क्योंकि ससुराल वाले मुझे कहने लगे कि ‘कुलक्षिणी महिला’ है। उन्होंने कहा कि मेरा जरूर किसी और के साथ प्रेम संबंध है, तभी अपने पति को जेल भेजने से कतरा नहीं रही हूं। फिर पति ही एक मात्र कमाकर लाने वाला व्यक्ति है। अगर हवालात में बंद होंगे तो घर किस तरह चल पाएगा। साथ ही जुर्माना भरना भी अपनेआप में भारी होगा।” 

एकल महिलाएं, शराबबंदी और सामाजिकता पर असर

शराबबंदी होने के बाद बिहार में अवैध शराब पीने से कई मौतों की खबर सामने आती रही हैं। 13 दिसम्बर से 16 दिसम्बर 2022 को  सारण और सिवान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार 77 लोगों की मौत हुई, जिसमें से 57 लोग अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार से थे। वहीं साल 2023 में पूर्वी चंपारण में कुल 26 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हुई थी। साल 2023 से पहले सरकार के पास मुआवजे  का कोई प्रावधान नहीं था। साथ ही इसकी जवाबदेही लेने से भी सरकार ने इंकार कर दिया था, जिसके कारण परिवार का पूरा भार फिर से उन परिवारों की महिलाओं के कंधों पर है। इससे महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा है। वह समुदाय जो पहले से पारंपरिक तरीकों से शराब बनाते आए हैं,  सरकार की इस नीति ने उन्हें कठघरों में खड़ा कर दिया है। 

तस्वीर साभार: सुष्मिता मंडल

पश्चिम चंपारण के मझोलिया गांव के मुसहर समुदाय जो पारंपरिक तरीकों से शराब बनाते आए हैं, आज उनके पास रोजगार का साधन केवल मजदूरी रह गया है, जोकि निश्चित नहीं होती है। उनके पारंपरिक रोजगार की वजह से आज भी पूरे समुदाय को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। उन्हें समय-समय पर पुलिस का शोषण का सामना भी करना पड़ता है। गांव में एक साथ रह रहे कुर्मी समुदाय के साथ भी अब उनके संबंध खराब होते देखा गया है। कुर्मी समुदाय की महिलाएं मुसहर महिलाओं से दूरी बनाने लगी हैं क्योंकि वे मानती हैं कि उनके पति के  शराब पीने के पीछे उनका हाथ है। इससे उनके जीवन में आर्थिक और सामाजिक समस्याएं और चुनौतियां पैदा हो रही हैं।

13 दिसम्बर से 16 दिसम्बर 2022 को  सारण और सिवान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार 77 लोगों की मौत हुई, जिसमें से 57 लोग अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार से थे। वहीं साल 2023 में पूर्वी चंपारण में कुल 26 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हुई थी।

शराबबंदी का उद्देश्य महिलाओं के जीवन में सुधार लाना, घरेलू हिंसा में कमी और परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर करना था। लेकिन यह कानून सभी महिलाओं के लिए समान रूप से फायदेमंद नहीं रहा है। यह कहना कि इससे घरेलू हिंसा में कमी आई है, या राज्य की महिलाएं इस कानून से संतुष्ट हैं, एक सरलीकरण होगा। कई महिलाओं ने कहा है कि घरेलू हिंसा का कारण केवल शराब नहीं है। सकरकात्मक दृष्टि से देखें, तो शराबबंदी से महिलाओं की गतिशीलता कुछ हद तक जरूर बढ़ी है। लेकिन कई महिलाएं अब भी सामाजिक, आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों से जूझ रही हैं। यह बातचीत इस बात को उजागर करती है कि किसी कानून का असर हर वर्ग और समुदाय पर एक सा नहीं होता है। समाज की जटिल संरचनाओं को ध्यान में रखकर ही इसके प्रभावों का आकलन किया जा सकता है। शराबबंदी एक व्यापक और जटिल राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा है, जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। इसलिए, इसपर विचार करते समय हमें  ध्यान रखना होगा कि क्या किसी समस्या का समाधान केवल कानून बनाने से संभव है, या इसके साथ-साथ अन्य सामाजिक सुधारों की भी जरूरत है?

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