संस्कृतिकिताबें कृष्णा सोबती की ‘ऐ लड़की’: परंपरा और परिवर्तन के संगम की कहानी

कृष्णा सोबती की ‘ऐ लड़की’: परंपरा और परिवर्तन के संगम की कहानी

अम्मू परंपरागत जीवन मूल्यों को महत्व देती हैं, लेकिन आधुनिक विचारधारा को भी समझती और स्वीकारती हैं। वह स्त्री जीवन के बदलते आयामों को गहराई से देखती और कीमत लगाती है। अम्मू को चिंता है कि उनकी अविवाहित बेटी अकेले कैसे जिएगी। लेकिन बेटी के आत्मविश्वास से भरे उत्तर से वह संतुष्ट हो जाती हैं।

‘ठहर लड़की, मन के झरोखे में से कुछ देख रही हूं।’  छोटे से कैनवास पर माँ-बेटी के सह-संबंधों और अलग-अलग विचारों से बुनी कृष्णा सोबती की ‘ऐ लड़की’ कहानी अद्भुत संवेदना प्रस्तुत करती है। कहानी में यह माँ का बेटी के लिए बार-बार इस्तेमाल होने वाला आत्मीय संबोधन है। इसमें अपनापन भी है और स्त्री-अस्मिता की गूंज भी। कहानी के केंद्र में एक वृद्धा अम्मू हैं, जो जीवन के आखिरी दिनों में हैं। उनकी बातचीत का प्रमुख केंद्र उनकी बेटी है, जो धैर्यपूर्वक उनकी सारी बातें सुनती है। बीच-बीच में माँ का मन लगाने के लिए बेटी कुछ सवाल भी कर लेती है। इसी जीवन और जीवन से जुड़ी बातचीत से कहानी का कैनवास बुना गया है। कहानी में कुल चार पात्र हैं — वृद्ध महिला अम्मू, उनकी बेटी, देखभाल करने वाली नर्स सुसन और इलाज करने वाला डॉक्टर। संवादों के जरिए बुनी इस कहानी में मूल रूप से वृद्ध महिला बीते जीवन की स्मृतियों और अनुभवों को बांटती हैं।

जीवन के प्रति आस्था है, पर मौत का डर नहीं। पारंपरिक जीवन की झलक भी है और आधुनिक जीवन के प्रति समझ भी। अम्मू एक ऐसी बीमार वृद्धा हैं, जो बीमारी की जगह सृष्टि के संगीत के साथ जीती हैं। वह बिस्तर पर लेटे-लेटे भी प्रकृति की हर गति को देखती-समझती हैं। जब सुबह उनके कमरे में उजाला होता है, तो वह कहती हैं — ‘लड़की, भोर बड़ी संपदा है, जिसने सोकर इसे गंवाया, उसने बहुत कुछ खो दिया।’ ‘ऐ लड़की’ की वृद्ध स्त्री एक जिंदादिल और अनुभव-संपन्न व्यक्तित्व है। उन्होंने जीवन की कठिनाइयों के बीच भी मनुष्य होने की गरिमा बनाए रखी है। प्रकृति को देखने की उनकी संवेदनशील दृष्टि उन्हें साधारण घरेलू जीवन में उलझी अन्य स्त्रियों से अलग करती है।

अम्मू केवल अपने अतीत को नहीं देखतीं, बल्कि समाज की परंपराओं, रिवाजों और मिथकों का भी आलोचनात्मक मूल्यांकन करती हैं। उनकी और उनकी बेटी के बीच चलता संवाद कविता-सा बहता है, जो जीवन के गहरे तत्वों को छूता है। ‘ऐ लड़की’ की अम्मू महाभारत के कुंती और कर्ण के मिथक को नए नजरिए से देखती हैं।

संगीत का एहसास और अधूरी इच्छाएं  

‘ऐ लड़की’ की वृद्ध अम्मू कहती हैं कि भोर में पंछियों की चहचहाहट ही नहीं, सुबह की चाय में भी संगीत होता है। ठीक खौला पानी, गरम प्याला और जानदार पत्ती — ये सब मिलकर चाय को मीठी लय-सुर बना देते हैं। वह कहती हैं कि प्याला दूसरों को पिलाता है, खुद नहीं पी सकता। अपने अंतिम दिनों में अम्मू अपने जीवन की ओर पलटकर देखती हैं। वह पाती हैं कि उन्होंने हमेशा परिवार के अनुसार जीवन जिया, पर अपनी इच्छाओं को कभी नहीं सँवारा। दुख के साथ कहती हैं कि इस परिवार को घड़ी मुताबिक चलाया पर अपना निज का कोई काम नहीं संवारा। अम्मू स्वीकार करती हैं कि उनकी कई इच्छाएं अधूरी रह गईं। वह पहाड़ियों की चोटियों पर चढ़ना चाहती थीं, देश-दुनिया घूमना चाहती थीं।

तस्वीर साभार: Canva

लेकिन जीवन परिवार की ज़रूरतों में उलझ गया और उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाएं पीछे छूट गईं। मातृत्व को वह सम्मान देती हैं, पर उसके साथ जुड़ी कुर्बानी को भी महसूस करती हैं। बच्चों की माँ का सारा समय परिवार को समर्पित हो जाता है। वह कहती हैं कि बच्चों के लिए मात्र घर की व्यवस्था करने वाली बनकर रह जाती है। उनकी स्मृति में पेड़ों का छत्तर, उड़ते पाखी, ऋतुओं का बदलना, और नंगे पाँव ओस-जड़ी घास पर चलने के दृश्य ताजे हैं। बीमारी और बुढ़ापे से जूझती अम्मू कभी-कभी हताश भी हो जाती हैं। कभी वह स्मृतियों के झरोखे में खो जाती हैं और वहीं रहना चाहती हैं — जैसे वर्तमान से बाहर निकल पाना असहनीय हो।

अपने अंतिम दिनों में अम्मू अपने जीवन की ओर पलटकर देखती हैं। वह पाती हैं कि उन्होंने हमेशा परिवार के अनुसार जीवन जिया, पर अपनी इच्छाओं को कभी नहीं सँवारा। दुख के साथ कहती हैं कि इस परिवार को घड़ी मुताबिक चलाया पर अपना निज का कोई काम नहीं संवारा।

परंपराओं की समीक्षा और मिथकों की नई व्याख्या

अम्मू केवल अपने अतीत को नहीं देखतीं, बल्कि समाज की परंपराओं, रिवाजों और मिथकों का भी आलोचनात्मक मूल्यांकन करती हैं। उनकी और उनकी बेटी के बीच चलता संवाद कविता-सा बहता है, जो जीवन के गहरे तत्वों को छूता है। ‘ऐ लड़की’ की अम्मू महाभारत के कुंती और कर्ण के मिथक को नए नजरिए से देखती हैं। वह कहती हैं कि सृष्टि का हर नर सूरज से शक्ति खींचता है, जबकि स्त्री पृथ्वी बनकर उसे समेटती है। संतान का जन्म महज जैविक घटना नहीं, बल्कि मृत्यु को चुनौती देने जैसा है। अम्मू अपने वैवाहिक जीवन की सुखद स्मृतियों में खो जाती हैं। वह शादी के बाद का पहला सफर, शिमला के पहाड़ और बुरांश के फूलों को याद करती हैं। उन्हें अपने पति द्वारा दिलाई गई क्रीम रंग की जूती की खटखटाहट आज भी स्पष्ट सुनाई देती है।समाज जहां बेटे के जन्म को महत्त्व देता है, वहीं अम्मू बेटी के जन्म को सृष्टि की निरंतरता मानती हैं। वह कहती हैं- बेटी के पैदा होते ही माँ सद्जीवी हो जाती है। वह आज भी है और कल भी रहेगी।

परंपरा और आधुनिकता का संगम

तस्वीर साभार: The Indian Express

अम्मू परंपरागत जीवन मूल्यों को महत्व देती हैं, लेकिन आधुनिक विचारधारा को भी समझती और स्वीकारती हैं। वह स्त्री जीवन के बदलते आयामों को गहराई से देखती और कीमत लगाती है। अम्मू को चिंता है कि उनकी अविवाहित बेटी अकेले कैसे जिएगी। लेकिन बेटी के आत्मविश्वास से भरे उत्तर से वह संतुष्ट हो जाती हैं। वह समझती है कि स्त्री बिना विवाह के भी स्वतंत्र और गरिमापूर्ण जीवन जी सकती है। बिस्तर पर लेटी अम्मू लगातार बोलती रहती है। मानो अपने मन की गहराइयों से बेटी के मन तक पहुंचने की कोशिश कर रही हों। कहते हैं, उम्र ढलने पर यादें धुंधली हो जाती हैं, लेकिन मृत्यु के निकट वे अचानक तेज हो उठती हैं। अम्मू को अपनी माँ की याद आती है। वह बताती हैं कि मैं अपनी माँ का दूध बहुत दिनों तक नहीं पी सकी थी, क्योंकि जल्दी ही मेरे छोटे भाई-बहन आ गए थे। इस अधूरे स्नेह की टीस उनकी आवाज़ में झलकती है।

अम्मू स्वीकार करती हैं कि उनकी कई इच्छाएं अधूरी रह गईं। वह पहाड़ियों की चोटियों पर चढ़ना चाहती थीं, देश-दुनिया घूमना चाहती थीं। लेकिन जीवन परिवार की ज़रूरतों में उलझ गया और उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाएं पीछे छूट गईं। मातृत्व को वह सम्मान देती हैं, पर उसके साथ जुड़ी कुर्बानी को भी महसूस करती हैं।

बीते जीवन का आत्मगौरव

तस्वीर साभार: The Tribune

जब बेटी अम्मू से आराम करने को कहती है, तो वह नाराज हो जाती हैं। वह खुद को बीमार नहीं मानतीं। मुस्कुराते हुए कहती हैं कि तुम लोगों ने मुझे बूढ़ी देखा है, उस लड़की को नहीं, जो तुम्हारी माँ बनने के दिनों में कितनी दौड़भाग करती थी। उनका यह आत्मगौरव उनके संघर्षशील जीवन की झलक देता है। ‘ऐ लड़की’ की कहानी में सामाजिक और पारिवारिक संबंधों की जटिलताएं गहराई से रची-बसी है। यह जटिलताएं आज भी उतने ही मायने रखते हैं जितने कि पहले रखते थे। अम्मू के अनुभवों में पुरानी पीढ़ी की परंपराएं झलकती है वहीं बेटी के विचारों में आधुनिक चेतना की स्पष्ट गूंज है। कहानी में यह प्रश्न उठता है कि भविष्य की स्त्री कौन है? वह जो परंपराओं में बंधी रही है, या वह जो निर्भीक होकर कहती है कि मैं किसी को नहीं पुकारती, जो मुझे पुकारेगा, मैं उसका उत्तर दूंगी। यह प्रश्न स्त्री की स्वतंत्रता, स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता को सामने लाता है।

मूल्यों पर विमर्श

यह कहानी पुराने और नए मूल्यों पर तार्किक बहस करती है। जीवन के विविध पहलुओं को खोलती है और उन्हें नए सिरे से परखती है। आखिरकार जब अम्मू कहती हैं कि न भी हो दुनियादारी की चौखट, तब भी तुम अपनेआप में हो। अपनेआप में होना ही परम श्रेष्ठ है, तब कहानी अपने गहरे मर्म को पा लेती है। ‘ऐ लड़की’ दो पीढ़ियों की स्त्रियों के बीच संवाद है। एक ओर अम्मू हैं, जो जीवन के आखिरी पड़ाव पर खड़ी है और दूसरी ओर उनकी बेटी, जो अपने जीवन के मध्य में प्रवेश कर रही है। यह संवाद विवाह संस्था पर गहन और विमर्श पेश करता है। पूरी कहानी विवाह में स्त्री की भूमिका और उसकी स्वतंत्रता पर केंद्रित है। अम्मू अपने सम्पूर्ण वैवाहिक जीवन की सुखद स्मृतियों के बावजूद, विवाह में खुद को भुला देने की कसक को नहीं भूल पातीं। उनकी चेतना स्वतंत्र और स्त्री जीवन को पूर्ण सम्मान देती है।

जब बेटी अम्मू से आराम करने को कहती है, तो वह नाराज हो जाती हैं। वह खुद को बीमार नहीं मानतीं। मुस्कुराते हुए कहती हैं कि तुम लोगों ने मुझे बूढ़ी देखा है, उस लड़की को नहीं, जो तुम्हारी माँ बनने के दिनों में कितनी दौड़भाग करती थी। उनका यह आत्मगौरव उनके संघर्षशील जीवन की झलक देता है।

‘ऐ लड़की’ केवल माँ-बेटी के रिश्ते का चित्रण नहीं है, बल्कि स्त्री जीवन की जटिलताओं, स्वतंत्रता की खोज और आत्मसम्मान की यात्रा का भी गहन चित्र प्रस्तुत करती है। यह कहानी जीवन के अंतिम पड़ाव पर खड़ी एक स्त्री के अनुभवों, इच्छाओं और पछतावों के माध्यम से पीढ़ियों के बीच पुल बनाती है। कृष्णा सोबती की यह लेखन पुराने मूल्यों की समीक्षा और नए मूल्यों के प्रति स्वीकृति का संवेदनशील दस्तावेज है। ‘ऐ लड़की’ स्त्री के लिए यह संदेश देती है कि उसकी असली शक्ति उसकी एजेंसी और अपने अस्तित्व के गर्व में शामिल है।

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