समाज नशे की लत से जूझते हिमाचल के युवाओं की जिम्मेदारी आखिर किसकी?

नशे की लत से जूझते हिमाचल के युवाओं की जिम्मेदारी आखिर किसकी?

द ट्रिब्यून में छपी एक खबर अनुसार कांगड़ा जिले में पुलिस जांच के दौरान नूरपुर क्षेत्र में एक ही सिरिंज से नशा करने के कारण 34 युवा एचआईवी पॉजिटिव पाए गए। नशा मस्तिष्क के रसायन बदलकर अवसाद, घबराहट और आवेगी व्यवहार को बढ़ाता है। यह निर्णय लेने, सीखने और याददाश्त पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

हिमाचल प्रदेश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांतिपूर्ण वातावरण और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, इस खूबसूरत प्रदेश को आज एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है । नशे की बढ़ती समस्या  हिमाचल को अंदर ही अंदर खोखला करता जा रहा है। यह विशेष रूप से युवाओं पर हावी हो रहा है जहां वे इसके आदि हो रहे हैं। नशे की लत एक गंभीर समस्या है जो न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन को नष्ट करती है, बल्कि परिवार, समाज और राज्य की प्रगति पर भी गहरा प्रभाव डालती है।

हिमाचल जैसे राज्य में, जहां प्राकृतिक संसाधन और सांस्कृतिक धरोहरें विकास का आधार है, वहीं दूसरी ओर  नशे की बढ़ती प्रवृत्ति सामाजिक ढांचे को कमजोर कर रही है। यह समस्या केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा रही  है। प्रदेश में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति अपराध दर में वृद्धि, पारिवारिक तनाव और शिक्षा के स्तर में गिरावट का कारण बन रही है। इसके अलावा नशे के कारण कार्यक्षमता में कमी और युवाओं के भविष्य की संभावनाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है।

द ट्रिब्यून में छपी रिपोर्ट में एक हालिया अध्ययन में हिमाचल प्रदेश के 13 से 17 साल के किशोरों पर 204 स्कूलों के छात्रों पर एक सर्वे किया गया। सर्वे में 9.02 फीसदी किशोरों के इंजेक्शन से नशा लेने की बात सामने आई है। नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती 15 से 30 साल के 1,170 युवाओं में से करीब 35 फीसद चिट्टे की लत का सामना कर रहे हैं।

हिमाचल में नशे की स्थिति

ट्रिब्यून में छपी रिपोर्ट में एक हालिया अध्ययन में हिमाचल प्रदेश के 13 से 17 साल के किशोरों पर 204 स्कूलों के छात्रों पर एक सर्वे किया गया। सर्वे में 9.02 फीसदी किशोरों के इंजेक्शन से नशा लेने की बात सामने आई है। नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती 15 से 30 साल के 1,170 युवाओं में से करीब 35 फीसद चिट्टे की लत का सामना कर रहे हैं। एक स्वयंसेवी संस्था और इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के सर्वे में यह चिंताजनक बातें सामने आई हैं। सर्वे में कुल 7,563 विद्यार्थियों ने भाग लिया। इनमें 3,833 छात्र और 3,730 छात्राएं थीं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार तंबाकू, धूम्रपान, भांग और शराब का ही नहीं, कई स्कूली बच्चे कोकीन, चिट्टा, हेरोइन और अफीम का भी सेवन कर रहे हैं।

तस्वीर साभार: India Times

सर्वे में शामिल छात्रों में से करीब 9.02 फीसद ने सिरिंज से भी ड्रग्स लेने की बात स्वीकार की है। वहीं 12.41 फीसद बच्चों ने कहा कि उनके दोस्तों में से कई किसी न किसी तरह का नशा करते हैं। आईजीएमसी के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख, डॉ. अनमोल गुप्ता और असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ. अमित सचदेवा के अनुसार प्रदेश के 27 नशामुक्ति केंद्रों में 1,170 युवाओं पर किए गए एक अध्ययन में 34.61 फीसद युवाओं को चिट्टे का शिकार पाया गया है। खासकर 15 से 30 साल के युवा इसका अधिक सेवन कर रहे हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल में भांग का नशा 3.18 फीसद है, जोकि राष्ट्रीय औसत 1.2 फीसद से ज्यादा है।

मेरा बेटा नशे की हालत में शारीरिक हिंसा करता है। जब मेरा बेटा मुझपर शारीरिक हिंसा करता है, तो आस-पड़ोस के लोग भी मदद नहीं करते क्योंकि वह भी डरते हैं। कुछ साल पहले उसने  मेरी रीड की हड्डी भी तोड़ दी थी।  बहुत सालों से मैं यह सब बर्दाश्त कर रही हूं। जब भी मैं खाने बैठती हूं तो मुझे गालियां देता है।

नशे के लत का दुष्प्रभाव

हिमाचल प्रदेश के युवा बढ़ते नशे के खतरे, खासकर चिट्टा (मिलावटी हेरोइन) के प्रसार से गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। कभी शहरी केंद्रों तक सीमित रहने वाली नशीली दवाओं की समस्या अब ग्रामीण इलाकों में भी फैल गई है। नशीली दवाओं का खतरा न केवल उन युवाओं के जीवन को नष्ट कर रहा है जो इसके आदी हो जाते हैं, बल्कि उनके परिवारों को भी तोड़ रहा है। नशे की समस्या के कारण माता-पिता को असहनीय मानसिक और भावनात्मक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। कांगड़ा जिले के किसान गंगू राम बताते हैं, “मेरा 20 वर्षीय बेटा जो पहले पढ़ाई में बहुत अच्छा  था, नशे की लत के कारण अपनी शिक्षा छोड़ चुका है। अब वह दिन-रात नशा करने के लिए पैसे जुटाने की कोशिश करता रहता है। यह स्थिति पूरे परिवार के लिए शर्मिंदगी और निराशा का कारण बन गई है।” नशे के लिए पैसे जुटाने के प्रयास में अक्सर लोग चोरी और हिंसा जैसे अपराधों में शामिल हो रहे  हैं। नशे की लत के कारण परिवारों में झगड़े और अलगाव बढ़ रहे हैं।


तस्वीर साभार: India Times

कांगड़ा  की रहने वाली 68 वर्षीय छाया  देवी (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “ मेरा बेटा नशे की हालत में शारीरिक हिंसा करता है। जब मेरा बेटा मुझपर शारीरिक हिंसा करता है, तो आस-पड़ोस के लोग भी मदद नहीं करते क्योंकि वह भी डरते हैं। कुछ साल पहले उसने  मेरी रीड की हड्डी भी तोड़ दी थी।  बहुत सालों से मैं यह सब बर्दाश्त कर रही हूं। जब भी मैं खाने बैठती हूं तो मुझे गालियां देता है। एक दिन मैं खाना खा रही थी तो उसने दुपट्टे में चप्पल बांधा और मेरे सिर पर ज़ोर से  मारा। उस दिन मेरे सलवार में ही पेशाब हो गया था।  मेरा कच्चा घर है जिसकी मरम्मत के लिए पैसे मिले थे। लेकिन, मेरे बेटे ने वो पैसे भी नशे में उड़ा दिए। मैं बहुत परेशान हो गई हूं। एक तरफ बेटे की मार-पीट और दूसरी तरफ भूख की मार। मैं अब इस हालत में भी नहीं  हूं कि कहीं काम कर सकूं।” वहीं कांगड़ा की रहने वाली सुमना  देवी कहती हैं, “मेरा बेटा अभी 19 साल का है। यह  सारा दिन लिफ़ाफ़े में कोई चीज डालकर सूंघता रहता है और हमेशा नशे में धुत्त रहता है। अगर उसे एक दिन  नशा न मिले तो वह मरने- मारने पर उतारू हो जाता है। मैंने कई बार कोशिश की नशा छुड़वाने की। लेकिन हर कोशिश नाकाम रही। कई बार मैंने उसका लिफ़ाफ़ा फेंक भी दिया और कमरे में बंद करके भी रखा। एक बार नशा मुक्ति केंद्र भी भेजा पर वह वहां से भाग आया।”

मेरा बेटा अभी 19 साल का है। यह  सारा दिन लिफ़ाफ़े में कोई चीज डालकर सूंघता रहता है और हमेशा नशे में धुत्त रहता है। अगर उसे एक दिन  नशा न मिले तो वह मरने- मारने पर उतारू हो जाता है। मैंने कई बार कोशिश की नशा छुड़वाने की। लेकिन हर कोशिश नाकाम रही। 

नशे का शारीरिक प्रभाव

नशे की लत से पीड़ित लोगों को फेफड़े, हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा होता है। तंबाकू से कैंसर, मेथेम्फेटामाइन से दांतों की समस्या (मेथ माउथ) और ओपिओइड के ओवरडोज से मौत भी हो सकती है। कुछ नशीले पदार्थ तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं और संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं। द ट्रिब्यून में छपी एक खबर अनुसार कांगड़ा जिले में पुलिस जांच के दौरान नूरपुर क्षेत्र में एक ही सिरिंज से नशा करने के कारण 34 युवा एचआईवी पॉजिटिव पाए गए। नशा मस्तिष्क के रसायन बदलकर अवसाद, घबराहट और आवेगी व्यवहार को बढ़ाता है। यह निर्णय लेने, सीखने और याददाश्त पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। नशे की लत से व्यक्ति के साथ-साथ उसके परिवार पर भी मानसिक और भावनात्मक असर पड़ता है। नशे के कारण घर में हिंसा की घटनाएं बढ़ जाती हैं, जिससे परिवार के अन्य सदस्य भी प्रभावित होते हैं।

तस्वीर साभार: Indian Express

हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी और नशे की लत आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। कुछ युवा नशे के कारण अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, तो कुछ बेरोजगारी के कारण नशे के आदी हो रहे हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और पर्यटन पर आधारित है। लेकिन, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति इन क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी और काम की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बन रही है। नशे की लत से युवाओं की कार्य क्षमता प्रभावित होती है, जिससे रोजगार के अवसरों और राज्य की आर्थिक प्रगति पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके अलावा, नशे की लत से ग्रस्त पुरुषों का परिवार भी प्रभावित होता है। वे अपनी आय का बड़ा हिस्सा नशे पर खर्च कर देते हैं, जिससे घर की महिलाओं पर वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों का अतिरिक्त भार पड़ता है। कई बार यह घरेलू हिंसा का भी कारण बनता है।

द ट्रिब्यून में छपी एक खबर अनुसार कांगड़ा जिले में पुलिस जांच के दौरान नूरपुर क्षेत्र में एक ही सिरिंज से नशा करने के कारण 34 युवा एचआईवी पॉजिटिव पाए गए। नशा मस्तिष्क के रसायन बदलकर अवसाद, घबराहट और आवेगी व्यवहार को बढ़ाता है। यह निर्णय लेने, सीखने और याददाश्त पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

कांगड़ा की रहने वाली 40 वर्षीय सीमा देवी कहती हैं, “मेरा पति जो भी कमाता है, वह सब नशे में उड़ा देता है। घर का राशन तक लाने के लिए मुझे खुद दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती है। जब मैं बाहर काम करने जाती हूं, तो वह मुझ पर शक करता है और झगड़ा करता है। उसका हिंसक व्यवहार मेरे बच्चों को डरा देता है।” उनके दो बच्चे हैं, जो स्कूल जाते हैं। आज सीमा जैसी कई महिलाओं को इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। नशे की लत सिर्फ व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और समाज को प्रभावित कर रही है।

नशे की समस्या से निपटने के लिए प्रभावी प्रयास है जरूरी

हिमाचल प्रदेश में नशे की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक और प्रभावी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। यह केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए सामाजिक जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी भी आवश्यक है। स्कूली स्तर से ही बच्चों को नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। माता-पिता को भी अपने बच्चों के व्यवहार में बदलाव को गंभीरता से लेना चाहिए और समय पर उचित कदम उठाने चाहिए, ताकि वे नशे से दूर रह सकें। सरकार को नशे के खिलाफ सख्त कानून लागू करने होंगे। नशीले पदार्थों की तस्करी और बिक्री पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए और दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। हिमाचल सरकार को अन्य राज्यों की प्रभावी नशा मुक्ति योजनाओं का अध्ययन कर उनके सफल मॉडल को अपनाना चाहिए।

मेरा 20 वर्षीय बेटा जो पहले पढ़ाई में बहुत अच्छा  था, नशे की लत के कारण अपनी शिक्षा छोड़ चुका है। अब वह दिन-रात नशा करने के लिए पैसे जुटाने की कोशिश करता रहता है। यह स्थिति पूरे परिवार के लिए शर्मिंदगी और निराशा का कारण बन गई है।

पुनर्वास और रोजगार के अवसर नशा मुक्ति की प्रक्रिया को मजबूत बना सकते हैं। राज्य में अधिक से अधिक नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए। नशे की लत से जूझ रहे लोगों के लिए उचित परामर्श और मनोवैज्ञानिक सहायता की व्यवस्था की जाए। नशा छोड़ने वाले व्यक्तियों के लिए विशेष रोजगार योजनाएं लागू की जाएं, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराए जाएं, जिससे वे नशे की ओर आकर्षित न हों। खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए, ताकि युवा सकारात्मक गतिविधियों में संलग्न रहें। हिमाचल प्रदेश में नशे की समस्या से निपटने के लिए सरकार, समाज और परिवार को मिलकर काम करना होगा। नशे के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए शिक्षा, जागरूकता, सख्त कानून, पुनर्वास और रोजगार के अवसरों पर ध्यान देना आवश्यक है।











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